भगवा साफा, संस्कृत में शपथ, ‘जय श्री राम’ का उद्घोष: जहां मस्जिदों से होता था हिंदुओं के नरसंहार का ऐलान, उस कश्मीर में दिखा अच्छा ‘शगुन’

भगवा साफा, संस्कृत में शपथ, 'जय श्री राम' का उद्घोष: जहाँ मस्जिदों से होता था हिन्दुओं के नरसंहार का ऐलान, उस कश्मीर में दिखा अच्छा 'शगुन'

जम्मू-कश्मीर विधानसभा में भगवा साफा पहने बीजेपी विधायक शगुन परिहार

जय श्री राम…किश्तवाड़ से बीजेपी की विधायक चुनी गईं 29 साल की शगुन परिहार जब जम्मू-कश्मीर विधानसभा में विधायक पद की शपथ लेने पहुंची तो उन्होंने अपनी शपथ की शुरुआत इन्हीं शब्दों से की थी। भगवा साफा पहने शगुन जब शपथ लेने के लिए प्रोटेम स्पीकर के पास पहुंचीं तो वहां बैठे सभी विधायकों की नजर उन पर टिक गई। जय श्री राम का नारा लगाने के बाद शगुन ने संस्कृत में शपथ ली। शगुन की शपथ केवल एक सामान्य शपथ नहीं थी बल्कि ऋषि कश्यप की उस धरती पर हिंदुत्व के पुनरुत्थान की प्रतीक थी जहां से हिंदुत्व को खत्म करने की कोशिश की गई थी।

 

19 जनवरी 1990 को कश्मीर में सर्द हवाओं के बीच जब हिंदुओं से घाटी छोड़ने को कहा गया तो आतंकियों और कट्टरपंथियों का रुख यही रहा होगा कि ऋषि कश्यप की जमीन से हिंदुत्व का सफाया कर दिया जाए। कश्मीर की मस्जिदों से उस वक्त नारेबाजी होने लगी व लाउडस्पीकर और भीड़भाड़ वाली गलियों से ‘जुल्मी, काफिरो! कश्मीर छोड़ो’ और रालिव, गैलिव, चलिव (धर्म परिवर्तन करें, मरें या छोड़ दें) जैसे ऐलान किए जाने लगे। यह एलान कश्मीर में रह रहे लाखों पंडितों और सिखों की जिंदगी बदल गई। एक झटके में उन्हें पुरखों की जमीन छोड़नी पड़ी और वे बेघर हो गए।

इसके बाद कश्मीर में हिंदुओं के लिए हालत खराब ही होते गए। कट्टरपंथियों ने कभी सोचा नहीं होगा कि जिस हिंदुत्व को खत्म करने में वे जुटे हैं वो विधानसभा में शपथ ले रही एक 29 साल की लड़की के रूप में उनके सामने आएगा। जम्मू-कश्मीर में हिंदुओं का आत्मविश्वास लौट रहा है और दशकों से बंद पड़े मंदिरों में पिछले कुछ वर्षों में पूजा शुरू हुई है।

केंद्र में 2014 के बाद से बीजेपी सरकार ने जम्मू-कश्मीर में शांति लाने की जो कोशिशें कीं वे साफ नजर आती हैं। जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने की बात हो, वहां इनफ्रास्ट्रक्चर बनाना हो या अलगाव की बात करने वालों को सबक सिखाना हो बीजेपी ने लगातार इसे लेकर काम किया है। अनुच्छेद 370 हटने के बाद जब उमर अब्दुल्ला ने शपथ ली तो वो भारत के संविधान की थी ना की राज्य के संविधान की, जैसा पहले होता रहा था। छोटे-छोटे बदलावों के जरिए जम्मू-कश्मीर विकास के रास्ते पर एक ऊंची उड़ान भरने की तैयारी कर रहा है।

कौन हैं शगुन परिहार

शगुन ने विधानसभा चुनाव में नैशनल कॉन्फ्रेंस के उम्मीदावर और पूर्व विधायक सज्जाद अहमद किचलू को 521 वोटों से हराया था। परिहार फिलहाल इलेक्ट्रॉनिक्स में पीएचडी कर रही हैं और उन्होंने IK गुजराल पंजाब टेक्निकल यूनिवर्सिटी से 2021 में इलेक्ट्रिकल पावर सिस्टम में M.Tech किया था। कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया गया है कि यह चुनाव लड़ने से पहले वह जम्मू-कश्मीर लोक सेवा आयोग की परीक्षाओं की तैयारी भी कर रही थीं। चुनाव प्रचार के दौरान लगातार आतंकियों से लोगों की सुरक्षा के मुद्दे की चर्चा करती रहीं शगुन ने अपने पिता और चाचा को आंतकी हमले में खो दिया था।

उमर अब्दुल्ला ने कश्मीरी भाषा में ली शपथ

जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनावों की सबसे बड़ी पार्टी एनसी के नेता व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला शपथ लेने वाले पहले विधायक थे। इस दौरान उमर अब्दुल्ला ने कश्मीरी भाषा में शपथ ली। फारूक अब्दुल्ला और उनकी ब्रिटिश पत्नी मोली के बेटे उमर की मातृभाषा ना बोलने पर आलोचनाओं की जाती थी। माना जाता है कि अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत में हिंदी, उर्दू और कश्मीरी जैसी स्थानीय भाषाओं में उमर का प्रवाह खराब था। हालांकि, 2009 से 2014 तक मुख्यमंत्री के रूप में पहले कार्यकाल के दौरान उमर अब्दुल्ला ने इन तीनों भाषाओं में अपने कौशल को सुधारा और इन पर अपनी पकड़ मजबूत की।

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