आरक्षण विरोधी थे नेहरू और राजीव गांधी?

पीएम मोदी ने संसद में नेहरू और राजीव गांधी के आरक्षण विरोधी होने का ज़िक्र किया जिसके बाद यह बहस नए सिरे से शुरू हुई है

प्रधानमंत्री मोदी ने लोकसभा में अपने संबोधन के दौरान देश में आरक्षण की ज़रूरत होने का ज़िक्र किया था

प्रधानमंत्री मोदी ने लोकसभा में अपने संबोधन के दौरान देश में आरक्षण की ज़रूरत होने का ज़िक्र किया था

आरक्षण का मुद्दा देश के सबसे संवेदनशील मुद्दों में शामिल है। इस मुद्दे को लेकर दशकों से अलग-अलग तरह की बहस चलती रही है और यह बहस आज भी जारी है। हालिया उदाहरण को देखें तो इस मुद्दे की अहमियत का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान बीजेपी को पूर्ण बहुमत ना मिलने के पीछे आरक्षण को लेकर फैलाया गया भ्रम ही माना जाता है। चुनाव से पहले कुछ बीजेपी नेताओं के एडिटेड वीडियोज़ के ज़रिए यह साबित करने की कोशिश की गई की बीजेपी की सरकार बनने पर आरक्षण खत्म कर दिया जाएगा। लोगों में इसका नकारात्मक संदेश गया और बीजेपी जिन कारणों के चलते पूर्ण बहुमत का आंकड़ा नहीं छू पाई उनमें यह सबसे अहम कारण था। बीजेपी ने नेहरू और राजीव गांधी जैसे कांग्रेस के कई दिग्गजों पर आरक्षण विरोधी होने का आरोप लगाया है। आज हम पड़ताल करेंगे कि क्या वाकई में आरक्षण विरोधी थे नेहरू और राजीव गांधी?

संसद में इन दिनों भारतीय संविधान की 75 वर्षों की गौरवशाली यात्रा को लेकर चर्चा चल रही है और इसी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संबोधन के दौरान आरक्षण को लेकर किए गए ज़िक्र के बाद यह बहस नए सिरे से शुरू हो गई है। प्रधानमंत्री मोदी की टिप्पणी पर राज्यसभा में विपक्ष के नेता और कांग्रेस के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने आपत्ति जताई और पीएम मोदी के दावे को तथ्यात्मक रूप से गलत बताया है।

नेहरू और राजीव के आरक्षण विरोध पर क्या बोले पीएम?

प्रधानमंत्री मोदी ने लोकसभा में अपने संबोधन के दौरान देश में आरक्षण की ज़रूरत होने का ज़िक्र किया था। पीएम मोदी ने कहा, “बाबा साहब आंबेडकर दीर्घ दृष्टा थे, वे समाज के दबे कुचले लोगों को मुख्य धारा में लाने के लिए प्रतिबद्ध थे। भारत को अगर विकसित होना है तो भारत का कोई अंग दुर्बल नहीं रहना चाहिए यह चिंता बाबा साहब को सताती थी और तब जाकर के हमारे देश में आरक्षण की व्यवस्था बनी थी। पीएम मोदी ने कहा, “वोट बैंक की राजनीति में डूबे हुए लोगों ने धर्म के आधार, तुष्टीकरण के नाम पर आरक्षण के अंदर नुक्ता-चीनी करने की कोशिश की जिसका नुकसान SC,ST और OBC समाज का हुआ है।”

इस दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू पर भी तीखा हमला किया। इस दौरान उन्होंने नेहरू और राजीव गांधी के आरक्षण विरोधी होने का भी ज़िक्र किया। पीएम ने कहा, “नेहरू जी से लेकर के राजीव गांधी कांग्रेस के प्रधानमंत्रियों ने आरक्षण का घोर विरोध किया है। आरक्षण के विरोध में लंबी-लंबी चिट्ठियां स्वयं नेहरू जी ने लिखी हैं, मुख्यमंत्रियों को लिखी है। इतना ही नहीं सदन में आरक्षण के खिलाफ लंबे-लंबे भाषण इन लोगों ने किए हैं।”

क्या बोले मल्लिकार्जुन खरगे?

संविधान के 75 वर्षों को लेकर जब राज्यसभा में चर्चा हुई तो खरगे ने पीएम मोदी के दावे पर सवाल उठाए हैं। खरगे ने कहा, “मुख्यमंत्रियों को नेहरू जी ने पत्र लिखा था जिसका जिक्र मोदी जी ने अपने भाषण में तथ्यों को तोड़ मरोड़ कर नेहरू जी को बदनाम करने के लिए किया है। जिसके लिए उन्हें देश में माफी मांगनी चाहिए।” खरगे ने अपने संबोधन में बीजेपी को आरक्षण के खिलाफ ही बता दिया। उन्होंने कहा, “हम कहते हैं कि बीजेपी आरक्षण की विरोधी है और इसीलिए वे कास्ट सेंसस के खिलाफ हैं।”

नेहरू ने पत्र में क्या लिखा था?

भारत की आज़ादी के बाद जवाहरलाल नेहरू ने मुख्यमंत्रियों के नाम पत्र लिखने की एक प्रथा शुरू की थी और इसे उन्होंने अपनी मृत्यु से कुछ समय पहले तक जारी रखा था। वे आमतौर पर हर महीने की पहली और 15 तारीख को मुख्यमंत्रियों के नाम पत्र लिखा करते थे। 1947 में उन्होंने इसके पीछे का कारण बताते हुए कहा था कि असाधारण तनाव के समय में एक-दूसरे के निकट संपर्क में रहना हमारे लिए आवश्यक है। नेहरू ने ऐसे करीब 400 पत्र लिखे थे।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आरक्षण को लेकर नेहरू के जिस पत्र का जिक्र किया है वह उन्होंने 27 जून 1961 को लिखा था। सिलेक्टेड वर्क्स ऑफ जवाहरलाल नेहरू की सीरीज़ 2 के वाल्युम 69 के पेज नंबर 21 पर इस पत्र की जानकारी दी गई है। इस पत्र में नेहरू लिखते हैं, “कोई भी मदद आर्थिक आधार पर दी जानी चाहिए न कि जाति के आधार पर। यह सच है कि हम अनुसूचित जातियों और जनजातियों की मदद के संबंध में कुछ नियमों और परंपराओं से बंधे हैं। वे मदद के पात्र हैं लेकिन फिर भी मैं किसी भी प्रकार के आरक्षण को नापसंद करता हूं, विशेषकर सेवाओं में।” वे आगे लिखते हैं, “मैं ऐसी किसी भी चीज़ के खिलाफ कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त करता हूं जो अक्षमता और दोयम दर्जे के मानकों की ओर ले जाती है।”

इसी पत्र में नेहरू आगे लिखते हैं, “अगर हम सांप्रदायिक और जातिगत आधार पर आरक्षण की व्यवस्था करते हैं, तो हम प्रतिभाशाली और सक्षम लोगों को दलदल में फंसा देते हैं और दूसरे या तीसरे दर्जे के बनकर रह जाते हैं।…हम पिछड़े समूहों की हर तरह से मदद करें लेकिन क्षमता की कीमत पर कभी नहीं।”

बीजेपी की आईटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय ने आरक्षण पर नेहरू के विचारों से जुड़ी एक खबर भी शेयर की थी। टाइम्स ऑफ इंडिया की इस खबर में लिखा है, “नेहरू ने ऑल इंडिया एक्स-क्रिमनिल ट्राइब्स कॉन्फ्रेंस का उद्घाटन किया और कहा कि वह अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के सदस्यों के लिए नौकरियों में आरक्षण के खिलाफ थे क्योंकि इससे उनमें हीनता का बोध पैदा होता है।”

राजीव गांधी ने आरक्षण पर क्या कहा?

आरक्षण पर राजीव गांधी के विचारों को लेकर भी प्रधानमंत्री मोदी ने सवाल उठाए हैं। राजीव गांधी ने प्रधानमंत्री रहते हुए 1985 में नवभारत टाइम्स को एक इंटरव्यू दिए था और इंटरव्यू के दौरान की गई बातचीत को लेकर उन्हें आरक्षण विरोधी ठहराया जाता है। यह इंटरव्यू लेने वाले पत्रकार आलोक मेहता ने कुछ दिनों पहले इस इंटरव्यू की एक पेपर कटिंग शेयर करते हुए लिखा था, “राहुल गांधी बार बार जाति के अधिकारी की बात कर रहे हैं लेकिन राजीव गांधी कितने विरोधी थे इसका एक प्रमाण मुझे 1985 में दिए गए इंटरव्यू से पता चल सकता है।”

इस खबर में लिखा है, “प्रधानमंत्री श्री राजीव गांधी की मान्यता है कि संविधान बनाते समय पिछड़े वर्ग के लिए आरक्षण की जो व्यवस्था की गई, पिछले वर्षों के दौरान उसका बहुत राजनीतिकरण हो गया है। इसलिए अब समय आ गया है कि इन सारे प्रावधानों पर नए सिरे से विचार किया जाए। वास्तव में दबे और पिछड़ो लोगों को यह सुविधा और सहायता दी जाए लेकिन इसका विस्तार कर विभिन्न क्षेत्रों में ‘बुद्धूओं’ को बढ़ाने से पूरे देश को नुकसान होगा।”

सिर्फ इतना ही नहीं जब OBC आरक्षण को लागू करने के लिए 1980 में तत्कालीन पीएम इंदिरा गांधी को मंडल कमीशन की रिपोर्ट सौंपी गई तो उन्होंने इस पर कोई कार्रवाई नहीं की थी। इंदिरा की हत्या के बाद जब राजीव गांधी प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने भी इस रिपोर्ट को ठंडे बस्ते में डाले रखा था। 1990 में जब वीपी सिंह ने मंडल कमीशन की सिफारिशें लागू करने का एलान किया तो विपक्ष के नेता के तौर पर उन्होंने इसका पूरी तरह समर्थन नहीं किया था।

लोकसभा में 1990 में 6 और 7 सितंबर को हुई बहस के दौरान राजीव गांधी ने कहा था, “सच्चाई यह है कि आरक्षण के साथ खेल खेलकर प्रधानमंत्री वीपी सिंह ने जानबूझकर अल्पसंख्यकों को किसी भी लाभ से वंचित कर दिया है।” उन्होंने कहा था, “प्रधानमंत्री वीपी सिंह को यह बताना चाहिए कि वह सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े अल्पसंख्यक समुदायों की कैसे मदद करेंगे? सरकार ने अल्पसंख्यक समुदाय के बड़े हिस्सों को शामिल नहीं किया है जिन्हें शामिल किया जाना चाहिए। अगर आप मुस्लिम समुदाय को देखें, तो भारत में मुस्लिम समुदाय का बड़ा हिस्सा शैक्षिक, सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़ा हुआ है। यह बात ईसाइयों पर भी लागू होती है। यह बात सिखों पर भी लागू होती है।”

आरक्षण पर लंबे समय से बहस होती रही है और इसके तमाम पहलू हैं। आरक्षण समर्थक दावा करते हैं कि इससे सामाजिक न्याय मिलता और इसे लंबे समय से पिछड़े वर्गों को मुख्यधारा में लाने के लिए ज़रूरी उपाय के तौर पर देखा जाता रहा है। कांग्रेस आरक्षण के नाम पर राजनीतिक करती है इसमें कोई किंतु-परंतु नहीं है। पार्टी लोगों को जाति और आरक्षण के नाम पर भड़काती रही है। लेकिन आरक्षण की सीमा को 50% से ज़्यादा बढ़ाने का दावा करने वाले राहुल गांधी और कांग्रेस पार्टी को अपना इतिहास ज़रूर देख लेना चाहिए।

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