इंटरनेट पर भ्रामक जानकारियों के न हों शिकार, इसीलिए ज़रूरी है मीडिया साक्षरता: तभी ‘डिजिटल अरेस्ट’ जैसी चीजों से बचेंगे

मीडिया के जरिए सकारात्मक जानकारी प्रस्तुत की जाए, तो यह समाज में शांति, सद्भाव, और नैतिकता को बढ़ावा देती है

मीडिया साक्षरता

यह केवल सूचना ग्रहण करने तक सीमित नहीं है, बल्कि इसके सही विश्लेषण और समझ की क्षमता भी प्रदान करती है (प्रतीकात्मक चित्र)

मीडिया साक्षरता की आवश्यकता सदैव से ही समाज में रही है। मीडिया वह माध्यम है जिसके द्वारा हम किसी के समक्ष कोई बात या विचार प्रकट करते हैं। समाज में सुस्थिरता और सामंजस्य के लिए आवश्यक है कि सूचना इस प्रकार की हो जो अन्य के भीतर संवेग को अत्यधिक उद्वेलित न करे। मीडिया साक्षरता और मीडिया शिक्षा में अंतर होता है। मीडिया शिक्षा के अंतर्गत एक विशेष कोर्स और शिक्षा पद्धति के आधार पर लोगों को शिक्षित किया जाता है। मीडिया शिक्षा एक संस्थान में प्रवेश लेकर औपचारिक शिक्षा ग्रहण करना होता है। जबकि मीडिया साक्षरता समाज में प्रसारित होने वाले सूचना के साक्षरता से संबंधित है।

वर्तमान युग डिजिटल युग है जहां किसी भी छोटी बात को कुछ ही क्षणों में विश्व के किसी भी भाग में पहुंचाया जा सकता है। ऐसे में यदि समाज शिक्षित न हो या उसे ऐसी मानसिक स्थिति तक जागरूक न किया गया कि कोई भी बात जो डिजिटल माध्यम से उन तक पहुंच रही है, वह सर्वथा सत्य नहीं है या उसे किसी विशेष मानसिकता के साथ प्रसारित नहीं किया गया है, तब तक समाज में मीडिया साक्षरता की आवश्यकता बनी रहेगी।

क्यों है मीडिया साक्षरता की आवश्यकता

मीडिया, व्यापक रूप से परिभाषित, संचार का माध्यम है, जो विभिन्न दर्शकों के बीच जानकारी, विचारों और संदेशों के प्रसारण की सुविधा प्रदान करता है। यह समाजों को जोड़ने, सार्वजनिक जागरूकता बढ़ाने और विचारों को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। “मीडिया” शब्द में कई प्लेटफ़ॉर्म शामिल हैं, जैसे प्रिंट मीडिया (जैसे समाचार पत्र और पत्रिकाएँ), प्रसारण मीडिया (जैसे टेलीविज़न और रेडियो), और डिजिटल मीडिया (जिसमें सोशल मीडिया और ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म शामिल हैं)। मीडिया संचार का एक माध्यम होने के नाते आधुनिक समाज के लिए बुनियादी है।

यह विचारों के आदान-प्रदान को सक्षम बनाता है, लोकतंत्र को प्रोत्साहित करता है, और विविध आवाज़ों के लिए एक मंच प्रदान करता है। चाहे पारंपरिक माध्यमों जैसे समाचार पत्र और टेलीविज़न के ज़रिये हो या आधुनिक डिजिटल चैनलों के माध्यम से, मीडिया वैश्विक स्तर पर ज्ञान और जानकारी साझा करने के लिए एक महत्वपूर्ण साधन बना हुआ है।

माखनलाल चतुर्वेदी मीडिया विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति और IIMC के पूर्व डीजी प्रोफेसर के जी सुरेश ने लखनऊ स्थित कुरूॐ स्कूल ऑफ एडवांस्ड साइंसेज के व्याख्यान में मीडिया साक्षरता को लेकर काफी मुखरता से अपने विचार प्रकट किए। उनके अनुसार मीडिया साक्षरता की आवश्यकता न केवल अशिक्षित वर्ग के लिए अपितु शिक्षित और जागरूक वर्ग के लिए भी काफी आवश्यक है।

इस संबंध में उन्होंने एक प्रसिद्ध पत्रकार के साथ हुए डिजिटल फ्रॉड का उल्लेख किया जिनको ब्रिटन के प्रसिद्ध ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के नाम से एक ज्वाइनिंग का पत्र प्राप्त होता है और पत्रकार ने अपनी नौकरी से त्यागपत्र देकर वहां पर जाने का निश्चय किया। ज्वाइनिंग के कुछ समय पूर्व जब विश्वविद्यालय में इस पत्र के संबंध में जवाब मांगा गया, तो पता चला कि उनके साथ डिजिटल फ्रॉड हुआ है। इसी प्रकार लखनऊ के प्रसिद्ध हॉस्पिटल की एक महिला डाक्टर को डिजिटल अरेस्ट कर करोड़ों रुपए मांग लिए गए।

मीडिया साक्षरता को अच्छे से समझिए

अपने व्याख्यान में प्रो सुरेश ने दुष्प्रचार, भ्रामक जानकारी और दुर्भावनापूर्ण जानकारी के अंतर को स्पष्ट करते हुए मीडिया साक्षरता की आवश्यकता पर बल दिया।

दुष्प्रचार (Disinformation) वह जानकारी है जो झूठी होती है, और जो व्यक्ति इसे प्रसारित कर रहा होता है, वह जानता है कि यह झूठी है। यह एक जानबूझकर, इरादतन झूठ होता है, और यह दर्शाता है कि लोग दुर्भावनापूर्ण व्यक्तियों द्वारा सक्रिय रूप से गलत जानकारी प्राप्त कर रहे हैं।

भ्रामक जानकारी (Misinformation) वह जानकारी होती है जो झूठी होती है, लेकिन जो व्यक्ति इसे प्रसारित कर रहा होता है, वह यह मानता है कि यह सच्ची है।

दुर्भावनापूर्ण जानकारी (Mal-information) वह जानकारी होती है जो वास्तविकता पर आधारित होती है, लेकिन इसका उपयोग किसी व्यक्ति, संगठन या देश को नुकसान पहुंचाने के उद्देश्य से किया जाता है।

आज के समय में, दुनिया भर में होने वाली घटनाओं की जानकारी हमें मीडिया के माध्यम से मिलती है। मीडिया हमारे जीवन के हर क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, क्योंकि यह न केवल सूचनाओं को साझा करता है, बल्कि समाज की विचारधारा और उसकी दिशा को भी प्रभावित करता है।

मीडिया के जरिए सकारात्मक जानकारी प्रस्तुत की जाए, तो यह समाज में शांति, सद्भाव, और नैतिकता को बढ़ावा देती है। लेकिन, अगर जानकारी को तोड़-मरोड़ कर नकारात्मक रूप से पेश किया जाए, तो इससे भ्रष्टाचार, लालच, भय, द्वेष, और अव्यवस्था फैल सकती है। इसको देखते हुए, मीडिया साक्षरता आज के युग की एक अनिवार्य आवश्यकता बन चुकी है। इसका तात्पर्य है कि लोगों को मीडिया के प्रति जागरूक बनाना, ताकि वे मीडिया के विभिन्न रूपों और उनके प्रभाव को समझ सकें।

मीडिया साक्षरता क्यों ज़रूरी है?

  1. समाचार को सही से समझना: बिना मीडिया साक्षरता के, लोग समाचारों को सही ढंग से नहीं समझ पाते। जिसके कारण वे आसानी से फेक न्यूज या भ्रामक जानकारी का शिकार हो सकते हैं। मीडिया साक्षरता हमें सही और गलत समाचारों में फर्क करने में मदद करती है, जिससे समाज में गलत धारणाओं और अफवाहों को फैलने से रोका जा सकता है।
  2. नागरिक भागीदारी: मीडिया साक्षरता से नागरिक अपने समाज और सरकार की गतिविधियों से जुड़े रह सकते हैं। इससे वे सरकार और नीतियों पर निगरानी रख सकते हैं और अधिक सक्रिय भूमिका निभा सकते हैं। एक जागरूक नागरिक ही समाज में सकारात्मक बदलाव ला सकता है।
  3. वास्तविक लक्ष्य की प्राप्ति: एक स्वतंत्र और सशक्त मीडिया, जो सत्य और निष्पक्षता के साथ जानकारी प्रस्तुत करता है, समाज को स्वतंत्र और न्यायपूर्ण बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसके बिना, लोग समाज में न्याय और स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करने में कमजोर पड़ जाते हैं।
  4. सकारात्मक सोच का विकास: मीडिया साक्षरता सकारात्मक और सार्थक विचारधारा का विकास करती है। एक समझदार और विवेकशील मीडिया से लोगों को सही सोच विकसित करने में मदद मिलती है। इससे समाज में जातिवाद, असमानता, और द्वेष जैसी नकारात्मक धारणाओं में कमी आती है।

डिजिटल युग में मीडिया साक्षरता

आज के डिजिटल युग में, मीडिया साक्षरता की भूमिका और भी अधिक महत्वपूर्ण हो गई है। अब लोग समाचार और जानकारी को इंटरनेट और सोशल मीडिया के माध्यम से प्राप्त करते हैं। इसलिए, लोगों को इस जानकारी की सत्यता और विश्वसनीयता की जांच करने की क्षमता होनी चाहिए।

डिजिटल मीडिया ने सूचनाओं की पहुँच को सरल और व्यापक बना दिया है, लेकिन इसके साथ ही फेक न्यूज़ और भ्रामक जानकारी का प्रसार भी तेजी से बढ़ा है। मीडिया साक्षरता हमें न केवल सूचनाओं को समझने में मदद करती है, बल्कि यह भी सुनिश्चित करती है कि हम अपनी व्यक्तिगत जानकारी को सुरक्षित रखें और इंटरनेट पर उपलब्ध संसाधनों का सही तरीके से उपयोग करें।

मीडिया साक्षरता से लोग फेक न्यूज़ का पता लगाने, सूचनाओं की प्रामाणिकता परखने और डिजिटल संसाधनों का विवेकपूर्ण उपयोग करने में सक्षम होते हैं। यह केवल सूचना ग्रहण करने तक सीमित नहीं है, बल्कि इसके सही विश्लेषण और समझ की क्षमता भी प्रदान करती है, जिससे लोग एक जागरूक और जिम्मेदार डिजिटल नागरिक बन सकते हैं।

मीडिया साक्षरता का अभ्यास कैसे करें?

मीडिया विद्वान डब्ल्यू. जेम्स पॉटर बताते हैं कि सभी मीडिया संदेशों में चार आयाम होते हैं, जिनके माध्यम से हम उन्हें अधिक गहराई से समझ सकते हैं-

इन दृष्टिकोणों के माध्यम से मीडिया का विश्लेषण करने से हम अपनी मीडिया साक्षरता को बेहतर बना सकते हैं। उदाहरण के लिए, जब हम एक “चमत्कारी वजन घटाने वाली दवा” के विज्ञापन को देखते हैं, तो हम इसके संदेश का इस प्रकार विश्लेषण कर सकते हैं:

इस प्रकार का विश्लेषण करके हम अधिक विचारशील मीडिया उपभोक्ता बन सकते हैं, जो हमें विश्वसनीय जानकारी को भ्रामक सामग्री से अलग करने की शक्ति देता है।

मीडिया साक्षरता समाज के सभी वर्गों के लिए आवश्यक है और इस प्रकार के फ्रॉड को निरंतर साक्षरता और जागरूकता कार्यकर्मों के माध्यम से रोका जा सकता है। डीप फेक और डिजिटल अरेस्ट वर्तमान में डिजिटल फ्रॉड के तेजी से बढ़ने वाले मामले हैं जिसको लेकर भारत के यशस्वी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने भी अपने मन की बात कार्यक्रम में लोगों को जागरूक किया है। उन्होंने भी इस प्रकार के फ्रॉड से लोगों को भयभीत होने की बजाय सरकारी हेल्पलाइन नंबर पर अपनी शिकायत दर्ज करने की बात की है।

‘डिजिटल अरेस्ट’ को लेकर  PM मोदी ने भी फैलाई जागरूकता

पीएम मोदी ने ‘डिजिटल अरेस्ट’ के बारे में बताने से पहले इससे जुड़ा एक वीडियो दिखाया, जिसके माध्यम से उन्होंने बताया कि ‘डिजिटल अरेस्ट’ की घटनाएं कैसे होती हैं। उन्होंने बताया कि फ्रॉड करने वाले पुलिस, सीबीआई, नारकोटिक्स या आरबीआई के अधिकारी बनकर लोगों को डराते हैं। इस खतरनाक खेल को समझना और समझाना बहुत जरूरी है। प्रधानमंत्री मोदी ने डिजिटल अरेस्ट का फरेब करने वालों के बारे में कहा कि उनका पहला दांव होता है कि ये आपकी सारी व्यक्तिगत जानकारी जुटा कर रखते हैं।

उनका दूसरा दांव भय का माहौल पैदा करने का होता है। यह फोन कॉल पर इतना डरा देंगे कि आप कुछ सोच ही नहीं पाएंगे। वहीं फ्रॉड करने वालों का तीसरा दांव समय का अभाव दिखाते हैं, ये इतना मनोवैज्ञानिक दबाव बनाते हैं कि इंसान डर जाता है और डिजिटल अरेस्ट का शिकार हो जाता है। उन्होंने इसके आगे डिजिटल अरेस्ट से बचने के लिए तीन स्टेप्स के बारे में बताया। प्रधानमंत्री जी ने ‘रुको-सोचो-एक्शन लो’ का मंत्र समझाया। पहले स्टेप में रुकना चाहिए और व्यक्तिगत जानकारी नहीं साझा करनी चाहिए।

अगर, संभव हो तो स्क्रीनशॉट या रिकॉर्डिंग कर लेनी चाहिए। दूसरे स्टेप में सोचना और समझना चाहिए कि कोई भी सरकारी एजेंसी फोन पर ऐसे धमकी कभी भी नहीं देती और वीडियो कॉल से पूछताछ करके पैसे की मांग नहीं करती। अगर डर लगे तो समझिए कि कुछ गड़बड़ है। तीसरे स्टेप में ऐसे फ्रॉड पर एक्शन लेना चाहिए। साइबर हेल्पलाइन नंबर 1930 पर डायल करके इसकी सूचना देनी चाहिए और www.cybercrime.gov.in मेल पर रिपोर्ट करनी चाहिए। 
सामान्यतः देखा जाता है कि इस प्रकार के फ्रॉड से शिकार हुआ व्यक्ति सामाजिक प्रतिष्ठा और संकोच के कारण भी इसको बताने से बचते हैं लेकिन यह भी सत्य है कि यदि समय रहते इसकी जानकारी प्रशासन को दे दी जाए तो इसके दुष्परिणाम से बचा भी जा सकता है।

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