वक्फ बोर्ड समय-समय पर सरकारी जमीन से लेकर लोगों की निजी जमीन तक को अपना बताता रहा है। अब केरल में वक्फ बोर्ड ने एर्नाकुलम जिले के मुनंबम में 404 एकड़ जमीन पर दावा ठोंका है। वक्फ बोर्ड का कहना है कि साल 1950 में यह जमीन वक्फ बोर्ड को दी जा चुकी है। वहीं इस जमीन पर रहे करीब 600 हिंदू और ईसाई परिवारों का कहना है कि उन्होंने दशकों पहले यह जमीन खरीदी थी।
क्या है विवाद की जड़:
केरल में स्थित करोड़ों की जिस जमीन को लेकर विवाद हो रहा है वह एर्नाकुलम जिले में वाइपिन द्वीप के उत्तरी किनारे पर मुनंबम के कुझुप्पिल्ली और पल्लीपुरम गांवों तक फैली हुई है। इतिहास के पन्नों को देखें तो लंबे समय से यहां मछुआरे रह रहे हैं। फिलहाल इस जमीन पर करीब 604 परिवार रहते हैं, जिनमें से करीब 400 घर लैटिन कैथोलिक ईसाइयों के हैं। वहीं बाकी घर पिछड़ा वर्ग से आने वाले हिंदुओं के हैं।
इस पूरे विवाद की शुरुआत आज से करीब 122 साल पहले 1902 में हुई थी। दरअसल, त्रावणकोर की 404 एकड़ जमीन पर मछुआरों का परिवार रहता था या यूं कहें कि इस जमीन पर मछुआरों का कब्जा था। लेकिन 1902 में त्रावणकोर के तत्कालीन राजपरिवार ने अब्दुल सथार मूसा सैत नामक एक व्यापारी को पट्टे पर यानी लीज पर दी थी।
इसके बाद साल 1948 में व्यापारी अब्दुल सथार मूसा के दामाद मोहम्मद सिद्दीक सैत ने लीज पर दी गई इस जमीन को अपने नाम पर रजिस्टर करा लिया था। इतना ही नहीं, मोहम्मद सिद्दीक सैत ने यह जमीन कोझिकोड के फ़ारूक कॉलेज के प्रबंधन को सौंपने का फ़ैसला किया। इसके बाद साल 1950 में इस जमीन को वक्फ संपत्ति के रूप में भी दर्ज करवा दिया गया।
इसके बाद 1960 के आसपास कॉलेज प्रबंधन ने जमीन पर रह रहे लोगों को वहां से हटने के लिए कहना शुरू कर दिया। लेकिन पीढ़ियों से रह रहे लोग जमीन छोड़ने और हटने को तैयार नहीं थे। ऐसे में मामला कोर्ट जा पहुंचा। चूंकि वहां रह रहे लोगों के पास जमीन का मालिकाना हक साबित करने के लिए कोई भी दस्तावेज नहीं था। ऐसे में यह माना जा रहा था कि कोर्ट का फैसला फ़ारूक कॉलेज के पक्ष में ही जाएगा।
हालांकि कोर्ट का फैसला आने से पहले ही फारुक कॉलेज के प्रबंधन ने जमीन पर रह रहे लोगों को बाजार मूल्य में यह जमीन बेचने का फैसला किया। फिर क्या था, लोगों ने अपनी जमा पूंजी लगाकर जमीन खरीद ली। यहां दिलचस्प बात यह है कि जमीन बेचते समय कॉलेज ने न तो लोगों को यह बताया कि यह जमीन वक्फ के रूप में दर्ज हो चुकी है और न ही जमीन बेचने के दस्तावेज में इस बात का जिक्र किया गया। बजाय इसके जमीन के दस्तावेज में यह बताया गया कि यह जमीन कॉलेज को उपहार में मिली है।
50 साल बाद फिर उछला मामला
साल 2008 में केरल में वक्फ बोर्ड के खिलाफ कई शिकायतें सामने आ रही थीं। ऐसे में वीएस अच्युतानंदन के नेतृत्व वाली सीपीआई (एम) सरकार ने रिटायर जज एमए निसार के नेतृत्व में एक जांच आयोग का गठन किया। इस आयोग ने साल 2009 में अपनी रिपोर्ट पेश की। इसमें एमए निसार ने मुनंबम की जमीन को वक्फ की संपत्ति माना और कहा कि कॉलेज प्रबंधन ने बोर्ड की सहमति के बिना ही जमीन बेची है। साथ ही निसार आयोग ने जमीन से जुड़ी वसूली की भी सिफारिश की।
इसके बाद साल 2019 में वक्फ बोर्ड ने इस जमीन को वक्फ अधिनियम 1995 की धारा 40 और 41 के अनुसार वक्फ संपत्ति घोषित कर दिया। साथ ही वक्फ बोर्ड ने राजस्व विभाग को निर्देश दिया कि वह जमीन के कब्जादारों अर्थात जमीन में रह रहे लोगों से टैक्स न लेने को कहा। हालांकि राजस्व विभाग को दिए गए इस निर्देश को राज्य सरकार ने साल 2022 में खारिज कर दिया। इसके बाद वक्फ बोर्ड ने केरल हाई कोर्ट में इसे चुनौती दी थी। कोर्ट ने फिलहाल राज्य सरकार के फैसले पर रोक लगा दी है अब इस मामले को लेकर कोर्ट में एक दर्जन से ज्यादा अपीलें लंबित हैं। इसमें जमीन के कब्जाधारियों के साथ-साथ वक्फ बोर्ड की ओर से भी अपीलें शामिल हैं।
क्या है वक्फ का मतलब:
वक्फ शब्द का अर्थ कोई भी वस्तु या स्थान अल्लाह हो सौंपना है। इस्लाम के अनुसार, कोई संपत्ति यदि वक्फ कर दी जाती है अर्थात अल्लाह के नाम पर समर्पित कर दी जाती है तो फिर वह हमेशा के लिए अल्लाह की ही रहती है, मतलब किसी व्यक्ति का इस पर अधिकार नहीं रहता। इस्लाम के अनुसार वक्फ संपत्ति पर परोपकार के ही कार्य हो सकते हैं। चूंकि वक्फ संपत्ति का मालिकाना हक अल्लाह को दे दिया जाता है, ऐसी स्थिति में उस संपत्ति को कभी वापस नहीं लिया जा सकता। सीधे शब्दों में कहें तो जो संपत्ति अल्लाह की हो चुकी है, वह हमेशा अल्लाह की ही रहेगी। यानी वक्फ वस्तु हमेशा वक्फ की ही रहेगी।