दिल्ली के जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय में गैर-मुस्लिम छात्रों व शिक्षकों को भेदभाव, उत्पीड़न व इस्लाम मे जबरन धर्मांतरण के दबाव का सामना करना पड़ रहा है। यह खुलासा कॉल ऑफ जस्टिस ट्रस्ट की फैक्ट-फाइडिंग रिपोर्ट में हुआ है। यह रिपोर्ट, गृह मंत्रालय, शिक्षा मंत्रालय और दिल्ली के उपराज्यपाल को सौंपी गई है।
दरअसल, अगस्त 2024 में जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय में गैर-मुस्लिमों के साथ हो रहे भेदभाव, धर्मांतरण के दबाव व अन्य उत्पीड़न को लेकर कॉल ऑफ जस्टिस को लिखित और मौखिक शिकायतें मिली थीं। इस पर शुरुआती जांच करने के बाद कॉल ऑफ जस्टिस ने इन आरोपों की जांच के लिए रिटायर्ड जज, वकील व रिटायर्ड पुलिस आयुक्त समेत 6 सदस्यीय फैक्ट-फाइडिंग कमेटी बनाई थी।
Fact-finding committee releases the report on discrimination of non-Muslims and conversion of Non-Muslims to Islam in Jamia Millia Islamia University, Delhi
The fact-finding committee in its report found that almost every witness deposed about the discrimination of non-muslims… pic.twitter.com/99TThJt76F
— DD News (@DDNewslive) November 14, 2024
इस कमेटी ने अब अपनी विस्तृत जांच व जामिया मिल्लिया इस्लामिया में पढ़ रहे छात्रों तथा प्रोफेसरों से बात कर रिपोर्ट तैयार की है। इस दौरान लगभग सभी ने गैर-मुस्लिमों के साथ हो रहे भेदभाव व अन्य समस्याओं को उजागर किया है।
कॉल ऑफ जस्टिस की रिपोर्ट में जामिया मिल्लिया इस्लामिया के एक सहायक प्रोफेसर ने कहा कि यहां हो रहे भेदभाव का उसे शुरू से ही एहसास हो चुका है। जामिया के मुस्लिम कर्मचारी गैर-मुस्लिमों के साथ दुर्व्यवहार करते हैं और ताने मारते हैं। सहायक प्रोफेसर ने यह भी कहा कि जब उसने अपनी पीएचडी की थीसिस जमा की थी, तब पीएचडी सेक्शन के मुस्लिम क्लर्क ने अपमानजनक टिप्पणी करते हुए कहा था कि उसकी थीसिस किसी काम की नहीं है और उसे इससे कुछ भी नहीं मिलने वाला।
जामिया के सहायक प्रोफेसर ने आगे कहा कि जब वह थीसिस जमा करने गए थे तब मुस्लिम क्लर्क ने थीसिस का शीर्षक पढ़े बिना ही उन्हें ऊटपटांग कह रहा था। यह सब इसलिए हो रहा था क्योंकि क्लर्क मुस्लिम था और सहायक प्रोफेसर गैर-मुस्लिम।
जामिया के एक अन्य गैर-मुस्लिम और एससी वर्ग से आने वाले शिक्षक ने अपने बयान में कहा कि गैर-मुस्लिम होने के कारण अन्य मुस्लिम सहकर्मियों ने उनके साथ बहुत भेदभाव किया है। अन्य मुस्लिम सहकर्मियों को मिलने वाली सुविधाएं, जैसे बैठने की जगह, केबिन, फर्नीचर आदि उन्हें विश्वविद्यालय में आने के बाद लंबे समय तक नहीं दी गईं थीं। इतना ही नहीं, उनके आने के बाद जामिया में आए कुछ नए मुस्लिम शिक्षकों को सारी सुविधाएं दी जा रहीं थीं।
पीड़ित शिक्षक ने आगे कहा कि कुछ समय बाद उन्हें सहायक परीक्षा नियंत्रक बनाया गया था। इसके बाद उन्हें विश्विद्यालय के काम के लिए एक केबिन दिया गया था। लेकिन केबिन मिलने के बाद परीक्षा शाखा के कर्मचारी उन्हें यह कहकर परेशान कर रहे थे कि एक सहायक परीक्षा नियंत्रक का केबिन एक ‘काफिर’ को क्यों दिया गया है?
जामिया मिल्लिया इस्लामिया के एक अन्य प्रोफेसर ने कहा कि यहां गैर-मुस्लिम छात्रों और शिक्षकों के साथ बहुत अधिक उत्पीड़न और भेदभाव होता है। कई जनजतीय छात्र उत्पीड़न नहीं पाते हैं और फिर मजबूरन उन्हें विश्वविद्यालय छोड़ना पड़ता है। कुछ मुस्लिम छात्र और प्रोफेसर यहां पढ़ने वाले छात्रों और शिक्षकों दोनों को ही जबरन धर्मांतरित करने के लिए दबाव बनाने का प्रयास करते हैं।
प्रोफेसर ने आगे कहा कि जब वह एम. एड. कर रहे थे तब एक महिला प्रोफेसर ने क्लास में आकर कहा था कि जब तक छात्र इस्लाम का पालन नहीं करेंगे, तब तक वह उनका एम.एड. पूरा नहीं होने देगी। उन्होंने आगे कहा कि जो छात्र धर्मांतरित होकर मुस्लिम बन गए थे, उन्हें जामिया में अच्छे पदों पर पोस्टिंग मिली और वह सिर्फ सामान्य प्रोफेसर रह गए।
बता दें कि जामिया मिल्लिया इस्लामिया में भेदभाव, उत्पीड़न व धर्मांतरण पर शिकायत के बाद कॉल ऑफ ट्रस्ट द्वारा बनाई गई 6 सदस्यीय फैक्ट-फाइंडिंग कमेटी की अध्यक्षता दिल्ली हाई कोर्ट के रिटायर्ड जस्टिस शिव नारायण ढींगरा कर रहे थे। इसके अलावा, इस कमेटी में दिल्ली हाई कोर्ट के अधिवक्ता राजीव कुमार तिवारी, आईएएस नरेंद्र कुमार पूर्व सचिव दिल्ली सरकार, दिल्ली पुलिस के पूर्व आयुक्त एस. एन श्रीवास्तव, करोड़ीमल कॉलेज दिल्ली में सहायक प्रोफेसर डॉ. नदीम अहमद व दिल्ली हाई कोर्ट की अधिवक्ता सुश्री पूर्णिमा बतौर सदस्य शामिल थीं। इस कमेटी ने 3 महीने की जांच में 27 लोगों से बात करने के बाद 65 पन्नों की रिपोर्ट पेश की है।