भदेस कहावतों में कहते हैं, “लौंडों की यारी, जी का जंजाल”! मोटे तौर पर ये इसीलिए कहा जाता है क्योंकि परिपक्वता का स्तर आयु के साथ बदलता रहता है और अगर कहीं अलग अलग आयु वर्ग के लोगों में रोज साथ उठने-बैठने वाली दोस्ती है तो आज नही तो कल किसी बात का अलग-अलग अर्थ लेने के कारण, किसी मुद्दे पर अलग-अलग राय होने के कारण, झगड़ा होगा ही। ऐसे में अक्सर अधिक आयु वाला अधिक परिपक्व होता है, वो चुप्पी साध लेता है। जो कम उम्र वाले अर्थात भदेस भाषा के “लौंडे” होते हैं, वो चिल्ला-चिल्ला कर मामले की खबर पूरे टोले-गाँव यानी हर घर में पहुंचा देते हैं। सोशल मीडिया पर अपने स्तर की परिपक्वता रखने वालों से सम्बन्ध रखते तो राहुल देव को भी दिक्कत न हुई होती। अफसोस कि डेढ़ लाख फॉलोवर्स जुटाने और उनसे एक्स हैंडल को आर्थिक स्रोत बनाने के चक्कर में राहुल देव ये बात भूल गए।
शुचितावादी हिन्दी में लिखने वाले भूतपूर्व पत्रकार और संपादक राहुल देव के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने अंग्रेजी दैनिक ‘पायोनीयर’ से अपना करियर शुरू किया था। ऐसा माना जाता है कि यूपीए शासन काल में ये जमकर मलाई काटने वालों के गिरोहों में ही थे। इकोसिस्टम से उनका जुड़ाव आज भी छुपाये नहीं छुपता। कहने को गाँधीवादी राहुल देव के विचारों में हिन्दुओं, मोदी और भाजपा के लिए घृणा नजर आना कोई अनोखी बात नहीं होती थी। सड़कों को घेरकर हर जुम्मे की नमाज पढ़ने और सार्वजनिक पार्क, खेल के मैदान इत्यादि पर कब्जे का विरोध हुआ तो वो अपने घर के दरवाजे (केवल एक्स पोस्ट में, सचमुच नहीं) नमाजियों के लिए खोलकर बैठ गए। गाँधी के नाम पर वो जो विचार बेचने निकले, वो आज के आम भारतीय को हजम होने वाले नहीं थे। जाहिर है वो एक्स पर रोज कई कमेंट में विरोध झेलते थे और उनमें से किसी एक को उसकी भाषा, वर्तनी इत्यादि के लिए पकड़कर रिट्वीट करते थे। जहाँ तर्कों का करारा जवाब मिल गया हो, वहाँ से वो दूसरे कई लिबरल जमात वालों की ही तरह भाग जाते थे।
कुछ रोज पहले एक दिन किसी ने उनका अकाउंट ही हैक कर लिया। ऐसी स्थितियों के लिए पहले से ही तैयार राहुल देव अगले ही दिन अपनी दूसरी आईडी से वापस तो आये, मगर फिर असली राहुल देव कौन है, इसपर दोनों में बहस छिड़ गयी। राहुल देव ने अपने पुराने समर्थकों से अपनी आईडी वापस हैकर्स से लेने में मदद मांगी। इसके बाद जो हुआ वो इस तरह की घटनाओं में बिलकुल ही नया था। बिना डरे हैकर्स ने उनकी आईडी इस्तेमाल करते हुए खुद को असली और असली राहुल देव को ही नकली सिद्ध कर डाला। एक्स यूजर्स की लगातार शिकायतों के चलते अब न वो नयी आईडी बना पा रहे, न पुरानी वापस ले पा रहे, और तो और, जो आईडी थी उसकी पहुँच भी सीमित हो गयी। उनके उल-जलूल पोस्ट के कारण उनके विरोधियों की संख्या इतनी हो गयी थी कि लोगों ने जानते हुए भी कि असली आईडी @RahulDev795979 है, नकली @rahuldev2 को समर्थन दिया और असली वाले को फिर से सस्पेंड करने के लिए मास रिपोर्ट करना शुरू कर दिया। देर रात 16 तारीख को असली वाले राहुल देव का खाता फिर सस्पैंड हो गया।
थोड़े पुराने दौर में जब एक्स का नाम ट्विटर हुआ करता था, उस दौर को याद करेंगे तो सोशल मीडिया का प्रयोग करने वालों को याद आ जायेगा कि यही दुनिया पहले कैसे चलती थी। एक एलिट क्लास का, अग्रेजी बोलने-लिखने-पढ़ने वाले अभिजात्य वर्ग का ट्विटर पर कब्ज़ा था। स्वयं ट्विटर में काम करने वाले लोग “वोक” जमातों वाले थे। स्थिति ये थी कि एनडीए की सरकार के दौर में भी, सूचना-प्रसारण मंत्रालय तक का बुलावा ट्विटर इंडिया के अधिकारी एक कान से सुनकर दूसरे से निकाल देते थे। भारत आने पर ट्विटर के सीईओ लिबरल और वोक नारीवादी मानी जाने वाली पत्रकारों के साथ मिलकर “स्टॉप ब्रह्मनिकल पैट्रिआर्की” का बोर्ड लिए खड़े दिखते थे। लोगों में विरोध हुआ भी तो उसपर ध्यान देने की क्या जरूरत है? हाल में एलन मस्क के ट्विटर को खरीदकर एक्स बना देने से पहले तक हिन्दी एक्स पर दिखने तो लगी थी मगर जोर वाम मोर्चे का ही था। भारत में दक्षिणपंथी कहलाने वाले कई खाते इस दौर में समाप्त भी कर दिए गए और उनपर कोई सुनवाई भी नहीं हुई।
एक्स हो जाने के बाद से जो बदलाव आये हैं, उसमें केवल कंपनी के स्तर पर बड़े पैमाने पर छंटनी ही गौर करने लायक नहीं थी। एक्स के अल्गोरिद्म से कई ऐसे हिस्से भी हटा दिए गए जो कुछ विशेष शब्द चुनकर खातों की पहुँच प्रतिबंधित करते थे। ऐसा होते ही एक्स पर आने वाले समुदाय में भी एक बड़ा बदलाव दिखा। अब केवल अंग्रेजी नहीं, भारतीय भाषाओँ के खाते भी एक्स पर दिखाई देते हैं। कई विदेशी अपनी पहुँच भारतीय जनता में बढ़ाने के लिए हिंदी में पोस्ट करते हैं। जब पाठक वर्ग बदला तो लिखने वालों को भी अपने “टारगेट ऑडियंस” के हिसाब से बदलना चाहिए था। राहुल देव जैसे पुराने दौर के, बदलावों से परहेज रखने वाले लोग ऐसा कर नहीं पाए। जो परिणाम राहुल देव को मिले हैं, वो कोई अनोखी बात नहीं है। हाल ही में स्वयं भारतीय प्रधानमंत्री मन की बात में साइबर अपराधों के विषय में लोगों को जागरूक करते देखे गए।
बदलावों को न समझने को तैयार राहुल देव जैसे लोगों का यही हश्र होना तय है। मास रिपोर्टिंग जैसे जो हथियार वो अबतक अपने विरोधियों पर चलाते आये हैं, उसका सामना आज नहीं तो कल, उनको स्वयं भी करना ही था। जो कैंसिल कल्चर चलाते हैं, उन्हें वही झेलना पड़े तो किसी की सहानुभूति भी नहीं मिलती। जो भी हो, राहुल देव की खीजी हुई सी स्थिति, और उनके “लौंडों” के भी उनका साथ न देने पर हम थोड़ी सी सहानुभूति जताएंगे। जबतक नया खाता नहीं बनता, तबतक राहुल देव खिसियानी बिल्ली की तरह खम्भा नोच सकते हैं!