अरबों के घोटाले में दोषी पाया गया कांग्रेस विधायक: MUDA और वाल्मीकि ट्रस्ट स्कैम से जूझती कर्नाटक सरकार को एक और झटका

कांग्रेस विधायक सतीश सैल

भ्रष्टाचार के दलदल में धंसती जा रही कर्नाटक की कांग्रेस सरकार के लिए एक और संकट भरी खबर है। कर्नाटक की कांग्रेस सरकार के मुख्यमंत्री, पूर्व मंत्री और विधायक MUDA घोटाला, वाल्मिकी ट्रस्ट के घोटाला जैसे आरोपों में घिरे हुए हैं और अब एक और विधायक सतीश सैल के खिलाफ लौह अयस्क के अवैध निर्यात से जुड़े अरबों के घोटाले में आरोप तय कर दिए गए हैं।  कर्नाटक में एक विशेष अदालत ने लौह अयस्क को अवैध रूप से निर्यात करने के आरोप में उत्तर कन्नड़ जिले के कारवार से कांग्रेस के विधायक सतीश कृष्ण सैल समेत कई लोगों और निजी कंपनियों को दोषी ठहराया है। बेलेकेरी पोर्ट से इस लौह अयस्क का अवैध निर्यात किया गया था और सैल को पुलिस ने इस मामले में गिरफ्तार कर लिया है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, चोरी किए गए लौह अयस्क को बंदरगाह के तत्कालीन उप-संरक्षक महेश बिलिये और मल्लिकार्जुन शिपिंग कंपनी जैसी बंदरगाह की एजेंसियों की संलिप्तता से अवैध रूप से निर्यात किया गया था। उस समय सतीश सैल मल्लिकार्जुन शिपिंग कंपनी के प्रबंध निदेशक थे।

कोर्ट ने सैल, बिलिये और मल्लिकार्जुन शिपिंग कंपनी को आपराधिक साजिश, चोरी और धोखाधड़ी के दो मामलों में दोषी ठहराया गया है जबकि बिलिये को भ्रष्टाचार के एक मामले में भी दोषी ठहराया गया है। एक अन्य मामले में लौह अयस्क निर्यात से जुड़े व्यवसायी के महेश कुमार को भी दोषी ठहराया गया है। मार्च 2010 में कर्नाटक के लोकायुक्त एन संतोष हेगड़े द्वारा की गई शुरुआती जांच में सामने आया था कि करीब 8 लाख टन लौह अयस्क को खनन, वन या परिवहन परमिट के बिना बेल्लारी से कारवार के निकट बेलेकेरी बंदरगाह तक ले जाया गया था जिसके बाद से सीबीआई इसकी जांच कर रही थी।

सुप्रीम कोर्ट ने 7 सितंबर 2012 को CBI को निर्देश दिया था, “वह 1 जनवरी, 2009 से 31 मई, 2010 की अवधि के दौरान कर्नाटक के वन क्षेत्रों में 50.79 लाख मीट्रिक टन लौह अयस्क के अवैध उत्खनन से जुड़ी जांच करे।” वहीं, सीबीआई ने बताया था कि यह मामला कर्नाटक के बेलेकेरी बंदरगाह से 2500 करोड़ रुपये मूल्य के 50 लाख मीट्रिक टन लौह अयस्क के अवैध उत्खनन और उसके निर्यात से जुड़ा है।

कोर्ट ने क्या कहा?

कोर्ट ने सैल के खिलाफ दोष तय करते हुए तल्ख टिप्पणियां की हैं। कोर्ट ने कहा, “हालांकि, सैल ने विधायक के तौर पर यह अपराध नहीं किया था लेकिन यह याद दिलाना जरूरी है कि उच्च पद पर बैठे लोगों को हमेशा ऐसा व्यवहार करना चाहिए जो समाज के लिए अनुकरणीय हो। उन लोगों को ऐसा बर्ताव करना चाहिए जो किसी भी तरह से आम जनता के साथ धोखाधड़ी न हो।” आरोपियों के वकील ने जब कोर्ट से राहत देने की मांग की तो कोर्ट ने कहा, “सर्वोच्च न्यायालय ने बार-बार कहा है कि आर्थिक अपराधों को एक अलग श्रेणी माना जाना चाहिए और अदालत को लगाए गए दंड पर विचार करके नरमी नहीं दिखानी चाहिए।”

कर्नाटक के सीएम पर MUDA में भ्रष्टाचार के आरोप

कुछ दिनों पहले कर्नाटक में मैसूर शहरी विकास प्राधिकरण (MUDA) में घोटाले का मामला भी सामने आया था जिसमें कथित तौर पर मुख्यमंत्री सिद्धारमैया पर आरोप लगाए गए थे। आरोप हैं कि मुख्यमंत्री की पत्नी बीएम पार्वती के नाम दर्ज तीन एकड़ 16 गुंटा जमीन को मुडा ने अधिग्रहित किया। इसके बदले में उन्हें 50:50 स्कीम के तहत विजयनगर 3 और 4 फेज में बेशकीमती 14 साइटें आवंटित की गईं। 50:50 स्कीम के तहत कुल 38,284 वर्गफीट जमीन के आवंटन को लेकर घोटाले के आरोप हैं। हालांकि, सिद्धारमैया की पत्नी ने MUDA को उन 14 प्लॉट को लौटा दिया है जिन्हें लेकर उन पर घोटाले का आरोप है।

दरअसल, MUDA विकास को बढ़ावा देने जैसा कामों के लिए जमीन का अधिग्रहण करती है। मुडा ने जमीन देने वाले लोगों के लिए 50:50 नाम की स्कीम शुरू की गई थी। इसमें जमीन खोने वाले लोग विकसित जमीन के 50 प्रतिशत के हकदार होते थे। यानी अगर किसी की दो एकड़ जमीन अधिग्रहित की जाती है, तो उसे दूसरी विकसित जगह पर एक एकड़ जमीन दी जाती है।

कांग्रेस का 187 करोड़ का वाल्मिकी घोटाला

बीते दिनों ED ने कर्नाटक की कांग्रेस सरकार द्वारा किए गए करोड़ों रुपए के वाल्मीकि घोटाले को लेकर बड़ा खुलासे किए थे। ED ने बताया था कि कांग्रेस नेता व पूर्व मंत्री बी नागेंद्र और उसके सहयोगियों ने कुल 187.33 करोड़ रुपए का वाल्मीकि घोटाला किया है। इसमें से 15 करोड़ रुपए का इस्तेमाल चुनाव प्रभावित करने के लिए किया गया था और बेल्लारी के 7 लाख वोटरों को लगभग 200-200 रुपए दिए गए थे। यह घोटाला महर्षि वाल्मीकि अनुसूचित जनजाति विकास निगम के लेखा अधीक्षक चंद्रशेखरन पी की आत्महत्या के बाद सामने आया था। चंद्रशेखरन ने सुसाइड नोट में कहा था कि उच्चाधिकारियों ने उन पर निगम का पैसा विभिन्न खातों से ट्रांसफर करने का दबाव बनाया था। जब यह मामला सामने आया तो चंद्रशेखर पी डर गए और उन्होंने आत्महत्या कर ली। बाद में जांच हुई तो मंत्री बी नागेन्द्र को इस्तीफा देना पड़ा था।
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