क्या तीसरा विश्व युद्ध होगा? क्या है न्यूक्लियर बंकर और दुनिया में क्यों बढ़ रही है डिमांड

सौजन्य: स्वीडन न्यूक्लियर बंकर कंपनी एक्स हैंडल

मिडिल ईस्ट जंग के मुहाने पर खड़ा है। पहले और दूसरे विश्व युद्ध में दुनिया के बहुत से देशों ने हवाई हमलों से बचने के लिए बंकर बनाए थे। पहले विश्व युद्ध के दौरान हिटलर के घर में भी एक बंकर मौजूद था। इसी में रहते हुए हिटलर ने अप्रैल 1945 में खुदकुशी कर ली थी। उधर  इजरायल के हमास और लेबनान पर हमले और फिर ईरान के मिसाइल अटैक के बाद न्यूक्लियर बंकर की चर्चा तेज हो गई है। रूस-यूक्रेन के बीच युद्ध में भी इसको लेकर काफी कुछ कहा जा रहा था। अपुष्ट खबरों में कहा गया कि रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने अपने परिजनों को साइबेरिया के न्यूक्लियर बंकर्स में भेज दिया। यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की का परिवार भी बंकर में महफूज है। यह जगह परमाणु हमलों से पूरी तरह सुरक्षित है। आइए जानते हैं कि क्या होता है न्यूक्लियर बंकर और इसके अंदर क्या सुविधाएं मौजूद हो सकती हैं?

क्यों हो रही है न्यूक्लियर बंकर की चर्चा

बंकर को एक तरह से जमीन के अंदर छोटा सा घर कह सकते हैं। अंग्रेजी में इसे डग हाउस भी कहा जाता है। यूरोप के देशों में बड़ी संख्या में बंकर बनाए गए हैं। पहले बंकर सिर्फ हवाई हमलों से सुरक्षा के लिए थे। लेकिन बदलते दौर में तीसरे विश्व युद्ध की आशंकाओं के बीच केमिकल, एटम या हवाई हमलों से बचाने वाले न्यूक्लियर बंकर की बात होने लगी है। आधिकारिक रूप से तो किसी ने न्यूक्लियर बंकर बनाने की बात नहीं कही है लेकिन ऐसा माना जाता है कि एटमी हथियार रखने वाले ज्यादातर देशों ने बंकर्स बनाकर रखे हैं। वे इनका इस्तेमाल एटमी हथियारों को सुरक्षित रखने के लिए भी करते हैं।

कैसे काम करता है न्यूक्लियर बंकर

जब कहीं पर परमाणु हमला होता है तो एक बड़ा धमाका होता है। कोई भी इसके सीधे संपर्क में आता है तो चंद सेकेंड के अंदर राख बन जाएगा, यानी उसे पता भी नहीं चलेगा। परमाणु हमले के बाद दस हजार डिग्री से ज्यादा तापमान हो जाता है। तेज गर्मी और रोशनी से सेकेंडों में झुलसकर मौत हो जाती है। इनका आफ्टर इफेक्ट और भी खतरनाक होता है। न्यूक्लियर रेडिएशन से कैंसर की संभावना बढ़ जाती है। इनसे पैदा होने वाली रेडिएशन से बचाने के लिए जमीन के नीचे बने घर की तरह होते हैं। इनकी दीवारें मोटी कंक्रीट से बनी होती हैं, ताकि रेडिएशन उनके पास तक न पहुंच सके। बंकरों में ऑक्सीजन के साथ  ही खाने-पीने का पूरा इंतजाम रखा जाता है। परमाणु या केमिकल हमले की सूरत में कई दिनों या महीनों तक उसके अंदर रहना पड़ सकता है। रूस-अमेरिका के बीच चले कोल्ड वॉर के वक्त बड़ी संख्या में न्यूक्लियर बंकर बने थे। पिछले कुछ सालों के दौरान CBRN यानी केमिकल, बायोलॉजिकल, रेडियोलॉजिकल और न्यूक्लियर शेल्टर की डिमांड बढ़ रही है।

दिल्ली-एनसीआर में ऐसे बंकर मुहैया कराने का दावा

आज तक की एक रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली-एनसीआर में कई ऐसी कंपनियां हैं, जो न्यूक्लियर बंकर की सेवाएं देने का दावा करती हैं। यही नहीं रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली में ऐसे रियल एस्टेट प्रोजेक्ट आ चुके हैं, जहां बिल्डिंग के नीचे न्यूक्लियर बंकर बन रहे हैं। आज तक की रिपोर्ट के मुताबिक जब कंपनी से सवाल पूछा गया कि न्यूक्लियर वेपन से बचने बंकर बनवाना हो तो क्या मुमकिन है? इस पर जवाब मिला कि जैसे ही डिमांड बढ़ेगी, उसी हिसाब से मटीरियल भी महंगा होगा। न्यूक्लियर वेपन से बचने के लिए 16 एमएम मोटाई के बंकर का दावा किया गया। वहीं एक दूसरे सप्लायर का कहना था कि 16 एमएम बहुत ज्यादा है, 5 एमएम से भी काम चल जाएगा, क्योंकि दिल्ली पर कौन सा हवाई हमला होना है। बस हवा बनाकर महंगे दाम बताए जा रहे हैं। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि ऐसे बंकरों के अंदर थर्मोकोल इन्सुलेशन होगा। स्टील और कंक्रीट मटीरियल होगा।

कितनी कीमत, क्या-क्या इंतजाम?

आज तक की रिपोर्ट के मुताबिक जिस कंपनी से बात हुई, उसने पहला न्यूक्लियर बंकर 2021 में बेचा था। ऐसे न्यूक्लियर बंकरों की कीमत सवा करोड़ से लेकर 10 करोड़ रुपये के बीच बताई गई। इसके अंदर मडरूम, ब्लास्ट प्रूफ दरवाजे, रसोई, एयर फिल्टर और इंटरनल लाइट का इंतजाम करने का दावा कंपनी ने किया। रिपोर्ट के मुताबिक प्रीमियर कैटेगरी में प्लंज पूल, इंडोर स्पोर्ट एरिया, वेपन रूम और जिम जैसी सुविधाएं मिलेंगी। वहीं साग-सब्जी के लिए हाइड्रोपोनिक्स लैब भी न्यूक्लियर बंकर के अंदर होगी। संचार के लिए सैटेलाइट और वायर्ड रेडियो की व्यवस्था रखी जाएगी। एक बुलेटप्रूफ वॉल सप्लायर और सेफ हाउस मैन्युफैक्चर ने दो दर्जन लोगों के रहने लायक कंटनेर का खर्च ढाई करोड़ रुपये बताया। वहीं 15 लोगों के रहने लायक डॉरमेट्री के लिए चार करोड़ रुपये तक का खर्च बताया गया।

प्रदूषण जैसे युद्ध कॉमन हो रहा इसलिए सेफ्टी फर्स्ट’  

आज तक की रिपोर्टर ने ऐसी एक कंपनी से संपर्क किया तो उन्हें न्यूक्लियर बेसमेंट वाले प्रोजेक्ट की साइट पर ले जाकर जो दिखाया गया वह हैरान करने वाला है। रिपोर्ट के मुताबिक प्रदूषण की तरह युद्ध के कॉमन होने का हवाला देते हुए इसकी डिमांड की दलील दी गई। कहा गया कि क्लाइंट अब लग्जरी फर्स्ट की बजाए सेफ्टी फर्स्ट की मांग करते हैं। रिपोर्टर को स्क्रीन पर एक शेल्टर की डिजाइन दिखाई जाती है और बताया जाता है कि 120 फ्लैट वाली बिल्डिंग में औसतन पांच सौ लोग ऐसे न्यूक्लिर बंकर में रह सकते हैं। न्यूक्लियर बेसमेंट में स्टोरेज और बाकी चीजों की रूटीन चेकिंग का दावा किया गया। दस साल के लिए यह फ्री ऑफ कास्ट होगा, ऐसा रिपोर्टर से बातचीत में कहा गया।

क्या कहते हैं एक्सपर्ट?

आज तक की रिपोर्ट में कहा गया है कि एक्सपर्ट से इसको लेकर राय पूछी गई तो ऐसे दावों को खारिज किया गया। दिल्ली के एक रिटायर्ड आईपीएस का कहना था कि ऐसे बंकर कितने सुरक्षित हो सकते हैं, इसका टेस्ट करने का कोई तरीका तो मार्केट में है नहीं, फिर जान चली जाती है तो क्लेम करने के लिए तो आएंगे नहीं। उनका कहना था कि देश में या दिल्ली में ऐसे बंकर सिर्फ वीवीआईपी के पास हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि आम जनता के लिए क्या है? एक्सपर्ट के मुताबिक न्यूक्लियर अटैक में ये सब बेकार हैं। इतना तेज शॉक और रेडिएशन होगा कि बचने की कोई संभावना ही नहीं होगी। न्यूक्लियर हमलों से बचाव के लिए मोटे स्टील और कंक्रीट का खास बंकर होना चाहिए, जो जमीन के अंदर हो।

रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच बढ़ी थी मांग    

यूरोप से अमेरिका तक ऐसे बंकरों की डिमांड बढ़ी है। टेलीग्राफ की एक रिपोर्ट के मुताबिक बंकर बनाने वाली कंपनियों का कहना है कि जर्मनी, स्विटजरलैंड, फ्रांस और UK के नागरिक न्यूक्लियर बंकर खरीदने के साथ ही उनके निर्माण से जुड़ी जानकारियां मांग रहे हैं। रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान इसमें उछाल देखा गया था। रूस ने पश्चिमी देशों को न्यूक्लियर अटैक की चेतावनी दी थी। ऐसे में यूरोप और अमेरिका में इस बात का डर था कि रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन परमाणु हमला करवा सकते हैं। दो साल पहले स्विटजरलैंड में न्यूक्लियर बंकर बनाने और रिपेयर करने वाली एक कंपनी का कहना था कि मार्च 2022 में लोग काफी डरे हुए थे। उनकी ओर से फौरन मदद की मांग हो रही थी। रूस के यूक्रेन पर हमले के बाद डिमांड तेजी से बढ़ी। वहीं यूके की एक फर्म का दावा था कि बंकर की डिमांड 2021 के मुकाबले 2022 में दोगुनी हो गई। जर्मनी की एक कंपनी के मुताबिक उनके देश में 599 पब्लिक शेल्टर हैं। इनको अपग्रेड करने का तरीका खोजा जा रहा है।

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