बहुत देर कर दी हुजूर आते-आते… पाकिस्तान ने हिन्दू मंदिर के जीर्णोद्धार के लिए दिए ₹30 लाख

पवित्र शारदा पीठ वाले क्षेत्र से अवैध कब्ज़ा छोड़े इस्लामी मुल्क

पाकिस्तान, नरोवाल, हिन्दू मंदिर

पाकिस्तान के नरोवाल स्थित जीर्ण-शीर्ण मंदिर की होगी मरम्मत

पाकिस्तान में वो होने जा रहा है, जिसकी विपरीत प्रवृत्तियों के लिए वो जाना जाता है। पाकिस्तान के पंजाब प्रान्त में स्थित एक मंदिर के जीर्णोद्धार के लिए 1 करोड़ PKR (30.27 लाख भारतीय रुपए) का बजट आवंटित किया गया है। दिसंबर 1992 में पाकिस्तान में सिर्फ एक दिन में ही 30 से भी अधिक हिन्दू मंदिरों को ध्वस्त कर दिया गया था। पाकिस्तान इसी तरह की घटनाओं को लेकर कुख्यात रहा है। इसी साल अप्रैल में अफगानिस्तान की सीमा से सटे खैबर मंदिर को ध्वस्त कर दिया गया था। जुलाई 2023 में कराची में मारी माता मंदिर पर हमला किया गया था। 2020 में खैबर पख्तूनख्वा स्थित करक में परमहंस दयाल महाराज की समाधि और कृष्णद्वारका मंदिर पर हमला किया गया था।

लेकिन, अब उसी पाकिस्तान में एक 350 वर्ष पुराने मंदिर के जीर्णोद्धार का निर्णय वहाँ की सरकार ने लिया है। भारतीय मुद्रा में 30 लाख रुपए किसी हिन्दू मंदिर के जीर्णोद्धार के लिए बहुत कम हैं, लेकिन फिर भी अगर कुछ सकारात्मक हो रहा है तो आशा है कि ये एक शुरुआत है आगे चल कर न सिर्फ और भी हिन्दू मंदिरों का जीर्णोद्धार किया जाएगा, बल्कि श्रद्धालुओं के लिए सुविधाएँ भी विकसित की जाएँगी। जिस मंदिर के जीर्णोद्धार की हम बात कर रहे हैं, वो 64 वर्ष पहले निष्क्रिय हो गया था।

पाकिस्तान में 350 वर्ष पुराने मंदिर का जीर्णोद्धार

पाकिस्तान के Evacuee Trust Property Board (ETPB), यानी ‘पुरानी संपत्ति प्रबंधन बोर्ड’ ने ये फैसला लिया है। ये बोर्ड वहाँ अल्पसंख्यकों के धर्मस्थलों की निगरानी करता है। अब उसने नरोवाल के जफरवाल स्थित बाओली साहिब मंदिर के जीर्णोद्धार की प्रक्रिया शुरू की है। ये रावी नदी के पश्चिमी तट पर स्थित है। 1960 से इसमें पूजा-पाठ वगैरह नहीं हो रही थी। स्थिति ये है कि फ़िलहाल नरोवाल के डेढ़ हजार हिन्दुओं के पास पूजा-पाठ के लिए कोई मंदिर ही नहीं है। उन्हें इसके लिए सियालकोट या लाहौर जाना पड़ता है।

‘पाक धर्मस्थान कमिटी’ के पूर्व अध्यक्ष रतनलाल आर्य ने बताया कि बाओली साहिब पर ETBP के नियंत्रण ने नरोवाल के हिन्दुओं को उनके धर्मस्थान से वंचित कर रखा था। ख़ास बात तो ये है कि भारत के विभाजन के दौरान, यानी 1947 में नरोवाल में 45 मंदिर हुआ करते थे, लेकिन अब एक भी मंदिर नहीं है। पिछले 20 वर्षों से ‘पाक धर्मस्थान कमिटी’ इस मंदिर की मरम्मत के लिए प्रयास कर रही थी। रतनलाल आर्य का कहना है कि अब जाकर सरकार ने हिन्दुओं की माँगों की सुध ली है। 4 कनाल की जमीन में बाउंड्री की दीवार खड़ी करने के बाद RTBP इसे ‘पाक धर्मस्थान कमिटी’ को सौंप देगा।

कहा जा रहा है कि सुप्रीम कोर्ट के ‘वन मैन कमीशन’ के अध्यक्ष शोएब सिद्दल और पाकिस्तान के मानवाधिकार आयोग के सदस्य मंज़ूर मसीह ने इस फैसले के पीछे अहम भूमिका निभाई है। ‘पाक धर्मस्थान कमिटी’ के अध्यक्ष सावन चंद ने कहा कि हिन्दुओं के लंबे समय से चली आ रही माँग पूरी हो गई है, अब वो वहाँ पूजा-पाठ कर सकेंगे। पाकिस्तान में अभी भी 90 लाख के करीब हिन्दू रह रहे हैं, ऐसे में उनके हित के लिए सोचना पाकिस्तान सरकार के लिए ज़रूरी है। वैसे भी वहाँ हिन्दुओं की जनसंख्या 1947 से लेकर अब तक कई गुना घट चुकी है। इनमें से अधिकतर अब सिंध प्रान्त में ही बचे हैं।

सिख कमिटियाँ करती हैं गुरुद्वारों का प्रबंधन

मोदी सरकार के प्रयासों के बाद सिखों के लिए करतारपुर साहिब कॉरिडोर खोला गया, अब हर साल सिख श्रद्धालु यात्रा के लिए जाते हैं। ये वही पवित्र स्थल है जहाँ तमाम तीर्थयात्राओं के बाद गुरु नानक ने अपने अनुयायियों को इकट्ठा कर ज्ञान दिया था और अपने परलोक गमन तक 18 वर्षों तक यहीं रहे। करतारपुर साहिब का प्रबंधन अब सिखों के पास है। इस्लामी मुल्क में ‘पाकिस्तान सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमिटी’ भी है, ठीक वैसे ही जैसे भारत में है। ठीक वैसे ही जैसे भारत में SGPC (शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमिटी) जैसी संस्थाएँ हैं। इसी तरह गुरु नानक के जन्मस्थल ननकाना साहिब गुरुद्वारा भी पाकिस्तान के पंजाब प्रान्त में ही है।

दरबार साहिब, पंजा साहिब और डेरा साहिब जैसे गुरुद्वारों का प्रबंधन भी वहाँ की गुरुद्वारा कमिटी और ETPB मिल कर करते रहे हैं। हालाँकि, हिन्दू मंदिरों की स्थिति दयनीय ही रहती है। अब भले ही भारत को रिझाने के लिए पाकिस्तान ने ये कदम उठाया हो, लेकिन ये बहुत थोड़ा है और इस दिशा में और प्रयास करने होंगे। हाल ही में SCO की बैठक के लिए केंद्रीय विदेश मंत्री S जयशंकर पाकिस्तान दौरे पर गए, उनका वहाँ रेड कार्पेट वेलकम भी हुआ। इससे ऐसा प्रतीत हो रहा है कि पाकिस्तान अब भारत को एक बड़ी ताक़त के रूप में देख रहा है। कंगाली वाली हालत में पहुँच रहे पड़ोसी मुल्क ने शायद अब भारत से संबंध सुधारने में ही अपनी भलाई समझी है।

पाकिस्तान के बलूचिस्तान में माँ हिंगलाज का मंदिर है, जो शक्तिपीठ है। प्रत्येक वर्ष 1 लाख से भी अधिक हिन्दू माँ हिंगलाज की पहाड़ी तक यात्रा करते हैं, दर्शन करते हैं। इसी तरह कश्मीर की अधिष्ठात्री देवी माँ शारदा का पीठ भी पाकिस्तान के अवैध नियंत्रण वाले इलाके में है। नीलम घाटी में स्थित माँ शारदा की ये वही पीठ है जहाँ कभी स्वयं जगद्गुरु शंकराचार्य पहुँचे थे। कभी एक भव्य पीठ रहा ये धर्मस्थल अब जीर्ण-शीर्ण हो चुका है। अगर पाकिस्तान जरा सा भी गंभीर है तो उसे शारदापीठ को भारत को सौंपना चाहिए और वहाँ अपना अवैध कब्जा छोड़ना चाहिए।

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