अतुल सुभाष (Atul Subhash) की कहानी पढ़कर आप भी रो पड़ेंगे। एक ऐसा इंसान जिसने अपनी शादी के बाद पत्नी के साथ जीवनभर प्यार से रहने के सपने देखे थे, लेकिन उसे कभी इस बात का अंदाजा नहीं था कि जिस अग्नि के वह फेरे ले रहा था, कुछ ही महीनों में वही आग उसे जलाकर खाक कर देगी। वोक फेमिनिज़्म और भ्रष्ट न्याय व्यवस्था की सच्चाई को उजागर करती यह दास्तां बताती है की कैसे पत्नी के एक के बाद एक गंभीर आरोपों, कोर्ट में तारीख पर तारीख और समाज में लगे बदनाम करने वाले ठप्पों से पीड़ित अतुल ने तंग आकर आत्महत्या कर ली। उसकी मानसिक पीड़ा का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उसने मरने से पहले 24 पन्नों का सुइसाइड नोट लिखा और डेढ़ घंटे का वीडियो बनाकर समाज के सामने अपना दर्द रखा।
अतुल की दर्दनाक दास्तान से हर किसी का दिल टूट जाएगा। बेंगलुरु के रहने वाले अतुल की शादी उत्तर प्रदेश के जौनपुर की निकिता सिंघानिया से हुई थी। शुरुआत में सब कुछ ठीक था, लेकिन फिर निकिता अचानक बेंगलुरु से वापस जौनपुर लौट आई और अतुल और उसके परिवार के खिलाफ दहेज उत्पीड़न और घरेलू हिंसा का मामला दर्ज कर दिया। वोक फेमिनिज़्म और भ्रष्ट न्याय व्यवस्था की सच्चाई को उजागर करती है, जो न जाने कितने लोगों की जिंदगी तबाह कर रही है।
दो साल, 120 तारीखें और 3 करोड़ की मांग
अतुल सुभाष (Atul Subhash) ने कोर्ट में एक के बाद एक 120 तारीखें बर्बाद होती देखीं। पत्नी ने उसकी और उसके परिवार की बेइज्जती की और लगातार 3 करोड़ की मांग करती रही। जब न्याय का दरवाजा खटखटाया, तो जज से मिली एक बातचीत भी अतुल के दर्द को बयां करती है। यह घटना बताती है कि कैसे भारतीय न्याय व्यवस्था पूरी तरह से कमजोर और भ्रष्ट हो चुकी है। वह न्यायिक प्रणाली जो खुद को समाज के न्याय का प्रहरी मानती है, वह खुद भ्रष्टाचार और भेदभाव का शिकार हो चुकी है। अतुल के सुइसाइड नोट में एक बेहद कड़वा संवाद था, जो उसने अपनी जज से कहा था:
अतुल: मैम, अगर NCRB का डाटा देखेंगी तो लाखों आदमी सुसाइड कमिट कर रहे हैं फॉल्स केस की वजह से।
नितिन सिंघानिया (अतुल की एक्स वाइफ): तो तुम भी सुसाइड क्यूं नही कर लेते।
जज (हँसते हुए) पत्नी को बहार जाने को कहती हैं।
जज: ये केस सब झूठे ही होते हैं। ऐसा ही होता है। तुम अपने और अपनी फैमिली के बारे में सोचो। ये मामले सेटल कर लो, हम तुम्हारी हेल्प करेंगे।
मैं: ठीक है मैम, आप सुझाव दीजिए। लेकिन मेरे पास इतने पैसे नहीं हैं।
जज: हम एडजस्ट कर लेंगे, मैं 5 लाख रुपये लूंगी और सब कुछ सेटल करा दूंगी।
अतुल की सुसाइड नोट में वर्णित इस कन्वर्सेशन को मानें तो इससे साफ जाहिर होता है कि अदालत में इंसाफ के बजाय भ्रष्टाचार और पैसे की राजनीति चल रही थी। अदालत से न्याय की उम्मीद रखने वाले एक इंसान को किस तरह मानसिक रूप से नष्ट किया गया, यह एक कड़वा सच है।
अतुल के अंतिम शब्द
1. “मेरे सभी केस की सुनवाई लाइव की जाए और इस देश के लोगों को मेरे केस के बारे में जानकारी दी जाए, ताकि वे न्याय व्यवस्था की भयावह स्थिति और महिलाओं द्वारा कानून के गलत इस्तेमाल को समझ सकें।”
2. “कृपया मेरी सुइसाइड नोट और वीडियो को मेरी बयान और सबूत के रूप में स्वीकार किया जाए।”
3. “रीता कौशिक उत्तर प्रदेश की जज हैं। मुझे डर है कि वह दस्तावेजों के साथ छेड़छाड़ कर सकती हैं, गवाहों पर दबाव डाल सकती हैं और अन्य मामलों को प्रतिकूल रूप से प्रभावित कर सकती हैं। मेरे अनुभव के आधार पर, बेंगलुरु की अदालतें यूपी की अदालतों से ज्यादा कानून का पालन करती हैं। मैं निवेदन करता हूं कि कर्नाटक में मेरे मामलों की सुनवाई की जाए और न्याय के हित में रीता कौशिक को बेंगलुरु में न्यायिक और पुलिस हिरासत में रखा जाए। नीचे न्याय के बारे में यह निर्णय दिया गया है कि न्याय दिखाई भी देना चाहिए। मुझे उम्मीद है कि यह पुरुषों पर भी लागू होगा।”
4. “मेरे बच्चे की कस्टडी मेरे माता-पिता को दी जाए, जो उसे बेहतर मूल्यों के साथ बड़ा कर सकें।”
5. “मेरा ‘अस्थि विसर्जन’ तब तक न किया जाए, जब तक मेरे उत्पीड़कों को सजा न मिल जाए। अगर अदालत यह फैसला देती है कि भ्रष्ट जज, मेरी पत्नी और अन्य उत्पीड़क दोषी नहीं हैं, तो मेरी अस्थियाँ अदालत के बाहर किसी नाले में डाल दी जाएं।”
अतुल सुभाष ने आत्महत्या कर ली ,
किंतु उसके पीछे की जो बातें है समाज के लिए एक बड़ा msg छोड़कर जाती है के ये जो फेमिनिज्म की आग लगी है इस देश में , ये भारत के समाज के लिए कितनी घातक हैं।
अतुल सुभाष तो नहीं रहे किंतु उनको न्याय मिले ये आवश्यक है। pic.twitter.com/x76vrIiBpP— The Abhishek Tiwary Show (@atsshow7) December 10, 2024
अतुल सुभाष(Atul Subhash) की आत्महत्या से मिलते सबक
अतुल सुभाष(Atul Subhash) की आत्महत्या सिर्फ एक व्यक्तिगत त्रासदी नहीं है, बल्कि यह लचर और कमजोर भारतीय न्याय व्यवस्था की खामियों और वोक फेमिनिज़्म के भयानक प्रभाव को उजागर करती है। वह चाहते थे कि उनके केस की सुनवाई लाइव हो ताकि लोग जान सकें कि कैसे कानून और न्याय का गलत इस्तेमाल किया जा रहा है। अतुल ने न्याय की उम्मीद छोड़ दी, लेकिन उसकी कहानी एक कड़ा सवाल खड़ा करती है—क्या न्याय केवल कुछ विशेष लोगों के लिए है? क्या हम पुरुषों की पीड़ा को भी समझेंगे?
अतुल सुभाष की कहानी एक दर्दनाक सच्चाई है, जो न केवल एक आत्महत्या की कहानी है, बल्कि यह भारतीय न्याय व्यवस्था की घटती विश्वसनीयता, वोक फेमिनिज़्म की खतरनाक विचारधारा और एक कमजोर, भ्रष्ट न्यायिक प्रणाली के बारे में गंभीर सवाल खड़ा करती है।