सिद्धारमैया के नेतृत्व वाली कर्नाटक की कांग्रेस सरकार ने एआईएमआईएम के पार्षद मोहम्मद आरिफ समेत कुल 138 लोगों के खिलाफ 2022 के हुबली दंगे के मामले में दर्ज केस वापस लेने का फैसला किया है। इन आरोपियों के खिलाफ हत्या के प्रयास, दंगा और अन्य गंभीर आरोप लगाए गए थे। पीटीआई ने आधिकारिक सूत्रों के हवाले से बताया कि यह केस उन 43 मामलों में शामिल थे जिन्हें वापस लेने के लिए अंजुमन-ए-इस्लाम नामक संस्था ने राज्य के गृह मंत्री जी परमेश्वर के पास याचिका दायर की थी।
कैसे भड़की थी हुबली में हिंसा?
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, 16 अप्रैल 2022 को एक शख्स द्वारा मस्जिद को लेकर आपत्तिजनक पोस्ट डालने के बाद पुलिस आरोपी को थाने लाई थी और इस दौरान एक हिंसक भीड़ ने ओल्ड हुबली पुलिस स्टेशन पर हमला कर दिया था। इस दौरान भीड़ ने कथित तौर पर थाने पर पथराव भी किया था जिसमें करीब दर्जनभर पुलिसकर्मियों को चोटें आई थीं। हिंसक भीड़ ने इस दौरान थाने के पास के हनुमान मंदिर और एक अस्पताल को भी निशाना बनाया था जिससे काफी नुकसान हुआ था। पुलिस ने दंगों के मामले में 12 FIR दर्ज कीं थीं और 100 से ज्यादा लोगों को गिरफ्तार किया गया था।
पुलिस ने केस वापसी पर जताई आपत्ति
कर्नाटक में सत्ता परिवर्तन के बाद कांग्रेस की सरकार बनने पर इन केसों को वापस लेने की मांग की गई थी। हालांकि, ‘इंडिया टीवी’ ने सूत्रों के हवाले से बताया है कि दंगों के इस मामले को वापस लेने पर पुलिस विभाग और अभियोजन विभाग ने आपत्ति जताई थी। कर्नाटक सरकार ने विभाग की इन आपत्तियों को खारिज कर दिया और इन केसों को वापस लेने का फैसला किया है।
BJP ने बताया मुस्लिम तुष्टिकरण
BJP की आईटी सेल के प्रभारी अमित मालवीय ने कांग्रेस के इस फैसले को मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति बताया है। वहीं, केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद जोशी ने कहा, “यह मामला UAPA के तहत दर्ज किया गया था। UAPA गंभीर मामले होता है और आम तौर पर इसके तहत आतंकवादी-संबंधित गतिविधियों के खिलाफ किया जाता है।” जोशी ने कहा, “2 साल से अधिक समय तक सुप्रीम कोर्ट, हाईकोर्ट ने जमानत नहीं दी थी लेकिन कर्नाटक सरकार ने वकील बदल दिया।” बकौल जोशी, कर्नाटक सरकार इस्लामी कट्टरपंथी गतिविधियों का समर्थन कर रहे हैं।