‘सनातन धर्म ही हिंदू राष्ट्र है’; समझिए रिलीजन और धर्म के बीच का अंतर

रिलीजन, कर्मकांड और पारलौकिक शक्तियों पर आधारित होता है

'सनातन धर्म ही हिंदू राष्ट्र है'; समझिए रिलीजन और धर्म के बीच का अंतर

'सनातन धर्म ही हिंदू राष्ट्र है'; समझिए रिलीजन और धर्म के बीच का अंतर

सनातनका शाब्दिक अर्थ है – ‘शाश्वत’ यासदा बना रहने वाला‘, यानी जिसका न आदि है न अन्त। सनातन धर्म (Sanatana Dharma) एक प्राचीन भारतीय धर्म है, जिसे आमतौर पर हिंदू धर्म के रूप में जाना जाता है।सनातनका अर्थ हैशाश्वतयानित्य’, औरधर्मका अर्थ हैधारण करने वाला’, ‘व्यवस्था’, याकर्तव्य’। सनातन धर्म का तात्पर्य एक ऐसी जीवनशैली और मूल्य प्रणाली से है जो सदियों से चली आ रही है और जिसका मूल उद्देश्य सत्य, नैतिकता, और मानवता की भलाई है। इस प्रकार धर्म अत्यंत व्यापक अर्थ में प्रयुक्त होता है। यह सामान्य रिलीजन के अर्थ से भिन्न है। रिलीजन, कर्मकांड और पारलौकिक शक्तियों पर आधारित होता है। किसी रिलीजन के लिए कुछ प्रमुख शर्तों का होना आवश्यक होता है

इस रूप में सेमेटिक रिलीजन को रिलीजन कहा जाता है। सेमेटिक का अर्थ है नोहा के पुत्र सेम के वंशज। यहूदी, ईसाई और इस्लाम को सेमेटिक रिलीजन कहा जाता है। परन्तु इसके विपरीत धर्म एक व्यापक अवधारणा है। यह स्वयं में अनेकों जीवन पद्धतियों को समाहित किए हुए मूल्य और आचरण प्रधान विचार है। इसी कारण मनु ने धर्म की व्याख्या करते हुए कहा
धृति: क्षमा दमोऽस्‍तेयं शौचमिन्‍द्रियनिग्रह:
धीर्विद्या सत्‍यमक्रोधो दशकं धर्मलक्षणम्‌।
अर्थात् धैर्य, क्षमा,संयम,चोरी न करना ,शौच (भीतर व बाहर की पवित्रता ), इन्द्रिय निग्रह (इन्द्रियों को धर्माचरण में लगाना ),बुद्धि, विद्या  सत्य और क्रोध नहीं करना) धर्म के दस लक्षण हैं।

इसी प्रकार महर्षि कणाद धर्म की व्याख्या करते हुए कहते हैंयतो अभ्युदय निःश्रेयस् सिद्धि  सह धर्मः। अर्थात् जो व्याहारिक उन्नति और पारमार्थिक कल्याण करे, वह धर्म है। सनातन धर्म के लिए इस सन्दर्भ में स्पष्ट उद्घोष है कि व्यक्ति का विचार और व्यवहार उसके कल्याण का मार्ग प्रशस्त करता है। वर्ष 1990 में महाराष्ट्र में शिवसेना के मनोहर जोशी ने कांग्रेस के भाऊराव पाटिल को हराया। पाटिल ने जन प्रतिनिधित्व अधिनियम (RPA) की धारा 123 के तहत भ्रष्ट आचरण के आधार पर जोशी के चुनाव को चुनौती दी थी। उनके अनुसार हिंदू धर्म के नाम पर वोट मांगना जन प्रतिनिधित्व अधिनियम (आरपीए) के अनुसार भ्रष्ट आचरण है।

सुप्रीम कोर्ट ने 1995 के अपने फैसले में कहा था कि चुनाव में हिंदुत्व का इस्तेमाल गलत नहीं है क्योंकि हिंदुत्व धर्म नहीं बल्कि एक जीवन शैली है। कोर्ट के अनुसारहिंदुत्व शब्द भारतीय लोगों के जीवन पद्धति की ओर इशारा करता है। इसे सिर्फ उन लोगों तक सीमित नहीं किया जा सकता, जो अपनी आस्था की वजह से हिंदू धर्म को मानते हैं।इस प्रकार अनेक अवसरों पर सामाजिक चिंतकों और सुप्रीम कोर्ट सहित अनेकों संस्थाओं ने हिन्दू धर्म को जीवन दर्शन मानते हुए सनातन धर्म के रूप में मान्यता प्रदान की है।

तमिलनाडु प्रगतिशील लेखक एवं कलाकार संघ द्वारा आयोजित समारोह में बोलते हुए तमिलनाडु में सत्तारूढ़ द्रविड़ मुनेत्र कडगम (द्रमुक) की युवा इकाई के सचिव एवं राज्य के युवा कल्याण मंत्री व मुख्यमंत्री एमके स्टालिन के बेटे उदयनिधि स्टालिन ने सनातन धर्म की तुलना कोरोना वायरस, मलेरिया और डेंगू वायरस एवं मच्छरों से होने वाले बुखार से करते हुए कहा कि ऐसी चीजों का विरोध नहीं करना चाहिए बल्कि नष्ट करना चाहिए। अपने राजनीतिक हितों के लिए जब ऐसी ओछी और विभेदकारी वक्तव्य दिए जाते हैं तो देश में सेक्युलर ध्वजवाहक की पूरी लॉबी की अचेतनता की स्थिति को प्राप्त हो जाती है।

सेक्युलर झंडे के नीचे अल्पसंख्यक हितों का लबादा ओढ़कर छाती पीटने वाले बौद्धिक प्रलापियों के मुंह से एक शब्द नहीं निकलता कि जिस सनातन धर्म के विचार से उनके पुरखे भारत में बचे रहे और जिसकी रक्षा के लिए भारत के करोड़ों राष्ट्रप्रेमियों ने अपना अमूल्य बलिदान दिया है, उसको अपने राजनीतिक लाभ के लिए मिटा देने का ऐलान करने वाले लोग सत्ता भोग करते हुए देश की नीतियों में अपना योगदान दे रहे हैं। यह सत्य है कि इस प्रकार के ओछे वक्तव्य सनातन को रंचमात्र भी डिगा नहीं सकते। यह सनातन धर्म ही हिंदुत्व की जीवन शैली है और हिंदुत्व का विचार ही राष्ट्र के विचार का प्रकटन है। इस प्रकार सनातन, हिन्दू और राष्ट्र एक ही हैं।

1909 में श्री अरविंद ने इसी विचार का उद्घोष करते हुए कहा था – ‘जिसे हम हिंदू धर्म कहते हैं वह वास्तव में सनातन धर्म है क्योंकि वह सार्वभौम धर्म है जो अन्य सभी को अपने में समाहित कर लेता है। यदि कोई धर्म सार्वभौम नहीं है तो वह सनातन नहीं हो सकता। एक संकीर्ण धर्म, एक सांप्रदायिक धर्म, एक एकनिष्ठ धर्म एक सीमित समय और सीमित उद्देश्य के लिए ही जीवित रह सकता है। सनातन धर्म ही एक ऐसा धर्म है जो विज्ञान के आविष्कारों और दर्शन के चिंतनों का पूर्वानुमान करके और उन्हें आत्मसात् करके भौतिकवाद के ऊपर विजय प्राप्त कर सकता है। वह अकेला एक ऐसा धर्म है जो हमारे प्रति ईश्वर की निकटता पर बल देकर मानवता को बताता है और अपने में उन सभी संभव साधनों को संजोये है जिनके द्वारा मनुष्य ईश्वर के समीप जा सकता है। वही एक ऐसा धर्म है जो सभी धर्मों द्वारा स्वीकृत इस सत्य पर प्रतिक्षण जोर देता है कि ईश्वर सभी मनुष्यों और चराचर वस्तुओं में विद्यमान है और उसी में हम चलते, फिरते और वास करते हैं। केवल यही धर्म हमें इस सत्य को समझने और उस पर विश्वास करने में न केवल सहायता करता है बल्कि अपने अस्तित्व के हर भाग से उसका एहसास कराता है। यही एक धर्म विश्व को बताता है कि यह संसार है क्या, कि वह वासुदेव की ही एक लीला है। यही धर्म है जो हमें बताता है कि उस लीला में, उसके सूक्ष्मतम विधानों में, उसके उत्कृष्टतम नियमों में हम अच्छी से अच्छी तरह अपनी भूमिका कैसे निभा सकते हैं। यही एक धर्म है जो छोटे से छोटे ब्यौरे में भी जीवन को धर्म से अलग नहीं करता, जो यह जानता है कि अमरत्व क्या है और जिसने हमसे मृत्यु की विभीषिका को बिल्कुल दूर हटा दिया है। मैंने कहा था (पिछले वर्ष) कि यह आंदोलन एक राजनैतिक आंदोलन नहीं है, और राष्ट्रवाद राजनीति नहीं बल्कि एक धर्म है, एक सिद्धांत है, एक विश्वास है। मैं फिर आज उसे दोहराता हूं, पर उसे दूसरी तरह प्रस्तुत करता हूं। मैं अब यह नहीं कहता कि राष्ट्रवाद एक सिद्धांत है, एक धर्म है, एक विश्वास है: मैं कहता हूं यह सनातन धर्म है जो हमारे लिए राष्ट्रवाद है।सनातन धर्म ही राष्ट्रवाद है। यही वह संदेश है जो मैं तुम्हें बताना चाहता हूं।जिन भी विचारधाराओं का अस्तित्व विभाजनकारी मूल्यों पर आधारित होगा वह राष्ट्र, राष्ट्रीय चरित्र, हिंदुत्व, और सनातन के मूल्यों का विराट दर्शन नहीं समझ सकते। उदयनिधि स्टालिन जैसे लोगों की मानसिकता अपने स्वार्थ तक सीमित है। उन्हें यह एहसास ही नहीं है कि राष्ट्र सदैव व्यक्तिगत स्वार्थों से ऊपर होता है।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने भी 2003 की अपनी अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा में सनातन धर्म और राष्ट्रवाद को एक सामान बताते हुए प्रस्ताव पारित किया था। इस प्रस्ताव में अरबिंदो आश्रम की श्री माँ को उनकी 125वीं जयंती पर श्रद्धांजलि देते हुए सनातन धर्म को हिंदू धर्म और राष्ट्रीयता के बराबर बताया गया। इसमें कहा गया, “यह श्री अरबिंदो का दृढ़ विश्वास था कि हिंदू धर्म कोई और नहीं बल्कि सनातन धर्म है, जो वास्तव में हमारे देश की असली राष्ट्रीयता है। सनातन धर्म का उत्थान और पतन हिंदू राष्ट्र के उत्थान और पतन से जुड़ा है। श्री अरविन्द की तरह ही श्री माँ का भी दृढ़ विश्वास था कि विभाजन अवास्तविक है, उसे खत्म होना है और यह होकर रहेगा।

सनातन धर्म, हिंदू राष्ट्र है

आरएसएस के दूसरे सरसंघचालक एमएस गोलवलकर ने अपनी पुस्तक बंच ऑफ थॉट्स में सनातन धर्म को कई परंपराओं का समूह बताया है। गोलवलकर कहते हैं, “तर्क और इतिहास भी इस बात पर सहमत नहीं हैं कि धर्म के विचार संकीर्ण और आर्थिक हित अधिक व्यापक हैंभारत, नेपाल आदि ऐसे राज्य हैं जिनका गठन तो आर्थिक आधार पर हुआ। लेकिन ये सभी मानते सनातन धर्म (इसमें सभी वैदिक, गैरवैदिक और इस भूमि में पैदा हुए अन्य धर्म शामिल हैं) को हैं। इसलिए यह स्पष्ट है कि धर्म का अनुसरण एक व्यापक आधार देता है, जबकि आर्थिक हित संबंधों को संकीर्ण बनाते हैं।

अगस्त 2022 में त्रिपुरा में एक मंदिर का उद्घाटन करते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत जी ने कहा था, “भारत में लोगों का खानपान, संस्कृति और परंपराएं अलगअलग हैं। इन सबके बावजूद हम सभी एक दूसरे से जुड़े होने की भावना रखते हैं। सभी समुदायों की सोच में भारतीयता है, वे सनातन धर्म का गुणगान करते हैं। हमें सनातन धर्म की रक्षा करनी है। यह धर्म सभी को अपना मानता है। यह किसी को परिवर्तित नहीं करता है क्योंकि यह जानता है कि सच्चे दिल से किसी से प्रार्थना करना किसी को उसके भगवान तक ले जाता है। जनवरी 2023 में नागपुर में एक भाषण के दौरान भागवत ने सनातन धर्म की तुलना हिंदू राष्ट्र से की थी। उन्होंने कहा था, “धर्म इस देश का सत्व (स्वभाव) है और सनातन धर्म हिंदू राष्ट्र है। हिन्दू राष्ट्र जब भी आगे बढ़ता है तो उस धर्म के लिए ही आगे बढ़ता है। और अब यह भगवान की इच्छा है कि सनातन धर्म का उत्थान हो और इसलिए हिंदुस्तान का उत्थान निश्चित है।

Exit mobile version