‘लोगों को बदनाम करने के लिए कार्रवाई नहीं होनी चाहिए’: सद्गुरु को मिली SC से राहत, DMK सरकार ने डलवाया था छापा

सद्गुरु के खिलाफ की गई कार्रवाई को गलत ठहराते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि लोगों और संस्थाओं को बदनाम करने के लिए इस तरह की कार्रवाई नहीं होनी चाहिए।

सद्गुरु, सुप्रीम कोर्ट

सद्गुरु को मिली सुप्रीम कोर्ट से राहत

सुप्रीम कोर्ट से सद्गुरु जग्गी वासुदेव को बड़ी राहत मिली है। सद्गुरु के ईशा फाउंडेशन पर दो लड़कियों को बंधक बनाने का आरोप लगा था। इस मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केस बंद कर दिया है। साथ ही सद्गुरु के खिलाफ की गई कार्रवाई को गलत ठहराते हुए शीर्ष अदालत ने कहा कि लोगों और संस्थाओं को बदनाम करने के लिए इस तरह की कार्रवाई नहीं होनी चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पादरीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने 18 अक्टूबर को मामले की सुनवाई की। इस दौरान, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस प्रकार की याचिका पर जांच के लिए मद्रास हाई कोर्ट का आदेश देना सही नहीं था। साथ ही कोर्ट ने ईशा फाउंडेशन पर पुलिस की छापेमारी को भी गलत ठहराया।

कोर्ट ने कहा कि दोनों लड़कियां बालिग हैं इसलिए याचिकाकर्ता यानी लड़कियों के पिता की याचिका गलत है। जब वे ईशा फाउंडेशन में रहने गईं तो उनकी उम्र 24 और 27 वर्ष थी और वह अपनी मर्जी से आश्रम में रह रहीं हैं। सुप्रीम कोर्ट ने दोनों लड़कियों से बात भी की। इस दौरान दोनों लड़कियों ने किसी भी तरह का दबाव न होने की बात कही। साथ ही कहा था कि वह अपने माता-पिता से मिलने के लिए भी स्वतंत्र हैं। यहां तक कि हाल ही में एक लड़की ने 10 किलोमीटर लंबी मैराथन दौड़ में भाग भी लिया था।

दरअसल, डॉ. एस कामराज नामक व्यक्ति द्वारा मद्रास हाई कोर्ट में एक याचिका दायर की गई थी। इस याचिका में उन्होंने ईशा फाउंडेशन पर उनकी बेटियों लता और गीता को बंधक बनाकर रखने और बाहर न जाने देने का आरोप लगाया था। इस मामले में सुनवाई करते हुए मद्रास हाई कोर्ट ने दोनों लड़कियों से बात की थी। तब, लड़कियों ने कहा था कि वह अपनी इच्छा से ईशा फाउंडेशन में रह रहीं हैं। हालांकि इसके बाद भी हाई कोर्ट ने गत 30 सितंबर को ईशा फाउंडेशन के खिलाफ जांच करने और सभी आपराधिक मामलों की डिटेल रिपोर्ट पेश करने का आदेश दिया था।

मद्रास हाई कोर्ट के इस आदेश के बाद तमिलनाडु की डीएमके सरकार को ईशा फाउंडेशन के खिलाफ कार्रवाई करने का मौका मिल गया था। डीएमके सरकार का सनातन विरोधी चेहरा पहले ही सामने आ चुका है। इसके अलावा डीएमके सद्गुरु जग्गी वासुदेव को अपशब्द कहने के साथ ही ईशा फाउंडेशन पर कब्जा करने की धमकी दे चुकी है। इसलिए हाई कोर्ट के आदेश के अगले ही दिन यानी 1 अक्टूबर 2024 को डीएमके सरकार ने करीब 150 पुलिसकर्मियों की टीम को ईशा फाउंडेशन भेजकर छापेमार कार्रवाई कराई थी।

इसके बाद हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ सद्गुरु की संस्था ईशा फाउंडेशन ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। 3 अक्टूबर 2024 को इस याचिका पर सुनवाई कर सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी थी। साथ ही पुलिस को जांच रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट में पेश करने का आदेश दिया था। इसके बाद अब पुलिस ने अपनी जांच रिपोर्ट पेश की थी। इस रिपोर्ट के आधार पर ही सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई की है।

गौरतलब है कि पुलिस की रिपोर्ट में ईशा फाउंडेशन पर हॉस्पिटल में पुराने उपकरण, एक्सपायर दवाइयां रखने जैसे अन्य आरोप भी लगाए हैं। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने इन आरोपों पर ध्यान न देते हुए केस बंद करने का फैसला सुनाया है।

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