जम्मू: एक दशक के बाद जम्मू-कश्मीर में हो रहे विधानसभा चुनाव आखिरी चरण की ओर हैं। 90 विधानसभा सीटों में से कश्मीर घाटी में 47 और जम्मू क्षेत्र में 43 सीटें हैं। जम्मू-कश्मीर के इस बार के चुनाव अहम हैं, क्योंकि अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद राज्य में यह पहला विधानसभा इलेक्शन है। 2014 में हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी को 25 और कांग्रेस को 12 सीटें मिली थीं। बीजेपी को अकेले जम्मू क्षेत्र से 25 सीटें मिली थीं। कांग्रेस को कश्मीर घाटी से 3 सीटें मिली थीं।
बीजेपी-कांग्रेस दोनों के लिए जम्मू सत्ता की चाबी
बीजेपी और कांग्रेस दोनों के लिए जम्मू ही सत्ता की चाबी माना जा रहा है। नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में 2014 का चुनाव लड़ने से लेकर 2019 और 2024 के चुनाव में भी बीजेपी का दबदबा देखा जा सकता है। जम्मू से बीजेपी को बहुत उम्मीदें हैं। पिछले तीन लोकसभा चुनाव में बीजेपी यहां मजबूती से लड़ी है। बीजेपी की जीत की उम्मीद पूरी तरह से जम्मू क्षेत्र में प्रदर्शन पर निर्भर है। ज्यादातर विश्लेषक मानते हैं कि बीजेपी को जम्मू से ही अधिकतर सीटें मिलनी हैं। वहीं कांग्रेस जम्मू क्षेत्र में पिछले 10-12 साल में कमजोर होती चली गई। गुलाम नबी आजाद जैसे पुराने लीडर ने भी साथ छोड़ दिया। हालांकि 2024 के लोकसभा चुनाव में जम्मू रीजन में कांग्रेस का वोट शेयर बढ़ा है। ऐसे में कांग्रेस को इस विधानसभा चुनाव में जम्मू क्षेत्र से उम्मीद है। कांग्रेस राष्ट्रीय स्तर पर पुनर्जीवित करने की जुगत में जुटी है। उसी तरह पार्टी जम्मू-कश्मीर में भी जोर लगा रही है।
370 को कांग्रेस ने छुआ तक नहीं
कांग्रेस के लिए जम्मू की अहमियत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पार्टी के किसी नेता ने अब तक 370 के मुद्दे को छुआ तक नहीं है। बीजेपी की तरफ से पीएम नरेंद्र मोदी और अमित शाह से लेकर योगी आदित्यनाथ ने सीधे राहुल गांधी को टारगेट करते हुए 370 पर सवाल पूछे। हालांकि न तो राहुल गांधी और न ही कांग्रेस के किसी और नेता ने इस पर बयान दिया। इसे कांग्रेस की रणनीति माना जा रहा है। जैसे ही राहुल गांधी या कांग्रेस का कोई नेता इस पर प्रतिक्रिया देता, बीजेपी उसे तुरंत लपक लेती। दस साल पहले हुए चुनाव में बीजेपी को जम्मू क्षेत्र की 37 (नए परिसीमन में 43) में से 25 सीटों पर जीत मिली थी। जम्मू में विजय ने बीजेपी के लिए पहली बार सरकार (पीडीपी के साथ गठबंधन सरकार) का हिस्सा होने का रास्ता साफ किया था। इस बार जम्मू क्षेत्र में 6 सीटें बढ़ी हैं। जम्मू-कश्मीर राज्य पुनर्गठन और परिसीमन के बाद यह पहला चुनाव है। लद्दाख के अलग होने से जम्मू क्षेत्र के कठुआ, राजौरी, सांबा, डोडा, किश्तवाड़ और उधमपुर में एक-एक सीट बढ़ गई है। कांग्रेस को एनसी के साथ अलायंस के तहत 32 सीटें मिली हैं। इनमें से जम्मू क्षेत्र की 25 सीटों पर वह लड़ रही है। कांग्रेस को लगता है कि 370 जैसे संवेदनशील मुद्दे पर चुप रहने और बेरोजगारी, शिक्षा, स्वास्थ्य जैसे मुद्दों पर फोकस रखने से चुनावी लड़ाई में उम्मीद है। यही वजह है कि पूरे प्रचार अभियान में कांग्रेस ने स्टेटहुड (पूर्ण राज्य का दर्जा) की तो बात की, लेकिन अनुच्छेद 370 को पूरी तरह किनारे रखा।
उमर अब्दुल्ला ने कांग्रेस को किया था इशारा
नेशनल कॉन्फ्रेंस (एनसी) गठबंधन के तहत 51 और कांग्रेस 32 सीटों पर मैदान में है। कांग्रेस जम्मू की 25 और कश्मीर घाटी की 7 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। पांच सीटों पर दोनों दल फ्रेंडली फाइट में हैं। एनसी के नेता उमर अब्दुल्ला ने भी राहुल गांधी को जम्मू में ज्यादा मेहनत करने की नसीहत दी थी। अब्दुल्ला ने कहा था, ‘मैं उम्मीद करता हूं कि राहुल गांधी कश्मीर की एक या दो सीटों पर प्रचार करने के बाद जम्मू पर फोकस करेंगे। कांग्रेस कश्मीर में जो भी कुछ कर रही है, उसकी ज्यादा अहमियत नहीं है।‘
अंतिम चरण में 40 सीटों पर मतदान
जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव के तीसरे और आखिरी चरण में 40 सीटों पर मतदान है। इस चरण में जम्मू रीजन की 24 और कश्मीर घाटी की 16 सीटों पर 415 उम्मीदवार अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। कुल 5060 पोलिंग स्टेशनों पर 39 लाख से ज्यादा रजिस्टर्ड मतदाता हैं। इंटरनेशनल बॉर्डर के आसपास 29 मतदान केंद्र बनाए गए हैं। राज्य का चुनाव नतीजा 8 अक्टूबर को घोषित किया जाएगा। जम्मू-कश्मीर के लिए यह चुनाव ऐतिहासिक हैं। आतंकी हमलों और हिंसा के अतीत को पीछे छोड़ते हुए मतदान बिना किसी खून-खराबे के शांतिपूर्ण तरीके से चल रहा है। अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद नए जम्मू-कश्मीर की बात हो रही है।