‘यात्रा’ का शाब्दिक अर्थ एक स्थान से दूसरे स्थल तक जाना भर होता तो पर्यटन के पर्यायवाची में ये प्रयुक्त होता, लेकिन यात्रा में पर्यटन वाली सुविधाएँ नहीं होतीं। इसके अलावा यात्रा के उपरांत यात्री बदल जायेगा, ऐसा भी समझा जाता है। यात्रा पर जो निकला था, उसके ज्ञान और अनुभव का स्तर वापस आने वाले से अलग होता है। इसीलिए, यात्रा व्यक्ति को बदल देती है। ये बदलाव रथ यात्रा से भी आया था। तब 1990 का दौर था और साधु-संतों के सम्प्रदायों और अखाड़ों ने राम मंदिर के निर्माण के लिए जोर-शोर से अपने प्रयास जारी रखे थे।
भारत की तब की राजनैतिक व्यवस्था धर्मनिरपेक्षता के रोग से ग्रस्त थी और संविधान में मौजूद पंथ-निरपेक्षता को किसी और ही अर्थ में भारत पर थोपने को उत्सुक थी। जाहिर है, ऐसी स्थिति में राम जन्मभूमि मंदिर के आन्दोलन के लिए राजनैतिक नेतृत्व मौजूद नहीं था।
तब दिल्ली में 800 वर्षों बाद बना था कोई मंदिर
ये वो खाली जगह थी जिसे भरने के लिए लाल कृष्ण आडवाणी सामने आये। VHP और ‘बजरंग दल’ जैसे संगठनों के पास उस समय तक अशोक सिंघल जैसा नाम तो था लेकिन वो धार्मिक-सांस्कृतिक कार्यकर्ता के तौर पर जाने जाते थे, उनकी राजनैतिक समझ या स्वीकार्यता दोनों ही बहुत सीमित क्षेत्रों में थी। ये वो दौर था जब भाजपा की तरफ से तत्कालीन भाजपा प्रमुख LK आडवाणी सामने आये। यात्रा की घोषणा भाजपा की ओर से 12 सितम्बर, 1990 को हुई। ये यात्रा 25 सितम्बर को शुरू होने वाली थी। ये यात्रा गुजरात के सोमनाथ से शुरू हुई जिसका अपना इतिहास है।
अनेकों बार विदेशी हमलावरों ने इस मंदिर को नष्ट किया था और स्वतंत्र भारत का ये पहला मंदिर था जिसे भारत के हिन्दुओं ने पुनः बनाकर खड़ा कर दिया था। उस समय भी तथाकथित सेक्युलरिज्म के कारण नेहरु इस मंदिर के पुनः बनने के विरोध में थे। हिन्दुओं ने वर्षों से अपने मंदिरों का जीर्णोद्धार नहीं देखा था। स्वयं दिल्ली में 800 वर्षों बाद कोई नया मंदिर (बिड़ला मंदिर) बन पाया था। ऐसे में सोमनाथ हिन्दुओं को वो उत्साह देता था जो कहता था कि हाँ, पुनः राम जन्मभूमि मंदिर बन भी सकता है।
ये वो यात्रा थी जिसका नेतृत्व टोयोटा गाड़ी से बनाये एक रथ पर सवार आडवाणी कर रहे थे। यात्रा गुजरात से शुरू होते हुए महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश और बिहार से होते हुए उत्तर प्रदेश पहुंचनी थी जहाँ अयोध्या में इसका समापन होना था। भारत के इतिहास को ये यात्रा बदलने वाली थी। शुरुआती दौर में इस यात्रा में आडवाणी दिन में करीब 300 किलोमीटर की यात्रा कर रहे थे और प्रतिदिन वो छह रैलियों को संबोधित कर रहे थे। गुजरात के 600 गांवों से गुजरती हुई इस यात्रा में 50 रैलियां हो चुकी थी। यहाँ से निकलते ही यात्रा महाराष्ट्र पहुंची जहाँ पहले से ही शिवसेना और बाल ठाकरे का ऐसे आन्दोलन को समर्थन हासिल था।
जनसमर्थन, मीडिया में कवरेज, आडवाणी की गिरफ़्तारी
वहाँ से आगे यात्रा तब के आंध्र प्रदेश (अब तेलंगाना) पहुंची और फिर मध्य प्रदेश। इस दौर तक केंद्र की VP सिंह सरकार जो उस दौर में पचास साल पुराने आंकड़ों पर आधारित मंडल कमीशन की रिपोर्ट पर अलग ही राजनीति कर रही थी, उसने इस यात्रा पर ध्यान नहीं दिया था। मध्य प्रदेश पहुँचने तक यात्रा को अखबारों-समाचारों में जितनी जगह मिलने लगी थी, उसने केंद्र सरकार को भी चौंका दिया। ये वो समय था जब हिन्दुओं को स्वामी विवेकानंद का “गर्व से कहो हम हिन्दू हैं” पुनः स्मरण हो गया था।
गाँव-गाँव में जमा होती हजारों की भीड़ ने दिल्ली दरबार को हिला दिया था। चश्मा लगाने वाले एक साधारण से व्यक्ति को देखने उमड़ती भीड़ जिस यात्रा में जुड़ रही थी उसमें और भी एक विशेष बात थी। राजनैतिक नेतृत्व में आम तौर पर महिलाओं की भागीदारी ना के बराबर होती है, लेकिन इस यात्रा ने साध्वी ऋतंभरा और उमा भारती का चेहरा जनता के सामने लाना शुरू कर दिया था। पीछे महाराष्ट्र से बाल ठाकरे हरा रंग साफ करने का आह्वान कर रहे थे तो आगे जनता ने “तेल लगाकर डाबर का, नाम मिटा दो बाबर का” जैसे विचित्र नारे गढ़ने शुरू कर दिए थे।
दिल्ली पहुँचकर आडवाणी ने केंद्र सरकार को उन्हें गिरफ्तार कर लेने की चुनौती दी। इस समय तक आडवाणी की रथ यात्रा श्री राम रथ यात्रा बन चुकी थी और 23 अक्टूबर को तब के प्रधानमंत्री VP सिंह ने आडवाणी की गिरफ़्तारी के आदेश लालू यादव को दिए। बाद में चारा घोटाले से जुड़े मामले में अपराधकर्मी, भ्रष्टाचारी नेता लालू को जेल हुई और फ़िलहाल वो स्वास्थ्य कारणों से जमानत पर छूटे हुए हैं। इस दौर के बाद VP सिंह राजनीति में अप्रासंगिक हो गए।
आडवाणी को कैद करके एक गेस्ट हाउस में रखा गया लेकिन जनता पर इसका उल्टा ही प्रभाव पड़ा। लाखों की संख्या में श्रद्धालु अयोध्या की ओर बढ़ने लगे। क्रिस्टोफर जेफ्फरलोट के मुताबिक, चालीस हजार से अधिक लोग अयोध्या पहुँच गए। करीब डेढ़ लाख लोगों को इस आन्दोलन के लिए मुलायम सिंह की सरकार ने जेलों में फिंकवा दिया। सिंघल और दूसरे नेताओं की भी गिरफ़्तारी हुई थी लेकिन भीड़ अयोध्या की तरफ बढ़ती रही। निहत्थे कार-सेवकों पर मुलायम की सशस्त्र पुलिस ने पहले आंसू गैस और फिर गोलियां चालाई।
रामभक्तों पर मुलायम सरकार ने चलवाई गोलियां
इस गोलीकांड और हिन्दुओं के नरसंहार के लिए माना जाता है कि मुलायम की पुलिस ने सैकड़ों शवों को ट्रकों में भरकर नदी में बहा दिया था। वर्षों बाद तक इन मामलों की जांच चलती रही। इस आन्दोलन का परिणाम ये हुआ था कि केंद्र की सरकार से भाजपा ने समर्थन वापस ले लिया। अगले लोकसभा चुनावों (1991 में) भाजपा को अपने पिछले मत प्रतिशत से करीब-करीब दोगुने मत मिले। कांग्रेस के बाद वो दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी।
भारत की स्वतंत्रता से पहले, आज के पाकिस्तान वाले हिस्से में जन्मे लाल कृष्ण आडवाणी ने भारत में चुनावों की और भाजपा के भविष्य की दिशा निश्चित कर दी थी। साहित्य से लेकर सिनेमा तक में रुचि रखने वाले आडवाणी के लिए “टेल ऑफ टू सिटीज” और “द थ्री म्स्केटियर्स” प्रिय पुस्तकें होती थीं। शुक्रवार (8 नवम्बर, 2024) लाल कृष्ण आडवाणी 97 वर्ष के हो गए हैं। भारत को बदलने वाले राजनीतिज्ञों की जब बात चलेगी, तो लम्बे समय तक उनका नाम भी लिया जाता रहेगा।