भारत और कनाडा के कूटनीतिक रिश्ते शायद अपने सबसे निचले स्तर पर चले गए हैं और दोनों देशों के बीच तनातनी से इतना तो स्पष्ट है कि ये रिश्ते अभी और खराब होंगे। इन रिश्तों के खराब होने के एक मात्र वजह है कनाडा की सरकार का खालिस्तान प्रेम। कनाडा की सरकार लगातार अपनी धरती पर भारत विरोधी तत्वों को जगह दे रही है। ये लोग कभी इंदिरा गांधी की हत्या का मजाक उड़ाते नजर आते हैं, कभी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पुतले के साथ बदसलूकी करते दिखते हैं और कभी तिरंगे को तार-तार कर देते हैं। कनाडा की सरकार यह सब खुलेआम होने दे रही है।
खालिस्तानी आतंकी हरदीप सिंह निज्जर की कनाडा में हत्या कर दी गई जिसका आरोप कनाडा ने भारत पर लगाया लेकिन कोई सबूत नहीं दिया। कनाडा जांच करने की बात करता रहा है और हालात यहां तक बिगड़ गए कि कनाडा ने भारत के उच्चायुक्त संजय वर्मा समेत अन्य राजनयिकों का नाम निज्जर की हत्या के मामले से जोड़ा है लेकिन सबूतों के नाम पर अभी भी सन्नाटा है।
इस विवाद के बाद भारत ने कनाडा के 6 राजनयिकों को देश छोड़ने के लिए कह दिया है और कनाडा से अपने कुछ राजनयिक वापस बुला लिए हैं।
कैसे कनाडा पहुंचे थे सिख
कनाडा में सिखों के बसने के शुरू होने की कहानी 1897 से जुड़ी है। महारानी विक्टोरिया ने 1897 में ब्रिटिश भारतीय सैनिकों की एक टुकड़ी को डायमंड जुबली सेलिब्रेशन में शामिल होने के लिए लंदन बुलाया था और इन्हीं सैनिकों में रिसालेदार मेजर केसर सिंह शामिल थे। बताया जाता है कि रिसालेदार कनाडा में शिफ्ट होने वाले पहले सिख थे और वह कुछ और सैनिकों के साथ ब्रिटिश कोलंबिया में अपना घर बनाया। अगले कुछ वर्षों में 5,000 भारतीय ब्रिटिश कोलंबिया पहुंच गए जिनमें 90% सिख थे।
प्रवासियों की बढ़ती आबादी को देखते हुए 1908 में कनाडा ने प्रवासी नीति लागू की जिसके बाद सिखों का कनाडा में बसना मुश्किल हो गया। वहीं, 1960 के दशक में जब कनाडा में लिबरल पार्टी की सरकार बनी तो प्रवासी नियमों में बदलाव किया गया और विविधता को स्वीकार करने के लिए देश के दरवाजे खोल दिए।
दूसरी ओर भारत ने 1980 के दशक में जब खालिस्तान समर्थकों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करनी शुरू की तो बड़ी संख्या में खालिस्तान के समर्थक कनाडा भाग गए पिछले दो दशकों में कनाडा में सिखों की आबादी तेजी से बढ़ी है। कनाडा के सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, 2001 और 2021 के बीच कनाडा में सिख आबादी का अनुपात 0.9% से बढ़कर 2.1% हो गया।
ईसाई, मुस्लिम और हिंदू के बाद सिख समुदाय कनाडा का चौथा सबसे बड़ा धार्मिक समूह है। पंजाबी कनाडा की तीसरी सबसे लोकप्रिय भाषा है और सिखों ने कनाडा के निर्माण क्षेत्र, परिवहन और बैंकिंग क्षेत्र में बहुत बड़ा योगदान दिया है।
कनाडा में कैसे राजनीतिक रूप से प्रभावशाली होते गए सिख
पंजाब में जन्मे गुरबक्स सिंह मल्ही 1993 में कनाडाई संसद के लिए चुने गए पहले सिख थे और इसके बाद कनाडा की राजनीति में सिखों का दबदबा इस कदर बढ़ा कि 2021 के आम चुनावों में 338 सीटों वाली कनाडाई संसद में सिख सांसदों की संख्या बढ़कर 18 तक पहुंच गई।
सिखों की धाक का अंदाजा इससे भी लगाया जा सकता है कि 2015 में जब जस्टिन ट्रूडो पहली बार कनाडा के प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने सिख समुदाय के 4 लोगों को अपनी सरकार में मंत्री बनाया था। उस चुनाव में कुल 17 सिख सांसद जीते थे और इनमें से 16 ट्रूडो की लिबरल पार्टी से थे।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, कनाडा की 8 सीटों पर पूरी तरह से सिखों का प्रभाव हैं और 15 सीटों पर वे चुनाव में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं। ऐसे में कनाडा का कोई भी राजनीतिक दल सिख समुदाय को नाराज नहीं करना चाहता है।
कनाडा की खालिस्तान लॉबी
भारत के पूर्व विदेश सचिव ने हालिया घटनाक्रम के बाद एक लेख में लिखा है कि इसके पीछे ट्रूडो की वोट बैंक पॉलिटिक्स है और वह सिख वोटर्स को अपनी तरफ लुभाना चाहते हैं। उन्होंने लिखा, “कनाडा में खालिस्तान लॉबी बहुत मजबूत है और उस लॉबी की ट्रूडो को जरूरत है। दूसरे शब्दों में यह भी कह सकते हैं कि ट्रूडो के इस कदम के पीछे खालिस्तान लॉबी भी हो सकती है, जिसने उन पर दबाव डाला।” कनाडा के कई प्रभावशाली लोग खालिस्तानी तत्वों के समर्थक रहे हैं लेकिन इनकी संख्या मुट्ठी भर ही है।
कनाडा के पूर्व मंत्री और ब्रिटिश कोलंबिया के पूर्व प्रीमियर उज्जल दोसांझ ने सीबीसी न्यूज़ के साथ बातचीत में कहा है कि खालिस्तान के चरमपंथी खुलेआम नफरती भाषण देते हैं और कनाडा की सरकार उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं करती है। उन्होंने कहा, “जस्टिन ट्रूडो पहले दिन से ही खालिस्तानियों से घिरे हुए हैं और खालिस्तानी उनकी कैबिनेट तक में शामिल हैं। ट्रूडो का जगमीत सिंह के साथ गठबंधन है जो खुद एक खालिस्तानी है।” बकौल उज्जल, खालिस्तानी लंबे समय से हिंसा करते रहे हैं जिनमें एअर इंडिया की बॉम्बिंग भी शामिल है लेकिन उनके खिलाफ कार्रवाई नहीं की गई है, कनाडा इसमें असफल रहा है।