Deep State, Cultural Marxism, Wokeism: समझिए उन 3 खतरों को, जिन्हें लेकर मोहन भागवत ने किया आगाह

भारत में अराजकता और तख्तापलट की साजिश

मोहन भागवत, RSS के 100 साल

मोहन भागवत ने भारत के समक्ष उपस्थित 3 वैश्विक खतरों को लेकर किया आगाह

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) अपने 100वें वर्ष में पहुँच गया है। विजयादशमी के साथ-साथ संगठन का स्थापना दिवस भी नागपुर स्थित इसके मुख्यालय में मनाया जाता है। इस अवसर पर संबोधन देते हुए सरसंघचालक मोहन भागवत ने कुछ ऐसी बातें कहीं, जो वैश्विक पृष्ठभूमि में ध्यान देने लायक हैं। एक तरह से उन्होंने जता दिया है कि भारत के सबसे बड़े संगठन और इसके लोगों को Deep State की कारगुजारियों के बारे में पता है। अगर विदेशी ताकतों को लगता है कि वे भारतीयों को बुद्धू बना लेंगे, तो अब वह जमाना गया। भारतीय जनता अब होशियार हो गई है।

मोहन भागवत ने क्या कहा

मोहन भागवत ने अपने संबोधन के दौरान कहा, “बांग्लादेश में चर्चाएँ ऐसी चलती हैं कि उन्हें भारत से खतरा है, इसीलिए पाकिस्तान को साथ लेना चाहिए क्योंकि वही हमारा प्रामाणिक मित्र है। वे सोचते हैं कि पाकिस्तान के पास परमाणु हथियार हैं, इसीलिए वे मिलकर भारत को रोक सकते हैं। जिस बांग्लादेश के निर्माण में भारत ने पूरी सहायता दी और अब तक कोई वैर-भाव नहीं रखा, आगे भी नहीं रखेंगे – उसी बांग्लादेश में ऐसी चर्चाएँ हो रही हैं। ये चर्चाएँ कौन करा रहा है? ये Narrations वहाँ पर चलें, ये किन-किन देशों के लिए हित की बात है – ये देखने-सोचने वाले समझते हैं, नाम लेने की आवश्यकता नहीं है।”

सरसंघचालक मोहन भागवत ने आगे कहा कि हमारे देश में भी बांग्लादेश जैसी स्थिति लाने की मंशा है, क्योंकि भारत बड़ा बनेगा, तो स्वार्थ की सारी दुकानें बंद हो जाएँगी। उन्होंने समझाया कि वे चाहते हैं कि भारत सामर्थ्यवान न बने और ऐसे उद्योग चल रहे हैं। इस दौरान उन्होंने डीप स्टेट, Wokism और कल्चरल मार्क्सिज़्म जैसे शब्दों का ज़िक्र करते हुए कहा कि ये चर्चा में बने हुए हैं और उन्होंने पिछले वर्ष भी इनकी बात की थी। बकौल मोहन भागवत, कुछ लोग कह रहे थे कि ये अपने यहाँ है ही नहीं, लेकिन ये बहुत पहले से अपने यहाँ है।

मोहन भागवत ने इस दौरान वैश्विक प्रभाव की बात करते हुए कहा कि ये चीजें सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि सभी प्राचीन सांस्कृतिक परंपराओं के विरुद्ध जाती हैं। मोहन भागवत द्वारा इन Terminologies का इस्तेमाल करना ये बताता है कि उन्हें भारत के सामने आसन्न समस्याओं के बारे में न सिर्फ पता है, बल्कि इससे निपटने के लिए भी संगठन तैयार है। RSS को इन समस्याओं के बारे में पता होने का मतलब है कि आम जनता को भी इन्हें लेकर जागरूक किया जाएगा और भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार भी इस दिशा में कार्रवाई करेगी।

Deep State और भारत को लेकर उनकी मंशा

आइए, इन Terminologies को थोड़ा समझते हैं। यह ‘डीप स्टेट’ क्या है? ‘डीप स्टेट’ का अर्थ है उन चंद लोगों का समूह जो सरकारों, कंपनियों और समाज को अपने हिसाब से चलाना चाहते हैं। इनकी हमेशा यह कोशिश रहती है कि कोई भी देश या समाज अपनी संस्कृति पर गर्व न कर पाए, अपनी परंपराओं को आगे लेकर न जाए और हीनभावना से भरा रहे। तभी उनका एजेंडा कामयाब होगा। अमेरिका में बैठे ‘डीप स्टेट’ के ये लोग चाहते हैं कि हर देश की सरकार में उनके ही लोग बैठे हों। बांग्लादेश में ऐसा नहीं हुआ, तो तख्तापलट करा दिया गया।

तभी तो जो अमेरिका लोकतंत्र की बड़ी-बड़ी बातें करता है, वह बांग्लादेश की एक ऐसी सरकार का साथ दे रहा है, जो फौज के समर्थन से बनी है और जिसमें एक भी व्यक्ति चुना हुआ नहीं है। भारत में भी ‘किसान आंदोलन’ ने कैसे जातीय कट्टरता और मजहबी उन्माद का रूप ले लिया, इसके बहाने जाटों और सिखों को भड़काया जाने लगा और मोदी सरकार को 3 कृषि कानूनों को वापस लेना पड़ा – यह किसी से छिपा नहीं है। अचानक से एक पूर्ण बहुमत वाली चुनी हुई सरकार को पीछे हटना पड़ा, मतलब खतरा बड़ा था।

ठीक इसी तरह, लद्दाख को जम्मू-कश्मीर से काटकर अलग केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा दिया गया। बौद्ध प्रभाव वाले लद्दाख को अब्दुल्लाह-मुफ्ती परिवार की जंजीरों में बंध कर रहना पड़ता था। अब जैसे ही लद्दाख को स्वायत्तता मिली, वहाँ से सोनम वांगचुक नाम का एक शख्स, जो कि कांग्रेस के एक पूर्व मंत्री का बेटा है, दिल्ली में डेरा डालने के लिए निकल पड़ता है। ये होते हैं डीप स्टेट के Asset, यानी उनकी संपत्ति। कभी वे उत्तर प्रदेश में राकेश टिकैत के रूप में सामने आते हैं, तो कभी लद्दाख में सोनम वांगचुक के रूप में।

भारतीय सभ्यता को तबाह करके यहाँ अपने लोगों का शासन लाने की दिशा में काम कर रहे डीप स्टेट के सरगनाओं में जॉर्ज सोरोस का नाम सबसे ऊपर आता है। भारत के सबसे अमीर शख्स गौतम अडानी को निशाना बनाया गया। ‘हिंडेनबर्ग रिसर्च’ नामक अमेरिकी संस्था ने अडानी समूह के खिलाफ रिपोर्ट प्रकाशित की और जैसे ही शेयर गिरे, शॉर्ट सेलिंग करके भारी कमाई की। जब अडानी समूह इससे उबर गया और उसके शेयर फिर से चढ़ गए, हिंडेनबर्ग फिर रिपोर्ट लेकर आ गया। हालाँकि, इस बार जनता उसकी चाल समझ चुकी थी और शेयर गिरे ही नहीं। फिर वह एक और रिपोर्ट लेकर आई, इस बार भी कोई असर नहीं हुआ। हिंडेनबर्ग में जॉर्ज सोरोस का निवेश होने की बात भी सामने आती है।

केंद्रीय विदेश मंत्री S. जयशंकर भी जॉर्ज सोरोस को खतरनाक शख्स बता चुके हैं। फरवरी 2023 में जॉर्ज सोरोस ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अलोकतांत्रिक बता दिया था और कहा था कि अडानी के खिलाफ हिंडेनबर्ग की रिपोर्ट के बाद भारत में लोकतंत्र बहाली का दरवाजा खुलेगा। यानी, वे भारत में भी तख्तापलट का सपना लेकर बैठे हैं। इसके लिए उन्हें सबसे बड़ा हथियार यह मिलता है कि मुस्लिमों को हिंदुओं के खिलाफ भड़काया जाए। दुनिया भर में यह माहौल बनाया जाए कि भारत में अल्पसंख्यकों पर अत्याचार हो रहा है। वे अल्पसंख्यक, जिनकी जनसंख्या 22 करोड़ है। जॉर्ज सोरोस की ‘ओपन सोसाइटी फाउंडेशन’ का भारत में निवेश ही भारत को तबाह करने के लिए होता है। भारत में कई संगठनों को फंड करके यह माहौल बनवाया जाता है कि यहाँ मानवाधिकारों का उल्लंघन हो रहा है। CAA के खिलाफ जिस तरह से विरोध प्रदर्शन हुए और दंगे हुए, उसमें भी विदेशी हाथ था। उमर खालिद और शरजील इमाम जैसे भारत को खंडित करने की बातें करने वाले आतंकी इस मामले में जेल में हैं।

2020 में भी जॉर्ज सोरोस ने कहा था कि पीएम मोदी भारत को हिंदू राष्ट्र बनाना चाहते हैं। सनातन परंपरा के पुनर्जीवित होने से इन्हें समस्या है, क्योंकि भारत इनके इशारों पर न नाच कर अपने अस्तित्व पर गर्व कर रहा है। न सिर्फ गर्व कर रहा है, बल्कि आगे भी बढ़ रहा है। जम्मू-कश्मीर को लेकर भी अक्सर दुनिया भर में माहौल बनाया जाता है कि भारत ने वहाँ जबरन कब्जा कर रखा है। जबकि हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव में 60% से अधिक मतदान हुआ। इसी तरह मणिपुर कई महीनों तक जलता रहा। वहाँ पादरियों को मैतेई हिन्दुओं के खिलाफ कुकी ईसाइयों को भड़काते हुए देखा गया।

नई पीढ़ियों को बर्बाद करता Woke ism

इसी तरह, Wokism भी भारत के लिए खतरनाक है। Wokeism का अर्थ है कुछ ज़्यादा ही Woke बन जाना, यानी अत्याधुनिक समाज बनने का नाटक करने के लिए पश्चिमी सभ्यता से आईं ऐसी चीजों को अपना लेना जिनका अपनी सभ्यता से दूर-दूर तक कोई मेल न हो। मेल की बात तो दूर, उलटे विरोधाभासी हों। उदाहरण के लिए, जिस भारत देश में किन्नर समाज को हमेशा सम्मान दिया गया है और शुभ माना गया है, वहाँ पश्चिम से आए LGBTQIA की क्या ज़रूरत है। वैसे भी इसमें हर साल एक नया अक्षर जुड़ जाता है। और तो और, छोटे-छोटे बच्चों को ये चीजें पढ़ाई जा रही हैं। यही है Wokeism.

Woke होने का अर्थ है हेलोवीन जैसे विदेशी त्योहारों पर अजीबोगरीब वेशभूषा धारण करके घूमना और अपने त्योहारों जैसे होली पर पानी बचाने और दीवाली पर प्रदूषण बढ़ने का ज्ञान देना। Woke होने का अर्थ है अपनी हिंदी और संस्कृत जैसी भाषाओं को गाली देना और अंग्रेजी भाषा में बनावटी एक्सेंट के साथ बातें करना। Woke होने का अर्थ है खुलेआम सेक्स की बातें करते चलना, धर्मस्थलों में अश्लील कपड़े पहनकर घूमना और अनेक शारीरिक संबंध बनाए जाने को बढ़ावा देना। Woke होने का अर्थ है अपने देश के उद्योगपतियों को गाली देना, और बिल गेट्स को लेकर वाओ-वाओ करना।

मार्क्सवाद भरता है अपनी सभ्यता को लेकर हीनभावना

इसी तरह Cultural Marxism के तहत दुनिया भर की जीवित प्राचीन संस्कृतियों को मिटाकर पश्चिमी संस्कृति थोपने का एक अभियान है। यही लोगों को Woke बनाता है। यही लोगों को Woke बनाता है। वामपंथी मार्क्सवाद ने भारत को कितना नुकसान पहुँचाया है, ये हमें पता है। इससे प्रभावित इतिहासकारों ने कई पीढ़ियों को ऐसा इतिहास कि पढ़ाया कि हम अपने ही देश को लेकर हीनभावना से भर गए। हमें ऐसा लगने लगा कि हम असभ्य लोग थे जिन्हें विदेशियों ने ही आकर सब कुछ समझाया। हमें कुछ आता ही नहीं था, हमारे पूर्वज अनपढ़ और गँवार थे।

जबकि हमें ये समझाने की ज़रूरत है हमारी नई पीढ़ी को कि हमारे ऋषि-मुनियों ने तमाम उपनिषद रचे, दर्शन के विभिन्न सिद्धांत दिए और यहीं धरती पर बैठ कर तमाम खगोलीय गणनाएँ कीं। सिंधु घाटी सभ्यता से लेकर सिनौली तक, हर खुदाई से पता चलता है कि जब दुनिया जंगलों में पत्ते पहन कर रह रही थी तब हम बड़े समृद्ध और सभ्य थे। और तो और, हमारे यहाँ तो जंगल में रहने वाले लोग भी कहीं अधिक सभ्य हुआ करते थे। मोहन भागवत के ताज़ा बयान के बाद आशा है कि इन तीनों खतरों के खिलाफ RSS संगठित रूप से काम करेगा।

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