बिहार में पिछले कुछ दिनों से छात्र सड़कों पर हैं। बिहार लोक सेवा आयोग (BPSC) की परीक्षा में धांधली के विरोध में छात्र सड़कों पर उतर आये और 25 दिसंबर से ही बिहार पुलिस लाठियां भांजकर उन्हें भगाने का असफल प्रयास करती नज़र आ रही है। इस BPSC परीक्षा में हुई धांधली के आरोप की बात करने से पहले ये जानना ज़रूरी हो जाता है कि जो BPSC छात्रों की एक बात सुनने को तैयार नहीं दिख रही, वहाँ कैसी अफसरशाही चल रही है।
फिलहाल, BPSC के मुखिया 1992 बैच के आईएएस अफसर रवि मनुभाई परमार हैं। बिहार में तमाम पदों पर रहते हुए अब ये BPSC के चेयरमैन बने हैं और इनके ऊपर फंड मिसमैनेजमेंट और गबन जैसे आरोपों की वजह से मुकदमा चल रहा है। इनकी सेवानिवृत्ति नवम्बर 2024 में ही होनी थी लेकिन उससे पहले ही इन्हें BPSC के चेयरमैन जैसी बड़ी ज़िम्मेदारी दे दी गई। ये तो सीधी सी ही बात है कि सरकारों को ऐसे अधिकारियों को बड़ी और महत्वपूर्ण ज़िम्मेदारी देने से बचना चाहिए जिनके खिलाफ पहले ही महादलित विकास मिशन में आर्थिक गड़बड़ियों के लिए चार्जशीट दाखिल हो।
विवाद कैसे शुरू हुआ?
BPSC की 70वीं संयुक्त प्रारंभिक परीक्षा 13 दिसंबर 2024 को आयोजित हुई थी। बापू सभागार में आयोजित परीक्षा में प्रश्न पत्र वितरण में देरी हुई और पेपर लीक के भी आरोप लगे, जिसके बाद परीक्षार्थियों ने सड़क पर प्रदर्शन किया। परीक्षार्थी उसी समय से दोबारा परीक्षा करवाने की मांग कर रहे हैं। इससे काफी पहले ही परीक्षा में नॉर्मलाइजेशन के मुद्दे पर विवाद खड़ा हो चुका था, लेकिन तब BPSC ने कहा था कि नॉर्मलाइजेशन नहीं होगा। जब विवाद बढ़ने लगा तो पहले अफसरशाही ने आरोप लगाया कि कोचिंग सेंटर चलाने वाले कुछ लोग विवाद को भड़का रहे हैं।
अफवाहबाज़ी का आरोप जब कोचिंग सेंटर चलाने वालों पर चिपकाया नहीं जा सका तो विपक्षी दलों की भूमिका भी तलाशी गई। इस बीच पुलिस की भूमिका ऐसी रही जिससे नाराज़गी बढ़ती जाए, घट न पाए। छात्रों पर वाटर केनन चलाए गए और लाठियां भी जबकि पुलिस अधिकारी साफ झूठ बोलते दिखे कि कोई लाठीचार्ज नहीं हुआ है। नॉर्मलाइजेशन के कारण छात्र पहले से ही परीक्षाओं की विश्वसनीयता पर शक कर रहे थे।
क्या है नॉर्मलाइजेशन?
नॉर्मलाइजेशन प्रक्रिया का उपयोग उन परीक्षाओं में किया जाता है जो अलग-अलग शिफ्टों में आयोजित होती हैं। अगर किसी शिफ्ट का पेपर मुश्किल और किसी शिफ्ट का आसान हो, तो नॉर्मलाइजेशन कठिनाई के इस अंतर को संतुलित करने में मदद करता है। मतलब कि मुश्किल पेपर देने वालों के लिए कट ऑफ अलग होगा और आसान पेपर देने वालों के लिए अलग होगा। ऐसा माना जाता है कि नॉर्मलाइजेशन से मेरिट की हत्या हो जाती है। ये इसलिए क्योंकि परीक्षार्थी जो पहली पारी में बैठे, वो अगर बेहतर थे और दूसरी पारी में बैठे कमजोर छात्रों से अधिक तैयारी करके आये थे, तो जिन्होंने ज़्यादा मेहनत कि उनका श्रम पानी में चला जाता है।
इसलिए छात्र पहले से ही नॉर्मलाइजेशन का विरोध करते आ रहे हैं। जिन छात्रों का स्कोर सचमुच अच्छा होता है, उनकी शिफ्ट का औसत स्कोर अधिक होने के कारण, उनका नॉर्मलाइज्ड स्कोर कम हो जाता है। यानी जो भी अच्छे छात्र हैं, वो कभी भी नॉर्मलाइजेशन का समर्थन नहीं करते। इस वजह से छात्र ‘वन शिफ्ट वन पेपर’ की मांग कर रहे थे। इसपर BPSC के सचिव सत्य प्रकाश शर्मा ने कहा था कि नॉर्मलाइजेशन लागू नहीं होगा।
अब क्या होगा?
BPSC ने बापू सभागार में हुई परीक्षा को रद्द करवा के दोबारा परीक्षा लेने की बात की है। अगर करीब 12,000 परीक्षार्थियों की दोबारा परीक्षा होती है तो उसका मतलब है बाकी के छात्रों के साथ उनका स्कोर नॉर्मलाइज करना ही होगा, यानी नॉर्मलाइजेशन होगा। छात्रों का कहना है कि पूरी परीक्षा ही दोबारा ली जाए। उन्हें शक है कि कुछ सेटिंग करके अपनी जगह सुनिश्चित करने वालों के लिए ही बापू सभागार में पेपर लीक का खेल रचा गया। अब एक केंद्र पर ही फिर से परीक्षा और नॉर्मलाइजेशन करके उन चुनिन्दा परीक्षार्थियों को पिछले दरवाज़े से घुसा लिया जाएगा। आइसा और एबीवीपी जैसे छात्र संगठन खुलकर इस आन्दोलन में हिस्सा ले रहे हैं और विपक्षी दलों ने भी इसमें राजनैतिक ज़मीन तलाशने की कोशिश की है।
इस बीच तेजस्वी यादव ने छात्रों के बीच जाकर अपनी राजनीति चमकाने का प्रयास किया लेकिन छात्रों ने उन्हें नारेबाज़ी करके खदेड़ दिया। रविवार (29 दिसंबर) को जब छात्र जेपी गोलंबर पर अपनी मांगो के लिए प्रदर्शन कर रहे थे तो उनपर पहले लाठियां चली और फिर ठंडी रात में वाटर केनन चलाया गया। बिहार के चीफ सेक्रेटरी ने पांच छात्रों के एक प्रतिनिधिमंडल से बातचीत की है लेकिन अभी मामले का कोई हल नहीं निकल सका है।




























