लोकसभा चुनाव 2014 के रण के बीच कांग्रेस के नेता मणिशंकर अय्यर ने प्रधानमंत्री पद के लिए NDA के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी को लेकर कहा था कि “21वीं सदी में नरेंद्र मोदी इस देश का प्रधानमंत्री कभी नहीं बन पाएंगे, अगर वो यहां आकर चाय बेचना चाहते हैं, तो हम उन्हें इसके लिए जगह दिला सकते हैं।” इसके बाद BJP के प्रचार तंत्र ने इसे तुरंत इसे लपक लिया और ‘चाय पर चर्चा’ जैसे कार्यक्रमों की शुरुआत की गई जिसमें नरेंद्र मोदी आम लोगों से बातें किया करते थे। इसे बीजेपी के प्रचार में सबसे बड़ा स्तंभ माना गया था और बताया जाता है कि इस आयोजन के पीछे रणनीति थी प्रशांत किशोर और उनकी टीम की।
प्रशांत किशोर ने 2013 में अपने कुछ साथियों के साथ मिलकर मई 2014 के आम चुनाव की तैयारी के लिए एक मीडिया और प्रचार कंपनी ‘सिटीजन्स फॉर अकाउंटेबल गवर्नेंस’ (CAG) बनाई थी और वे बीजेपी के साथ मिलकर काम कर रहे थे। यही सीएजी आगे चलकर इंडियन पॉलिटिकल एक्शन कमेटी (आई-पैक) बनी थी। राजनीति दरअसल रणनीति और रणनीतिकारों के दांव-पेंच का ही खेल है। राजनीतिक पार्टियां अपने नेताओं और कैडर के अलावा कुछ प्राइवेट प्लेयर्स के साथ मिलकर भी चुनाव के प्रबंधन से जुड़ी रणनीति बनाती हैं। आज जानेंगे कुछ ऐसी ही संस्थाओं के बारे में जो पर्दे के पीछे से बीजेपी के लिए जीत के फार्मूला बनाती हैं और उसे जमीन तक ले जाने का काम करती हैं।
एसोसिएशन ऑफ ब्रिलियंट माइंड्स (ABM)
2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी की जीत के बाद प्रशांत किशोर व बीजेपी के बीच मतभेद हुए और दोनों का गठजोड़ टूट गया। इसके बाद हरियाणा, महाराष्ट्र, जम्मू-कश्मीर और झारखंड विधानसभा चुनावों में बीजेपी का शानदार प्रदर्शन जारी रहा और पार्टी को किसी बाहरी रणनीतिकार की जरूरत महसूस नहीं हुई। हालांकि, इन चुनावों के बाद बिहार व दिल्ली में हुए विधानसभा चुनावों में बीजेपी की करारी हार हुई और उस वक्त पार्टी ने अपनी रणनीति पर फिर से विचार करना शुरू कर दिया। इस दौरान बीजेपी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के करीबी गुजरात के बिजनेसमैन दीपक भाई पटेल को बुलाया और नई रणनीति बनानी शुरू की।
दीपक भाई पटेल ने प्रशांत किशोर के साथ काम करने वाले हिमांशु सिंह व सुनील कानुगोलू जैसे लोगों को बुलाकर 2016 के आखिर में एसोसिएशन ऑफ ब्रिलियंट माइंड्स (ABM) की स्थापना की। यह संस्था सीधे बीजेपी के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष और मौजूदा गृह मंत्री अमित शाह को रिपोर्ट करती थी। ABM के सामने पहली बड़ी चुनौती उत्तर प्रदेश का 2017 का विधानसभा चुनाव था। अमित शाह के नेतृत्व में इस टीम ने जमीनी स्तर से जुड़ी रणनीति बनाई और बीजेपी ने यूपी में बड़ी जीत दर्ज की।
हालाँकि, सुनील कानुगोलू अब ABM से अलग हो चुके हैं और अब भाजपा की मशीनरी का हिस्सा नहीं हैं। अब उनकी राहें BJP से जुदा हो गई है, वो कांग्रेस पार्टी का कामकाज देख रहे हैं।
इसके बाद से ABM लगातार BJP के साथ जुड़ी है और चुनाव के पीछे के प्रबंधन में बड़ी भूमिका निभाती है। 2019 में ABM ने ही ‘मैं भी चौकीदार’ का आइडिया बीजेपी को दिया था। का धीरे-धीरे विस्तार होता गया और आज यह कंपनी उत्तर प्रदेश के अलावा बिहार, पश्चिम बंगाल, दिल्ली, राजस्थान, मध्य प्रदेश और तेलंगाना जैसे कई राज्यों में पर्दे के पीछे काम करती है।
वाराही एनालिटिक्स
हरियाणा में पिछले महीने हुए विधानसभा चुनावों में राजनीतिक विश्लेषकों और पोल एनालिस्ट्स को कांग्रेस की बड़ी जीत की उम्मीद थी लेकिन आखिरी वक्त आते-आते बाजी पलट गई और बीजेपी ने बड़े अंतर से जीत दर्ज कर ली। इस जीत के पीछे बीजेपी की सरकार के कार्यों के साथ-साथ जो एक अन्य बड़ी वजह मानी जा रही है वो है पर्दे के पीछे का राजनीतिक गुणा-भाग। हरियाणा में जमीनी स्तर पर हवा का रुख अपनी तरफ मोड़ने में बीजेपी के रणनीतिकारों के साथ जिस फर्म ने पार्टी की मदद की वो है वाराही एनालिटिक्स।
बीजेपी के संगठन महामंत्री BL संतोष के करीबी रंगेश श्रीधर ने 2022 में वाराही एनालिटिक्स को शुरू किया था और यह भी ABM की तरह बीजेपी के लिए ही काम करती है। बीएल संतोष इससे पहले बीजेपी के सह-संगठन मंत्री थे और उनके पास दक्षिण भारत के राज्यों का प्रभार था। यह फर्म बीएल संतोष को रिपोर्ट करती है और इसके पास दक्षिण भारत के कई राज्यों के साथ-साथ हरियाणा, जम्मू-कश्मीर, पंजाब और हिमाचल प्रदेश जैसे कई राज्यों की भी जिम्मेदारी है।
वाराही ने 2021 के गोवा और उत्तराखंड के विधानसभा चुनावों में BJP की जीत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। 2023 में वाराही ने छत्तीसगढ़ चुनावों में पार्टी की मदद की थी। 2024 के लोकसभा चुनावों के दौरान बीजेपी का ‘दूल्हा कौन है’ कैंपेन भी वाराही ने ही लॉन्च किया था। वाराही और एबीएम के पास करीब-करीब आधे-आधे राज्यों के चुनावों के प्रबंधन से जुड़ी जिम्मेदारी है।
जार्विस टेक्नोलॉजी
वाराही और एबीएम जहां नेताओं के साथ मिलकर जमीनी रणनीति तैयार करती हैं, तो वहीं दिग्गज मोगरा द्वारा बनाई गई जार्विस टेक्नोलॉजी ऐंड स्ट्रैटेजी कंसल्टिंग मुख्यत: तकनीकी मदद मुहैया कराती है। दिग्गज मोगरा ने 2014 में प्रशांत किशोर के साथ बीजेपी के कैंपेन के दौरान काम किया था और बाद में अलग से अपनी फर्म शुरू की थी। बीजेपी ने पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान लोकसभा सीटों पर कॉल सेंटर स्थापित किए थे और इन्हें स्थापित करने में बड़ा हाथ जार्विस टेक्नोलॉजी का था।
जार्विस का काम ऐसे समझ लीजिए की अगर किसी क्षेत्र में बीजेपी की कोई रैली होनी है तो उसमें लोगों को लाने के लिए जो कॉलिंग की जाती है वो मुख्यत: जार्विस टेक्नोलॉजी द्वारा की जाती है। जमीनी स्तर से डेटा और फीडबैक इकट्ठा करने का काम उसे प्रोसेस कर पार्टी की टॉप लीडरशिप तक मुद्दों की असली कहानी पहुंचाने का काम जार्विस का ही है। बताया जाता है कि लोकसभा चुनाव के लिए प्रचार के दौरान जार्विस को आवेदकों और लाभार्थियों के बारे में 15 करोड़ डेटा पॉइंट दिए गए थे जिससे कंपनी ने उनके मतदान से पहले के आंकड़े जुटाकर यह समझने की कोशिश की थी कि वे किसको वोट देंगे। बीजेपी के डिजिटल फुट प्रिंट को देशभर में फैलानें में जार्विस ने बड़ा काम किया है।