महाराष्ट्र और झारखंड विधानसभा चुनाव परिणामों को एक साथ मिलाकर लोकसभा चुनाव परिणामों से तुलना कर सकते हैं और अलग-अलग विश्लेषण भी। महाराष्ट्र के परिणाम बताते हैं कि भाजपा गठबंधन ने लोकसभा चुनाव परिणामों को पीछे छोड़कर अपने मुद्दों के आधार पर जबरदस्त बढ़त बनाया है। महाविकास अघाड़ी ने भी इसे विचारधारा की लड़ाई घोषित किया था। वह लोकसभा चुनाव का परिणाम का विश्लेषण करने में चूकी और मान लिया कि यह भाजपा और संघ की विचारधारा तथा प्रदेश सरकार और केंद्र में नरेंद्र मोदी सरकार के विरुद्ध जनादेश है जो जारी रहेगा। विधानसभा चुनाव परिणामों ने इस मान्यता को ध्वस्त किया है। महाराष्ट्र का परिणाम असाधारण है। भाजपा के नेतृत्व में महायुती की एकपक्षीय विजय है और भाजपा ने अपने इतिहास में सबसे ज्यादा सीटें पाईं। तो ऐसा परिणाम क्यों आया तथा झारखंड एवं महाराष्ट्र में अंतर क्यों है?
महाराष्ट्र के मतदाताओं ने जब 1995 के बाद रिकॉर्ड संख्या में पिछले चुनाव से 4 प्रतिशत से ज्यादा मतदान किया तभी लग गया था यह लोकसभा चुनाव की पुनरावृत्ति के लिए नहीं है। मुंबई सिटी की 10 सीटों पर 52.65 प्रतिशत और उपनगर की 26 पर 56.39 प्रतिशत मतदान हुआ। महिलाओं के मतदान का आंकड़ा भी महत्वपूर्ण रहा। कुल 9.7 करोड़ मतदाताओं में 5.22 करोड़ पुरुष और 4.69 करोड़ महिलायें थीं। इनमें 3,34,37,057 पुरुष तथा 3,06,49,318 महिला और 1,820 अन्य ने मतदान किया। पुरुषों की तुलना में केवल 28 लाख कम महिला मतदाताओं ने मतदान किया जबकि दोनों के बीच अंतर करीब 53 लाख था।
कह सकते हैं कि महाराष्ट्र में महिलाओं के खाते में एकनाथ शिंदे सरकार द्वारा धन स्थानांतरित करना जीत का बड़ा कारण था। इससे हम इनकार नहीं कर सकते क्योंकि झारखंड में भी मैया सम्मान योजना ने भूमिका निभाई। लेकिन महाराष्ट्र में दोनों पक्षों के बीच लगभग 15% मतों का अंतर केवल महिला मतदाताओं के कारण नहीं आ सकता। लोकसभा चुनाव से तुलना करें तो साफ है कि दोनों पक्षों के बीच का वातावरण आमूल रूप से बदल चुका है। भाजपा ने लोकसभा चुनाव में बहुमत से वंचित रहने के बाद तुरंत अपना पुराना तेवर हासिल करने की दिशा में तत्परता दिखाई। संघ नेतृत्व ने अपनी बातें उन तक पहुंचाई तथा लोकसभा चुनाव में अध्यक्ष जेपी नड्डा जी के भाजपा को संघ की पहले की तरह आवश्यकता नहीं जैसे बयानों से पैदा हुआ असमंजस समाप्त हुआ। लोकसभा में वक्फ कानून संशोधन विधेयक लाया और पूरे देश के साथ महाराष्ट्र में भी विचारधारा के आधार पर स्पष्ट विभाजन पैदा हुआ। महत्वपूर्ण मुद्दे हिंदुत्व, हिंदुत्व अभिप्रेरित राष्ट्रीयता तथा इस्लामिक कट्टरवाद —इन पर सभी भाजपा शिवसेना नेता बेहिचक प्रखर और आक्रामक होकर बोलते रहे, इनसे जुड़े मुद्दे उठाते रहे, विपक्ष को हिंदुत्व विरोधी, देश के हित के विरोध काम करने वाला घोषित किया।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, देवेंद्र फडणवीस आदि सभी प्रमुख नेताओं ने मजहबी कट्टरता, हिंदुत्व तथा विपक्ष के कट्टर मजहबवाद को प्रोत्साहित करने की नीति को मुख्य मुद्दा बनाया और पूरा वातावरण ऐसा था जिसमें मतदाताओं ने स्वीकार किया। टीवी चैनल पर ऐसे मतदाता सामने आए जो बोल रहे थे कि जिस तरह एक समुदाय किसी पार्टी को हराने के लिए काम कर रहा है उसे देखकर हम मतदान करने बाहर निकले। महाराष्ट्र में मुस्लिम संगठनों और नेताओं के बीच महाविकास अघाड़ी को समर्थन देने की होड़ लगी हुई थी। ऐसी बैठकों के वीडियो सामने आए जिनमें मजहबी नेता, इमाम, मौलवी कह रहे हैं कि हमने लोकसभा चुनाव में महाविकास अघाड़ी के पक्ष में फतवा जारी किया और विजय मिली, हम इस बार भी जारी कर रहे हैं। मुस्लिम नेता भाजपा, शिवसेना या महायुती को वोट देने वालों का हुक्का पानी बंद करने की सरेआम बात कर रहे थे। वक्फ कानून संशोधन विधेयक भी महाराष्ट्र में मुस्लिम संगठनों के अतिवादी विरोध कारण बहुत बड़ा मुद्दा बन गया था। कांग्रेस, शिवसेना उद्धव ठाकरे तथा राकांपा -शरद पवार तीनों ने मुस्लिम वोट पाने के लिए इनको रोकने की जगह प्रोत्साहित किया। भाजपा शिवसेना समर्थकों में से जिनने कई कारणों से लोकसभा चुनाव में मतदान नहीं किया या विरोध में चले गए या महा विकास अघाड़ी के पक्ष में मतदान करने वाले गैर प्रतिबद्ध मतदाताओं को भी लगा कि हिंदू, बौद्ध,सिख और जैन के लिए भाजपा और शिवसेना ही है। हरियाणा से यह प्रवृत्ति हमने देखी। योगी आदित्यनाथ का ‘बटेंगे तो कटेंगे’, प्रधानमंत्री का ‘बटेंगे तो विरोधी महफिल सजाएंगे’ और ‘एक रहेंगे तो सेफ रहेंगे’ नारे स्वाभाविक में लोगों के दिलों तक पहुंचे। जब देवेंद्र फडणवीस ने कहा कि हमारे विरुद्ध वोट जिहाद है और इसे वोट के धर्मयुद्ध से हरायेंगे तो भले इसकी आलोचना हुई लेकिन लोगों के अंतरतम में यह भाव था।
लोकसभा चुनाव में भाजपा, शिवसेना और राकांपा -अजीत पवार से असंतुष्ट लोगों की महाविकास अघाड़ी को 31 सीटों तक पहुंचाने में बड़ी भूमिका थी। बाबासाहेब अंबेडकर जी का संविधान खत्म हो जाएगा, आरक्षण खत्म हो जाएगा यह झूठा नैरेटिव दलितों ,आदिवासियों और पिछड़ी जातियों के एक समूह तक पहुंचा था। हरियाणा में देखा गया कि दलित और पिछड़े पहले की तरह इस नैरेटिव को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं थे। इस स्पष्ट दिखती प्रवृत्ति के बावजूद कांग्रेस और शिवसेना-उद्धव सबसे ज्यादा जोर इसी मुद्दे पर देती रही, कांग्रेस संविधान सम्मान सम्मेलन आयोजित करती रही और राहुल गांधी ने जातीय जनगणना की भी बात दुहराई। भाजपा और शिवसेना ने इसे हिंदुओं को जाति में विभाजित कर समाज- देश तोड़ने का षड्यंत्र बताते हुए हमला किया और आम कार्यकर्ता ‘बटेंगे तो काटेंगे’ तथा ‘एक रहेंगे तो सेफ रहेंगे’ नारे को नीचे तक पहुंचाते रहे। इस बीच लेबनान में हिजबुल्ला के तत्कालीन प्रमुख नजीबुउल्लाह की मृत्यु पर पूरे देश में भारी संख्या में मुस्लिम समुदाय ने ‘एक नजीबुल्लाह मारोगे हर घर से नजीबुल्लाह निकलेगा’, ‘हम सब हिजबुल्ला‘ के नारे लगाए तथा उत्तर प्रदेश के एक मंदिर के प्रमुख के एक बयान के विरुद्ध प्राथमिकी दर्ज होने के बावजूद ‘गुस्ताख ए नबी की एक ही सजा , सिर तन से जुदा सिर तन से जुदा‘ नारे लगाते हुए मरने- मारने के रूप में दिखे। इन सबके विरुद्ध लोगों के अंदर प्रतिक्रियाएं थीं। महाराष्ट्र के लगभग सभी क्षेत्रों में महायुती ने यूंही अच्छा प्रदर्शन नहीं किया है। भाजपा के उम्मीदवारों की जीत 89 प्रतिशत है। महायुति सरकार के विरुद्ध यानी मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे, उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ,अजीत पवार के विरुद्ध सरकार को लेकर जनता में ऐसा संतोष नहीं था जिसे उभारा जा सके।
झारखंड में भाजपा की घुसपैठ, लव जिहाद और जनांकिकी बदलने को मुद्दा इसलिए सफल नहीं हुआ क्योंकि उसने प्रदेश के अनुकूल रणनीति नहीं बनाई। हिमंत बिस्वा सरमा सह-प्रभारी होते हुए भी मुख्य रणनीतिकार एवं पार्टी के सर्व प्रमुख चेहरा बने हुए थे। झारखंड की लड़ाई सतह पर हिमंत बनाम हेमंत सोरेन हो गया जो प्रदेश के मतदाताओं के अनुकूल नहीं था। भाजपा की विचारधारा और उनसे जुड़े मुद्दों के अनुरूप उम्मीदवार भी चाहिए था। 25 विधायकों में से तीन का टिकट कटा। चंपाई सोरेन को पार्टी में लाकर पूरे आदिवासी क्षेत्रों में दौरा कराया गया अपने आदिवासी नेताओं का उपयोग नहीं किया। चंपाई सोरेन भाजपा के मुद्दों के प्रवक्ता नहीं हो सकते थे। लोगों के अंदर घुसपैठ, लव जिहाद मुस्लिम कट्टरवाद के विरुद्ध भाव था लेकिन हेमंत सोरेन के सामने ऐसा कोई चेहरा नहीं था जिसे देखकर आदिवासी मतदाता भाजपा की ओर आते। भ्रष्टाचार के आरोप में गिरफ्तारी को हेमंत ने आदिवासी सम्मान से जोड़ा और उसका भी प्रभाव हुआ। चंपाई सोरेन उनका सामना नहीं कर सकते थे। वे पिछली बार भी बहुत कम अंतर से जीते थे। उनके साथ झामुमो के ज्यादा विधायक या नेता भी भाजपा में नहीं आए थे। भाजपा में उम्मीदवारों के चयन को लेकर व्यापक असंतोष और विद्रोह था जिनसे ठीक प्रकार से निपटा नहीं जा सका। कई सीटों पर भाजपा नेताओं ने निर्दलीय या विरोधी खेमे का उम्मीदवार बनकर हराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। शिवराज सिंह चौहान ने कोशिश की लेकिन काफी देर हो चुकी थी ।
कुल मिलाकर मतदाताओं ने जनादेश से बता दिया है कि I.N.D.I.A और उनके घटकों की लोकसभा चुनाव में बढ़त अस्थाई थी जो समाप्त हो चुकी है। यह विचारधाराओं की लड़ाई में भाजपा शिवसेना की विजय का जनादेश है। भाजपा को लेकर उनके समर्थकों या मतदाताओं में स्थानीय स्तरों पर असंतोष या नाराजगी होते हुए भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, उनकी सरकार तथा मुद्दों के प्रति आकर्षण है। 2014 में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में देश ने मुख्यतः हिंदुत्व, हिंदुत्व प्रेरित राष्ट्रवाद तथा आर्थिक विकास की संभावनाओं को देखते हुए कांग्रेस, यूपीए व विरोधी दलों को नकारा था जो वैचारिक स्तर पर स्थायित्व ग्रहण कर रहा है। अगर भाजपा उम्मीदवारों के चयन में विचारधारा को प्राथमिकता दे, अपने प्रतिबद्ध लोगों का भी जमीनी स्तर पर ध्यान रखे और गलत लोगों को किसी स्तर पर महत्व नहीं दे तो देश में लंबे समय तक अपनी नीतियों के अनुरूप शासन कर बदलाव में ऐतिहासिक भूमिका निभाती रहेगी।