अध्यात्म ही नहीं, पर्यावरण को भी समृद्ध कर जाएगा महाकुंभ: इस तकनीक से 56000 वर्गमीटर में उगाए गए जंगल, किन्नर अखाड़ा बाँटेगा 11 लाख पौधे

मियावाकी महाकुंभ

मियावाकी तकनीक से महाकुंभ से पहले उगा दिए 56000 वर्ग मीटर में जंगल (प्रतीकात्मक चित्र, साभार: TV9, AI)

महाकुंभ 2025 की तैयरियां जोरों पर हैं। इसमें शामिल होने और संगम स्नान के लिए लाखों श्रद्धालु प्रयागराज आएंगे। ऐसे में पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने प्रयागराज में जापान की मियावाकी तकनीक से 56000 वर्ग मीटर क्षेत्र में घने जंगल विकसित किए हैं। इसका उद्देश्य श्रद्धालुओं को शुद्ध वायु और स्वच्छ वातावरण प्रदान करना है। वहीं पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए किन्नर अखाड़े ने कुंभ के दौरान 11 लाख पौधे बांटने का ऐलान किया है।

महाकुंभ में जापान की मियावाकी तकनीक से तैयार किए गए जंगल को लेकर संस्कृति मंत्रालय ने बयान जारी किया है। इसमें कहा गया है, “महाकुंभ 2025 की तैयारी के लिए प्रयागराज में विभिन्न स्थानों पर घने जंगल विकसित किए गए हैं। इससे शहर में आने वाले लाखों श्रद्धालुओं के लिए शुद्ध हवा और स्वस्थ वातावरण सुनिश्चित किया जा सके।”

बयान में आगे कहा गया है, “प्रयागराज नगर निगम ने पिछले दो वर्षों में जापानी मियावाकी तकनीक का उपयोग करके कई ऑक्सीजन बैंक स्थापित किए हैं। ये अब हरे-भरे जंगलों में बदल गए हैं। इन प्रयासों ने न केवल हरियाली को बढ़ाया है, बल्कि वायु की गुणवत्ता में सुधार करने में भी योगदान दिया है, जो पर्यावरण संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।”

 

इस मामले में प्रयागराज नगर निगम के आयुक्त चंद्र मोहन गर्ग का कहना है कि वे मियावाकी तकनीक का उपयोग करके शहर के कई हिस्सों में घने जंगल तैयार कर रहे हैं। नगर निगम ने बीते दो वर्षों में शहर में 10 से अधिक स्थानों पर 55,800 वर्ग मीटर क्षेत्र में पेड़ लगाए हैं। सबसे बड़ा वृक्षारोपण, 63 प्रजातियों के लगभग 1.2 लाख पेड़ों के साथ, नैनी औद्योगिक क्षेत्र में किया गया है।

उन्होंने आगे कहा कि शहर के सबसे बड़े कूड़ा डंपिंग यार्ड की सफाई के बाद बसवार में 27 विभिन्न प्रजातियों के 27,000 पेड़ लगाए गए हैं। यह परियोजना न केवल औद्योगिक कचरे से छुटकारा पाने में मदद कर रही है बल्कि धूल, गंदगी और दुर्गंध को भी कम कर रही है। इसके अतिरिक्त, यह शहर की वायु गुणवत्ता में सुधार कर रहा है। मियावाकी वनों के कई लाभ हैं, जैसे वायु और जल प्रदूषण को कम करना, मिट्टी के कटाव को रोकना और जैव विविधता को बढ़ाना।

इलाहाबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी में वनस्पति विज्ञान के प्रोफेसर रहे डॉ. एनबी सिंह के अनुसार, मियावाकी तकनीक का उपयोग करके घने जंगलों का तेजी से विकास होता है। इससे, गर्मियों के दौरान दिन और रात के तापमान के अंतर को कम करने में मदद मिलती है। मियावाकी तकनीक से तैयार किए गए जंगल जैव विविधता को भी बढ़ावा देते हैं और मिट्टी की उर्वरता में भी सुधार करते हैं। इसके अलावा, इस तकनीक के माध्यम से विकसित बड़े जंगल तापमान को 4 से 7 डिग्री सेल्सियस तक कम कर सकते हैं।

इस परियोजना में विभिन्न प्रकार की प्रजातियाँ शामिल हैं, जिनमें फलदार वृक्षों से लेकर औषधीय और सजावटी पौधे भी शामिल हैं। इस परियोजना के तहत लगाई जाने वाली प्रमुख प्रजातियों में आम, महुआ, नीम, पीपल, इमली, अर्जुन, सागौन, तुलसी, आंवला और बेर शामिल हैं। इसके अतिरिक्त, गुड़हल, कदंब, गुलमोहर, जंगल जलेबी, बोगनविलिया और ब्राह्मी जैसे सजावटी और औषधीय पौधे भी शामिल किए गए हैं। अन्य प्रजातियों में शीशम, बांस, कनेर (लाल और पीला), टेकोमा, कचनार, महोगनी, नींबू और सहजन शामिल हैं।

मियावाकी तकनीक:

1970 के दशक में प्रसिद्ध जापान के वनस्पति शास्त्र के ज्ञाता अकीरा मियावाकी द्वारा विकसित मियावाकी तकनीक सीमित स्थानों में घने जंगल बनाने की एक क्रांतिकारी तकनीक है। इसे ‘पॉट प्लांटेशन तकनीक’ के रूप में भी जाना जाता है। मियावाकी तकनीक में पेड़ों और झाड़ियों को एक-दूसरे के करीब लगाया जाता है ताकि उनकी वृद्धि में तेज़ी आए। इस तकनीक से पौधे 10 गुना तेज़ी से बढ़ते हैं।

मियावाकी तकनीक में घने तौर पर लगाए गए देशी प्रजातियों के मिश्रण का उपयोग करके प्राकृतिक वनों के रूप में तैयार किया जाता है। मियावाकी तकनीक का उपयोग करके लगाए गए पेड़ पारंपरिक जंगलों की तुलना में अधिक कार्बन अवशोषित करते हैं, तेजी से बढ़ते हैं।

किन्नर अखाड़ा बांटेगा 11 लाख पौधे

किन्नर अखाड़े की महामंडलेश्वर डॉ. लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी ने पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए बड़ा कदम उठाया है। उन्होंने कहा है कि पर्यावरण संरक्षण के लिए महाकुंभ के दौरान स्नानार्थियों और श्रद्धालुओं में 11 लाख पौधों का वितरण करेंगे जिससे लोगों का झुकाव और लगाव पर्यावरण से हो और लोग पर्यावरण को बेहतर बनाएं।

 

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