दलित को कमान, गाँधी-आंबेडकर का नाम… 35 साल की एंटी-इंकम्बेंसी भुना पाएँगे प्रशांत किशोर?

'जन सुराज पार्टी' का हुआ गठन

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प्रशांत किशोर ने दलित मनोज भारती को दी पार्टी की कमान

आखिरकार राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने अपनी पार्टी का गठन कर ही लिया। पिछले कई महीनों से वो ‘जन सुराज’ नाम से पूरे बिहार में महात्मा गाँधी की तस्वीर के साथ अभियान चला रहे थे और पदयात्रा कर रहे थे। कई युवाओं को इस अभियान जोड़ कर गाँव-गाँव में जनप्रतिनिधियों से संपर्क किया जा रहा था। खुद प्रशांत किशोर जहाँ भी जाते, रात को टेंट में रुकते थे। लोगों से चंदा भी इकट्ठा किया गया। प्रशांत किशोर का कहना है कि अगर उनकी पार्टी चुनाव जीतती है तो वो मुख्यमंत्री का पद ग्रहण नहीं करेंगे। साथ ही वो शराबबंदी के भी खिलाफ हैं।

प्रशांत किशोर का कहना है कि शराबबंदी से राजस्व का भी नुकसान हो रहा है और चोरी-छिपे शराब की कालाबाजारी भी हो रही है। प्रशांत किशोर को लेकर बिहार के आम लोगों में एक उत्सुकता भी दिख रही है, खासकर युवाओं में। इसका कारण ये भी हो सकता है कि राज्य में 2025 का विधानसभा चुनाव आते-आते नीतीश कुमार सत्ता में 2 दशक पूरे कर लेंगे। उससे पहले 15 वर्षों तक लालू यादव की सरकार रही। ऐसे में पिछले 35 वर्षों से बिहार 2 ही नेताओं के के इर्दगिर्द घूमता रहा है। भाजपा अब तक नंबर 2 सहयोगी बन कर ही संतुष्ट रही है।

2 साल की पदयात्रा के बाद पार्टी का गठन

प्रशांत किशोर ने अपनी 2 साल की मेहनत के बाद ‘जन सुराज पार्टी’ का गठन किया है। खास बात ये है कि उन्होंने पार्टी के गठन में कोई हड़बड़ी नहीं दिखाई, बल्कि पहले घूम-घूम कर जनता के नब्ज को टटोला। शराब से आने वाले टैक्स को शिक्षा पर खर्च करने की बात करने वाले प्रशांत किशोर के साथ कई नेता और पर्व ब्यूरोक्रेट्स भी आ रहे हैं। IPS अधिकारी रहे आनंद मिश्रा ने उनकी पार्टी ज्वाइन की। हाल ही में सीतामढ़ी के पूर्व सांसद सीताराम यादव और पूर्व मंत्री रघुनाथ पांडे की बहू विनीता विजय ने भी ‘जन सुराज पार्टी’ का दामन थामा।

वैसे ‘जन सुराज पार्टी’ की असली परीक्षा तो 2025 में होगी, लेकिन इसी साल पार्टी खाता खोलने की तरफ देख रही है। बिहार में रामगढ़, तरारी, बेलागंज और इमामगंज सीटों पर विधानसभा चुनाव होने हैं। प्रशांत किशोर की पहली परीक्षा यहीं हो जाएगी। आजकल कॉन्ग्रेस-राजद समेत अन्य दल जाति की राजनीति कर रहे हैं, ऐसे में प्रशांत किशोर ने ऐलान कर दिया है कि उनकी पार्टी के झंडे पर महात्मा गाँधी के साथ-साथ भीमराव आंबेडकर की भी तस्वीर होगी। पूर्व राजनयिक और IIT से पढ़े मनोज भारती को पार्टी का कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया है।

कौन-कौन सी बातें PK के पक्ष और विपक्ष में

प्रशांत किशोर को लेकर सबसे अच्छी बात यही लग रही है कि वो किसी भी प्रकार की हड़बड़ी में नहीं रख रहे हैं। दूसरी अच्छी बात ये है कि वो कई ऐसे वादे कर रहे हैं जो बिहार के लोगों को नए लग रहे हैं। जैसे, उनका कहना है कि उनकी पार्टी के अध्यक्ष का कार्यकाल 1 वर्ष का ही होगा, हर 2 साल पर शीर्ष नेतृत्व बदल जाएगा, प्रत्याशी नेता नहीं बल्कि अमेरिका की तर्ज पर जनता द्वारा ही चुने जाएँगे। झंडे पर आंबेडकर को रख कर और मधुबनी के दलित मनोज भारती को कार्यकारी प्रदेश अध्यक्ष बना कर उन्होंने पिछड़ा कार्ड भी खेल दिया है।

प्रशांत किशोर के विरोध में एक बात ये जाती है कि बिहार की जनता बहुत अधिक बदलावों और एक्सपेरिमेंट्स के पक्ष में नहीं रही है। पुष्पम प्रिया चौधरी ने Plurals नाम से पार्टी बनाई थी, लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली। हालाँकि, पुष्पम प्रिया चौधरी के उलट प्रशांत किशोर का एक अच्छा इतिहास रहा है, लोग उन्हें सुनते हैं। प्रशांत किशोर के खिलाफ एक और बात जाती है कि दिल्ली में अरविंद केजरीवाल ने ऐसे ही नए-नए वादे कर के AAP का गठन किया था। लेकिन, पार्टी के कई नेता भ्रष्टाचार के आरोप में जेल में हैं और बारिश में दिल्ली बेहाल रही।

भारत की राजनीति का अनुभव, गरीबों को साध रहे

प्रशांत किशोर के पास भारत की राजनीति का अच्छा-खासा अनुभव है, खासकर बिहार का। 2015 के विधानसभा चुनाव में जब राजद-जदयू पहली बार साथ लड़ी तो उन्होंने ही सारी रणनीति तैयार की। 243 सदस्यीय विधानसभा में इन दोनों दलों की 151 सीटें आईं, कॉन्ग्रेस की 27 सीटें मिला कर गठबंधन ने 178 सीटें अपने नाम की। जदयू ने उन्हें उपाध्यक्ष भी बनाया। जिन्हें नहीं पता उन्हें बता दें कि नरेंद्र मोदी जब पहली बार राष्ट्रीय राजनीति में कदम रख रहे थे तब 2014 के लोकसभा चुनाव में उनके लिए प्रशांत किशोर ने ही रणनीति तैयार की थी। वो 2017 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी, 2017 के पंजाब विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के तत्कालीन सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह, 2019 में आंध्र प्रदेश के तत्कालीन सीएम जगन मोहन रेड्डी की YSRCP, 2020 में दिल्ली में अरविंद केजरीवाल की AAP, 2021 में पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की TMC और तमिलनाडु में MK स्टालिन की DMK के लिए कार्य कर चुके हैं। ऐसे में वो भारत के हर कोने की राजनीति को अच्छी तरह समझते हैं। अब पटना के वेटनरी कॉलेज ग्राउंड में शक्ति प्रदर्शन कर उन्होंने चम्पारण से शुरू हुई 3000 किलोमीटर की अपनी पदयात्रा के बाद पार्टी की घोषणा की है।

प्रशांत किशोर के अब तक के भाषणों को देखें तो वो अधिकतर बिहार में पलायन और बेरोजगारी के मुद्दे के ही केंद्रित रहे हैं। साथ ही वो लालू यादव पर परिवारवाद को लेकर निशाना साधते हैं, भाजपा का विरोध कर मुस्लिमों को भी साधते हैं, नीतीश कुमार की लाचारी की बातें कर एंटी-इंकम्बेंसी को भी भुनाते हैं और ठेठ देहाती अंदाज़ में बात कर गरीबों को भी लुभाते हैं। उन्होंने बड़ी चालाकी से अपने-आप को महात्मा गाँधी के चेहरे के इर्दगिर्द रखा है, क्योंकि भारत में महात्मा गाँधी का विरोध सिर्फ एक छोटे से समूह में ही हैं और उनके नाम का इस्तेमाल कर व्यापक समर्थन मिलता है।

प्रशांत किशोर अपने भाषणों में बिहार की जनता को ही धिक्कारते नज़र आते हैं, ये उनका तरीका है। इस तरीके के जरिए वो उन्हें एहसास दिलाते हैं कि उन्होंने बार-बार लालू-नीतीश को वोट देकर गलती की है। वो बार-बार कहते हैं कि उनके बेटे-बेटी नेता बनेंगे, आपके बच्चों को घर छोड़ बाहर जाना पड़ता है। वो लोगों की अंतरात्मा को जगाने का प्रयास करते हैं। देखना ये होगा कि प्रशांत किशोर राजद के लॉयल मुस्लिम-यादव वोटों में से कितना तोड़ पाते हैं।

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