महाराष्ट्र में चुनाव प्रचार खत्म हो चुका है। चार दिन बाद तय हो जाएगा कि महाराष्ट्र की सत्ता का सरताज कौन होगा? बीजेपी, एकनाथ शिंदे की शिवसेना, अजित पवार की एनसीपी वाली महायुति एक तरफ है। दूसरी तरफ कांग्रेस, शिवसेना यूबीटी और एनसीपी शरद पवार मिलकर महाविकास अघाड़ी का हिस्सा हैं। इस बार के चुनाव में चार चेहरों पर चुनावी विश्लेषकों की नजर टिकी है। बालासाहेब ठाकरे की विरासत एकनाथ शिंदे या उद्धव ठाकरे में से किसकी होगी? महाराष्ट्र के चाणक्य कहे जाने वाले शरद पवार क्या लोकसभा चुनाव की तरह अपने भतीजे को फिर मात दे पाएंगे? क्या अजित पवार बीजेपी के साथ बने रहेंगे? इन सारे सवालों का जवाब 23 नवंबर को मिलने वाला है। एक नजर उन चार चेहरों पर, जिनका बहुत कुछ इस चुनाव में दांव पर है।
उद्धव ठाकरे
उद्धव ठाकरे के लिए यह चुनाव अस्तित्व का सवाल है। उनके पिता दिवंगत बालासाहेब ठाकरे ने जिस शिवसेना की स्थापना 58 साल पहले की थी, आज उनके पास न तो पार्टी का पुराना नाम है और न निशान धनुष बाण। चुनाव आयोग से उद्धव ठाकरे को मशाल सिंबल मिला है। उद्धव ठाकरे ने 2019 में जब कांग्रेस और एनसीपी के साथ मिलकर महाविकास अघाड़ी सरकार बनाई, उसी के बाद से उनकी कट्टर हिंदुत्व की पहचान पीछे छूटती चली गई। यह पहचान हटने के साथ ही बालासाहेब की विरासत पर उनका दावा कमजोर पड़ने लगा। उद्धव से बगावत करके शिवसेना पर कब्जा जमाने वाले एकनाथ शिंदे लगातार खुद को बालासाहेब का सच्चा सिपाही बताते हैं। लोकसभा चुनाव में उद्धव ठाकरे और एकनाथ शिंदे दोनों की शिवसेना आमने-सामने थी। नतीजों में उद्धव की सेना को 9 और शिंदे की सेना को 7 सीटें मिलीं। यानी मुकाबला करीबी था। उद्धव की पार्टी ने 21 और शिंदे की पार्टी ने 15 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ा था। अब विधानसभा चुनाव में महायुति की ओर से शिवसेना यूबीटी 95 सीटों पर मैदान में है। अगर विधानसभा चुनाव में उद्धव 2019 की तरह 56 सीट या उसके आसपास रहते हैं, तो उनका दावा मजबूत होगा। वहीं शिवसेना यूबीटी अगर 30 सीटों से भी कम पर अटक गई, तो उद्धव के सियासी भविष्य पर संकट होगा।
एकनाथ शिंदे
एकनाथ शिंदे के लिए यह चुनाव बहुत महत्वपूर्ण है। इस चुनाव का नतीजा तय करेगा कि ठाणे और मुंबई से आगे शिंदे का सिक्का कितना चला। 2022 में दो हिस्सों में बंटने वाली पार्टी का कौन सा गुट असली शिवसेना है, इसका फैसला 23 नवंबर को हो जाएगा। शिंदे की शिवसेना राज्य की 80 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। लोकसभा चुनाव में जिन 15 सीटों पर उनकी पार्टी ने चुनाव लड़ा, उनमें से ठाणे, कल्याण, हातकणंगले, बुलढाणा, औरंगाबाद और मावल में उसे जीत मिली। 1966 में जिस शिवसेना का मुंबई में जन्म हुआ, वहां की मुंबई दक्षिण और मुंबई दक्षिण मध्य सीट पर शिंदे की शिवसेना उद्धव ठाकरे की शिवसेना से हार गई थी। सिर्फ मुंबई उत्तर पश्चिम सीट पर उसके उम्मीदवार 48 वोटों के करीबी अंतर से जीते थे। जून 2022 में बगावत के बाद पार्टी का आधिकारिक नाम और चुनाव चिह्न शिंदे के पास है। वहीं शिवाजी पार्क के सामने स्थित शिवसेना भवन उद्धव ठाकरे के कब्जे में है। एकनाथ शिंदे बार-बार यह बात कहते हैं कि उद्धव ने बालासाहेब की विचारधारा को त्याग दिया था, इसलिए उन्हें बगावत के लिए मजबूर होना पड़ा। ऐसे में विधानसभा चुनाव का नतीजा बालासाहेब की विरासत के सवाल पर अंतिम निर्णय देगा। अगर शिंदे 40 या उसके आसपास सीटें पाते हैं, तो उनका दावा मजबूत होगा। वहीं 25 सीटों से कम मिलने की सूरत में उनकी राजनीति कमजोर पड़ेगी।
शरद पवार
महाराष्ट्र के मराठा क्षत्रप शरद पवार संभवतः सक्रिय राजनीति में अपना अंतिम चुनाव लड़ रहे हैं। चुनाव प्रचार के बीच ही उन्होंने चुनावी राजनीति से संन्यास लेने का ऐलान भी किया था। यह चुनाव उनके सियासी जीवन का सबसे बड़ा लिटमस टेस्ट भी है। चुनौती भी घर के अंदर से ही है। जिस एनसीपी को शरद पवार ने खड़ा किया, आज उसका आधिकारिक नाम और सिंबल घड़ी उनके भतीजे के पास है। अजित पवार की बगावत के बाद 6 फरवरी 2024 को चुनाव आयोग ने अजित पवार के गुट को असली एनसीपी माना था। विधायकों की संख्या के आधार पर अजित को पार्टी का नाम और घड़ी निशान मिला। वहीं शरद पवार की एनसीपी (शरदचंद्र पवार) को तुरही निशान आवंटित किया गया था। जुलाई 2023 में चाचा शरद पवार से बगावत करते हुए अजित पवार, बीजेपी और शिवसेना के साथ महायुति में शामिल हो गए थे। उन्हें डेप्युटी सीएम बनाया गया। 2024 के लोकसभा चुनाव में शरद पवार की पहली परीक्षा हुई। इस परीक्षा में पवार पास हुए और 8 सीटों पर एनसीपी (शरद पवार) ने जीत हासिल की। उनकी बेटी सुप्रिया सुले ने अजित पवार की पत्नी सुनेत्रा पवार को बारामती सीट पर मात दी थी। विधानसभा चुनाव में एनसीपी (शरद पवार) महाविकास अघाड़ी के बैनर तले 86 सीटों पर लड़ रही है। 2019 के विधानसभा चुनाव में अविभाजित एनसीपी को 54 सीटों पर जीत मिली थी। इस बार शरद पवार की पार्टी अगर 40 से 50 सीटों के बीच जीतती है, तो उसका वजूद बरकरार रहने के साथ पार्टी की स्थिति मजबूत होगी। 20 से 25 सीटें मिलने पर शरद पवार के लिए अच्छा सियासी फेयरवेल नहीं होगा।
अजित पवार
एनसीपी में शरद पवार को कार्यकर्ताओं और नेताओं के बीच साहेब कहा जाता है। वहीं उनके भतीजे अजित पवार को ज्यादातर लोग दादा या अजित दादा के नाम से संबोधित करते हैं। महाराष्ट्र के इस चुनाव में दादा का बहुत कुछ दांव पर है। पिछले साल जुलाई में चाचा शरद पवार से अलग होने के बाद वह महायुति सरकार का हिस्सा हैं। पहली परीक्षा में अजित दादा फेल रहे, क्योंकि एनसीपी का नाम और निशान होने के बावजूद 2024 के लोकसभा चुनाव में उनकी पार्टी के खाते में सिर्फ एक सीट आई। बारामती में प्रतिष्ठा की जंग में शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले ने उनकी पत्नी को करारी शिकस्त दी। अब विधानसभा चुनाव में अजित पवार के लिए बेहतर प्रदर्शन करना सबसे बड़ी चुनौती है। चुनौती इसलिए भी कठिन है, क्योंकि उनके हिस्से में महायुति के साझीदारों में सबसे कम 59 सीटें आई हैं। अजित पवार ने बीजेपी की इच्छा के खिलाफ जाते हुए नवाब मलिक को अपनी पार्टी से टिकट दिया। इसको लेकर एकनाथ शिंदे और देवेंद्र फडणवीस भी खुश नहीं हैं। अजित पवार ने इस चुनाव में बटेंगे तो कटेंगे के नारे पर आपत्ति जताई है। बीजेपी के साथ होने के बावजूद जिस तरह उन्होंने योगी आदित्यनाथ के इस बयान पर अपनी राय दी, उससे महायुति में अंदरखाने अनबन नजर आई। अजित पवार को इस चुनाव में खुद को साबित करना है। उन्हें यह दिखाना है कि शरद पवार के बगैर भी वह उतने ही ताकतवर हैं। बारामती का चुनाव इसकी सबसे बड़ी मिसाल होगा, जहां से वह 1990 से विधायक हैं। शरद पवार ने इस चुनाव में अपने पोते योगेंद्र पवार को अजित पवार के खिलाफ उतारा है। अजित पवार को सियासी वजूद के लिए अपनी सीट हर हाल में जीतनी ही होगी। साथ ही सीटों के मामले में उनका स्ट्राइक रेट 50 प्रतिशत यानी 25-30 सीटों से कम रहता है, तो उनके सियासी बियाबान में जाने का खतरा है।