टीफाई ब्यूरो | केंद्र सरकार की प्रवर्तन निदेशालय ( ED ) की तमाम धरपकड़ और निगरानीयों के बावजूद राजधानी दिल्ली से सटे मिलेनियम सिटी में ही तमाम बिल्डर रेरा और राज्य सरकार के शहरी प्लानिंग विभाग की आँखों में धूल झोंक कर धंधों में खेला खेल रहें हैं। इनके खेला की वजह से प्राइवेट निवेशक तो अभी से ठगा महसूस कर रहें हैं, आने वाले समय में खुदरा एवं छोटे निवेशकों को भी नुकसान झेलना पड़ सकता है।
दरअसल गुरुग्राम के सेक्टर 88 में ‘ट्रिनिटी इंफ्राटेक’ नामक कंपनी ने एक प्रोजेक्ट लॉन्च किया है। कंपनी ने इसके लिए ग्राहकों से एडवांस पेमेंट लेकर करीब 100 करोड़ से ज्यादा रुपए इकट्ठे भी कर लिए हैं। मगर प्रोजेक्ट को अभी तक रेरा और शहरी प्लानिंग विभाग से पूरी तरह मंजूरी भी नहीं मिली है।
सूत्र बताते हैं कि 100 करोड़ से ज्यादा रूपया तो नकद रूप में ही जुटा लिए गए हैं। यह पैसा प्री लॉन्च से पहले कम दर का सब्जबाग़ दिखा कर प्राइवेट निवेशकों से उठाये गए हैं। मगर इसमें से कुछ निवेशकों का अब मन डोलने लगा है की मोटी कमाई के चक्कर में कहीं उनका रुपया न फँस जाये।
ऐसे ही एक निवेशक ने जानकारी देते हुए बताया है की इस प्रोजेक्ट में हुए ऐसे निवेश का सारा हिसाब-किताब कंपनी के मैनेजिंग डायरेक्टर आदिल अल्ताफ स्वयं देखते हैँ। सूत्रों की मानें तो प्रोजेक्ट पूरा होने से पहले ही उसके 400 से ज्यादा फ्लैट्स बेच दिए गए हैं।
सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि कंपनी के इस प्रोजेक्ट को अब तक न तो हरियाणा के ‘डिपार्टमेंट ऑफ टाउन एन्ड कंट्री प्लानिंग (DTCP)’ से कोई लाइसेंस मिला है और न ही रियल एस्टेट (विनियमन और विकास) अधिनियम, 2016, यानी RERA ने इसको अनुमति प्रदान की है। बताया जा रहा है की ये कंपनी फ्रॉड में फँसी एक पुरानी कंपनी का ही नया रूप प्रतीत हो रही है। दोनों के संस्थापकों में जो लोग शामिल हैं, वो भी एक ही परिवार से है। आइए, आपको पूरा माजरा समझाते हैं।
सपनों का घर के लिए जीवन भर की कमाई लुटा देते हैं लोग
भारत में सबसे अधिक शक्तिशाली कौन सी जमात है? आप कहेंगे नेता। कुछ लोग कहेंगे कि ब्यूरोक्रेसी में बैठे लोग सबसे ताक़तवर हैं, तो कुछ धर्माचार्यों का नाम लेंगे। लेकिन, भारत में सबसे ताक़तवर जमात उन बिल्डरों की है जो सैकड़ों फ्लैट्स और इमारतें बनाते हैं। नेता, अधिकारी, धर्मगुरु, वकील, सामाजिक एक्टिविस्ट्स – इन सबको ये लोग अपने सिस्टम का हिस्सा बना कर रखते हैं। उनका कोई कुछ नहीं बिगाड़ पाता। बेचारे आम लोग घर खरीदते हैं, पैसे देने के बावजूद उन्हें घर नहीं मिलता और फिर वो अदालतों से लेकर ट्रिब्यूनलों का चक्कर काटते रहते हैं। कुछ अपवादों ko छोड़ सारी लॉबी बिल्डरों के साथ होती है, ऐसे में कोई भी आम लोगों का साथ नहीं देता।
कहते हैं, एक आम आदमी अगर अपने जीवन में कोई सबसे बड़ी उपलब्धि हासिल करना चाहता है तो वो है अपने परिवार के लिए अपनी छत। घर खरीदने के लिए कोई अपनी जीवन भर की कमा दाँव पर लगा देता है, तो कोई अगले 20-20 साल EMI भरने में झोंक कर देता है। ये सब सिर्फ इसीलिए, ताकि वो उस घर में सुकून से रह सके जिसे वो अपना कह सके।
लेकिन आजकल बिल्डर कंपनियाँ पहले ही ग्राहकों से पैसे ले लेती है, उन्हें एक समयसीमा के भीतर घर दिए जाने का वादा किया जाता है। अंत में ये लोग ठगी के शिकार हो जाते हैं।
‘त्रिवेणी’ वाले फ्रॉड के बाद अब ‘ट्रिनिटी’
हम ये चर्चा इसीलिए कर रहे हैं, क्योंकि एक ऐसी ही कंपनी है जिस पर इसी तरह के फ्रॉड का आरोप लग चुका है। कहा जा रहा है कि अब ये कंपनी एक नए कलेवर में फिर से वापस आ गई है। चलिए, पूरा मामला समझने के लिए चलते हैं आज से 8 साल पहले। 2006 में एक कंपनी रजिस्टर होती है -‘त्रिवेणी इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट कंपनी लमिटेड’ नाम की। इसके मालिक थे मित्तल ब्रदर्स – सुमित और मधुर मित्तल। कंपनी ने कागज़ पर लगभग 3000 फ्लैट्स बेचे, लेकिन अब 16 साल बीत जाने के बाद भी ग्राहकों के हाथ कुछ नहीं आया है।
मुकुंद मित्तल उसी परिवार से हैं, जिसने ‘त्रिवेणी’ लॉन्च की थी
उस घोटाले के बारे में हम आपको बताएँगे, लेकिन उससे पहले जानिए एक नई कंपनी ‘Trinity Infratech’ के बारे में। इसके संस्थापक मुकुंद मित्तल हैं, जो उसी परिवार से हैं जिन्होंने त्रिवेणी कंपनी बनाई थी। पिता खुद सामने नहीं आ सकते, इसीलिए अब बेटे को आगे कर दिया गया है। नया चेहरा, नई साजिश? रिद्धि मित्तल इस कंपनी की सह-संस्थापक हैं, जो इसी परिवार से हैं। अब आपको इस कंपनी के MD (प्रबंध निदेशक) आदिल अल्ताफ के बारे में जानना चाहिए। कंपनी की वेबसाइट पर उनके बारे में बताया गया है कि रियल एस्टेट के बिजनेस में उनका अनुभव 22 वर्षों का है। वो NCR के इलाक़ों में ही सक्रिय रहे है।
आदिल अल्ताफ के ही हाथों में है प्रोजेक्ट के कैश का सारा डेटा?
लिखा गया है कि सेल्स और कस्टमर एक्सपीरियंस में दक्षता और अनुभव के कारण उन्हें कंपनी में लाया गया है। वो इससे पहले EMAAR, Ireo, Raheja और Whiteland में काम कर चुके हैं जो राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में सक्रिय रियल एस्टेट कंपनियाँ हैं। अपने LinkedIn प्रोफाइल पर वो अब तक 6 करोड़ स्क्वायर फ़ीट सफलतापूर्वक डिलीवर करने का दावा करते हैँ. बताया जा रहा है कि वो ‘त्रिवेणी’ में भी सक्रिय थे और अब वो ट्रिनिटी में मैनेजिंग डायरेक्टर है। उस समय फरीदाबाद में प्रोजेक्ट लॉन्च किया गया था, अब गुरुग्राम में किया गया है।
क्या था ‘त्रिवेणी’ घोटाला, कैसे ठगे गए आम लोग
लगभग 5000 होम बायर्स को घर नहीं दिया गया, जबकि पैसे ले लिए गए। समय-समय पर ये लोग विरोध प्रदर्शन के लिए निकले, अधिकारियों तक से गुहार लगाई और सोशल मीडिया पर भी लिखा – लेकिन, नतीजा ढाक के तीन पात। गाजियाबाद और फरीदाबाद के अलावा रेवाड़ी और आगरा में भी प्रोजेक्ट्स लॉन्च किए, लेकिन काम पूरा नहीं कराया। ONGC के अधिकारी रहे BK जैन ने भी अख़बार में विज्ञापन देख कर 25 लाख रुपए का निवेश किया। 1400-1500 स्क्वायर फ़ीट के फ्लैट्स बेचने का दावा किया गया था। इमारत का ढाँचा तैयार कर दिया गया, आगे का कुछ काम ही नहीं हुआ।
ग्राहकों ने हरियाणा के ‘डिपार्टमेंट ऑफ टाउन एन्ड कंट्री प्लानिंग (DTCP)’ से गुहार लगाई कि उनके पैसे वापस दिलाए जाएँ या फिर ये सुनिश्चित किया जाए कि फ्लैट्स तैयार कर के उन्हें मिलें, लेकिन सरकारी स्तर पर भी कहीं से कुछ भी कार्रवाई नहीं हुई। यही वो डिपार्टमेंट है जो हरियाणा में फ्लैट्स के निर्माण के लिए कंपनियों को लाइसेंस देती है। ‘Zee Business’ ने ऐसे कुछ ग्राहकों से बात कर के वीडियो रिपोर्ट तैयार की थी, जिसमें रिटायर्ड ब्रिगेडियर SN सेटिया भी थे। सारी उम्र उन्होंने देश की सेवा की, बेटे को भी सेना में भेजा – लेकिन, इसी देश में ठगे गए। उनका कहना है कि ऐसा कोई कानून नहीं है जिसे इन बिल्डरों ने नहीं तोड़ा हो।
फरीदाबाद के सेक्टर 78 में त्रिवेणी वालों ने ‘गैलेक्सी’ नाम से प्रोजेक्ट की लॉन्चिंग की। इसके प्रचार के लिए कई इश्तिहार दिए गए। कई ऐसे लोग थे जो 80% तक पैसे भुगतान कर चुके थे। उस समय 1200 से लेकर 1400 रुपए प्रति स्क्वायर फ़ीट इन फ्लैट्स का दाम रखा गया था। कंपनी को जनवरी 2007 में इस प्रोजेक्ट के लिए लाइसेंस मिला था, लेकिन कंस्ट्रक्शन इससे पहले ही शुरू हो गया था। आगरा में भी आधा-अधूरा काम हुआ। साथ ही ‘Triveni Ferrous’ नाम की भी एक कंपनी बनाई गई थी, जिसके साथ डील साइन की गई। दिल्ली हाईकोर्ट को इन सबकी जानकारी नहीं दी गई।
आधा-अधूरा काम, अदालतों में चल रहे मामले
14 एकड़ जमीन पर 1008 लाइट्स बनाए जाने थे। बिल्डरों ने जिस जमीन पर फ़्लैट बनाए जाने थे उस जमीन को लेकर भी किसानों से धोखा किया। किसानों को पूरे पैसे नहीं दिए गए, जबकि उनकी जमीनें ले ली गईं। किसानों को जो चेक दिए गए वो बाउंस होने लगे। बाद में कहा जाने लगा कि सारे पैसे दे दिए गए हैं। कई NRIs भी इस धोखाधड़ी में फँस गए। 2011 के बाद से ‘त्रिवेणी इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट कंपनी लमिटेड’ ने कोई बैलेंस शीट फ़ाइल नहीं की है। यानी, कंपनी सुसुप्त हो चुकी है। पिछले 13 वर्षों से इसने सरकार को कोई डिटेल नहीं दिया है। अदालतों में मामला खिंचा चला जा रहा है।
त्रिवेणी के मालिकों पर लगा था जुर्माना, चल रहे कई मामले
इसके खिलाफ कई मामले अब तक चल रहे हैं। कंपनी पर ये भी आरोप है कि इसने अपनी बैलेंस शीट में गलत आँकड़े दिए, लेनदेन को छिपाया। सुमित और मधुर मित्तल पर कोर्ट ने जुर्माना भी लगाया था। जिन कंपनियों ने त्रिवेणी के साथ करार किया था, वो भी इसके खिलाफ कोर्ट पहुँचीं। ‘ज़ूम कम्युनिकेशंस लिमिटेड’ ने भी त्रिवेणी के खिलाफ मामला दर्ज कराया था। आरोप था कि उसके द्वारा रेंट पर दिए उपकरणों के बदले भुगतान नहीं किया गया, उलटे उन्हें PNB में गिरवी रख दिया गया।
अब सवाल उठता है कि क्या विदेश में पढ़े मुकुंद मित्तल को ही ‘ट्रिनिटी’ का चेहरा क्यों बनाया गया है, कारोबार से जुड़े लोगों का मानना है क्योंकि उनके पिता को देख कर लोगों को ‘त्रिवेणी’ वाले फ्रॉड की याद आएगी। क्या पुरानी कंपनी ही अब बदनामी के बाद नए कलेवर में आ गई गई? अगर ऐसा है तो आप सोच सकते हैं कि जहाँ उस फ्रॉड के शिकार ग्राहक अपना सब कुछ खोकर 16 साल बाद भी जूझ रहे हैं, तो अब ‘ट्रिनिटी’ से प्रॉपर्टी खरीदने वाले लोगों का क्या होगा।
हमने इन आरोपों पर ‘Trinity Infratech’ को ईमेल कर के उनकी प्रतिक्रिया माँगी है, लेकिन ख़बर लिखे जाने तक उनका कोई जवाब नहीं आया था। जैसे ही कंपनी की तरफ से प्रतिक्रिया आएगी, हम इस खबर को अपडेट करेंगे।