महाराष्ट्र में जीत के बाद भी उहापोह में RSS: एक धड़ा नहीं लेना चाहता श्रेय, एक माँग रहा मेहनत का ये ‘इनाम’

महाराष्ट्र में संघ की रणनीति से महायुती ने रचा इतिहास

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महाराष्ट्र में जीत के बाद भी उहापोह में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ

महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में भाजपा ने ऐतिहासिक जीत दर्ज की है। राजनीतिक पंडित और मीडिया द्वारा इस जीत का श्रेय स्थानीय नेताओं के अलावा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और योगी आदित्यनाथ की रैलियों को दिया जा रहा है। इसके साथ ही भाजपा और महायुति की जीत का सेहरा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के कार्यकर्ताओं के सिर पर भी बांधा जा रहा है। हालांकि संघ ने इसका क्रेडिट लेने से इनकार करते हुए स्वयंसेवकों को अपना काम करने की सलाह दी है।

चूंकि महाराष्ट्र में भाजपा की जीत के पीछे संघ की रणनीति और उसके रणनीतिकारों का हाथ होने की बात सामने आ चुकी है। ऐसे में अब यह भी खबर है कि संघ का एक वर्ग या यूं कहें कि स्वयंसेवक अपनी मेहनत का फल चाहते हैं। सीधे शब्दों में कहें तो संघ के कार्यकर्ता चाहते हैं कि जिन विषयों को लेकर उन्होंने जनता के बीच जाकर वोट मांगा था। अब उन पर खुलकर बात हो और सरकार बनने के बाद उन मुद्दों पर सीधे तौर पर काम किया जाए।

हिन्दुत्व

इस चुनाव में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नारे ‘बटेंगे तो कटेंगे’ की सबसे अधिक चर्चा हुई। इस नारे के जरिए हिंदुओं से एक होने का आह्वान किया गया था। चुनाव परिणाम में हिंदुओं की एकता दिखी भी है। लेकिन संघ के कार्यकर्ताओं की मांग है कि महाराष्ट्र की राजनीति में ‘बटेंगे तो कटेंगे’ सिर्फ चुनावी नारा बन कर न रह जाए, बल्कि अब चुनाव के बाद भी जातिवाद में फसे और बंटे हुए हिंदुओं को एकजुट करने के लिए सरकार द्वारा ठोस कदम उठाए जाएं।

भ्रष्टाचार मुक्त शासन

महाराष्ट्र में महाविकस आघाडी सरकार में जनता भ्रष्टाचार से त्रस्त थी। सरकार पर कई तरह के घोटाले के आरोप लगे हैं। यहां तक कि कोरोना काल में रेमडेसिविर इंजेक्शन तक में 25 करोड़ का घोटाला करने का आरोप लगा था। इसके अलावा उद्धव ठाकरे सरकार पर सिंचाई घोटाले का भो आरोप है। इतना ही नहीं, हाल ही में 6000 करोड़ रुपए के बिटकॉइन घोटाले में शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले और कांग्रेस नेता नाना पटोले का नाम भी सामने आया है। ऐसे में महाराष्ट्र में भ्रष्टाचार बड़ा मुद्दा है। संघ के स्वयंसेवक इस मुद्दे को भी राज्य सरकार के सामने रख सकते हैं।

पंच परिवर्तन

गौरतलब है कि संघ ने अपनी स्थापना के 100 वें वर्ष यानी 2025 से पहले अपने प्रचारकों को घर-घर जाकर ‘पंच परिवर्तन’ के उद्देश्य पहुंचाने का काम दिया है। इसमें, परिवार जागरूकता, पर्यावरण संरक्षण, स्वदेशी जीवन शैली, सामाजिक समरसता और नागरिक कर्तव्य शामिल है। ऐसे में संघ के कार्यकर्ता इन मुद्दों पर सरकार द्वारा पहल की बात भी कर सकते हैं। उल्लेखनीय है कि संघ के एजेंडे में स्वदेशी का मुद्दा लंबे समय से रहा है। इसके लिए हर वर्ष अभियान भी चलाया जाता है।

वक्फ बोर्ड पर नियंत्रण

हाल के सबसे चर्चित मुद्दे ‘वक्फ बोर्ड’ को लेकर भी कड़े नियम और नई नीति बनाने पर भी संघ के स्वयंसेवक जोर दे सकते हैं। दरअसल, वक्फ बोर्ड आए दिन किसी न किसी संपत्ति पर अपना दावा करता आ रहा है। इसको लेकर केंद्र सरकार भी कानून बनाने की तैयारी कर रही है। लेकिन इसमें समय लगने की संभावना है। ऐसे में उत्तर प्रदेश की तर्ज पर स्वयंसेवक महाराष्ट्र में भी नई नीति बनाने की मांग कर सकते हैं।

सरकार के नियंत्रण से बाहर हों मंदिर

आंध्र प्रदेश में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ हिंदू मंदिरों को सरकार के नियंत्रण से बाहर करने की मांग कर रहा है। इसके लिए 5 जनवरी 2025 को ‘चलो विजयवाड़ा’ के तहत लोगों से विजयवाड़ा में एकत्रित होने के लिए कहा है। आंध्र प्रदेश में संघ ने मंदिरों में कर्मचारियों के रूप में केवल हिंदू धर्म को मानने वाले लोगों की नियुक्ति की भी मांग की है। ऐसे में इस तरह की मांग महाराष्ट्र में भी होने की उम्मीद की जा रही है।

डेमोग्राफी में नियंत्रण

हाल ही में टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज (TISS) की रिपोर्ट में यह सामने आया था कि मुंबई की डेमोग्राफी तेजी से बदल रही है। रिपोर्ट में कहा गया था कि मुंबई में घुसपैठियों के चलते मुस्लिमों की संख्या तेजी से बढ़ी है और हिंदू तेजी से घटते जा रहे हैं। इस बात की आशंका जताई जा रही है कि 2051 तक मुंबई में हिंदुओं की आबादी 50% से भी कम हो सकती है। वहीं मुस्लिमों की संख्या 30% से अधिक होने की बात कही गई थी। यही हाल महाराष्ट्र के अन्य हिस्सों का भी हो सकता है। ऐसे में स्वयंसेवक तेजी से हो रहे डेमोग्राफिक बदलाव में नियंत्रण के लिए नई नीति बनाने पर जोर दे सकते हैं।

धर्म परिवर्तन:

पूरा देश धर्मांतरण के जाल में उलझता जा रहा है। महाराष्ट्र भी इससे अछूता नहीं है। खासतौर से दलितों को धर्मांतरण का शिकार बनाया जा रहा है। यह एक ऐसा मुद्दा है जिस पर सरकार को ध्यान देने की आवश्यकता है। दरअसल, महाराष्ट्र में अब तक धर्मांतरण विरोधी कानून नहीं है। ऐसे में राज्य में धर्मांतरण की कानून बेलगाम तरीके से चल रही है। चूंकि धर्मांतरण के मुद्दे पर संघ हमेशा से ही मुखर रहा है। ऐसे में, अब सरकार से धर्मांतरण के खिलाफ कड़ा कानून बनाने की मांग हो सकती है।

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