उत्तर प्रदेश में 10 विधानसभा सीटों के लिए उपचुनाव होने हैं। इसके लिए जल्द ही तारीखों का ऐलान होने की संभावना है। लोकसभा चुनाव 2024 में उत्तर प्रदेश में भाजपा का प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा था। इसको लेकर सूबे के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व पर भी सवालिया निशान लगाए गए थे। ऐसे में आगामी उपचुनाव सीएम योगी के लिए अग्निपरीक्षा से कम नहीं हैं।
भारतीय जनता पार्टी ने हाल ही में संपन्न हुए हरियाणा विधानसभा चुनाव में बड़ी जीत दर्ज की है और अब लगातार तीसरी बार सरकार बनाने जा रही है। हरियाणा चुनाव से पहले राजनीतिक विश्लेषक और अधिकांश मीडिया चैनल भाजपा विरोधी लहर होने की बात कर रहे थे। लेकिन परिणाम सामने आए तो भाजपा की लहर एक बार फिर साफ नजर आई। हरियाणा में मिली जीत से भाजपा और उसके कार्यकर्ताओं में उत्साह होना स्वाभाविक है। उत्तर प्रदेश के उपचुनाव में भी जीत दर्ज कर भाजपा इस उत्साह को जारी रखना चाहेगी। हालांकि उत्तर प्रदेश में भाजपा की राह आसान रहने वाली नहीं है।
दरअसल, साल 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने उत्तर प्रदेश की 80 में से 62 सीटें अपने नाम की थी। वहीं, साल 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को महज 33 सीटों से ही संतोष करना पड़ा। राजनीति हल्के में भाजपा के उत्तर प्रदेश में क्लीन स्वीप करने के चर्चे थे। भाजपा नेताओं की तरफ से भी कई दावे किए जा रहे थे। लेकिन वोटों की गिनती हुई और रिजल्ट सामने आए तो भाजपा यूपी में समाजवादी पार्टी के बाद नंबर 2 की पार्टी बनकर सामने आई थी।
गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश में बीते 7 सालों से योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार है। लोकसभा चुनाव में भी भाजपा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ ही सीएम योगी के चेहरे पर चुनावी मैदान में थी। लेकिन परिणाम भाजपा के पक्ष में नहीं आए। अब 10 विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनाव से न केवल योगी सरकार के कामकाज का लिटमस टेस्ट होगा बल्कि यूपी और देश की राजनीति में योगी आदित्यनाथ की भूमिका भी तय होगी।
बेशक हरियाणा में एंटी इनकंबेंसी होने के बाद भी भाजपा की जीत ने तो यह बता दिया है कि मोदी लहर अब भी कायम है। लेकिन लोकसभा चुनाव में जिस तरह से समाजवादी पार्टी ने चौंकाया था उसे देखते हुए ये उपचुनाव योगी आदित्यनाथ के लिए बेहद महत्वपूर्ण होने वाले हैं।
किन सीटों पर होने हैं उपचुनाव?
उत्तर प्रदेश में मिल्कीपुर, करहल, कटेहरी, गाजियाबाद, कुंदरकी, खैर, मीरापुर, फूलपुर, मंझवा और सीसामऊ सीट पर उपचुनाव होना है। इनमें से 5 सीटें समाजवादी पार्टी के पास थीं, वहीं 3 पर भाजपा और एक-एक सीट पर आरएलडी और निषाद पार्टी का कब्जा था।
इन सभी सीटों को देखें तो मिल्कीपुर से समाजवादी पार्टी नेता अवधेश प्रसाद विधायक थे, अब वह फैजाबाद सीट से सांसद हैं। 2022 के विधानसभा चुनाव में अवधेश प्रसाद ने भाजपा के तत्कालीन विधायक गोरखनाथ बाबा को करीब 13 हजार वोटों से हराया था। अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित इस सीट पर इसी जाति वर्ग के वोटरों का प्रभाव रहा है, वहीं ओबीसी दूसरे नंबर पर हैं। समाजवादी पार्टी को पासी समाज के सबसे अधिक वोट मिलते रहे हैं। इसके अलावा यादव और मुस्लिम वोट भी सपा की मजबूती का बड़ा कारण रहे हैं।
समाजवादी पार्टी के सांसद अवधेश प्रसाद इस सीट से अपने बेटे अजीत प्रसाद के लिए टिकट मांग रहे हैं। बसपा ने रामसागर कोरी को प्रत्याशी बनाया है। हालांकि भाजपा ने अब तक अपने पत्ते नहीं खोले हैं। ऐसा माना जा रहा है कि भाजपा भी पासी समाज से आने वाले किसी मजबूत को चेहरे को यहां से प्रत्याशी बनाकर सपा का खेल बिगाड़ते हुए फैजाबाद लोकसभा चुनाव में हुई हार का बदला ले सकती है।
अब बात करहल की करें तो साल 1993 से लेकर अब तक यहां समाजवादी पार्टी का ही कब्जा रहा है। 2022 के विधानसभा चुनाव में अखिलेश यादव करहल से जीत कर विधायक बने थे। लोकसभा चुनाव में अखिलेश कन्नौज से जीतकर सांसद बन गए हैं, इसलिए अब यह सीट खाली है। 3,75,000 वोटर वाली इस विधानसभा में 1,30,000 यादव वोटर हैं, वहीं दूसरे नंबर पर अनुसूचित जाति के 60 हजार वोटर हैं। इसके अलावा, शाक्य 50 हजार, क्षत्रिय 30 हजार, ब्राह्मण 20 हजार, मुस्लिम 20 हजार और बनिया वोटर 15 हजार हैं। समाजवादी पार्टी ने यहां से मैनपुरी से सांसद रहे तेज प्रताप यादव को प्रत्याशी बनाया है जो कि अखिलेश यादव के चचेरे भाई और लालू यादव के दामाद हैं।
कटेहरी विधानसभा के उपचुनाव में समाजवादी पार्टी ने सांसद लालजी वर्मा की पत्नी शोभावती वर्मा को प्रत्याशी बनाया है। यह सीट लालजी वर्मा के इस्तीफे के बाद खाली हुई है। इस सीट पर भी भाजपा ने अपने पत्ते नहीं खोले नहीं हैं। हालांकि पूर्व मंत्री धर्मराज निषाद, अवधेश द्विवेदी और सुधीर सिंह समेत कई नामों की चर्चा है।
गाजियाबाद सदर विधानसभा से भाजपा के विधायक रहे अतुल गर्ग अब सांसद बन गए हैं। उनके इस्तीफे के बाद खाली हुई इस सीट पर भाजपा की पकड़ मजबूत मानी जा रही है। समाजवादी पार्टी ने भी इस सीट पर अपने प्रत्याशी का ऐलान नहीं किया है। ऐसे में माना जा रहा है कि यह सीट कांग्रेस के खाते में जाएगी। वहीं, बसपा ने इस सीट पर पहले रवि गौतम के नाम का ऐलान किया था। लेकिन फिर उनका नाम हटाकर अब पीएन गर्ग को मैदान में उतारा है।
समाजवादी पार्टी के कुंदरकी से विधायक रहे जियाउर्रहमान के संभल लोकसभा क्षेत्र से सांसद चुने जाने के बाद यह सीट खाली हुई थी। इस सीट पर प्रत्याशी उतारने के लिए सपा-कांग्रेस में खींचतान मचने की खबर है। इस सीट पर 50% से अधिक मुस्लिम वोटर हैं जो चुनाव में निर्णायक भूमिका निभाते हैं। इसके अलावा 20% दलित और करीब 15% ओबीसी वोटर भी चुनाव में असर डालते हैं। इस सीट पर साल 1993 में भाजपा प्रत्याशी चंद्र विजय सिंह ने जीत दर्ज की थी। इसके बाद से सपा-बसपा का ही दबदबा रहा है।
अलीगढ़ की खैर सीट में भाजपा के अनूप प्रधान 2022 के विधानसभा चुनाव में लगातार दूसरी बार जीत दर्ज कर विधायक बने थे। इसके बाद, लोकसभा चुनाव में उन्हें हाथरस से भाजपा ने उम्मीदवार बनाया और वह जीतकर सांसद बन गए। इस कारण अब यहां उपचुनाव होने हैं। खैर सीट पर जाट वोटों का प्रभाव रहा है। जाट जिसके साथ खड़े हो जाते हैं, चुनाव में उसकी ही ठाठ हो जाती है। इस उपचुनाव में जाट किस करवट बैठते हैं यह देखने वाली बात होगी।
मीरापुर विधानसभा से रालोद के विधायक चंदन चौहान बिजनौर से लोकसभा चुनाव जीत सांसद बन गए हैं। उनके इस्तीफे के बाद यह सीट खाली हुई है। इस सीट पर कुल 3 लाख 30 हजार वोटर में से करीब 40% मुस्लिम वोटर हैं। इसके अलावा अनुसूचित जाति वर्ग के वोटरों की संख्या भी 50 हजार के करीब है। इस उपचुनाव के लिए अब तक किसी पार्टी ने अपना प्रत्याशी घोषित नहीं किया है। लेकिन माना जा रहा है कि भाजपा यह सीट RLD को देने का मन चुकी है।
फूलपुर विधानसभा से साल 2022 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी के प्रवीण पटेल विधायक बने थे। लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने प्रवीण पटेल को फूलपुर लोकसभा से प्रत्याशी बनाया था। प्रवीण पटेल जीतकर सांसद निर्वाचित हुए, उसके बाद से ही फूलपुर सीट खाली हो गई थी। इस सीट पर सपा ने पूर्व बसपा नेता मुज्तबा सिद्दकी को प्रत्याशी बनाया है। इस सीट पर अनुसूचित जाति के 75 हजार तो वहीं यादव 70 हजार और पटेल वोटरों की संख्या 60 हजार है। 45 हजार ब्राह्मण और 50 हजार मुस्लिम भी चुनाव परिणाम में अहम भूमिका निभाते हैं।
मझवां से निषाद पार्टी के विधायक रहे डॉक्टर विनोद कुमार बिंद अब संसद पहुंच गए हैं। वह लोकसभा चुनाव में बीजेपी के टिकट पर भदोही लोकसभा से सांसद चुने गए हैं। ऐसे में अब मझवां विधानसभा सीट पर उपचुनाव होना है। मझवां सीट पर जातीय समीकरण की बात की करें तो यहां दलित, ब्राह्मण, बिंद और ओबीसी वोटर की संख्या करीब 60-60 हजार है। निषाद पार्टी यहां से अपना प्रत्याशी उतारना चाहती है। हालांकि सूत्रों की माने तो भाजपा ने उपचुनाव में निषाद पार्टी को कोई भी सीट देने से इनकार कर दिया है।
सीसामऊ सीट सपा विधायक रहे इरफान सोलंकी को आपराधिक मामले में सजा होने के बाद उनकी सदस्यता रद्द होने के चलते खाली हुई है। समाजवादी पार्टी ने इस सीट पर इरफान सोलंकी की बीवी नसीम सोलंकी उम्मीदवार बनाया है। कुल 2 लाख 71 हजार मतदाताओं में से यहां 1 लाख 11 हजार मुस्लिम, 70 हजार ब्राह्मण, 60 हजार दलित और 26 हजार कायस्थ वोटर मुख्य भूमिका निभाते हैं। इस सीट पर जीत दर्ज करने के लिए पार्टियों को ब्राह्मण और दलित वोटर्स पर फोकस करना होगा। इसके अलावा मुस्लिम ध्रुवीकरण भी अहम फैक्टर साबित होगा।