विजयदशमी यानि दशहरे का दिन था, साल था 1925 और कैलेंडर में तारीख थी 27 सितंबर, नागपुर के महल इलाके में स्थित एक घर ‘सुक्रवारी’ में कुछ लोगों की बैठक चल रही थी जिसमें युवा और अधेड़ दोनों उम्र के लोग शामिल थे और इस बैठक का नेतृत्व कर रहे थे केशव बलिराम हेडगेवार जिन्हें लोग डॉक्टर जी भी कहते थे। इसी बैठक में डॉक्टर जी ने घोषणा कि ‘हम आज संघ का उद्घाटन कर रहे हैं।’ और इसी तरह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की नींव रखी गई थी हालांकि तब तक संघ को यह नाम नहीं मिला था।
इस बैठक में लक्ष्य रखा गया था कि हम सभी को शारीरिक, बौद्धिक और हर तरह से खुद को प्रशिक्षित करना हैं ताकि हम अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने में सक्षम हो सकें। इस संघ में रविवार को ड्रिल, मार्च जैसे शारीरिक कार्यक्रमों का प्रशिक्षण दिया जाता था और गुरुवार और रविवार को राष्ट्रीय मामलों पर बौद्धिक होते थे।
RSS का नामकरण
विरले ही संगठन ऐसे होते होंगे जो बिना किसी नाम के शुरुआत करें लेकिन जब लक्ष्य बड़ा हो तो नाम के लिए इंतजार किया जा सकता है। ऐसा ही RSS के साथ हुआ और संगठन के बनने के कई महीनों तक इसका कोई नाम फाइनल नहीं किया गया था। हालांकि, स्थापना के अगले वर्ष यानि 1926 में 17 अप्रैल को संगठन का नाम तय करने के लिए डॉक्टर जी के घर पर एक बैठक बुलाई गई और ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ’ नाम तय किया गया। संघ के नाम के लिए 4 नामों का सुझाव दिया गया था जिनमें जरीपटका मंडल, भारत उद्धारक मंडल, हिंदू स्वयंसेवक संघ और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ शामिल थे।
दैनिक शाखा, संचलन, OTC और गुरु दक्षिणा की शुरुआत
RSS के क्रियाकलाप की सबसे बड़ा विशेषता है उसकी दैनिक शाखा। बड़े-बडे़ संगठनों के वार्षिक और मासिक सम्मेलन होते हैं जिनमें कार्यकर्ता और नेताओं की मुलाकात होती है और फिर लंबे समय तक के लिए बात टल जाती है। डॉ हेडगेवार एक ऐसे संगठन का निर्माण करना चाहते थे जिसके कार्यकर्ता या स्वयंसेवक रोज मिलें और शारीरिक व बौद्धिक गतिविधियों में भाग लें। इसी के तहत 28 मई 1926 को नागपुर के मोहितेवाड़ा मैदान में नित्य शाखाओं की शुरुआत की गई और स्वयंसेवकों ने दंड लेकर शाखाओं में आना शुरु किया।
इसी वर्ष शाखाओं में दक्ष, आराम जैसी आज्ञाओं की शुरुआत हुई और भगवा ध्वज को प्रणाम कर शाखा लगाने और प्रार्थना के साथ शाखा खत्म किए जाने की प्रथा भी इसी वर्ष शुरू की गई। 1926 में ही पहला पथ संचलन निकाला गया था जिसमें 30 स्वयंसवेक शामिल हुए थे।
इसके अगले वर्ष यानि 1927 में संघ के शिक्षा वर्गों की शुरुआत की गई थी और तब ये 3 सप्ताह तक चलते थे और इन्हें ग्रीष्मकालीन वर्ग कहा जाता है। कुछ वर्षों बाद इन वर्गों का नाम ‘अधिकारी शिक्षा वर्ग’ हो गया और 1950 में इन वर्गों को ‘संघ शिक्षा वर्ग’ के नाम से जाना जाने लगा। इन वर्गों में सुबह और शाम को करीब डेढ़ से दो घंटे तक के शारीरिक कार्यक्रम होते थे और दोपहर का समय स्वयंसेवकों के विश्राम, वार्तालाप और चर्चा के लिए रखा जाता था। ये वर्ग अक्सर मई-जून में रखे जाते थे क्योंकि उस दौरान विद्यार्थियों की छुट्टियां रहती थीं।
शुरुआत में ये वर्ग नागपुर और पुणे में लगते थे और धीरे-धीरे ये वर्ग देश के अलग-अलग हिस्सों तक पहुंच गए। प्राथमिक शिक्षा वर्ग, प्रथम वर्ष, द्वितीय वर्ष और तृतीय वर्ष के रूप में इनका आयोजन किया जाता है। प्राथमिक शिक्षा वर्ग, प्रथम वर्ष, द्वितीय वर्ष देश के अलग-अलग हिस्सों में आयोजित किए जाते हैं जबकि अंतिम तृतीय वर्ष नागपुर के रेशिमबाग में आयोजित होता है। RSS में दैनिक गतिविधियों के संचालन के खर्चों के लिए गुरु दक्षिणा उत्सव का आयोजन किया जाता है जिसमें स्वयंसेवक RSS के संचालन के लिए दान देते हैं। पहली बार 1928 में गुरु दक्षिणा उत्सव का आयोजन किया गया था जिसमें 84 रूपए की समर्पण निधि मिली थी।
कौन-कौन रहे हैं RSS के सरसंघचालक
RSS में प्रमुख के पद को सरसंघचालक कहा जाता है और 1925 में स्थापना के 4 वर्षों बाद 9-10 नवंबर 1929 को नागपुर केे डोके मठ में हुई बैठक में डॉक्टर हेडगेवार को संघ के प्रमुख यानि सरसंघचालक के पद के लिए चुना गया था और वे RSS के पहले सरसंघचालक थे। 21 जून की सुबह डॉक्टर हेडगेवार का निधन हो गया जिसके बाद 3 जुलाई 1940 को माधव सदाशिव गोलवालकर को दूसरा सरसंघचालक बनाया गया गोलवालकर शिक्षक थे और उन्हें गुरुजी के नाम से जाना जाता है।
1973 में बाला साहेब देवरस और 1994 में प्रोफेसर राजेंद्र सिंह उर्फ रज्जू भैया संघ के क्रमश: तीसरे और चौथे सरसंघचालक बने थे। मार्च 2000 में रज्जू भैया ने अपनी लंबी शारीरिक अस्वस्थता के कारण अवकाश लेने की घोषणा करते हुए कुप्पहल्ली सीतारामय्या सुदर्शन को संघ का पांचवां सरसंघचालक मनोनीत किया। मोहन भागवत संघ के मौजूदा सरसंघचालक हैं जिन्होंने 2009 में यह पद संभाला था।
RSS के मुखपत्र ‘पाञ्चजन्य’ के मुताबिक, सरसंघचालक का पद संघ में उत्तराधिकार के रूप में नहीं आता बल्कि संघ के वरिष्ठ पदाधिकारी और अखिल भारतीय प्रतिनिधि मंडल के लोगों की इनके चयन में अहम भूमिका होती है। इसके लिए संघ की उच्च समिति और पदाधिकारी सरसंघचालक का निर्णय करते हैं और इसका चुनाव वोटिंग से ना होकर आम सहमति से होता है। आमतौर पर मौजूदा सरसंघचालक अपने उत्तराधिकारी की सिफारिश करते हैं जिसे बाकी वरिष्ठ पदाधिकारियों द्वारा सहमति दी जाती है। एक बार चुन लिए जाने के बाद सरसंघचालक आजीवन अपने पद पर रह सकते हैं।
गांधी की हत्या और संघ पर प्रतिबंध
30 जनवरी 1948 को दिल्ली के बिरला हाउस में नाथूराम गोडसे ने महात्मा गांधी की गोली मारकर हत्या कर दी थी। तब की मौजूदा अंतरिम सरकार ने संघ पर गांधी की हत्या का आरोप लगाया और 1 फरवरी को नागपुर में तत्कालीन सरसंघचालक गुरुजी को इसे लेकर गिरफ्तार कर लिया गया। वहीं, 4 फरवरी को संघ पर प्रतिबंध लगाया गया और देशभर में संघ के 17,000 स्वयंसेवकों को गिरफ्तार किया गया जिसके बाद 5 फरवरी को गुरुजी ने सारी शाखाओं को बंद करने का आदेश दे दिया।
इसे लेकर संघ के प्रदर्शन चलते रहे और स्वयंसेवकों ने सरकार से वार्ता सफल ना होने के बाद 9 दिसंबर को RSS से प्रतिबंध हटाने की मांग को लेकर सत्याग्रह शुरू किया और सरकार ने 12 जुलाई को बिना किसी शर्त के RSS से प्रतिबंध हटा लिया। इसके बाद 13 जुलाई को गुरुजी को जेल से रिहा कर दिया गया।
राष्ट्र निर्माण में अनवरत जुटा है RSS
स्थापना के बाद से ही संघ की सांप्रदायिक और फासीवादी जैसे आरोप लगाकर आलोचना की जाती रही है, संघ पर एक शताब्दी की इस यात्रा के दौरान अनेकों आरोप लगे, बिना किसी तथ्यों के आरोप लगाए गए लेकिन अंत में सारे आरोप झूठे साबित हुए। इस सभी आरोपों को सहते-सहते संघ अपने जन्म के बाद से ही सेवा कार्यों में जुटा है। आरएसएस के BJP, ABVP, VHP, विद्या भारती, भारतीय किसान संघ, भारतीय मजदूर संघ और संस्कार भारती जैसे 35 से अधिक आनुषांगिक संगठन हैं जिनमें जीवन के अलग-अलग क्षेत्रों में काम किया जाता है।
संघ ने शुरुआत से ही जातिवादी जैसी सामाजिक बुराइयों के खिलाफ लड़ाई छेड़ी हुई है और आजादी की लड़ाई में भी संघ ने अलग-अलग जगहों पर योगदान दिया है। आजादी के बाद अक्टूबर 1947 से कश्मीर सीमा पर संघ के स्वयंसेवकों ने पाकिस्तानी सेना की गतिविधियों नजर रखी थी और जब पाक सेना ने सीमा लांघने की कोशिश की तो स्वयंसेवकों ने इसके लिए लड़ाई लड़ी और कइयों ने अपनी जान भी गवां दी। आजादी के साथ देश ने जो त्रासदी देखी वो थी बंटवारे की त्रासदी जिसमें लाखों लोग विस्थापित हुए और मारे गए। इस दौरान संघ ने पाकिस्तान से जान बचाकर आए लोगों के लिए हजारों राहत शिविर लगाए थे। संघ ने विभिन्न युद्धों के समय सैनिकों का साथ देते हुए काम किया है।
1962 का युद्ध और 26 जनवरी की परेड में RSS
RSS के स्वयंसेवकों ने भारत के पाकिस्तान और चीन के खिलाफ हुए युद्धों में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है। संघ के स्वयंसेवक सेना की मदद के लिए हर परिस्थित में डटे रहे हैं, उन्होंने सैनिकों के लिए फ्री कैंटीन चलाने और सप्लाई चेन में उनकी मदद करने जैसे काम किए हैं। 1962 के युद्ध में सेना की मदद के लिए देशभर से स्वयंसेवक जिस उत्साह से सीमा पर पहुंचे थे उसे पूरे देश ने देखा था। बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक, संघ के स्वयंसेवकों ने 1962 के युद्ध में सैनिक आवाजाही मार्गों की चौकसी, प्रशासन की मदद, रसद और आपूर्ति में मदद और यहां तक कि शहीदों के परिवारों की भी चिंता की थी।
रतन शारदा अपनी किताब RSS 360 में लिखते हैं, “राष्ट्रीय आपदाओं के समय संघ के योगदान को देखते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने RSS को 1963 की गणतंत्र दिवस की परेड में हिस्सा लेने बुलाया था।” शारदा लिखते हैं कि इसकी तैयारी के लिए RSS के कार्यकर्ताओं को सिर्फ 3 दिनों का समय मिला था और इसी में RSS के 3,000 स्वयंसेवक परेड में पूर्ण गणवेश में शामिल हुए। बीबीसी के मुताबिक, निमंत्रण दिए जाने की आलोचना होने पर नेहरू ने कहा, “यह दर्शाने के लिए कि केवल लाठी के बल पर भी सफलतापूर्वक बम और चीनी सशस्त्र बलों से लड़ा सकता है, विशेष रूप से 1963 के गणतंत्र दिवस परेड में भाग लेने के लिए आरएसएस को आकस्मिक आमंत्रित किया गया।”
शिक्षा के क्षेत्र में संघ
RSS के काम को शिक्षा के क्षेत्र में दुनिया में सबसे महत्वपूर्ण कामों में गिना जाता है। संघ ने अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद, शिक्षा भारती, एकल विद्यालय, स्वदेशी जागरण मंच, विद्या भारती, वनवासी कल्याण आश्रम जैसे संगठनों के साथ मिलकर काम कर रहा है। विद्या भारती देशभर में हजारों स्कूलों का संचालन करता है जिनमें जिनमें लाखों विद्यार्थी पढ़ाई करते हैं। इन स्कूलों में न सिर्फ सामान्य शैक्षणिक विषयों पर ध्यान दिया जाता है बल्कि नैतिक शिक्षा, देशभक्ति और संस्कारों पर भी विशेष बल दिया जाता है। RSS शिक्षा के क्षेत्र में व्यापक काम कर रहा है और इसमें ‘एकल विद्यालय’ भी एक महत्वपूर्ण पहल है। एकल विद्यालय की शुरुआत ग्रामीण, जनजातीय और पिछड़े क्षेत्रों में की गई, ताकि वहां के बच्चों को शिक्षा से वंचित न रहना पड़े। ये विद्यालय एक शिक्षक द्वारा चलाए जाते हैं और वहां सीमित संसाधनों में बच्चों को शिक्षा दी जाती है। वहीं, RSS का एक अन्य संगठन ‘सेवा भारती’ देशभर के दूरदराज और दुर्गम इलाकों में सेवा के एक लाख से अधिक काम कर रहा है।