कैसा हो कि आपके सामने CJI बनकर कोई शख्स बैठा हो, वर्चुअल कोर्टरूम हो, CBI अधिकारी हों और आपको ‘डिजिटल अरेस्ट’ कर इन सबके ज़रिए ₹7 करोड़ ठग लिए जाएं, सुनने में किसी फिल्मी कहानी जैसी लग रही। यह घटना हुई है वर्धमान ग्रुप के प्रमुख SP ओसवाल के साथ। पुलिस ने ओसवाल के साथ ठगी के मामले में गुवाहाटी (असम) के दो लोगों को गिरफ्तार कर उनके पास से ₹5 करोड़ से अधिक की ज़ब्ती कर ली है।
‘9 नंबर’ दबाने के बाद शुरू हुई ठगी
ओसवाल ने NDTV के साथ बातचीत में अपने साथ हुई ठगी की पूरी कहानी बताई है। उन्होंने बताया, “28 अगस्त को मेरे पास फोन आया था। ठगों ने कहा कि आपके फोन 2 घंटे में डिस्कनेक्ट कर दिए जाएंगे और उन्होंने मुझसे 9 नंबर दबाने को कहा जिसे मैंने दबा दिया। इसके बाद दूसरी तरफ मौजूद शख्स ने कहा कि वह CBI के कोलाबा दफ्तर से बात कर रहा है।” ठगों ने ओसवाल को बताया कि उनके नाम पर कैनरा बैंक का एक अकाउंट है जिसमें इसमें वित्तीय अनियमितता हुई है।
नरेश गोयल से जोड़ा गया मामला
ठगों ने वीडियो कॉल के ज़रिए चल रही बातचीत में ओसवाल को बताया कि जेट एयरवेज के पूर्व चेयरमैन नरेश गोयल से जुड़े मनी लॉन्डरिंग के मामले में उनके अकाउंट का इस्तेमाल किया गया था। ओसवाल ने कहा, “ठगों ने मुझे इस मामले में संदिग्ध बताया और कहा कि आप हमारी डिजिटल कस्टडी में हैं, हम आपको बचाने की कोशिश करेंगे। आपको हमारा सहयोग करना पड़ेगा। ठगों ने मुझे केस से बचकर निकालने का भरोसा दिया।”
‘फर्जी सीजेआई’ की अदालत में सुनवाई
ओसवाल NDTV को आगे बताते हैं, “मुझसे केस की जल्द सुनवाई करने के लिए लेटर लिखने का कहा गया था। मुझे सर्विलांस से जुड़े करीब 70 नियम भेजे गए थे और मुझ पर लगातार निगरानी चल रही थी, अगर मैं कमरे से बाहर भी जाता था तो फोन लेकर जाता था ताकि वे लोग मुझे देख सकें।” उन्होंने बताया कि ठगों ने एक फर्जी कोर्टरूम भी बनाया था जिसमें ठगों का एक साथी फर्जी ‘CJI डीवाई चंद्रचूड़’ बनकर बैठा था और उसने भी आदेश भी जारी किया था। बकौल ओसवाल, उनसे अलग-अलग बैंक खातों में ₹7 करोड़ जमा करने को कहा गया था।
पुलिस ने अब तक क्या-क्या किया?
पुलिस ने ओसवाल की शिकायत पर 31 अगस्त को केस दर्ज किया और मामले में अतनु चौधरी और आनंद कुमार नामक लोगों को असम के गुवाहाटी से गिरफ्तार कर लिया है। पुलिस ने अब तक ₹5.25 करोड़ बरामद कर लिए हैं जो ऐसे मामलों में अब तक की सबसे बड़ी ज़ब्ती है। पुलिस इस मामले के कथित मास्टरमाइंड और पूर्व बैंक कर्मचारी रुमी कलिता समेत कई अन्य लोगों की तलाश कर रही है। आरोपित आनंद ने पुलिस को बताया कि उससे कहा गया था कि उसके अकाउंट के ज़रिए गेमिंग प्राइज़ के पैसों का लेन-देन किया जाएगा जिसका उसे हिस्सा मिलेगा।
क्या होता है ‘डिजिटल अरेस्ट’?
‘डिजिटल अरेस्ट’ कोई कानूनी तरीका या प्रावधान नहीं है, यह ठगों द्वारा साइबर फ्रॉड के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला एक तरीका है। ‘डिजिटल अरेस्ट’ में ठग लोगों को वीडियो कॉलिंग के जरिए घर में बंधक बना लेते हैं और हर समय पीड़ित की निगरानी करते रहते हैं। ऐसे मामलों में ठग खुद को किसी सरकारी एजेंसी का अफसर या पुलिस अफसर बनकर वीडियो कॉल करते हैं। ठग लोगों को गिरफ्तारी का डर दिखाकर लोगों घर में ही कैद कर देते हैं और यहां तक अपने वीडियो कॉल के बैकग्राउंड को किसी पुलिस स्टेशन या किसी एजेंसी की तरह बना लेते हैं।
इसके बाद ठग झूठे आरोप लगाते हैं और जमानत या केस से बरी करने की बातें कह कर पैसे ऐंठ लेते हैं। अपराधी इस दौरान पीड़ित को वीडियो कॉल से हटने भी नहीं देते हैं और ना ही किसी को कॉल करने देते हैं। आमतौर पर रिटायर्ड या काम कर रहे उम्रदराज़ पेशेवरों को ठग अपना निशाना बनाते हैं क्योंकि उनके खातों में अच्छी-खासी रकम होती है और वे तकनीकी रूप से भी कम अपडेटेड होते हैं। गौरतलब है, अलग-अलग जगहों की पुलिस ने कई बार एडवाइजरी जारी कर बताया है कि ‘डिजिटल अरेस्ट’ या ‘वर्चुअल अरेस्ट’ जैसी कोई चीज नहीं होती है।