110 वर्ष की उम्र में संत सियाराम बाबा का हुआ निधन, जानें 70 वर्षों से रामचरितमानस का पाठ कर रहे तपस्वी की पूरी कहानी

बाबा ने मोक्षदा एकादशी और गीता जयंती के दिन सुबह 6:10 बजे अंतिम सांस ली

भगवान हनुमान और नर्मदा नदी के प्रति अपनी भक्ति के लिए प्रसिद्ध श्रद्धेय संत सियाराम बाबा (Sant Siyaram Baba) का बुधवार को मध्य प्रदेश के खरगौन में 110 वर्ष की आयु में निधन हो गया है। सियाराम बाबा पिछले कई हफ्तों से बीमार थे और पिछले करीब एक सप्ताह से उनके आश्रम में ही बाबा का इलाज किया जा रहा था। उन्होंने मोक्षदा एकादशी और गीता जयंती के दिन सुबह 6:10 बजे अपनी अंतिम सांस ली है। इसके बाद देश भर में उनके अनुयायियों में शोक की लहर दौड़ गई है। बाबा का अंतिम संस्कार शाम 4 बजे नर्मदा नदी किनारे भटयान आश्रम क्षेत्र में किया जाएगा और इसमें मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव भी शामिल हो सकते हैं।

बाबा के स्वास्थ्य की लगातार जारी थी निगरानी

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, सियाराम बाबा को निमोनिया हो गया था। वहीं, कसरावद के बीएमओ डॉ. संतोष बडोले ने बताया है कि संत सियाराम बाबा की देखभाल के लिए 24 घंटे डॉक्टरों की एक टीम तैनात थी। उन्होंने बताया कि पिछले कुछ दिनों में उनके स्वास्थ्य में आंशिक सुधार हुआ था और उन्हें ऑक्सीजन भी दी जा रही थी। एक दिन पहले बाबा को सलाइन लगाया गया था और उनकी पल्स और बीपी सामान्य थे लेकिन बुधवार सुबह 6 बजे के करीब उनके शरीर में हलचल बंद हो गई। डॉक्टरों ने तुरंत उनकी स्वास्थ्य जांच की और इसी दौरान बाबा को अचानक हिचकी आई और उनकी पल्स रुक गई।

कठियावाड़ से नर्मदा किनारे तक का सफर

संत सियाराम बाबा के एक सेवादार के मुताबिक, बाबा मूल रूप से गुजरात के कठियावाड़ क्षेत्र रहने वाले थे और उन्होंने 17 साल की छोटी आयु में आध्यात्मिक मार्ग पर चलने का फैसला किया था और घर त्यागकर वैराग्य का मार्ग अपना लिया था। वे करीब 22 वर्ष की आयु में वे तेली भट्टाण आए थे और नर्मदा किनारे आकर मौन धारण कर लिया था। वे एक पेड़ के नीचे तपस्या किया करते थे और बताया जाता है कि मौन तोड़ने पर उन्होंने सबसे पहले ‘सियाराम’ कहा था और तभी से वह सियाराम बाबा के नाम से विख्यात हो गए थे।

70 वर्षों से कर रहे थे रामचरितमानस का पाठ

बाबा पिछले 70 वर्षों से लगातार श्रीरामचरितमानस का पाठ कर रहे थे और उनके आश्रम में 24 घंटे श्रीराम की धुन चलती रहती थी। बाबा अपने अनुयायियों से केवल ₹10 की भेंट लिया करते थे और उन्होंने इस क्षेत्र में कई मंदिरों और धार्मिक स्थलों के निर्माण में अहम योगदान दिया था। सियाराम बाबा ने अयोध्या में बन रहे राम मंदिर के लिए भी ₹2 लाख का दान दिया था।

हनुमान भक्त और दिव्य विभूति

सियाराम बाबा भगवान हनुमान के अनन्य भक्त थे और कहा जाता है कि बाबा ने साधना के जरिए से अपने शरीर को मौसम के अनुकूल बना लिया था। गर्मी हो, सर्दी हो या बारिश वे सिर्फ लंगोटी पहना करते थे। उनका जीवन दैनिक पूजा और निस्वार्थ सेवा पर ही केंद्रित था। वे अपने आश्रम में आने वाले लोगों को प्रसाद के तौर पर चाय दिया करते थे। सियाराम बाबा ने अपना जीवन विनम्रता और सादगी में बिताया था। वे ग्रामीणों से दान के तौर पर भोजन लेते थे लेकिन उसका भी एक बड़ा हिस्सा जानवरों और पक्षियों को दे देते थे।

उनके निधन के बाद इलाके में शोक की लहर दौड़ गई है और लोग उन्हें उनके अंतिम दर्शन करने और उनके प्रति अपनी श्रद्धा जताने के लिए दूर-दूर से उनके आश्रम पहुंच रहे हैं। मुख्यमंत्री मोहन यादव समेत कई वरिष्ठ नेताओं ने उनके निधन पर अपनी संवेदनाएं व्यक्त की हैं।

Exit mobile version