महिला सम्मान योजना पर विवाद, एल-जी की जांच आदेश से एक बार फिर गरमाया LG बनाम दिल्ली सरकार का मामला, पहले कब कब हुआ विवाद ?

LG ने दिए जांच के आदेश

LG Vs kejriwal Over Mahila Samman Yojana

LG Vs kejriwal Over Mahila Samman Yojana

साल 2025 के शुरूआती महीने में ही दिल्ली विधानसभा चुनाव होने वाले हैं, और इस बीच एक बार फिर दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल (LG) के बीच टकराव की आहट सुनाई दे रही है। इस बार विवाद का कारण दिल्ली सरकार द्वारा 2024-25 के बजट में पेश की गई ‘मुख्यमंत्री महिला सम्मान योजना’ है। इस योजना के तहत, 18 वर्ष से ऊपर की सभी महिलाओं को हर महीने 1,000 रुपये देने का प्रस्ताव है। जबकि चुनावों के बाद पार्टी ने इसे बढ़ाकर 2100 रुपये करना

महिला सम्मान योजना

हालांकि, यह पहली बार नहीं है जब आम आदमी पार्टी (AAP) और उपराज्यपाल के बीच टकराव हुआ हो। 2015 से ही केंद्र सरकार और दिल्ली सरकार के बीच कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर विवाद चल रहा है, जिसमें उपराज्यपाल के अधिकारों से लेकर दिल्ली की सेवाओं पर नियंत्रण तक के मुद्दे शामिल हैं।

 

LG ने दिए जांच के आदेश

दिल्ली के उपराज्यपाल ने महिला सम्मान योजना के तहत पंजीकरण के संबंध में नियमों की जांच करने के लिए पर्यवेक्षण अधिकारी को निर्देश दिया है। दिल्ली के उपराज्यपाल ने इस मामले की जांच का आदेश दिया है और इस कार्य को क्षेत्रीय आयुक्त को सौंपा गया है। दिल्ली के सभी जिलों के क्षेत्रीय आयुक्त महिला सम्मान योजना के तहत पंजीकरण की जांच करेंगे और देखेंगे कि यह किस आधार पर किया जा रहा है।

समाचार के अनुसार, महिला और बाल विकास विभाग ने एक विज्ञापन जारी किया है, जिसमें कहा गया है कि ऐसी योजनाएँ अस्तित्व में नहीं हैं और पंजीकरण लोगों को गुमराह कर रहा है। विज्ञापन में लोगों से अपील की गई है कि वे अपनी निजी जानकारी साझा करने से बचें ताकि वे इस तरह की कठिनाइयों से बच सकें। वहीं दूसरी ओर, आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल ने इस योजना के पंजीकरण के बारे में जानकारी दी थी और उन्होंने कहा था कि महिला सम्मान और संजीवनी योजनाएँ अभी तक उन्हें अधिसूचित नहीं की गई हैं। उन्होंने यह भी कहा कि जैसे ही ये योजनाएँ अधिसूचित होंगी, दिल्ली सरकार खुद एक पोर्टल शुरू करेगी और पंजीकरण की प्रक्रिया शुरू करेगी।

एल-जी बनाम दिल्ली सरकार

2015 से ही आम आदमी पार्टी (AAP) और उपराज्यपाल (LG) के बीच टकराव एक कभी न खत्म होने वाले विवाद की तरह सामने आ रहा है। दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल कार्यालय के बीच कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर संघर्ष होता रहा है, जिसमें नौकरशाहों के तबादले, एंटी करप्शन ब्रांच (ACB) पर नियंत्रण, और मुख्य सचिव पर हमले जैसे मुद्दे शामिल हैं, जिनके कारण प्रशासन की कार्यप्रणाली लगभग ठप हो गई थी।

एंटी-करप्शन ब्रांच

आम आदमी पार्टी (AAP) सरकार ने मई 2015 में केंद्र सरकार पर हमला बोलते हुए कहा कि एंटी-करप्शन ब्रांच को उनसे हटा कर तत्कालीन उपराज्यपाल नजीब जंग को सौंपा दिया गया था, जिसके कारण दिल्ली सरकार भ्रष्ट अधिकारियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई नहीं कर पा रही थी। केजरीवाल ने इसका जिक्र करते हुए बताया था कि ऐसी स्थिति शीला दीक्षित की सरकार के दौरान नहीं थी। इसको लेकर केजरीवाल पर पलटवार करते हुए केंद्र सरकार ने यह दावा किया था कि 2014 में राष्ट्रपति शासन लागू होने के बाद ही उपराज्यपाल को एंटी-करप्शन ब्यूरो का प्रमुख नियुक्त करने के लिए एक अधिसूचना जारी की गई थी।

नौकरशाहों के तबादले और पोस्टिंग

आम आदमी पार्टी (AAP) सरकार और दिल्ली के उपराज्यपाल के बीच सबसे बड़े विवादों में से एक नौकरशाहों के तबादले और पोस्टिंग को लेकर रहा है। दिल्ली सरकार ने कई बार आरोप लगाया कि उपराज्यपाल उनके प्रशासनिक अधिकारों में हस्तक्षेप कर रहे हैं, खासकर नौकरशाहों के तबादले के मामले में।

दिल्ली सरकार का कहना था कि उसे अधिकारियों की नियुक्ति और तबादले में पूरी स्वतंत्रता नहीं मिल पा रही थी, जबकि उपराज्यपाल का दावा था कि उन्हें इस मामले में केंद्र सरकार से आदेश प्राप्त थे।

मई 2015 में, तत्कालीन उपराज्यपाल नजीब जंग ने शाकुंतला गमलिन को दिल्ली की कार्यकारी मुख्य सचिव के रूप में नियुक्त किया, हालांकि अरविंद केजरीवाल ने इस नियुक्ति का कड़ा विरोध किया था। सरकार इस नियुक्ति से बहुत नाखुश थी और तत्कालीन सेवा सचिव अनुपम मजूमदार के कार्यालय को, जिन्होंने उपराज्यपाल के निर्देश पर गमलिन की नियुक्ति आदेश जारी किया था, लॉक कर दिया गया। यह पहली बार था जब दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल कार्यालय इस मुद्दे पर आमने-सामने आए थे।

इसके बाद, केजरीवाल ने लगातार आरोप लगाया कि दिल्ली सरकार से “सेवाएं छीन” ली गईं और उपराज्यपाल को सौंप दी गईं, जिससे उन्हें अपने कर्मचारियों को नियुक्त या स्थानांतरित करने में परेशानी आई। उनका कहना था कि वे अपने आदेशों को नौकरशाहों से लागू नहीं करवा पा रहे थे, क्योंकि गृह मंत्रालय अधिकारियों की भर्ती और पदस्थापन का जिम्मेदार था।

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