गैस त्रासदी का था जो गुनहगार, उसके बदले छोड़ा गया राजीव गाँधी का यार शहरयार?: भोपाल की रात, जिसे याद कर आज भी सिहर उठते हैं लोग

भोपाल गैस त्रासदी

भोपाल गैस त्रासदी के 40 साल

साल 1984 ऑपरेशन ब्लू स्टार से लेकर इंदिरा गाँधी की हत्या, सिखों के नरसंहार और केंद्र में प्रचंड बहुमत से सरकार बनने को लेकर याद किया जाता है। साथ ही याद किया जाता है एक शहर के कब्रिस्तान में बदल जाने को लेकर। यह शहर है मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल।

2 और 3 दिसंबर की दरम्यानी रात कड़ाके की ठंड के बीच भोपाल के यूनियन कार्बाइड नामक कारखाने से मिथाइल आइसोसाइनेट नामक जहरीली गैस का रिसाव हुआ। रिसाव ऐसा कि हजारों मासूम मौत के आगोश में समा गए। तत्कालीन कांग्रेस सरकार 3000 लोगों की मौत का दावा करती आई है। लेकिन ऐसा माना जाता है कि इस भीषण त्रासदी से मरने वालों का आंकड़ा 25000 से अधिक था। हालत यह थी कि इस गैस कांड से हजारों लोग दिव्यांग हो गए और साल-दर-साल मरते रहे। साथ ही दशकों तक दिव्यांग बच्चे पैदा होते रहे।

उस काली रात के मंजर को याद कर भोपाल के लोग आज भी सिहर उठते हैं। लेकिन इतिहास की सबसे भीषण त्रासदी में से एक ‘भोपाल गैस कांड’ के पीड़ित आज भी इंसाफ के लिए तरस रहे हैं। इंसाफ न मिल पाने की वजह तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी और उस समय अमेरिका के राष्ट्रपति रहे रोनाल्ड रीगन को माना जाता है। ऐसा दावा किया जाता है कि भोपाल के हजारों लोग की मौत के लिए जिम्मेदार वॉरेन एंडरसन की आजादी के बदले अमेरिका ने राजीव गांधी के बेहद करीबी आदिल शहरयार को रिहा किया था। दूसरे शब्दों में कहें तो राजीव गांधी और रोनाल्ड रीगन के बीच कथित सौदा तय हुआ था। यह सौदा था वॉरेन एंडरसन को लो और राजीव के यार आदिल शहरयार को छोड़ो।

इस कथित सौदेबाजी को लेकर साल 2015 में तत्कालीन विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने लोकसभा में राहुल गांधी को आड़े हाथों लिया था। उन्होंने राहुल गाँधी से कहा था, “आपको छुट्टियां मनाने का बहुत शौक है। इस बार जाइए छुट्टी मनाने और अपने परिवार का इतिहास पढ़िए। अपनी ममा (सोनिया गांधी) से पूछिए कि डैडी (राजीव गांधी) ने क्वात्रोक्की को क्यों भगाया? एंडरसन को अमेरिका को क्यों लौटाया? एंडरसन को छोड़कर अपने दोस्त आदिल शहरयार को लाकर क्विड प्रो क्को यानी लेनदेन क्यों किया?”

भारतीय राजनीति की महानायिका दिवंगत सुषमा स्वराज के इस बयान को लेकर संसद में जमकर हंगामा हुआ था। इस दौरान सुषमा स्वराज ने मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह की आत्मकथा का जिक्र करते हुए सीधे तौर पर कहा था कि राजीव गांधी ने चुपके से एंडरसन को भारत से भगाया था।

नेहरू-इंदिरा के करीब रहा पिता, राजीव से शहरयार की दोस्ती

जिस पाकिस्तानी नेता खान अब्दुल गफ्फार खान को राजीव गांधी सरकार में भारत रत्न दिया गया था, उनके भतीजे मोहम्मद युनुस का बेटा था आदिल शहरयार। मोहम्मद युनुस नेहरू से लेकर इंदिरा गांधी तक के करीबी रहे। इतना ही नहीं इंदिरा सरकार में वह वाणिज्य सचिव से लेकर तुर्की, इंडोनेशिया, इराक और स्पेन में राजदूत रहे। आदिल शहरयार की राजीव गांधी से अच्छी दोस्ती थी। 30 अगस्त 1981 को आदिल अमेरिका के मियामी में गिरफ्तार किया गया। उस पर बम धमाके और फर्जीवाड़े का आरोप था। जांच हुई तो ड्रग्स रैकेट से भी तार जुड़े और फिर मिली 35 साल की सजा। लेकिन कथित तौर पर राजीव गांधी की मेहरबानी से उसे 35 महीने की सजा भी नहीं काटनी पड़ी।

बस कहने को गिरफ्तार हुआ वॉरेन एंडरसन

मुंबई के सांताक्रूज हवाई अड्डे पर 6 दिसंबर 1984 की सुबह 5 बजे एक विमान लैंड करता है। विंड स्क्रीन पर बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा होता है UCC। यानी, यूनियन कार्बाइड कॉरपोरेशन। विमान से वॉरेन एंडरसन नीचे आता है। अगले दिन यानी 7 दिसंबर की सुबह वह भोपाल की फ्लाइट लेता है। भोपाल के एसपी स्वराज पुरी एयरपोर्ट पर उसका स्वागत करते हैं। इसके बाद कार में सवार होकर एंडरसन यूनियन कार्बाइड के गेस्ट हाउस पहुंचता है। जहां उसे गिरफ्तार करने की बात कही जाती है। पुलिस का अफसर उससे कहता है- हमने यह कदम आपकी सुरक्षा के लिए उठाया है। आप अपने कमरे के अंदर जो करना चाहें, कर सकते हैं। लेकिन आपको बाहर जाने, फोन करने और लोगों से मिलने की इजाजत नहीं होगी।

इसके बाद उस पर गैर-इरादतन हत्या करने का मामला दर्ज किया जाता है। दोपहर करीब 3:30 बजे एसपी पुरी उसे रिहाई के बारे में बताते हैं। उसे दिल्ली भेजने के लिए विशेष विमान की व्यवस्था की जाती है। 25,000 रुपए का बॉन्ड और कुछ जरूरी कागजों पर साइन कर एंडरसन को सरकरी विमान से भोपाल से दिल्ली भेजा जाता है और फिर वहां से अमेरिका चला जाता है। 29 सितंबर 2014 को अमेरिका के फ्लोरिडा में उसकी मौत होती है। लेकिन, हजारों बेगुनाह लोगों के हत्यारे की मौत की खबर दुनिया को करीब एक महीने बाद मिलती है।

क्या है भोपाल गैस कांड

साल 1977 में भोपाल में यूनियन कार्बाइड नामक कंपनी की शुरुआत हुई थी। इसमें भारत सरकार के साथ अमेरिकी कंपनी की साझेदारी थी। 51 फीसदी शेयर अमेरिकी कंपनी के पास थे, इसलिए मालिकाना हक भी उसका ही था। इस कंपनी का अध्यक्ष था वॉरेन एंडरसन। यूनियन कार्बाइड में सेविन नाम का एक कीटनाशक बनाया जाता था। हालांकि कुछ ही साल सेवीन की मांग में गिरावट आ गई। ऐसे में लागत को कम करने और मुनाफे को बढ़ाने के लिए यूनियन कार्बाइड में काम करने वाले कर्मचारियों को नौकरी से निकाल दिया गया। मेंटेनेंस पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया गया। इसके बाद भी मुनाफा नहीं पढ़ा और कंपनी में स्टॉक की भरमार हो गई। यूनियन कार्बाइड के प्लांट C के टैंक नंबर 610 में करीब 25 से 40 टन मिथाइल आइसोसाइनेट नामक जहरीली गैस भरी थी। इस टैंक के मेंटेनेंस पर ध्यान नहीं नहीं दिए जाने की वजह से इसमें पानी चला गया।

मिथाइल आइसोसाइनेट और पानी की क्रिया से मेथिलएमीन और कार्बन डाई ऑक्साइड बनना शुरू हुआ। टैंक से गैस का रिसाव शुरू हो चुका था। हवा के बहाव के साथ जहरीली गैस भोपाल की ओर बढ़ती जा रही थी। गैस जहां तक पहुंची वहां लोग तास के पत्तों की तरह गिरते हुए मौत की नींद सो गए। उस सर्द रात जो लोग अपने घरों पर सोए थे वे सोते ही रह गए। तत्कालीन कांग्रेस सरकार मरने वालों का आंकड़ा 3000 के आसपास बताती रही। लेकिन मीडिया रिपोर्ट्स में यह संख्या 25000 से अधिक बताई जाती है। पीड़ितों के संगठन की याचिका पर सुनवाई करते हुए साल 2006 में सुप्रीम कोर्ट ने भी माना कि भीषण त्रासदी से 15,274 लोगों की मौत हुई और 5,74,000 लोग बीमार हुए थे। What was Bhopal Gas Tragedy rajiv gandhi warren anderson union carbide

Exit mobile version