आतंक की दुनिया में इस्लामिक आतंकवाद से बड़ा कोई दूसरा आतंकवाद नहीं है, लेकिन यदि यह कहा जाए कि भारत में हिंसक हमलों में होने वाली सबसे अधिक मौतों का कारण वामपंथी आतंकवाद है तो लोग आश्चर्य से भर जाते हैं। वास्तव में यह एक कड़वा सच है कि भारत में आतंकवाद से होने वाली सबसे अधिक मौतों का कारण जिहादी नहीं, बल्कि वामपंथी हैं।
भारत में वामपंथी आतंकवाद इस कदर हावी है कि यदि इस पर रोक नहीं लगाई गई तो यह बहुत जल्द लोकतंत्र के लिए नासूर बन जाएगा। अमेरिका द्वारा जारी आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार सीरिया और इराक में कहर बरपाने वाले इस्लामिक स्टेट और अफगानिस्तान के लिए नासूर बने तालिबान के बाद भारत का नक्सली संगठन विश्व का तीसरा सबसे हिंसक आतंकी संगठन है।
दरअसल, वामपंथ आतंक की दुनिया का एक ऐसा नाम है जिसने क्रांति के नाम पर पूरी दुनिया में भीषण नरसंहार किया है। वामपंथी विचारधारा, जिहादियों की मानसिकता से कहीं अधिक कुत्सित विचारधारा है। बेशक वामपंथी आतंक लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद और आईएसआईएस जैसे इस्लामी आतंकवाद से अलग है लेकिन मंसूबे सभी के एक हैं।
वामपंथियों की निर्ममता का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि क्रांति के नाम पर ‘लाल आतंकियों’ द्वारा की गई हत्याओं की संख्या प्रथम व द्वितीय विश्वयुद्ध में मारे गए सैनिकों की कुल संख्या से कहीं अधिक है। लाल आतंकियों की मंशा हमेशा से यही रही है कि वर्ग संघर्ष के नाम पर जनता को भड़काया जाए और फ़िर सिंहासन में बैठकर, सत्ता की जूतियों तले आम-आवाम को आसानी से कुचला जा सके।
यूँ तो मार्क्स और लेनिन के नक्शे कदम पर चलने वाले वामपंथी, देश को हिंसक लाल रंग में रंग देने के लिए हर रोज़ कोई न कोई रणनीति तैयार करते रहते हैं किन्तु आज जब पूरा देश कोरोना के ख़िलाफ़ युद्धरत है तब लाल आतंकी राष्ट्रीय एकता को विध्वंस कर आतंक फैलाने के लिए निश्चित ही कोई न कोई व्यूहरचना तैयार कर रहे होंगे।
वास्तव में, वामपंथ कोई सामान्य मसला नहीं है, बल्कि यह आतंकवाद का ऐसा घिनौना रूप है जिसे जड़ से समाप्त करना बेहद जरूरी हो गया है। वामपंथी वर्तमान राजनीतिक, आर्थिक व्यवस्था को ध्वस्त कर नई माओवादी व्यवस्था लाना चाहते हैं, ये हमेशा से ही भारतीय संविधान, न्याय व्यवस्था समेत विकास के तमाम मुद्दों का विरोध करने के साथ-साथ समाज को उकसाने के लिए सशस्त्र संघर्ष को भी बल देते रहे हैं।
सरकारी आंकड़ों की माने तो पिछले 9-10 वर्षों में जनजातीय इलाकों और जंगलों में इन लाल आतंकियों के आतंक में कमी आयी है, लेकिन इस दौरान यह लाल आतंक जंगल से निकलकर शहर तक जा पहुंचा है। आज देश के कई बड़े शहरों में आतंक के नए आकाओं के रूप में पढ़े-लिखे अर्बन नक्सलियों की नई पीढ़ी तैयार हो चुकी है। इस नई पीढ़ी का काम शहर में अर्बन नक्सलियों की एक ऐसी पौध तैयार करना है जो कि नक्सलवाद के विचार को फैलाने में हर तरीके से मदद कर सके।
वास्तव में, अर्बन नक्सलवाद तथाकथित बुद्धिजीवियों की उस गैंग का नाम है जो माओवाद को बैक डोर से सपोर्ट करती है। इस गैंग में ऐसे प्रबुद्ध वर्ग को सम्मिलित किया जाता है जिनसे युवा वर्ग प्रभावित हो, या फिर जिनके प्रभाव से अर्बन नक्सलियों की इस गैंग के सदस्यों की संख्या में इज़ाफ़ा हो सके।
जानकार मानते हैं कि अर्बन नक्सलवाद को बढ़ावा देना नक्सलियों की सोची समझी रणनीति का हिस्सा है, यही नहीं वर्तमान में नक्सलियों की असली ताक़त व चेहरा भी अर्बन नक्सली ही हैं। देश की सियासत में कब्ज़ा करने का मंसूबा पाले जंगल में छिपे हुए माओवादी जब कमज़ोर हो रहे होते हैं तब उनके लिए हथियार और फंड की व्यवस्था कराने की जिम्मेदारी अर्बन नक्सलियों की ही होती है।
क़ायदे से समझें तो अर्बन नक्सलियों ने ही कमज़ोर होते माओवाद को असली ताकत प्रदान की है। जंगल से गांव और गांव से शहर तक के माओवादियों के सफर को अर्बन नक्सलियों ने आसान कर दिया है, इसके अलावा सरकारी तंत्र से जुड़ी हुई सारी खबरों और सूचनाओं का आदान-प्रदान भी अर्बन नक्सलियों के माध्यम से ही होता है।
मतलब साफ है कि जंगल और आदिवासी इलाकों में आतंक फैलाने के बाद वामपंथी आतंकियों का नया गढ़ है ‘अर्बन एरिया’ यानी कि शहरी क्षेत्र, जहाँ शिक्षण संस्थानों में पढ़ रहे छात्रों को बहला-फुसलाकर पहले वामपंथी बनाया जाएगा और फिर उकसाकर आतंकी।
पूर्व प्रोफेसर और राजनीतिक विश्लेषक एस. आर. उपाध्याय कहते हैं, “अर्बन नक्सलवाद, वामपंथी आतंकवाद विचारधारा की उस श्रेणी का नाम है जो आतंकियों की सहायता करने के अलावा देश के अंदर हिंसा भड़काने के लिए योजना भी तैयार करती है, भीमा कोरेगांव में हुई हिंसा इस बात का सबसे बड़ा उदाहरण है कि अर्बन नक्सलियों ने जंगल के आतंक को शहरों तक पहुंचा दिया है।”
वामपंथी आतंकी अपनी विचारधारा मजबूत करने और सत्ता में स्थापित होने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार हो सकते हैं। नई योजना के अंतर्गत लाल आतंकियों ने देश के अंदर चल रहे विभिन्न लोकतांत्रिक आंदोलनों जैसे आदिवासियों, मजदूरों और किसानों के आंदोलन में घुसपैठ करना शुरू कर दिया है। इन लोकतांत्रिक आंदोलनों में घुसपैठ के बाद आंदोलनकारियों को हिंसा के लिए उकसाना भी वामपंथी आतंकियों की रणनीति का ही हिस्सा है।
यह स्पष्ट है कि इस देश के शहर ही पूंजीपतियों और शिक्षाविदों की शक्ति के केंद्र हैं, यही नहीं शहरों में ही प्रशासन, न्यायपालिका, विधायिका, सेना आदि की प्रभावी उपस्थिति है, ऐसे में लाल आतंकियों का पहला निशाना शहर ही हैं क्योंकि यदि शहरों में हिंसा और अराजकता का माहौल पैदा कर दिया गया तो राज्य के अधिकांश संसाधन शहरों की सुरक्षा में व्यस्त हो जाएंगे और फ़िर जंगलों को सत्ता का केंद्र मान कर बैठे हुए माओवादी ‘गोरिल्ला सेना’ के ज़रिए शेष क्षेत्रों में कब्ज़ा करने और सत्ता को चुनौती देने के मकसद में कामयाब हो जाएंगे।
वर्तमान परिदृश्य में हमें यह समझना होगा कि वामपंथी आतंकी व उनका समर्थन करने वाली शक्तियाँ किसी व्यक्ति विशेष या दल की विरोधी नहीं हैं बल्कि वह इस राष्ट्र की विरोधी हैं, इसलिए तमाम राजनीतिक दलों को माओवादियों और तथाकथित बुद्धिजीवियों के समर्थन में खड़े न होकर उनका खुलकर विरोध करना चाहिए।
निःसन्देह वामपंथी आतंकवादियों के समर्थन में खड़े होने पर कुछ राजनीतिक दलों को वोट बैंक में लाभ होने की संभावना दिखाई दे रही हो, किन्तु यदि वे दल लोकतांत्रिक व्यवस्था में विश्वास करते हैं तो वे भी माओवादियों की नज़र में विरोधी ही हैं और आज भले ही वामपंथी इन दलों के साथ मिलकर देश को तोड़ने की चाल चल रहे हों लेकिन यदि उन्हें मौका मिला तो ये उग्रवादी सत्ता की लालसा में भीषण नरसंहार करेंगे।
इतिहास गवाह है कि वामपंथियों ने जिन देशों में सत्ता पाई है वहां बिना किसी कारण करोड़ों लोगों की हत्याएं कर दी गईं और उन हत्याओं को वामपंथी सही भी ठहराते आए हैं, तो फिर यदि इन वामपंथियो को हिन्दुस्तान में सत्ता स्थापित करनी होगी तो ये निश्चित ही आतंक का रास्ता अपनाएंगे।
वास्तव में यह हैरान करता है कि कुछ लोग ऐसे खतरनाक तत्वों का समर्थन केवल इसलिए कर रहे हैं, क्योंकि उन्हें हर मसले पर वर्तमान सरकार का विरोध करना है, जबकि वामपंथी आतंकवाद का समर्थन, सरकार का विरोध नहीं बल्कि राष्ट्र का विरोध है।