‘जामा मस्जिद का हो सर्वे’, PIL पर दिल्ली HC का बड़ा फैसला, जानिए क्या है इसका इतिहास

दिल्ली की जामा मस्जिद को मुगल बादशाह शाहजहां ने 1656 ईसवी में बनवाया था।

जामा मस्जिद को संरक्षित स्मारक घोषित करने की मांग

नई दिल्ली: दिल्ली की मशहूर जामा मस्जिद का अब सर्वे होगा। दिल्ली हाई कोर्ट में जामा मस्जिद को संरक्षित स्मारक घोषित करने की मांग को लेकर एक याचिका दाखिल की गई है। इसी पर सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण यानी एएसआई को जामा मस्जिद और उसके आसपास का सर्वे करने का आदेश दिया है। मस्जिद परिसर का इस्तेमाल किस उद्देश्य से हो रहा है, इसके बारे में भी पता लगाने के लिए कोर्ट ने एएसआई को निर्देश दिया है। इसके लिए जामा मस्जिद का कोई स्केच या टेबल रिकॉर्ड पेश करने के लिए कहा गया है।

कोर्ट ने वक्फ बोर्ड से संरक्षण के लिए मांगे सुझाव

दिल्ली हाई कोर्ट में न्यायमूर्ति प्रतिभा एम सिंह और न्यायमूर्ति अमित शर्मा की बेंच ने मामले की सुनवाई की। हाई कोर्ट की बेंच ने इसके साथ ही दिल्ली वक्फ बोर्ड से पूछा है कि क्या जामा मस्जिद की प्रबंध समिति के संविधान में कोई बदलाव किया गया है या नहीं? कोर्ट ने वक्फ बोर्ड से मस्जिद और इसके आसपास के क्षेत्र के संरक्षण या सुरक्षा के लिए सुझाव भी मांगे हैं। कोर्ट ने चार हफ्ते के अंदर मामले में स्टेटस रिपोर्ट पेश करने के निर्देश दिए हैं। मामले में अगली सुनवाई 11 दिसंबर को होगी।

जामा मस्जिद को संरक्षित स्मारक घोषित करने की मांग

वक्फ बोर्ड की ओर से पैरवी करते हुए सीनियर एडवोकेट संजय घोष ने 10 फरवरी 2015 के आदेश का जिक्र करते हुए बताया कि जामा मस्जिद की प्रबंध कमिटी में अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और महासचिव के अलावा छह मेंबर हैं। कमिटी में वर्तमान समय में सदस्यों के बारे में उन्होंने आगे जवाब देने की बात कही। केंद्र सरकार की ओर से स्थायी अधिवक्ता मनीष मोहन और अनिल सोनी ने कहा कि एएसआई महानिदेशक के साथ हुई बैठक में बताया गया कि जामा मस्जिद को संरक्षित स्मारक घोषित करने के सिलसिले में कोई कदम नहीं उठाया गया है।

याचिका में शाही इमाम उपाधि के इस्तेमाल पर आपत्ति

दिल्ली हाई कोर्ट में सुहैल अहमद खान और अजय गौतम ने जनहित याचिकाएं दाखिल की थीं और कोर्ट इसी पर सुनवाई कर रही है। याचिका में  जामा मस्जिद के इमाम मौलाना सैयद अहमद बुखारी द्वारा शाही इमाम उपाधि के इस्तेमाल पर आपत्ति जताई गई है। इसके साथ ही उनके बेटे को नायब (उप) इमाम के रूप में नियुक्त किए जाने पर भी ऐतराज जताया गया है। याचिका में पूछा गया है कि जामा मस्जिद एएसआई के अधिकार में क्यों नहीं थी?

अधीक्षक पुरातत्वविद् ने कोर्ट में दाखिल एफिडेविट में कहा है जामा मस्जिद को संरक्षित स्मारक घोषित किए बगैर एएसआई ने इसके जीर्णोद्धार और संरक्षण का काम किया। मस्जिद के नवीनीकरण, मरम्मत और दूसरे कार्यों में 2007-08 से 2021 तक कुल 61 लाख 82 हजार 816 रुपये खर्च हुए हैं।

संरक्षित स्मारक के लिए क्या मापदंड?

एएसआई ने एफिडेविट में कहा है कि संरक्षण वक्फ अधिनियम 1995 के तहत जामा मस्जिद दिल्ली वक्फ बोर्ड का है। अगर जामा मस्जिद को संरक्षित स्मारक घोषित किया जाता है तो उसके 100 मीटर के दायरे में निर्माण वर्जित होने वाला निषिद्ध क्षेत्र का नियम लागू होगा। वहीं निषिद्ध क्षेत्र से परे 200 मीटर के क्षेत्र में सभी निर्माण संबंधी गतिविधियों को विनियमित किया जाता है। यहां निर्माण के लिए राष्ट्रीय स्मारक प्राधिकरण से इजाजत लेनी जरूरी होगी। हलफनामे में कहा गया है कि संरक्षित स्मारक घोषित किए जाने की सूरत में स्मारक के चारों ओर 300 मीटर के क्षेत्र में केन्द्रीय सुरक्षा का इंतजाम होगा।

क्या है जामा मस्जिद का इतिहास

जामा मस्जिद भारत की सबसे बड़ी मस्जिद है। लाल किला और ताजमहल बनवाने के साथ ही मुगल बादशाह शाहजहां ने 1650 ईसवी में इसका निर्माण शुरू कराया था। एक ऊंची पहाड़ी पर 1656 ईसवी में जामा मस्जिद बनकर तैयार हुई थी। करीब 5,000 कारीगरों ने शाहजहांबाद में मस्जिद-ए-जहांनुमा (दुनिया  का दृश्य) या जामा मस्जिद का निर्माण किया था। संगमरमर और लाल पत्थरों से बनी इस मस्जिद के परिसर में एक साथ बैठकर 25 हजार लोग नमाज पढ़ सकते हैं। इसकी वास्तुकला में हिंदू और इस्लामी दोनों शैलियों का प्रदर्शन किया गया है। जब 1656 ईसवी में यह मस्जिद बनकर तैयार हुई, तो उद्घाटन के लिए उज्बेकिस्तान के इमाम सैयद अब्दुल गफूर शाह बुखारी को बुलाया गया था।

इस्लाम धर्म में सबसे पवित्र माने जाने वाले मक्का और मदीना पश्चिम में स्थित हैं। इसी तरह जामा मस्जिद भी पश्चिम दिशा में स्थित है। 1948 में हैदराबाद के निजाम मीर उस्मान अली खान ने मस्जिद की मरम्मत के लिए तीन लाख रुपये की सहायता दी थी। मस्जिद में दो बड़ी मीनारें हैं, जिनकी ऊंचाई 40 मीटर है। हर मीनार में 130 सीढ़ियां हैं। मस्जिद में तीन गुंबद हैं। जामा मस्जिद परिसर वर्गाकार है और इसकी ऊंचाई 99 मीटर है। मस्जिद के पश्चिमी हिस्से की वास्तुकला काफी हद तक हिंदू और जैन वास्तुशैली से मिलती-जुलती है।

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