जिसे अरब वाले भी लात मार कर निकाल रहे, कश्मीर पर झूठ फैला रहा वो ‘अल जज़ीरा’: अब्दुल्ला-मुफ़्ती कर रहे ‘कच्चा माल’ की सप्लाई

सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद-370 को निरस्त किए जाने के फैसले को सही ठहराया था, साथ ही अपने ही जजमेंट के खिलाफ दायर पुनर्विचार याचिकाओं को भी नकार दिया था।

जम्मू कश्मीर विधानसभा, अल जज़ीरा

जम्मू कश्मीर विधानसभा में हंगामा, 'अल जज़ीरा' का प्रपंच

जम्मू कश्मीर विधानसभा में नया ड्रामा चल रहा है। पहले तो PDP का विधायक अनुच्छेद-370 पर एक बिल लेकर आता है, फिर मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्लाह इसकी आलोचना करते हैं, इसके बाद भाजपा के विधायकों को जबरन विधानसभा से बाहर कर दिया गया, और अब विधानसभा में एक प्रस्ताव पारित कर के ‘अल-जज़ीरा’ जैसे मीडिया संस्थानों को प्रोपेगंडा की सप्लाई की जा रही है। ऐसे मीडिया संस्थानों को भारत के खिलाफ दुनिया भर में नकारात्मकता फैलाने के लिए कच्चा माल दिया जा रहा है। क्या JKNC और PDP जम्मू में भाजपा के स्वीप से डरे हुए हैं? क्या वो अपने पक्ष में मुस्लिम ध्रुवीकरण के लिए ये सब कर रहे हैं?

आइए, क्रोनोलॉजी समझते हैं। जब जम्मू कश्मीर की नई सरकार के अंतर्गत पहला विधानसभा सत्र शुरू हुआ, तो पहले ही दिन महबूबा मुफ़्ती की पार्टी के विधायक वहीद उर रहमान पारा अनुच्छेद-370 को निरस्त किए जाने के खिलाफ एक बिल लेकर आए। इस फैसले को 5 वर्ष हो चुके हैं – इसके बाद घाटी में आतंकियों की कमर टूटी है, टेरर फंडिंग पर प्रहार हुआ है और 70% मतदाताओं ने लोकतांत्रिक प्रक्रिया में हिस्सा लेकर सरकार चुनी है। अब 5 साल बाद फिर से उस जिन्न को बोतल से वापस निकाला जा रहा है, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने भी विराम दे दिया था।

जम्मू कश्मीर में ‘370 का जिन्न’ वापस निकालने की कोशिश

सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद-370 को निरस्त किए जाने के फैसले को सही ठहराया था, साथ ही अपने ही जजमेंट के खिलाफ दायर पुनर्विचार याचिकाओं को भी नकार दिया था। अब नए बिल के पेश किए जाने का भाजपा विधायकों ने विरोध किया। जम्मू कश्मीर में अब BJP के 28 विधायक हैं। ये सभी सीटें पार्टी को जम्मू में आई हैं। अब तक जम्मू और लद्दाख के साथ मुफ़्ती व अब्दुल्ला परिवार द्वारा भेदभाव किया जाता रहा। लद्दाख अब एक अलग केंद्रशासित प्रदेश बन चुका है, वहीं जम्मू कश्मीर अलग। सोमवार (4 नवंबर, 2024) को पेश इस बिल में माँग की गई थी कि अनुच्छेद-370 को निरस्त किए जाने के फैसले को पलटा जाए।

इसमें माँग की गई थी कि जम्मू कश्मीर को संविधान प्रदत्त सभी अधिकारों को वापस दिया जाए। महबूबा मुफ़्ती ने इस विधेयक को पेश करने के लिए वहीद पारा को धन्यवाद दिया। वहीद पारा के बारे में बता दें कि वो पुलवामा से विधायक चुने गए हैं। आतंकियों और अलगाववादियों से संपर्क के कारण NIA ने और फिर जम्मू कश्मीर पुलिस की काउंटर इंटेलिजेंस ग्रुप ने वहीद पारा को गिरफ्तार भी किया था। अब जमानत पर छूटने के बाद वो MLA बन कर जम्मू कश्मीर विधानसभा में पाकिस्तान का एजेंडा चला रहे हैं।

इसके बाद 7 नवंबर को विधानसभा में विपक्षी भाजपा विधायकों की आवाज़ दबाने की कोशिश की गई। असल में PDP के बाद NC की सरकार भी एक बिल लेकर आ गई। मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्लाह भला अपनी प्रतिद्वंद्वी महबूबा मुफ़्ती को जम्मू कश्मीर के बहुसंख्यक मुस्लिमों की नज़र में मसीहा बनने का मौका कैसे दे सकते थे? वो भी कूद पड़े। इस नए बिल में केंद्र सरकार से माँग की गई कि वो अनुच्छेद-370 के साथ-साथ विशेष राज्य के दर्जे को वापस देने के लिए संवैधानिक प्रक्रिया पर काम करे और साथ ही चुने हुए जनप्रतिनिधियों से इस पर संवाद करे।

भाजपा विधायकों ने जब इसका विरोध किया तो स्पीकर ने मार्शलों को आदेश दिया कि इन्हें बाहर निकाल दिया जाए। स्पीकर अब्दुल रहीम राथर NC के ही नेता रहे हैं। भाजपा MLA सुनील शर्मा इस बिल के खिलाफ बोल रहे थे तो सत्ताधरी विधायकों ने हो-हंगामा कर के उन्हें रोका। भाजपा नेताओं ने ‘जहाँ हुए बलिदान मुखर्जी, वो कश्मीर हमारा है’ का नारा लगाया। भाजपा की एकमात्र महिला विधायक शगुन परिहार को बाहर करने के लिए भी महिला मार्शलों को लगाया गया।

‘अल जज़ीरा’ का भारत विरोधी प्रपंच

अब इसके बाद इस खेल में एंट्री होती है क़तर के सरकारी मीडिया संस्थान ‘अल जज़ीरा’ की। वो एक खबर प्रकाशित करता है, जिसमें बताया जाता है कि जम्मू कश्मीर विधानसभा ने ‘आंशिक स्वायत्तता’ को पुनर्स्थापित करने के लिए प्रस्ताव पास किया है। न तो इस विधेयक में कहीं ‘स्वायत्तता’ का कोई जिक्र है न किसी प्रकार की ‘आज़ादी’ का। फिर भी अल-जज़ीरा इसे गलत तरीके से पेश कर रहा है। हाल ही में आतंकियों ने 7 मजदूरों को मार डाला था। ‘अल जज़ीरा’ ने इन आतंकियों को Gunmen, यानी ‘बंदूकधारी’ कह कर संबोधित किया है। साथ ही वो आतंकियों को Rebel, यानी विद्रोही कह कर भी संबोधित करता है।

‘अल जज़ीरा’ भारत के खिलाफ ज़हर फैलाने के लिए भारतीय पत्रकारों का भी इस्तेमाल करता है। दिल्ली में हुए हिन्दू विरोधी दंगों के बाद मीडिया संस्थान ने भारत की ही एक पत्रकार विद्या सुब्रमण्यम से लेख लिखवाया था कि भारत में मुस्लिमों को सिर्फ इसीलिए सज़ा दी जा रही है क्योंकि वो खुद को भारतीय बताने को कह रहे हैं। इतना ही नहीं, 2015 में भारत का गलत नक्शा दिखाने के लिए ‘अल जज़ीरा’ को 5 दिनों के लिए प्रतिबंधित भी किया गया था। जो मीडिया संस्थान भारत का नक्शा तक ठीक नहीं दिखा सकता, उससे भारत को लेकर सकारात्मक खबर करने की उम्मीद भी कैसे की जा सकती है।

इसी तरह, नवंबर 2017 में उसने दावा किया था कि महाराजा हरि सिंह और डोगराओं द्वारा हजारों मुस्लिमों के कत्लेआम किया गया। हालाँकि, इस दौरान उसने जो तस्वीर शेयर की थी उसका जम्मू कश्मीर से कोई लेना-देना नहीं था। ‘अल जज़ीरा’ का गठन 1996 में हुआ था और इसे चलाने के लिए क़तर के अमीर द्वारा करोड़ों रुपयों की फंडिंग की जाती रही है। इसका गठन एक तरह से इजरायल-फिलिस्तीन विवाद पर इजरायल विरोधी प्रपंच के लिए हुआ था। ये लीबिया में विरोध प्रदर्शनों को तो कवर करता है, लेकिन बहरीन में विरोध प्रदर्शन होते हैं तो ये भाव नहीं देता।

क्या हिम्मत है ‘अल जज़ीरा’ की कि वो अपने मालिक के मुल्क क़तर में मजदूरों के साथ होने वाले सलूक पर कुछ बोले? ‘एमनेस्टी’ ने अपनी रिपोर्ट में बताया था कि क़तर में मजदूरों से जबरन काम कराए जाते हैं, ऊपर से उन्हें पैसे भी नहीं दिए जाते। वहाँ ‘कफाला’ प्रणाली चलती है जिसके तहत वहाँ का मजदूर न तो नौकरी छोड़ सकता है और न अपने देश जा सकता है, काम कराने वाले जब तक चाहें तब तक उसे रख सकते हैं। इन चीजों पर बोलने की हिम्मत नहीं, लेकिन भारत के खिलाफ दुष्प्रचार में ‘अल जज़ीरा’ अव्वल है।

भारत तो छोड़ दीजिए, अरब जगत में भी ‘अल जज़ीरा’ से कई देश परेशान हैं। सऊदी अरब तक इसे प्रतिबंधित कर चुका है। इजिप्ट और जॉर्डन भी ‘अल जज़ीरा’ के ब्यूरो को अपने-अपने देश से लात मार कर निकाल चुके हैं। क़तर इसका इस्तेमाल अपने नैरेटिव के हिसाब से वैश्विक खबरों को पेश करने के लिए करता रहा है।

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