इस्लाम की कुरीति की बात करना ‘अपराध’, जीसस के हिसाब से फ़ैसले देना ठीक: जस्टिस शेखर यादव बने निशाना, जस्टिस भानुमति पर चूँ भी नहीं

जब राष्ट्रपति भवन में इफ्तार पार्टी होती थी तब इसने इसके खिलाफ आवाज़ उठाई होगी कि भारत के सबसे बड़े संवैधानिक पद पर बैठा व्यक्ति किसी विदेशी मजहब के प्रति खुलेआम पक्षपाती रवैया क्यों दिखा रहा है?

जस्टिस शेखर यादव, भानुमति

जस्टिस शेखर यादव के बयान पर हंगामा, जस्टिस भानुमति पर चूँ तक नहीं

आए दिन भारत में बिना किसी कारण हिन्दू धर्म को गाली दी जाती है। हाल ही में जम्मू कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ़्ती की बेटी इल्तिजा ने कहा कि भगवान श्रीराम को अपना सिर शर्म से झुका लेना चाहिए। साथ ही उन्होंने ये भी कहा कि हिंदुत्व ज़हर है। अब दिक्कत ये है कि भारत में कोई हिन्दू धर्म को गाली भी दे तो ठीक, लेकिन इस्लाम की कुरीतियों की बात करना या फिर मुस्लिम समाज में सुधार की बात करना भी अपराध है। इलाहाबाद उच्च न्यायालय के जज शेखर कुमार यादव ने कुछ ऐसी ही बातें की, जिन पर बात का बतंगड़ बनाया जा रहा है।

अब तो ये भी खबर आई है कि सुप्रीम कोर्ट ने अख़बारों में जस्टिस शेखर यादव के बयान प्रकाशित होने के बाद इस मामले पर रिपोर्ट भी तलब की है। इलाहाबाद हाईकोर्ट से इस पूरे मामले की डिटेल माँगी गई है। ऐसे मामलों में सुप्रीम कोर्ट प्रमोशन रोक सकता है। ये भारत देश है। यहाँ आप विदेशी मजहब के हिसाब से फैसले करें तो ठीक है, इफ्तार पार्टियाँ करें तो ठीक है। लेकिन, अगर आप अपने देश की संस्कृति को बचाने के लिए कुछ बोलेंगे तो आप पर कार्रवाई हो जाएगी।

जस्टिस शेखर यादव ने कुछ गलत नहीं कहा

जज शेखर कुमार यादव ने एक कार्यक्रम में कहा, “कानून तो बहुसंख्यक से ही चलता है – परिवार में देखिए या समाज में देखिए। जहाँ पर अधिक लोग होंगे, वो जो कहते हैं वही माना जाता है। लेकिन अगर आप ज़बरदस्ती करेंगे कि हम तो यही मानेंगे, तो ये नहीं चलेगा। देखिए, सब बुरे नहीं हैं। ये जो कुरीतियाँ या बुराइयाँ हैं, वो भी सब में नहीं हैं। कुछ लोग हैं जो पत्नियों को ‘तीन तलाक’ देने और बच्चियों को मार डालने के पक्ष में नहीं हैं। लेकिन, ये जो कठमुल्ले हैं, ये शब्द गलत है लेकिन कहने से गुरेज नहीं है कि ये देश को बिगाड़ने वाले लोग हैं, जनता को बरगलाने वाले लोग हैं। देश आगे न बढ़े, ये इस प्रकार की सोच वाले लोग हैं। इनसे सावधान रहने की ज़रूरत है। ये सिर्फ पर्सनल लॉ में आई बुराइयों तक ही सीमित नहीं हैं, ये बुराइयाँ जब दूर होंगी तो निश्चित रूप से हमारा देश भी प्रगतिशील होगा।”

VHP (विश्व हिन्दू परिषद) के लीगल सेल के कार्यक्रम में बोलते हुए शेखर कुमार यादव ने ये बात कही। विशेषकर उनके इस बयान पर आपत्ति जताई जा रही है कि देश बहुमत के हिसाब से चलेगा। क्या चुनाव के दौरान सरकार में वो लोग नहीं चुने जाते जिनके पास बहुमत होता है? या फिर ये कहा जाएगा कि हारे हुए उम्मीदवार को जनप्रतिनिधि बना दिया जाए क्योंकि उनके विरोधी माइनॉरिटी में हैं। जस्टिस यादव ने तो सामाजिक सुधार की बात कही है, किसी भी सभ्य समाज में इसका स्वागत होगा। लेकिन, भारत में उल्टा ऐसे लोगों का विरोध ही किया जाता है। हर धर्म, मजहब या पंथ में जो भी कुरीतियाँ होती हैं उन्हें खत्म करने की बात होनी ही चाहिए। जस्टिस शेखर यादव ने पूरे कौम को बुरा नहीं कहा है, उन्होंने स्पष्ट कहा कि उसमें अच्छे लोग भी हैं।

जस्टिस शेखर यादव ने कहा कि हमारे देश में बच्चों को सभी जीवों का सम्मान करने की सीख दी जाती है। इसमें क्या गलत है? हाईकोर्ट का कोई जज कुरीतियों को खत्म करने की बात करे तो उसे ख़ारिज कर दिया जाता है, जबकि सुप्रीम कोर्ट की कोई जज ईसाई मजहब की किसी पुस्तक के हिसाब से न्याय करने की बात करे तो उसके खिलाफ कोई चूँ तक नहीं करता। क्यों? आपको जस्टिस R भानुमति के बारे में पता है? जुलाई 2020 में अपनी रिटायरमेंट से पहले उन्होंने कहा था कि हिन्दू होने के बावजूद वो जीसस के गोस्पल में विश्वास रखती हैं। उन्होंने तो जीवन में अपनी शिक्षा और सफलता का श्रेय भी जीसस क्राइस्ट को दे दिया था।

जस्टिस भानुमति पर किसी ने चूँ भी किया?

जस्टिस भानुमति ने कहा था कि न्यायिक सेवा के दौरान उनके समक्ष अड़चनों के पहाड़ खड़े हुए, लेकिन जीसस क्राइस्ट ने उनके लिए जो लिख रखा है उसे पाने से उन्हें कोई व्यक्ति नहीं रोक सकता। अब सोचिए, अपने 30 वर्षों के न्यायिक करियर के दौरान जस्टिस भानुमति ने ईसाई मजहब से प्रभावित होकर फैसले नहीं दिए होंगे, इसकी क्या गारंटी है? ईसाई तो भारत का मजहब भी नहीं है, विदेशी है। न ही जीसस क्राइस के गोस्पेल का भारत या भारतीय न्यायिक व्यवस्था से कोई लेना-देना है। भारत में ईसाई मिशनरियों द्वारा लालच देकर धर्मांतरण किए जाने के कई मामले थानों से लेकर कोर्ट तक जाते रहते हैं। ऐसे मामलों में जस्टिस भानुमति का क्या रुख रहता होगा?

जस्टिस भानुमति के खिलाफ क्यों नहीं हुआ हंगामा?

भारत में स्थिति ऐसी है कि कोई जज ‘भारत माता की जय’ कह दे तो उसे भाजपाई घोषित कर दिया जाएगा, जबकि यही नारा भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू भी लगाते थे। ‘वन्दे मातरम्’ को तो इस्लाम विरोधी ही घोषित कर के रखा गया है जबकि कई क्रांतिकारियों ने इसी नारे के साथ फाँसी के फंदे को गले लगा लिया। ‘जय श्री राम’ को कट्टर, मुस्लिम विरोधी और हिंसक नारा घोषित कर दिया गया है जबकि इसका सीधा सा अर्थ है – माँ सीता और भगवान श्रीराम की विजय हो। कुछ दिनों बाद भारत के राष्ट्रगान ‘जन-गण-मन’ को भी सांप्रदायिक घोषित कर दिया जाएगा।

कौन लोग कर रहे जज शेखर यादव की आलोचना

हमें ये भी समझने की ज़रूरत है कि आखिर किस तरह के तत्व जस्टिस शेखर यादव की आलोचना कर रहे हैं। ‘रेडियो मिर्ची’ की RJ सायमा ने लिखा, “भाइयों और बहनों, एक वर्तमान जज को देखिए।” जब राष्ट्रपति भवन में इफ्तार पार्टी होती थी तब इसने इसके खिलाफ आवाज़ उठाई होगी कि भारत के सबसे बड़े संवैधानिक पद पर बैठा व्यक्ति किसी विदेशी मजहब के प्रति खुलेआम पक्षपाती रवैया क्यों दिखा रहा है? श्रीनगर से JKNC के सांसद रूहुल्लाह मेहदी ने संसद में शेखर यादव को हटाने के लिए प्रस्ताव लाने की घोषणा की। 70 वर्षों से भारत का संविधान जम्मू कश्मीर में नहीं लागू था, इसी संसद में प्रस्ताव लाकर लागू किया गया। इसका तो ये लोग विरोध करते हैं।

इसी तरह पूरा लिबरल-सेक्युलर गिरोह जस्टिस शेखर यादव के पीछे पड़ा हुआ है। अब जब सुप्रीम कोर्ट ने भी मामले का संज्ञान लेकर रिपोर्ट तलब की है, इन्हें कार्रवाई की उम्मीद है।

Exit mobile version