भारत के विपक्षी नेता अक्सर रट्टा लगाते हैं कि मणिपुर जल रहा है, लेकिन वो उनका नाम नहीं लेते जो लोग मणिपुर को जला रहे हैं। मणिपुर में मैतेई समुदाय को ST (अनुसूचित जनजाति) का दर्जा दिए जाने के हाईकोर्ट के फैसले के बाद कुकी उपद्रवी सड़क पर उतरे और वहीं से हिंसा शुरू हुई जो इन दोनों समुदायों के बीच संघर्ष व हिंसा में तब्दील हो गई। प्रधानमंत्री कार्यालय के कई अधिकारी मणिपुर सरकार के साथ मिल कर स्थिति को सामान्य करने में लगे तो हुए हैं, लेकिन कई विदेशी ताक़तें चाहती हैं कि मणिपुर कभी शांत रहे ही नहीं।
इस साजिश में अमेरिका के बैप्टिस्ट चर्च से जुड़े NGO भी शामिल हैं। ये सब मिल कर मैतेई और कुकी समाज के बीच के संघर्ष का फायदा उठाना चाहते हैं। US बैप्टिस्ट चर्च ने ‘नाइवैंजेलिस्ट्सगालैंड फॉर क्रिस्ट’ नाम से एक अभियान भी शुरू किया है। इसे ‘नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालैंड’ (NSCN) व अन्य अलगाववादी संगठनों का समर्थन भी शामिल है। भारत के संगठन ‘लीगल राइट्स ऑब्जर्वेटरी’ से सम्बद्ध कोहिमा स्थित ‘फॉरेन इवैंजेलिस्ट्स साइबर मॉनिटरिंग डेस्क’ ने ‘Sputnik India’ को जानकारी दी है कि नागालैंड में दर्जनों विदेशी ईसाई मिशनरी मौजूद हैं।
बताया जा रहा है कि इनमें से कई ऐसे हैं जिन्होंने पूर्व में वीजा के नियमों का उल्लंघन किया है। यानी, ये पर्यटक बन कर आए लेकिन टूरिस्ट वीजा के नियमों के खिलाफ यहाँ अपने मजहब का प्रचार-प्रसार शुरू कर दिया। इसके अलावा ‘सूडान इंटीरियर मिशन (SIM)’ नामक संगठन भी भारत में यही सब कर रहा है। LRO समूह ने जानकारी दी कि मेघालय-असम सीमा पर गारो जनजाति के बीच SIM का एक ऑस्ट्रेलियाई प्रतिनिधि जम कर ईसाई मजहब को फैला रहा है। SIM अफ्रीका में ईसाई धर्मांतरण की गतिविधियों के लिए पहले से ही कुख्यात है। LRO भारत में उनकी गतिविधियों की निगरानी कर रहा है।
इसी तरह, पिछले साल डेनिएल स्टीफन कॉर्नी नामक एक ब्लैकलिस्टेड अमेरिकी ईसाई उपदेशक, जो कि US आर्मी से रिटायर्ड है, उस पर LRO ने नज़र रखी। उसने चुराचांदपुर स्थित कुकी लोगों के कैम्प में भड़काऊ भाषण दिए। ये मैतेई-कुकी संघर्ष शुरू होने के कुछ ही हफ़्तों बाद की बात थी। ब्लैकलिस्ट होने के बावजूद वो भारत में आने में कामयाब रहा। सोशल मीडिया पर वो वीडियो भी है, जिसमें वो मैतेई हिन्दुओं को दुश्मन बताते हुए कुकी समाज के लोगों को भड़का रहा है। उसे 2017 में भारत से प्रत्यर्पित किया गया था। पिछले साल फिर उसका प्रत्यर्पण हुआ। फ़िलहाल वो नेपाल में बैठा हुआ है।
भारत ने मजहबों के प्रचार-प्रसार करने वालों के मामले में वीजा के नियम कड़े किए हैं, फिर भी ये मिशनरी जनजातीय इलाक़ों में घुसने में कामयाब हो रहे हैं। फरवरी 2024 में 64 वर्षीय जॉन मैथ्यू बून और 77 वर्षीय माइकल जेम्स फ्लिंचुम को भारत में टूरिस्ट वीजा लेकर मजहबी धर्मांतरण में लिप्त पाया गया था। दोनों गिरफ्तार हुए थे। अक्टूबर 2022 में असम पुलिस ने जानकारी दी थी कि स्वीडन के 2 नागरिकों और जर्मनी के कई लोगों को हिरासत में लिया गया था। मणिपुर में ईसाइयों को पीड़ित बता कर ‘इंटरनेशनल मिनिस्ट्रीज’ (IM), नीदरलैंड्स स्थित ‘ओपन डोर्स’ और ‘वेस्लेयन मेथोडिस्ट चर्च’ जैसे संगठन चंदा इकट्ठा करने में लगे हुए हैं।
-Why was an American preacher allowed in already troubled #Manipur
-He is seen openly inciting Kuki against Govt of #India
-He says Govt won’t help you
-He is also referring Meitei as “your enemy” pic.twitter.com/AH528qVFlN— Insightful Geopolitics (@InsightGL) October 2, 2024
ये भारत में मनी लॉन्ड्रिंग के विरोध में बने FRCA जैसे कानूनों का भी उल्लंघन कर रहे हैं। इस दौरान ये भी याद करना ज़रूरी है कि मणिपुर की सरकार ने पिछले साल ‘एडवेंटिस्ट डेवलपमेंट एन्ड रिलीफ एजेंसी’ (ADRA) द्वारा दिए जा रहे 2.80 लाख डॉलर की मदद ठुकरा दी थी। यूरोपियन संसद ने मणिपुर हिंसा की जाँच के लिए प्रस्ताव पारित किया था, जिसे भारत ने सम्राज्यवादी मानसिकता बता कर ख़ारिज कर दिया था। अमेरिका के रिलीजियस फ्रीडम वाले आयोग USCIRF ने भी मणिपुर में मानवाधिकार उल्लंघन की बात कही थी, जिसे भारत सरकार ने नकार दिया था।