मुझे महान देश भारत से प्यार, लेकिन बहुत चिंतित हूं… तसलीमा नसरीन ने अमित शाह से की क्या अपील?

बांग्लादेशी लेखिका तसलीमा नसरीन 2004 से भारत में हैं। मुस्लिम कट्टरपंथियों की वजह से उन्हें बांग्लादेश छोड़ना पड़ा था।

तसलीमा नसरीन ने अमित शाह से रेजिडेंस परमिट बढ़ाने की अपील की

नई दिल्ली: बांग्लादेश में कट्टरपंथियों के अत्याचार की शिकार लेखिका तसलीमा नसरीन पिछले दो दशक से भारत में हैं। भारत के प्रति अपने प्यार का जिक्र उन्होंने कई बार किया है। तसलीमा ने देश के गृहमंत्री अमित शाह से एक अपील की है। बांग्लादेशी लेखिका ने भारत में रहने के लिए जरूरी रेजिडेंस परमिट को रिन्यू करने की मांग की है। इसको लेकर सोशल मीडिया पर भी तसलीमा को समर्थन मिल रहा है। कई यूजर्स ने भारत सरकार से तसलीमा की मांग पर ध्यान देने की अपील की है।

महान देश से प्यार, रहने की इजाजत दें: तस्लीमा

बांग्लादेशी लेखिका तस्लीमा नसरीन ने अपने आधिकारिक अकाउंट से एक्स पर पोस्ट में लिखा, ‘प्रिय अमित शाहजी नमस्कार। मैं भारत में रहती हूं, क्योंकि मुझे इस महान देश से प्यार है। पिछले 20 साल से यह मेरा दूसरा घर है। लेकिन गृह मंत्रालय ने जुलाई 2022 से मेरा रेजिडेंस परमिट नहीं बढ़ाया है। मैं इससे बहुत चिंतित हूं। अगर आप मुझे रहने की इजाजत देंगे, तो मैं आपकी अत्यंत आभारी रहूंगी।‘

कौन हैं तस्लीम नसरीन?

तसलीमा नसरीन एक मशहूर लेखिका हैं। उनका जन्म 25 अगस्त 1962 को बांग्लादेश के मयमन सिंह इलाके में हुआ था। बतौर प्रोफेशन उन्होंने डॉक्टरी की डिग्री ली थी। उन्होंने कई किताबें और उपन्यास लिखे हैं। उनके उपन्यास लज्जा पर बांग्लादेश में काफी विवाद हुआ था। इस पर भारत में एक फिल्म भी बन चुकी है। इस्लामिक कट्टरता और धर्मांधता के खिलाफ लिखने की वजह से वह बांग्लादेश में मुस्लिम कट्टरपंथियों के निशाने पर रहीं। पाकिस्तानी मूल के तारिक फतेह की तरह ही नसरीन भी कई मौकों पर इस्लाम की आलोचना और सवाल उठाती रही हैं। यही वजह रही कि 1994 में उन्हें बांग्लादेश छोड़कर दूसरे देशों में शरण मांगनी पड़ी। उनके खिलाफ फतवा भी जारी किया गया था।

तसलीमा इस्लाम धर्म को लेकर आलोचनात्मक रही हैं। मुस्लिम कट्टरवाद पर वह लगातार सवाल खड़े करती रहती हैं। सोशल मीडिया पर उन्होंने एक बार लिखा, ‘इस्लाम धर्म में सुधार की जरूरत है, नहीं तो आधुनिक सभ्यता में इस धर्म के लिए कोई जगह नहीं है।‘ ट्विटर (अब एक्स) पर एक बार वह बायकॉट इस्लाम भी लिख चुकी हैं। एक इंटरव्यू में तसलीमा ने कहा था कि महिलाएं और प्रगतिशील लोग मेरी लेखनी को पसंद कर रहे थे। मैंने अपने लेखन में इस्लाम के नियमों की आलोचना की थी। कुरान और हदीस को पढ़ने के बाद मुझे कई बातें महिलाओं के संबंध में बुरी लगीं। मैंने इस्लाम की आलोचना की, इसलिए नब्बे के दशक की शुरुआत में मेरा विरोध शुरू हो गया। तस्लीमा कहती हैं कि पहले उनके खिलाफ 50 हजार, फिर एक लाख और उसके बाद कई लाख का फतवा जारी हो गया। 1993 में एक बांग्लादेशी मौलाना ने भी फतवा जारी किया और मेरे सिर की कीमत 50 हजार रखी थी।

तसलीमा ने एक इंटरव्यू में बताया था कि 1994 में उनके खिलाफ अरेस्ट वॉरंट जारी हुआ। उनका उपन्यास लज्जा प्रकाशित हो चुका था लेकिन खालिदा जिया ने इसे 6 महीने के अंदर ही बैन कर दिया था। तसलीमा का कहना है कि लज्जा में इस्लाम की बात नहीं थी, बल्कि सभी धर्म में नारी के अवस्था की बात थी। जून-जुलाई 1994 में वॉरंट जारी होने के बाद उन्होंने बांग्लादेश छोड़ा और स्वीडन चली गईं। नसरीन की नागरिकता स्वीडिश है लेकिन 2004 से वह भारत में रह रही हैं। उनको अपना रेजिडेंस परमिट रिन्यू कराना पड़ता है। तसलीमा कहती हैं, ‘निर्वासन का जीवन काफी कठिन है। मेरे पैर के नीचे कोई जमीन नहीं है। मेरा रेजिडेंस परमिट रिन्यू नहीं हुआ है। मुझे नहीं पता कि किससे बातचीत करनी है। गृह मंत्रालय में कौन इस मसले पर मुझसे संपर्क करेगा। मेरी किसी से बात नहीं होती है, मैं ऑनलाइन अपने आवेदन का स्टेटस चेक करती रहती हूं।‘ तसलीमा का कहना है कि दो साल से ज्यादा वक्त से उनका परमिट रिन्यू नहीं हुआ है, ऐसे में उन्हें मुश्किल हो सकती है। लिहाजा उन्होंने भारत सरकार के गृह मंत्रालय से इस मामले में कार्रवाई की अपील की है।

आज का बांग्लादेश बहुत ही खराब: तसलीमा

तसलीमा ने आज तक को  दिए एक इंटरव्यू में कहा था, ‘आज के बांग्लादेश की स्थिति 1994 के बांग्लादेश से भी बहुत ही खराब है। शेख हसीन ने कट्टरपंथियों को प्रोत्साहित किया। वह जीवन भर सत्ता में रहना चाहती थीं। बीएनपी को खत्म कर दिया था। उनके अंदर घमंड आ गया था। कहती थीं कि यह मेरे पिता का देश है। बाकी जिन्होंने आजादी की जंग लड़ी, उन्हें भी सम्मान देना चाहिए था। जनता से कटकर उन्होंने धर्म और कट्टरपंथियों को बढ़ावा दिया। यहां तक कि मदरसा की डिग्री को सामान्य कॉलेज के बराबर कर दिया। उन्हें लगता था कि कट्टरपंथी उन्हें बचाएंगे। उन्होंने अवामी उलमा लीग बना ली थी। सांस्कृतिक कार्यक्रमों के बदले गांव-गांव में इस्लामी तकरीर हो रही थी। उन्होंने युवा समाज को बुर्का आदि के लिए ब्रेनवॉश किया। इस्लामी जिहादी बना दिया। आज हसीना का जो पतन हुआ, उसके पीछे हसीना का ही हाथ है।’

‘बांग्लादेश में छात्रों का नहीं इस्लामिक आंदोलन था’

नसरीन ने इंटरव्यू में बांग्लादेश में कट्टरपंथ का बोलबाला होने की बात करते हुए कहा था, ‘हसीना ने जमात-ए-इस्लामी पर प्रतिबंध लगाया था। यूनुस की सरकार ने वह बैन हटा दिया। मतलब साफ है कि वहां छात्रों का नहीं इस्लामिक आंदोलन था। पूरा देश इस्लामी स्टेट की ओर बढ़ रहा है। अल-कायदा पंथी ग्रुप भी इसके पीछे हैं। सूफियों के मजार गिराए जा रहे हैं। वहाबी विचार फैलाना उनका उद्देश्य है।’ आपको (मोहम्मद यूनुस) शांति के लिए नोबल मिला और आप अशांति पर चुप्पी साधे हैं। हम सोचते थे कि यूनुस प्रगतिशील हैं लेकिन जो तोड़फोड़ और हिंदुओं पर अत्याचार हो रहा है, उसके खिलाफ आप क्यों नहीं बोल रहे हैं? मुझे लगता है कि यूनुस भी जमात के साथ मिलकर काम कर रहे हैं। रवींद्रनाथ टैगोर मुस्लिम नहीं थे, इसलिए उनका लिखा हुआ राष्ट्रगान वो लोग चेंज करना चाहते हैं। मुझे लगता है कि छात्रों के पीछे इस्लामी हाथ था।’

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