जो जीता कोल्हान, वो झारखंड की सत्ता में पहुँचा… समीकरण उस क्षेत्र का जहाँ BJP ने झोंकी पूरी ताक़त

चंपई सोरेन के भाजपा में आने के बाद पार्टी को यहां बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद है

झारखंड, बाबूलाल मरांडी, BL संतोष

झारखंड में भाजपा के रणनीतिकारों ने कोल्हान क्षेत्र में क्यों झोंकी पूरी ताक़त, समझिए

बीजेपी ने सत्ता की सीढ़ी समझे जाने वाले कोल्हान क्षेत्र की 14 सीटों को जीतने के लिए सभी पूर्व मुख्यमंत्रियों को उतारा है। 2019 में भाजपा का कोल्हान में खाता भी नहीं खुला था, लेकिन इस बार आजसू और मरांडी के साथ आने से समीकरण बदले दिख रहे हैं।

झारखंड विधानसभा चुनाव में सत्ता की सीढ़ी कहे जाने वाले “कोल्हान” में जो चढ़ाई करने में सफल रहा, समझो वो सत्ता में पहुंच गया। पिछली बार झामुमो और कांग्रेस गठबंधन ने 14 में से 13 सीटें जीतकर बीजेपी को सत्ता से बेदखल कर दिया था, यही वजह है कि भगवा दल ने इस बार पूरी ताकत कोल्हान को क़ब्ज़ाने में झोंक दी है। सोरेन पिता-पुत्र को छोड़ दें तो फ़िलहाल राज्य के सभी पूर्व मुख्यमंत्री भाजपा के साथ हैं और पार्टी ने इन्हें प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से कोल्हान के मोर्चे पर लगा रखा है। कोई खुद चुनाव लड़ रहा है तो कोई बेटा, बहू और पत्नी को चुनाव लड़ा रहा है। भाजपा की कोशिश यही है कि किसी भी तरह से इस बार कोल्हान में कोई चूक न होने पाए।

कोल्हान टाइगर के आने से भाजपा हुई मजबूत?

शिबू सोरेन परिवार का दबदबा संथाल इलाके में है, लेकिन कोल्हान में भी झामुमो की मजबूती के पीछे कोल्हान टाइगर कहे जाने वाले चंपई सोरेन की मौजूदगी होती थी। हालांकि अब चंपई सोरेन के भाजपा में आने के बाद पार्टी को यहां बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद है।

2019 में नहीं खुला था खाता

2019 में भाजपा का कोल्हान क्षेत्र की सभी 14 सीटों पर खाता नहीं खुला था। झामुमो जहां 11 सीटें जीतने में सफल रही थी, वहीं गठबंधन की सहयोगी कांग्रेस दो सीटें मिलीं थीं, जबकि भाजपा के बागी सरयू राय जमशेदपुर पूर्वी सीट से तत्कालीन मुख्यमंत्री रघुबर दास को हराने में सफल रहे थे। कोल्हान की 14 में से 13 सीटें जीतने पर झामुमो-कांग्रेस गठबंधन की सत्ता की राह आसान हुई थी।

भाजपा ने 2014 में यहां की 14 में से 6 सीटें जीतने में सफलता हासिल की थी। पार्टी को उम्मीद है कि इस बार वो 2014 से ज्यादा सीटें जीतेगी।

क्यों बदले हैं समीकरण?

भाजपा को पिछली बार अकेले चुनाव लड़ने की कीमत चुकानी पड़ी थी। NDA में वोटों के बिखराव का फायदा महागठबंधन को हुआ था। आजसू से सीटों को लेकर गठबंधन टूट गया था, वहीं बाबूलाल मरांडी की भी पार्टी अलग चुनाव लड़ी थी। लेकिन, इस बार मरांडी और आजसू दोनों भाजपा के साथ लौट चुके हैं। जिससे कोल्हान में समीकरण बदले दिख रहे हैं।

सभी पूर्व सीएम की प्रतिष्ठा दांव पर

कोल्हान में राज्य के सभी पूर्व मुख्यमंत्रियों की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है। मुख्यमंत्री और केंद्रीय मंत्री रह चुके अर्जुन मुंडा अपनी पत्नी मीरा को पोटका से तो झामुमो से भाजपा में शामिल हुए चंपई सोरेन खुद सरायकेला से जबकि उनके पुत्र बाबूलाल घाटशिला से चुनाव लड़ रहे हैं।

इसी तरह पूर्व मुख्यमंत्री और ओडिशा के राज्यपाल रघुबर दास ने बहू पूर्णिमा दास को अपनी सीट जमशेदपुर पूर्वी से चुनाव लड़ाया है तो एक अन्य पूर्व सीएम मधु कोड़ा की पत्नी गीता कोड़ा भाजपा के टिकट पर जगन्नाथपुर सीट से चुनाव लड़ रहीं हैं। वहीं पूर्व सीएम बाबूलाल मरांडी भी कोल्हान की धनवार सीट से खुद चुनावी मैदान में हैं।

7 सीटों पर भाजपा को है जीत की उम्मीद

पिछले चुनाव में भले ही भाजपा का खाता नहीं खुला था, लेकिन पार्टी कोल्हान की 14 में से 12 विधानसभा सीटों पर दूसरे स्थान पर थी। वहीं सात सीटों पर भाजपा की हार का अंतर आजसू और बाबूलाल मरांडी की पार्टी को मिले वोटों से कम था। जुगसलाई, जगरनाथपुर, मनोहरपुर, चक्रधरपुर, ईंचागढ़, जमशेदपुर पूर्वी, सरायकेला और घाटशिला सीट पर भाजपा को संभावनाएं नज़र आ रही हैं।

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