राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु का ‘जनजातीय गौरव दिवस’ और बिरसा मुंडा के 150वें जयंती वर्ष पर संदेश

2021 में मोदी सरकार ने भगवान बिरसा मुंडा की जयंती को 'जनजातीय गौरव दिवस' घोषित किया था

देशभर में 15 नवंबर को ‘जनजातीय गौरव दिवस’ मनाया जा रहा है। 2021 में केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने भगवान बिरसा मुंडा की जयंती को (15 नवंबर) राष्ट्रीय जनजातीय गौरव दिवस के रूप में घोषित किया था, इस दिवस का उद्देश्य बिरसा मुंडा और अन्य जनजातीय स्वतंत्रता सेनानियों के योगदान को सम्मान देना है। यह भगवान बिरसा मुंडा का 150वां जयंती वर्ष है और इसे लेकर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने जयंती की पूर्व संध्या पर अपना संदेश जारी किया है।

राष्ट्रपति मुर्मु ने भगवान बिरसा मुंडा की पावन स्मृति को नमन करते हुए कहा, “जनजातीय गौरव तथा संविधान के आदर्शों के प्रति देश में नई चेतना का संचार हो रहा है तथा इस चेतना को कार्यरूप दिया जा रहा है। यह भावना जनजातीय समाज सहित पूरे देश के उज्ज्वल भविष्य का आधार बनेगी। अठारहवीं सदी से ही, जनजातीय समाज ने, ब्रिटिश हुकूमत के अन्याय का संगठित विरोध किया था। वर्ष 1855 में संथाल-हूल का नेतृत्व करने वाले बहादुर भाइयों सिद्धो-कान्हू और चांद-भैरव के साथ फूलो-झानो जैसी वीरांगना बहनों ने भी असाधारण साहस का परिचय दिया था।”

अपने संदेश में राष्ट्रपति ने कहा, “मैं तिलका मांझी तथा भगवान बिरसा मुंडा से लेकर लक्ष्मण नायक जैसे अनेक जनजातीय महानायकों की कहानियां सुनते हुए बड़ी हुई। लेकिन, सामान्य लोगों के बीच उन महानायकों के विषय में उतनी जानकारी नहीं होती थी। सरकार के प्रयासों द्वारा अब जनजातीय स्वाधीनता सेनानियों की कथाओं से लोग भली-भांति परिचित होने लगे हैं।युगों-युगों से, जनजातीय समाज के लोग, हमारे देश की सभ्यता और संस्कृति को समृद्ध बनाते रहे हैं। रामायण की कथा में हमारे समाज के शाश्वत जीवन-मूल्य दिखाई देते हैं। अपने लंबे वनवास के दौरान, प्रभु श्रीराम, जनजातीय समाज के लोगों के साथ, उन्हीं की तरह रहे। भगवान श्रीराम ने वनवासियों को अपनाया और वनवासियों ने प्रभु श्रीराम को अपनाया। जनजातीय समाज का यह अपनापन और समरसता ही हमारी संस्कृति और सभ्यता का आधार है।”

उन्होंने कहा, “मैंने जनजातीय समाज के दुख-दर्द को केवल देखा ही नहीं है, खुद महसूस भी किया है। जनसेवा की मेरी यात्रा का आरंभ जनजाति सलाहकार परिषद की सदस्य के रूप में हुआ था। अब जनजातीय लोगों के जीवन को बेहतर होता देखकर मुझे खुशी होती है। जनजातीय समाज की प्रतिभाओं को अधिक मान्यता भी मिल रही है। जनजातीय समुदाय के लगभग 100 लोगों को बीते 10 वर्षों के दौरान पद्म विभूषण, पद्म भूषण तथा पद्म श्री पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है। अनेक राज्यों के राज्यपाल तथा मुख्यमंत्री, केंद्र एवं राज्य सरकारों के मंत्रीगण तथा उच्च पदों पर आसीन अनेक व्यक्ति जनजातीय समाज से आते हैं।”

राष्ट्रपति मुर्मु ने इस अवसर पर दैनिक जागरण के लिए एक लेख भी लिखा है, जिसमें उन्होंने लिखा है, “जब मैं छोटी थी, तब पिता को ईंधन के लिए इस्तेमाल की जाने वाली सूखी लकड़ियों को काटते समय भी माफी मांगते हुए देखती थी। आम तौर पर जनजातीय समुदाय के लोग संतुष्ट रहते हैं क्योंकि वे निजी महत्वाकांक्षाओं की तुलना में सामूहिक अच्छाई को अधिक महत्व देते हैं। मानव जाति के बेहतर भविष्य के लिए जनजातीय समाज की इस विशेषता को पोषित करने के लिए ही पिछले दशक में सरकार ने भारत के सामाजिक-सांस्कृतिक तानेबाने में जनजातीय समुदायों के महत्व को उचित मान्यता देने के लिए व्यापक प्रयास शुरू किए। जनजातीय विकास और कल्याण हेतु समग्र दृष्टिकोण के साथ करीब 63,000 जनजातीय गांवों में सामाजिक विकास के बुनियादी ढांचे की कमी को पूरा करने के लिए गत माह धरती आबा जनजातीय ग्राम उत्कर्ष अभियान शुरू हुआ।”

उन्होंने कहा है, “जनजातीय समाज के लोगों सहित, सभी देशवासियों का जो अपार स्नेह मुझे मिलता है वह मुझे कभी-कभी भावुक बना देता है। मेरी इस भावुकता के पीछे आज की यह सुखद सच्चाई भी है कि जनजातीय भाई-बहनों और युवाओं के लिए आज विकास का खुला आसमान उपलब्ध है। वे जितनी भी ऊंची उड़ान भरना चाहें, समाज और सरकार उनके साथ हैं। मेरा मानना है कि बिरसा मुंडा के आदर्श न केवल जनजातीय बल्कि देश के सभी समुदायों के युवाओं के लिए गर्व और प्रेरणा का स्रोत हैं। स्वतंत्रता, न्याय, पहचान और सम्मान के लिए बिरसा मुंडा की आकांक्षाएं देश के हर युवा की आकांक्षाएं हैं।”

राष्ट्रपति का यह संदेश ना केवल जनजातीय समाज बल्कि देशवासियों के लिए प्रेरणा वाक्य की तरह है। इसमें ना केवल जनजातीय लोगों की समृद्ध विरासत का जिक्र है बल्कि लोगों के भविष्य को बेहतर बनाने के मंत्र भी हैं।

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