प्रियंका गाँधी, वायनाड उपचुनाव और जमात से गठबंधन: मुस्लिम दामाद वाले ‘साथी नेता’ ने ही किया खुलासा, इसीलिए हिन्दुओं के कत्लेआम पर कांग्रेस थी चुप?

अब सोचिए, जिस व्यक्ति का दामाद ही मुस्लिम वो वो अगर अपने ही गठबंधन साथी पर इस्लामी शासन की स्थापना की साजिश में शामिल होने का आरोप लगाता है तो ये कितनी बड़ी बात है।

प्रियंका गाँधी, जमात-ए-इस्लामी

प्रियंका गाँधी ने वायनाड उपचुनाव में लिया जमात-ए-इस्लामी का समर्थन: I.N.D.I. गठबंधन के साथी ने ही लगाया आरोप

केरल के वायनाड में बुधवार (13 नवंबर, 2024) को लोकसभा उपचुनाव होना है। जहाँ कांग्रेस की तरफ से पार्टी महासचिव प्रियंका गाँधी चुनाव लड़ रही हैं, वहीं राज्य की सत्ताधारी पार्टी CPI(M) ने सत्यन मोकेरी को मैदान में उतारा है। भाजपा की तरफ से सॉफ्टवेयर इंजीनियर नव्या हरिदास ताल ठोक रही हैं। वायनाड में उपचुनाव होने का कारण ये है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में राहुल गाँधी ने वायनाड के अलावा उत्तर प्रदेश के रायबरेली से भी जीत दर्ज की थी। उन्होंने रायबरेली अपने पास रखी, वहीं वायनाड को अपनी बहन के लिए खाली कर दिया। कई वर्षों से राजनीति में सक्रिय प्रियंका गाँधी पहली बार चुनावी मैदान में हैं।

अब केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन ने कांग्रेस पार्टी पर एक बड़ा आरोप लगाया है। चूँकि CPI(M) और कांग्रेस I.N.D.I. गठबंधन में पार्टनर्स भी हैं, ऐसे में अगर वो एक-दूसरे पर कोई बड़ा आरोप लगाते है तो इस पर बात होनी चाहिए। आइए, आपको बताते हैं कि पिनराई विजयन ने क्या कहा है। केरल के मुख्यमंत्री का कहना है कि प्रियंका गाँधी जमात-ए-इस्लामी के समर्थन से चुनाव लड़ रही हैं। जमात-ए-इस्लामी, जिसकी स्थापना 1941 में लाहौर में हुई थी। भारत के विभाजन के बाद 1975 में ‘जमात-ए-इस्लामी हिन्द’ और फिर पाकिस्तान के विभाजन के बाद 1983 में ‘बांग्लादेश जमात-ए-इस्लामी’ का गठन किया गया।

मुस्लिम दामाद वाले केरल CM पिनराई विजयन ने क्या कहा

इस संगठन की हम विस्तार से चर्चा करेंगे, लेकिन उससे पहले पिनराई विजयन के आरोपों को समझते हैं। केरल के CM ने कहा है कि प्रियंका गाँधी वाड्रा का जमात से समर्थन लेना लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए ठीक नहीं है। उन्होंने कांग्रेस से इस पर अपना रुख स्पष्ट करने की माँग करते हुए कहा कि जमात भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था में यकीन नहीं रखता है, वो पूरी दुनिया में इस्लाम का शासन स्थापित करने का लक्ष्य लेकर चल रहा है। जमात का लक्ष्य है – दुनिया भर में इस्लाम का शासन। पिनराई विजयन ने बताया है कि ‘जमात-ए-इस्लामी हिन्द’ ने अपनी ढाल के रूप में ‘वेलफेयर पार्टी ऑफ इंडिया (WPI)’ बना रखी है।

उन्होंने ये भी याद दिलाया कि कैसे जमात-ए-इस्लामी को जम्मू कश्मीर में प्रतिबंधित किया जा चुका है। पिनराई विजयन का कहना है कि जमात हर जगह एक ही है, वो भले अलग होने का दावा करें। उन्होंने कहा कि जमात लोकतंत्र नहीं चाहता है, इस्लामी व्यवस्था चाहता है। अब वो UDF, यानी केरल में कांग्रेस गठबंधन ‘यूनाइटेड डेमोक्रेडिट फ्रंट’ का समर्थन कर रहा है। CPI(M), एक ऐसी पार्टी जो खुद हिन्दू धर्म की विरोधी रही है, वो जब I.N.D.I. गठबंधन के अपने साथी कांग्रेस पर सांप्रदायिक होने का आरोप लगाए, तो इस पर चर्चा होनी चाहिए।

चर्चा इसीलिए भी होनी चाहिए, क्योंकि जिस नेता ने आरोप लगाया है उसका दामाद ही मुस्लिम है। जी हाँ, पिनराई विजयन की बेटी वीणा की शादी PA मुहम्मद रियास से हुई है। 2021 में वो कोझिकोड के बेपुर विधानसभा क्षेत्र से विधायक बने। मुहम्मद रियास अपने ससुर की सरकार में PWD, पर्यटन और युवा मामलों के विभाग के मंत्री भी हैं। साथ ही वो पिछले 7 वर्षों से CPI (मार्क्सिस्ट) की युवा यूनिट ‘डेमोक्रेटिक यूथ फेडरेशन ऑफ इंडिया’ (DYFI) के अध्यक्ष भी हैं।

अब सोचिए, जिस व्यक्ति का दामाद ही मुस्लिम वो अगर अपने ही गठबंधन साथी पर इस्लामी शासन की स्थापना की साजिश में शामिल होने का आरोप लगाता है तो ये कितनी बड़ी बात है। ये बताता है कि कांग्रेस किस कदर इस्लामी कट्टरपंथियों के इकोसिस्टम का एक हिस्सा बन गई है। ये आरोप भाजपा ने लगाया होता तो कांग्रेस पार्टी ये कह कर ख़ारिज कर सकती थी कि भाजपा मुस्लिम विरोधी पार्टी है, मुस्लिमों के लिए तमाम जन-कल्याणकारी योजनाओं के बावजूद जो नैरेटिव बनाया गया है। लेकिन, ये आरोप उस पार्टी ने लगाए हैं जो खुद हिन्दू धर्म और यहाँ तक कि भारत देश की परंपराओं से नफरत करती रही है।

मुस्लिम लीग और जमात: कांग्रेस के 2 हाथ

वायनाड में कांग्रेस का पहले से ही ‘ऑल इंडिया मुस्लिम लीग (IUML)’ के साथ गठबंधन है। कांग्रेस की रैलियों में वहाँ चाँद-सितारा वाले IUML के हरे झंडे दिखते भी है। लोकसभा क्षेत्र में 41% से भी अधिक जनसंख्या मुस्लिमों की ही है, ऐसे में उन्हें लुभाने का कोई मौका कांग्रेस नहीं छोड़ती, भले ही इसके लिए पूरी धरती पर शरिया के शासन का समर्थन ही क्यों न करना पड़े। IUML को भी कोई साधारण राजनीतिक दल नहीं समझिए, इसकी जड़ें 1906 में स्थापित ‘ऑल इंडिया मुस्लिम लीग’ में हैं। वो मुस्लिम लीग, जिसकी स्थापना ढाका के नवाब ख्वाजा सलीमुल्लाह ने की थी, और मुहम्मद अली जिन्ना के नेतृत्व में जिस संगठन ने इस देश को खंडित करवाया। IUML के संस्थापक मुहम्मद इस्माइल 1930 से लेकर आज़ादी के वक्त तक इसी ‘मुस्लिम लीग’ के नेता थे, आज़ादी के बाद उन्होंने IUML बना लिया। मद्रास, यानि चेन्नई में ‘मुस्लिम लीग’ के बचे-खुचे नेताओं ने मिल कर IUML की स्थापना की। भले ही इन्होंने अपने नामों में फेरबदल कर लिया हो, तकनीकी रूप से एक-दूसरे से खुद को अलग बताते हों – भारत से लेकर पाकिस्तान और बांग्लादेश तक, ये एक ही हैं, इनका लक्ष्य एक ही है।

ये थी IUML की बात, अब लौटते हैं जमात पर। जैसा कि हमने पहले बताया, जमात के अलग-अलग रूप भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश में सक्रिय हैं। ‘जमात-ए-इस्लामी हिंदी’ की वेबसाइट पर लिखा है कि ये संगठन सभी नागरिकों तक इस्लाम का संदेश पहुँचाता है और समाज का पुनर्निर्माण करता है। वहीं ‘बांग्लादेश जमात-ए-इस्लामी’ की वेबसाइट पर लिखा है कि ये मुल्क के इस्लामी मूल्यों की सुरक्षा का संकल्प लेकर चल रहा है। वहीं पाकिस्तान स्थित जमात-ए-इस्लामी अपनी वेबसाइट पर लिखता है कि इसके संस्थापक मौलाना सैयद अबुल आला मौदूदी के विचारों से प्रभावित होकर दुनिया के कई देशों में संगठन चल रहे हैं।

उन्हीं के विचारों से प्रभावित होकर सैन्य तानाशाह जिया-उल-हक़ ने अपने शासनकाल का उद्देश्य पैगंबर मुहम्मद की सत्ता को स्थापित करना बताया था। जिया-उल-हक़ ने शरिया अदालतों की स्थापना से लेकर ईशनिंदा के लिए मौत की सज़ा मुकर्रर करने तक जैसे कई फैसले लिए जो जमात की विचारधारा से प्रेरित थे। मौलाना मौदूदी शासन चलाने के तौर-तरीकों में मुग़ल शासक औरंगज़ेब से ख़ासे प्रेरित थे। फिर एक ‘जमात-ए-इस्लामी कश्मीर’ भी है, जिसे UAPA के तहत प्रतिबंधित किया जा चुका है। वो जम्मू कश्मीर में आतंकवादियों का समर्थन करने के लिए जाना जाता है।

बांग्लादेश में जमात-ए-इस्लामी ने किया हिन्दुओं का कत्लेआम

बांग्लादेश में हाल ही में हिन्दुओं पर हमलों की 200+ घटनाएँ हुईं, उन सबमें ‘जमात-ए-इस्लामी बांग्लादेश’ और इससे जुड़े कट्टरपंथियों का ही हाथ था। शेख हसीना की सत्ता जाने के बाद इस संगठन ने तख्तापलट के बाद बने माहौल का फायदा हिन्दुओं पर हमले के लिए उठाया। हिन्दुओं के घर लूटे गए, उनके व्यापारिक प्रतिष्ठान जलाए गए। JeI (जमात-ए-इस्लामी) 1971 के युद्ध के दौरान बंगाली मुस्लिमों के नरसंहार में भी शामिल था। भारत में ये प्रतिबंधित है। तब बांग्लादेश का गठन नहीं हुआ था और ये ‘पूर्वी पाकिस्तान’ हुआ करता था। जब यहाँ विद्रोह हुआ तब उसे कुचलने के लिए पाकिस्तानी फौज ने रज़ाकार, अल-बद्र, अल-शम्स, और ‘पीस कमिटी’ जैसे संगठनों के साथ गठजोड़ किया जिन्होंने बंगाली मुस्लिमों और हिन्दुओं पर अत्याचार करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। बड़ी संख्या में कत्लेआम मचाया गया, हिन्दू महिलाओं/लड़कियों के साथ बलात्कार किया गया।

2009 में बांग्लादेश की सरकार ने न केवल ‘जमात-ए-इस्लामी बांग्लादेश’, बल्कि इसके छात्र संगठन ‘छात्र शिबिर’ को भी आतंकी घोषित करते हुए बैन कर दिया था। इन्हें पाकिस्तान के ख़ुफ़िया संगठन ISI का समर्थन भी प्राप्त है। पाकिस्तान का जमात-ए-इस्लामी ‘मुस्लिम ब्रदरहुड’ के साथ-साथ हमास से भी करीबी संपर्क रखता है। ये भी सामने आया था कि JeI बांग्लादेश ने 2006 में हमास को 1 लाख डॉलर की मदद की थी, ताकि वो यहूदियों का कत्लेआम जारी रख सके। नवंबर 2022 में भारत सरकार ने जमात से जुड़ी 800 करोड़ रुपए की संपत्ति चिह्नित की थी और 9 संपत्तियाँ जब्त की थीं। 2019 में पुलवामा में आतंकी हमले में 40 CRPF जवानों के बलिदान होने के बाद की गई कार्रवाई में जमात के 350 नेताओं को हिरासत में लिया गया था। श्रीनगर में इसके 70 बैंक खाते सीज हुए थे। जम्मू कश्मीर में ये उस वक्त तक 400 स्कूल, 350 मस्जिदें और 1000 मदरसे संचालित कर रहा था। इसी साल फरवरी में ‘जमात-ए-इस्लामी कश्मीर’ पर बैन अगले 5 वर्षों के लिए बढ़ा दिया

‘जमात-ए-इस्लामी हिन्द’ ने दिल्ली के दंगाई का किया था समर्थन

टेरर फंडिंग में इसका नाम जुड़ा था और NIA ने कई ठिकानों पर छापेमारी भी की थी। जम्मू कश्मीर की जाँच एजेंसी SIA ने इस संगठन की 100 करोड़ रुपए की संपत्ति जब्त की थी। कर्नाटक में जब शैक्षणिक संस्थानों में बुर्का और हिजाब की अनुमति के लिए जब विरोध प्रदर्शन और उपद्रव हुआ था, तब भी जमात-ए-इस्लामी का हाथ इसमें सामने आया था। 2023 में ‘जमात-ए-इस्लामी हिन्द’ ने मुस्लिमों को ‘पूरा मुस्लिम’ बनाने के लिए अभियान चलाया था। पता नहीं, ये ‘आधा मुस्लिम’ और ‘पूरा मुस्लिम’ क्या होता है। इस संगठन ने दिल्ली के दंगाई AAP पार्षद ताहिर हुसैन का भी समर्थन किया था। IB अधिकारी अंकित शर्मा की हत्या में ताहिर हुसैन का नाम आया था।

अब सोचिए, इस तरह की ताक़तों के साथ कांग्रेस का नाम आना और उसके ही गठबंधन साथी द्वारा उसे सांप्रदायिक बताया जाना – ये सब इस बात की ओर इशारा करते हैं कि प्रतिबंधित संगठन PFI भारत को 1947 तक इस्लामी मुल्क बनाने की जिस साजिश में शामिल था, कांग्रेस का रास्ता उससे अलग नहीं है। जाति की राजनीति से हिन्दुओं को बाँटने की साजिश में लगी कांग्रेस मुस्लिमों को अपने पाले में करने के लिए किसी भी हद तक जाने के लिए तैयार है – भले ही देश को इससे कितना ही बड़ा नुकसान क्यों न हो।

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