फैक्ट्री से मिली 11 हिन्दुओं की जली हुई लाशें, लकड़ी के गोदाम से भी निकले 4: संभल का वो दंगा, जिसके बाद हुआ हिन्दुओं का पलायन

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) के मेरठ सर्किल में पुरातत्वविद अधीक्षक विनोद सिंह रावत ने कोर्ट में एक हलफनामा दायर करके कहा है कि जामा मस्जिद 22 दिसंबर, 1920 को अधिनियम की धारा 3(3) के तहत संरक्षित स्मारक है।

संभल, जामा मस्जिद

संभल के कथित जामा मस्जिद में कुआँ पूजन होता था, वो भी हो गया बंद

उत्तर प्रदेश के संभल में मस्जिद में सर्वे के बाद हुई हिंसा को लेकर स्थिति तनावपूर्ण है। प्रशासन ने बाहरी लोगों को जिले में आने पर प्रतिबंध लगा दिया है। दरअसल, कोर्ट के आदेश के बाद संभल के जामा मस्जिद का सर्वे किया गया था। सर्वे के दौरान 24 नवंबर को पुलिस और सर्वे टीम पर मुस्लिमों की भीड़ ने हमला कर दिया था। इस दौरान पाँच लोगों की मौत भी हो गई थी। हालाँकि, यह पहली बार नहीं है, जब संभल में जामा मस्जिद को हरिहर मंदिर के दावे को लेकर इस तरह की हिंसा की गई हो।

पश्चिमी उत्तर प्रदेश के संभल में 28 मार्च, 1976 को भी सांप्रदायिक हिंसा फैली थी। यह दंगा इसी जामा मस्जिद के इमाम की हत्या के बाद फैला था। इमाम की हत्या दूसरे समुदाय के एक युवक ने की थी। इसके बाद मुस्लिम सड़कों पर उतर आए और वो तांडव मचाया कि संभल के पुराने लोग उसे आज भी नहीं भूले हैं। शहर में जमकर तोड़फोड़ और आगजनी की गई। हालात इतने बेकाबू हो गए थे कि प्रशासन को एक महीने के लिए शहर में कर्फ्यू लगाना पड़ा था। हालात को सँभालने के लिए उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री रामनरेश यादव खुद संभल आए और दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई का आश्वासन दिया था।

इमाम की हत्या की अफवाह के बाद पूरे शहर में आगजनी-हिंसा

आज 46 साल बाद संभल में वही मंजर एक बार फिर देखने को मिला। तब इमाम की हत्या की अफवाह उड़ाकर शहर में तांडव मचाया गया था और इस बार कोर्ट के आदेश की धज्जियाँ उड़ाते हुए पुलिसकर्मियों को पर हमला किया गया। कोर्ट ने जामा मस्जिद के सर्वे का आदेश एक याचिका को सुनवाई करने के दौरान दी थी। इस याचिका में कहा गया है कि जिस जगह आज शाही जामा मस्जिद स्थित है, वहाँ एक मंदिर था, जिसे बाहर ने तोड़वाकर मस्जिद बनवाया दिया।

संभल हिंसा को लेकर पत्रकार स्वाति गोयल शर्मा ने X पर लिखा है कि संभल में सांप्रदायिक हिंसा की घटनाएँ लगातार होती रही हैं। इनमें साल 1935, साल 1947 का विभाजन और 1978 का भयावह नरसंहार शामिल है। साल 1978 में मुरादाबाद जिले में हिंदुओं की संख्या 30% से भी कम थी। उस साल हिंसा 29 मार्च 1978 को शुरू हुई थी। एक पान दुकान के हिंदू मालिक विनोद प्रमोद ने मुस्लिम लीग के नेता के बंद के आह्वान को नहीं माना था। इसके लेकर मुस्लिम गैंग के लोगों से उसके साथ मारपीट शुरू कर दी।

इसके बाद हर हर मोहल्ले में खबर पहुँचा दी गई कि शाही जामा मस्जिद के इमाम की हिंदुओं ने हत्या कर दी। इसका परिणाम ये हुआ कि पूरा संभल एक बार फिर जल उठा। इस हिंसा में 25 लोग मारे गए थे, जिनमें से 23 हिंदू थे। पत्रकार स्वाति ने इस हमले का सूत्रधार मुस्लिम लीग के नेता मोहम्मद मंजर शफी को बताया है। शफी उससे दो साल पहले यानी 1976 में हुए सांप्रदायिक हिंसा के एक मामले में जमानत पर था। इस हिंसा में एक मुस्लिम और तीन हिंदुओं की हत्या की गई थी। कहा जाता है कि मंजर शफी के आदमियों ने ही यह हिंसा फैलाई थी।

संभल के निरवासा बाजार में भी तबाही मचाई गई थी, जहाँ अधिकतर हिंदुओं की दुकानें थीं। यहाँ बनवारी लाल गोयल की खंडसारी फैक्ट्री थी। 29 मार्च को उनकी फैक्ट्री की गेट को ट्रैक्टर से तोड़ दिया गया। बाद में इसी फैक्ट्री के परिसर से 11 हिंदुओं की लाशें बरामद की गईं। इन्हें पेट्रोल और टायर डालकर जलाकर मार डाला गया था। इसके आगे लकड़ी व्यापारी मुरारी लाल अग्रवाल का गोदाम था। यहाँ से भी चार शव बरामद किए गए थे। इलाके के सारे हिंदुओं की दुकानों को लूट लिया गया और फिर किरोसीन एवं पेट्रोल डालकर जला दिया गया। इस घटना की जाँच में तत्कालीन डीएम फरहत अली और एसपी सत्पथी को इस हत्याकांड के लिए दोषी ठहराया गया। रिपोर्ट में कहा गया कि उनकी लापरवाही के कारण ही इतनी मौतें हुईं।

विवादित ढाँचे के पास होती थी पूजा-अर्चना,

जामा मस्जिद नाम के विवादित ढाँचे के पास रहने वाले 60 वर्षीय संजय गुप्ता ने पत्रकार स्वाति को बताया कि जामा मस्जिद लंबे समय से हिंदू और मुस्लिमों के बीच विवाद का विषय रही है। हिंदू इसे हरिहर नाथ मंदिर बताते हैं। घटना के समय संजय गुप्ता 14 साल के थे। गुप्ता ने बताया कि उनके माता-पिता ने इस घटना को लेकर बताया था कि उस दौरान एक और अफ़वाह फैली थी कि एक साधु उस जगह की परिक्रमा कर रहा था और मस्जिद के अंदर बंद एक कमरे के बाहर जल चढ़ाने की कोशिश कर रहा था।

उस समय यह मस्जिद इतनी विशाल नहीं थी, जैसी वो आज दिख रही है। उस समय मस्जिद की सीढ़ियों पर एक कुआँ था, जिसका इस्तेमाल हिंदू कुआँ पूजन के लिए करते थे। बाद में उस कुएँ को ढक दिया गया और मस्जिद को बड़ा बना दिया गया। उस समय हिंदुओं को मस्जिद परिसर में जाने की अनुमति थी। हिंदू वहाँ पूजा नहीं करते थे, लेकिन कभी-कभी कुछ साधु परिसर की परिक्रमा करते थे और बंद कमरे के बाहर जल चढ़ाने की कोशिश भी करते थे।

यूपी के देवरिया से भाजपा सांसद शलभमणि त्रिपाठी ने भी सोशल मीडिया साइट X पर इलाके का मैप और एक तस्वीर शेयर करते हुए लिखा है कि जामा मस्जिद के पास हाल तक पूजा-पाठ और हिंदुओं के शादी-ब्याह जैसे संस्कार होते थे। उन्होंने लिखा, “2012 यानी सपा सरकार से पहले तक हरि मंदिर पर पूजा अर्चना होती थी। शादी-ब्याह के संस्कार भी होते थे। इसकी पुरानी तस्वीरें भी हैं। सपा सरकार में MP शफीकुर्रहमान बर्क़ के दबाव में पूजा अर्चना रुकवा दी गई। हरि मंदिर को पूरी तौर पर जामा मस्जिद में तब्दील कर दिया गया। सरकारी गजट से लेकर तमाम लेखों में यहाँ हिंदू मंदिर का ज़िक्र है। यही वजह है कि आज कुछ लोगों को सर्वे से डर लगता है!”

नरसंहार के बाद हिन्दुओं का पलायन

कहा जाता है कि 1978 के नरसंहार के बाद संभल के हिंदुओं ने पलायन कर लिया और दूसरी जगह चले गए। आज संभल में सिर्फ 20 प्रतिशत हिन्दू रह गए हैं। कहा जाता है कि 1978 के नरसंहार में हिंदुओं को इतना प्रताड़ित किया गया कि वे विवादित ढाँचे तक जाने से कतराने लगे। हिंदुओं के डर को भाँपते हुए मुस्लिमों ने उन्हें मस्जिद तक पहुँचने से रोक दिया। अब इस मस्जिद के परिसर पर हिंदुओं के दावे के कारण मुस्लिमों ने इस बार फिर से 1976 और 1978 के नरसंहार दोहराने की कोशिश की, लेकिन पुलिस की सतर्कता ने उन्हें इसमें सफल नहीं होने दिया।

जामा मस्जिद के बारे में कहा जाता है कि हिंदुओं के मंदिर के अवशेष पर बना है। यह स्थान भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) के अंतर्गत आता है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) के मेरठ सर्किल में पुरातत्वविद अधीक्षक विनोद सिंह रावत ने कोर्ट में एक हलफनामा दायर करके कहा है कि जामा मस्जिद 22 दिसंबर, 1920 को अधिनियम की धारा 3(3) के तहत संरक्षित स्मारक है। तत्कालीन संयुक्त प्रांत सरकार ने एक अधिसूचना जारी करके इस विवादित स्थल को संरक्षित स्मारक घोषित किया था।

ASI को घुसने नहीं दिया जाता, नियमों का उललंघन

हालाँकि, संरक्षित स्मारक घोषित होने के बावजूद इसमें ASI को मुस्लिम घुसने नहीं देते हैं। डीएस रावत द्वारा दायर हलफनामे में कहा गया है कि ASI की एक टीम ने इस विवादित स्थल का साल 1998 में और फिर जून 2024 में निरीक्षण किया था। उस दौरान ASI के अधिकारियों को निरीक्षण के लिए मस्जिद बना दिए गए इस स्मारक में प्रवेश करने की अनुमति नहीं दी गई थी। हालाँकि, जिला प्रशासन के सहयोग से ASI ने समय-समय पर स्मारक (जामा मस्जिद) का निरीक्षण किया। डीएस रावत ने कहा है कि निरीक्षण में उन्होंने पाया कि संरक्षित इस स्मारक में कई तरह संशोधन और बदलाव किए हैं। बता दें कि संरक्षित स्मारक में किसी तरह का बदलाव कानून जुर्म है।

इस तरह मुस्लिमों ने पहले दंगा भड़काकर हिंदुओं के नरसंहार से उन्हें विवादित स्थल के पास आने से रोका। उसके बाद ASI के अधिकारियों को आने से रोका। फिर धीरे-धीरे करके ढाँचे में बदलाव किए गए और मंदिर के निशान को पूरी तरह मिटाने की कोशिश की गई। अब जब मुकदमा के जरिए हिंदुओं ने इस मामले को कोर्ट में ले जाने का निर्णय लिया और फिर सर्वे का आदेश जारी किया गया तो फिर से हिंसा फैलाने की कोशिश की गई।

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