रायपुर: छत्तीसगढ़ में धर्मांतरण के खेल में चावल की मदद ली जा रही है। हैरान मत होइए, एक मीडिया रिपोर्ट में यह बात सामने आई है। पैसे की कमी को पूरा करने के लिए मिशनरियां पीएम मोदी और सीएम विष्णु देव साय की योजना का दुरुपयोग कर रही हैं। अनुमान है कि हर साल इस अनाज से मिशनरियां 100 करोड़ रुपये से ज्यादा इकट्ठा कर रही है। छत्तीसगढ़ में तकरीबन सात लाख ईसाई आबादी रहती है।
एक मुट्ठी अंशदान, 25 से 30 रुपये किलो में बिक्री
मिशनरियों के प्रतिनिधि धर्मांतरण करने वाले हर परिवार से प्रति व्यक्ति प्रतिदिन एक मुट्ठी चावल का अंशदान करवा रहे हैं। प्रत्येक धर्मांतरित परिवार से प्रति व्यक्ति रोजाना एक मुट्ठी चावल अंशदान करा रहे हैं। फिर प्रति माह घर-घर से चावल इकट्ठा कर खुले बाजार में 25 से 30 रुपये किलो में बेचा जा रहा है।
हिंदी अखबार नई दुनिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक जशपुर से बस्तर तक धर्मांतरण का खेल चल रहा है। इसमें जुटे संगठनों ने चंगाई सभा के लिए पैसे का इंतजाम देश के आंतरिक संसाधनों से ही कर लिया। विदेशी अंशदान विनियमन कानून (एफसीआरए या फॉरेन कंट्रीब्यूशन रेगुलेशन एक्ट, 2019) लागू होने के बाद गांव-गांव में फैली मिशनरियों के प्रचारकों की तनख्वाह में दिक्कत आ रही थी।
छत्तीसगढ़ में 2.5 करोड़ को 35 किलो चावल
छत्तीसगढ़ में अन्नपूर्णा योजना के तहत ऐसे परिवार जिनमें चार सदस्य हैं, उन्हें हर महीने 35 किलो चावल दिया जाता है। 2020 के कोरोना काल के बाद केंद्र सरकार की प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना (पीएमजीकेवाई) के तहत पांच किलो चावल अतिरिक्त मिलने लगा है। खाद्य आपूर्ति विभाग के मुताबिक प्रदेश के 3.05 करोड़ लोगों में से तकरीबन 2.5 करोड़ लोगों को बीपीएल, प्राथमिकता और निराश्रित जैसी सुविधाएं मिलती हैं। इस केंद्रीय योजना का फायदा देश के 80 करोड़ लोगों को मिल रहा है। छत्तीसगढ़ के 2.5 करोड़ पात्र लोग भी इसमें शामिल हैं।
‘धर्मांतरण के लिए दुरुपयोग गंभीर मामला’
छत्तीसगढ़ के खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति मंत्री दयाल दास बघेल ने कहा है धर्मांतरण के लिए अगर इसका दुरुपयोग किया जा रहा है, तो गंभीर मामला है। केंद्र सरकार गरीबों को चावल मुहैया करा रही है। इस पूरे मामले की गंभीरता से जांच कराई जाएगी।
जशपुर में सबसे बड़ी चुनौती
जशपुर में हालात ज्यादा गड़बड़ बताए जा रहे हैं। यहां की जनसंख्या के 35 प्रतिशत से ज्यादा हिस्से के धर्मांतरित हो जाने का अनुमान है। एक आरटीआई से मिली जानकारी के मुताबिक कानूनी तरीके से सिर्फ 210 लोग ईसाई बने। इन सभी की वर्तमान समय में मौत भी हो चुकी है।
2011 में जशपुर में 1.89 लाख ईसाई: जनगणना
अगर जनगणना के आंकड़ों से मिलान करें तो कहानी कुछ और निकलती है। 2011 की जनगणना के मुताबिक जशपुर के 22.5 प्रतिशत अर्थात 1.89 लाख लोगों ने खुद को ईसाई धर्म मानने वाला बताया था। अब यह आंकड़ा तीन लाख से ऊपर जा चुका है। बजरंग दल के पूर्व जिलाध्यक्ष नीतिन राय का कहना है कि 2020 से ही मिशनरियों ने खेल शुरू कर दिया था। तब जशपुर के बगीचा ब्लॉक स्थित समरबहार गांव में चंगाई सभा हुई थी। इस दौरान गिरफ्तार 10 लोगों ने एक मुट्ठी चावल की योजना बताई थी। 20 जनवरी 2024 को शहर से सटे जुरगुम गांव में गिरफ्तार लोगों ने भी इसकी पुष्टि की है।
प्रचारकों के लिए फंडिंग का जरिया बनी योजना
इससे मिलने वाली धनराशि से प्रचारक को मासिक वेतन और अन्य सुविधाएं दी जाती हैं। अनुमान है कि योजना से अंबिकापुर, जशपुर, रायगढ़ और बलरामपुर जिले में हर साल 50 से 55 करोड़ रुपये का इंतजाम किया जा रहा है। पूरे प्रदेश में यह आंकड़ा 100 करोड़ रुपये से ज्यादा पहुंच रहा है। कल्याण आश्रम से जुड़े एक कार्यकर्ता कहते हैं कि अन्नपूर्णा योजना और पीएमजीकेवाई से मिलने वाला चावल धर्मांतरण में सक्रिय प्रचारकों (पास्टर) के लिए फंडिंग का जरिया बन गया है। समय रहते इस पर लगाम लगाने की जरूरत है। जल, जंगल और जमीन की पहचान यानी जनजातियों को बचाने के लिए सरकार और प्रशासन को ऐसे तत्वों को छांटना होगा। धर्मांतरण के खेल से छत्तीसगढ़ की संस्कृति और परंपरा को चोट पहुंच रही है, जिसका इलाज अत्यंत आवश्यक है।