‘माझी लाडकी बहीण’, RSS, ‘बँटेंगे तो कटेंगे’, किसान… महाराष्ट्र में महायुति की जीत के ये हैं कारण, पॉवरविहीन हुए पवार

इसके अलावा हिन्दू एकता को भी इसका श्रेय दिया जा रहा है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने उत्तर प्रदेश में उपचुनावों के बावजूद महाराष्ट्र में 11 रैलियों को संबोधित किया। उनका नारा 'बँटेंगे तो कटेंगे' यूपी उपचुनावों में भी असर दिखा रहा है जहाँ 9 में 6 सीटों पर BJP आगे चल रही है।

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महाराष्ट्र में महायुति ने मारी बाजी, MVA का बुरा हाल

महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में भाजपा की अगुवाई वाली महायुति बड़ी जीत की तरफ बढ़ रही है। TFI में हमने पहले भी महाराष्ट्र को लेकर बीजेपी की रणनीति के बारे में बताया था, जिसके अनुसार बीजेपी अपने दम पर 100 सीटों का लक्ष्य लेकर चल रही थी, हालाँकि नतीजे उसकी अपेक्षा से कहीं बेहतर नज़र आ रहे हैं और पार्टी फ़िलहाल अकेले दम सवा सौ सीटों के भी पार जाती हुई दिख रही है। वहीं एकनाथ शिंदे की शिवसेना ने भी पचासा लगा दिया है। अजित पवार की NCP ने भी इस बार खुद को साबित किया है और वो 3 दर्जन सीटों पर विजय पताका फहराती हुई दिख रही है। लोकसभा चुनाव में महायुति गठबंधन को मात्र 17 सीटों से संतोष करना पड़ा था, वहीं MVA (महाविकास अघाड़ी) ने 31 सीटें अपने नाम कर ली थीं।

लेकिन अब साफ़ हो गया है कि 2024 में मई से लेकर नवंबर तक बहुत कुछ बदल गया है, खासकर महाराष्ट्र में। इस जीत का कुछ हद तक श्रेय ‘मुख्यमंत्री माझी लाडकी बहीण’ योजना को दिया जा रहा है, क्योंकि ढाई करोड़ महिलाओं को इसका लाभ मिल रहा था। ढाई करोड़ एक बहुत बड़ी जनसंख्या होती है, ख़ासकर महाराष्ट्र जैसे प्रदेश में जहां महिलाएँ मुखर होकर मतदान करती रही हैं। मध्य प्रदेश में भी ‘लाड़ली बहन योजना’ को भाजपा की सत्ता में वापसी के एक बड़े कारण के रूप में दर्ज किया गया था। अगर हम झारखंड के चुनाव परिणाम देखें, तो वहाँ भी झामुमो की जीत का श्रेय किसी न किसी हद तक ‘मइया सम्मान योजना’ को दिया जाएगा।

महाराष्ट्र में इस योजना के तहत महिलाओं को प्रतिमाह 1500 रुपए दिए जा रहे थे और चुनाव में जीत के बाद इसे बढ़ाने का वादा भी किया गया था। महायुति ने चुनाव से बहुत पहले इस योजना को लागू नहीं किया था, ऐसे में जल्द से जल्द पंजीकरण और खातों तक पैसे भेजने के लिए पूरा जोर लगाया गया। रक्षाबंधन के मौके पर पहले ही महिलाओं के बैंक खातों में पैसे पहुँच गए। इसीलिए, ये कहा जा सकता है कि भाजपा की जीत में राज्य की महिलाओं ने एक बड़ी भूमिका निभाई है।

इसके अलावा हिन्दू एकता को भी इसका श्रेय दिया जा रहा है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने उत्तर प्रदेश में उपचुनावों के बावजूद महाराष्ट्र में 11 रैलियों को संबोधित किया। उनका नारा ‘बँटेंगे तो कटेंगे’ यूपी उपचुनावों में भी असर दिखा रहा है जहाँ 9 में 6 सीटों पर BJP आगे चल रही है। महाराष्ट्र में महंत रामगिरी महाराज के खिलाफ ‘सर तन से जुदा’ के नारे लगाती हुई भीड़ सड़कों पर निकली। असदुद्दीन ओवैसी ने औरंगाबाद का नाम बदल कर छत्रपति संभाजी नगर किए जाने का विरोध किया, जिस पर डिप्टी सीएम देवेंद्र फडणवीस ने कड़ा प्रतिकार किया था। इन कारणों की वजह से हिन्दुओं ने इस बार लोकसभा वाली भूल नहीं दोहराई।

विदर्भ क्षेत्र में कपास और सोयाबीन के किसानों के सरकार से नाराज़ होने की खबरें आ रही थीं। ऐसे में सरकार ने इन किसानों को राहत देने के लिए कदम उठाया। लोकसभा चुनाव के तुरंत बाद सरकार ने इन किसानों को वित्तीय मदद दिए जाने का ऐलान किया। इन किसानों को 5000 रुपए प्रति हेक्टेयर दिए जाने की घोषणा हुई। इसके लिए 4200 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया। इससे विदर्भ में महायुति गठबंधन अपनी खोई हुई जमीन वापस पाने में कामयाब रही। अब ‘किसान आंदोलन’ वाला माहौल भी नहीं रहा।

RSS के कैडर को भी भाजपा की जीत का श्रेय दिया जा रहा है। लोकसभा चुनाव के समय राष्ट्रीय अध्यक्ष JP नड्डा ने भगवा को भाजपा से जोड़ने से नकार दिया था, साथ ही RSS को लेकर भी कहा था कि अब हमें इसकी ज़रूरत नहीं है। लेकिन, फिर केरल में हुई संघ की समन्वय बैठक में JP नड्डा शामिल हुए। RSS और भाजपा के बीच गलतफहमियों का जो प्रचार किया गया था, वो खत्म हुआ। नागपुर में संघ का मुख्यालय भी है और वहाँ भाजपा का प्रदर्शन ज़बरदस्त है, ऐसे में महाराष्ट्र में इस बार संघ के कैडर के सक्रिय होने का फायदा भाजपा को मिला।

एक और बड़ी बात ये रही कि कभी जिन शरद पवार को उद्धव ठाकरे को मुख्यमंत्री के पद पर बिठाने के लिए समर्थकों द्वारा ‘चाणक्य’ बता कर पेश किया गया था, आज वही शरद पवार महाराष्ट्र में प्रभावहीन नज़र आ रहे हैं। वहीं उद्धव ठाकरे को ‘गद्दार’ बता कर खुद को बाल ठाकरे का असली उत्तराधिकारी साबित करने का एकनाथ शिंदे का अभियान कामयाब रहा। तभी उनकी पार्टी का स्ट्राइक रेट अच्छा है और वो 75 में से 56 सीटें अपने नाम करती हुई दिख रही है। यानी, एकनाथ शिंदे अपनी पार्टी को ‘असली शिवसेना’ साबित करने में कामयाब रहे।

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