गुमनामी बाबा पर फिर छिड़ी बहस उनके नेताजी सुभाष चंद्र बोस होने को लेकर क्या हैं दावे?

यह पहली बार है जब किसी बड़े नेता ने सीधे तौर पर नेताजी और गुमनामी बाबा को एक साथ जोड़कर देखा है

गुमनामी बाबा का प्रतीकात्मक चित्र (बाएं) और नेताजी बोस (दाएं)

गुमनामी बाबा का प्रतीकात्मक चित्र (बाएं) और नेताजी बोस (दाएं)

उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और सपा के प्रमुख अखिलेश यादव का नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती (23 जनवरी) पर किया गया पोस्ट चर्चा का विषय बन गया है। अखिलेश ने पहले बोस को नमन करते हुए ‘X’ पर पोस्ट किया और लिखा, “‘तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूंगा’, महान स्वतंत्रता सेनानी एवं आज़ाद हिंद फौज के संस्थापक नेताजी सुभाष चन्द्र बोस जी की जयंती पर उन्हें शत शत नमन।” इस पोस्ट में अखिलेश ने दो तस्वीरें साझा की थी जिनमें पहली सुभाष चंद्र बोस की थी और दूसरी गुमनामी बाबा उर्फ भगवानजी की प्रतीकात्मक तस्वीर थी।

अखिलेश यादव का X पोस्ट

अखिलेश ने इसके थोड़ी देर बाद एक और पोस्ट करते हुए लिखा, “भाजपा सरकार से आग्रह है कि सपा सरकार में अयोध्या में बने ‘गुमनामी बाबा’ के संग्रहालय का सही रखरखाव करे और उसे गुमनामी में जाने से रोके।” अखिलेश के इस पोस्ट के बाद गुमनामी बाबा के नेताजी बोस होने की चर्चा ने एक बार फिर ज़ोर पकड़ लिया है। कई सोशल मीडिया यूज़र्स ने अखिलेश की पोस्ट पर प्रतिक्रिया देते हुए सरकार से गुमनामी बाबा का सच सामने लाने की अपील की है। ‘नेताजी, गुमनामी बाबा और सरकारी झूठ’ किताब के लेखक अनुज धर ने इस पर कहा, “वर्तमान यूपी सरकार कोर्ट के आदेश का उल्लंघन कर रही है। वे लोगों को इस संग्रहालय में जाने से रोक रहे हैं। वे नहीं चाहते कि उन्हें सच्चाई पता चले।”

एक और जहां राहुल गांधी ने अपने पोस्ट में बोस की कथित मृत्यु की तारीख 18 अगस्त 1945 का ज़िक्र किया था तो वहीं अखिलेश ने इसे गुमनामी बाबा से जोड़ा है। इससे यह साफ तौर पर नज़र आता है कि अखिलेश इस मामले में कथित प्लेन क्रैश की थ्योरी को खारिज करना चाहते हैं। यह पहली बार है, जब किसी बड़े नेता ने सीधे तौर पर नेताजी और गुमनामी बाबा को एक साथ जोड़कर देखा है, इससे पहले तक देश के बड़े नेता इससे बचते रहे हैं।

नेताजी थे गुमनामी बाबा!

दरअसल, गुमनामी बाबा के नेताजी बोस होने को लेकर कई तरह के दावे किए जाते हैं और कई शोधकर्ताओं का मानना है कि गुमनामी बाबा ही नेताजी थे। हमेशा रहस्यमयी ज़िंदगी जीने वाले गुमनामी बाबा को लेकर बडे़ पैमाने पर चर्चा उनकी मौत के बाद शुरू हुई थी। सितंबर 1985 में गुमनामी बाबा की मौत के बाद जब बक्सों में बंद उनके सामान को खोला गया तो इससे हंगामा मच गया और दावा किया जाने लगा कि यह सामान असल में नेताजी का है।

गुमनामी बाबा के समर्थकों ने कथित तौर पर दावा किया था कि गुमनामी बाबा, नेताजी ही थे और खुद ही वे अपनी पहचान छिपाए रखना चाहते थे। इसके बाद अंग्रेज़ी के एक अखबार Northern India Patrika ने 20 दिसंबर 1985 से 23 जनवरी 1986 के बीच गुमनामी बाबा और नेताजी के संबंधों को लेकर ‘The Man of Mystery‘ नाम से 17 लेखों की एक सीरीज़ प्रकाशित की थी। कई अन्य अखबारों ने भी इसे लेकर खबरें छापीं जिसके बाद यह मुद्दा लोगों के बीच और चर्चा का विषय बन गया था।

Northern India Patrika में प्रकाशित सीरीज़ का पहला लेख (चित्र: अनुज धर)
Northern India Patrika में प्रकाशित सीरीज़ का तीसरा लेख (चित्र: अनुज धर)

अनुज धर ने गुमनामी बाबा के मामले को लेकर TFI से बातचीत में कहा, “इस मामले के सामने आने के बाद नेताजी बोस की भतीजी ललिता बोस वहां पहुंचीं और उन्होंने पुलिस द्वारा सीज़ किया गया गुमनामी बाबा का सामान देखने के बाद कहा था कि ‘ये मेरे चाचा जी (सुभाष चंद्र बोस) ही हैं’।” इसके बाद ललिता ने तत्कालीन मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह से मुलाकात की जिन्होंने उनसे कथित तौर पर इस मामले को कोर्ट ले जाने को कहा था। धर ने कहा, “इसके बाद ललिता ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में केस किया और गुमनामी बाबा के सामान को संरक्षित करने की मांग की थी। जिसके बाद कोर्ट ने इस सामान की इनवेंट्री बनाने को कहा था।”

धर ने कहा कि इसके बाद लंबे समय तक यह मामला कोर्ट में अटका रहा और कल्याण सिंह के मुख्यमंत्री काल के दौरान सरकार ने कोर्ट में एफिडेविट देकर कहा कि गुमनामी बाबा नेताजी नहीं थे। धर ने कहा, “2011-12 में शक्ति सिंह नामक शख्स (इनके घर में ही गुमनामी बाबा की मौत हुई थी) ने कोर्ट में केस कर पूछा कि उनके घर से जो सामान निकला था वो अभी कहा है।” इसके बाद यह मामला एक बार भी चर्चाओं के केंद्र में आ गया था।

कोर्ट ने दिया संग्रहालय बनाने का निर्देश

इसके बाद जनवरी 2013 में इलाहाबाद हाईकोर्ट की जस्टिस देवी प्रसाद सिंह और जस्टिस वीरेंद्र कुमार दीक्षित की लखनऊ पीठ ने उत्तर प्रदेश सरकार को गुमनामी बाबा उर्फ ​​भगवानजी की पहचान की जांच के लिए एक पैनल बनाने का निर्देश दिया था। कोर्ट ने कहा, “गुमनामी बाबा की पहचान के सिलसिले में हाईकोर्ट के एक रिटायर्ड जज के नेतृत्व में वरिष्ठ अधिकारियों और विशेषज्ञों की एक टीम के गठन पर विचार करने के लिए राज्य सरकार को निर्देशित किया जाता है।”

साथ ही, कोर्ट ने इस मामले में राज्य सरकार को फैजाबाद में गुमनामी बाबा से जुड़ी चीजों को रखने के लिए एक संग्रहालय बनाने पर विचार करने का भी निर्देश देते हुए कहा था कि अन्य पुरानी वस्तुएं भी वैज्ञानिक तरीके से इस संग्रहालय में रखी जा सकती हैं। कोर्ट ने इन दोनों मामलों पर तीन महीने के भीतर सरकार से फैसला लेने का कहा था।

गुमनामी बाबा पर विष्णु सहाय आयोग की रिपोर्ट

कोर्ट के आदेश के बाद 2016 में अखिलेश यादव के नेतृत्व वाली तत्कालीन यूपी सरकार ने गुमनामी बाबा की पहचान की जांच के लिए न्यायिक आयोग का गठन किया था। एक सदस्यीय इस आयोग की अध्यक्षता जस्टिस विष्णु सहाय कर रहे थे और इसे 6 महीने में अपनी रिपोर्ट देनी थी। सितंबर 2017 में विष्णु सहाय ने की अपनी रिपोर्ट उत्तर प्रदेश के तत्कालीन राज्यपाल राम नाइक को सौंप दी थी

सहाय ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि गुमनामी बाबा एक ‘असाधारण व्यक्ति’ थे। सहाय ने उन्हें नेताजी का अनुयायी माना और रिपोर्ट में लिखा कि जैसे ही यह अफवाह फैलनी शुरू हुई कि वह नेताजी बोस हैं तो उन्हें अपना मकान बदल लिया था। इस रिपोर्ट में सहाय ने गुमनामी बाबा की आवाज़ नेताजी से मिलने जैसी दलीलें दीं लेकिन उनका निष्कर्ष था कि वे नेताजी नहीं हैं।

जस्टिस विष्णु सहाय आयोग का निष्कर्ष

अनुज धर ने इस आयोग को लेकर कहा है, “यह आयोग सिर्फ एक नौटंकी की तरह था। उन्हें यह पता करना था कि गुमनामी बाबा कौन हैं जो उन्होंने नहीं किया था। उनके अधिकतर निष्कर्ष बोस से मिलते जुलते थे लेकिन आखिर में उन्हें इसे खारिज कर दिया था।” धर ने कहा कि नेताजी के बड़े अनुयायियों को दुनिया जानती हैं लेकिन इनका (गुमनामी बाबा) ज़िक्र कहीं नहीं मिलता था। उन्होंने कहा, “यह जांच से ठीक तरीके से नहीं की गई थी। मुखर्जी कमीशन के आधार पर DNA टेस्ट ना कराया जाना भी बेतुका है और उन्होंने ठीक तरीके से हैंड राइटिंग जांच भी नहीं कराई थी।” साथ ही, धर ने DNA और हैंडराइटिंग की पुरानी रिपोर्ट्स को भी फर्जी बताया है।

राम कथा संग्रहालय में गुमनामी बाबा का म्यूज़ियम

अखिलेश यादव के कार्यकाल में गुमनामी बाबा के सामान को प्रदर्शित करने के लिए राम कथा संग्रहालय में एक म्यूज़ियम गैलरी बनाई गई थी। इस संग्रहालय के निर्माण के लिए बोस के परिवार के कुछ सदस्यों और मिशन नेताजी से जुड़े अनुज धर जैसे लोगों ने अखिलेश यादव से मुलाकात भी की थी। हालांकि, इसके निर्माण के कुछ ही समय बाद अखिलेश यादव की सरकार चली गई और तब से आज तक इसे आम जनता के लिए नहीं खोला गया है। इस संग्रहालय में दुर्लभ पुस्तकें ,घड़ी, अखबारों की कटिंग के अलावा अन्य महत्वपूर्ण सामग्री है। फिलहाल, संस्कृति विभाग ने राम कथा संग्रहालय को राम मंदिर ट्रस्ट को हैंड ओवर कर दिया है और इसे अंतर्राष्ट्रीय स्वरूप देने का काम तेज़ी से चल रहा है।

गुमनामी बाबा का नेताजी से मिलता-जुलता चश्मा

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, सरकार हाईकोर्ट के आदेश पर संरक्षित किए गए गुमनामी बाबा के 425 सामानों को भी कहीं और शिफ्ट करने की तैयारी कर रही है। दूसरी ओर, अनुज धर का कहना है, “मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ राम कथा संग्रहालय में जाते तो हैं लेकिन आज तक उस गैलरी का उद्घाटन नहीं किया गया है।” उन्होंने कहा, “बीजेपी सरकार को पता है कि अगर लोग आएंगे तो वे गुमनामी बाबा का हाइटेक सामान देखकर सवाल ज़रूर करेंगे कि यह किसका सामान है।”

गुमनामी बाबा के नेताजी होने से जुड़े दावे!

गुमनामी बाबा के पास मौजूद सामान, उनसे मिलने आने वाले बड़े-बड़े लोगों व देश-विदेश के मामलों में उनके अध्ययन व रूचि को लेकर उन्हें नेताजी सुभाष चंद्र बोस बताया जाता है। सरकारी रिपोर्ट में गुमनामी बाबा और नेताजी की हैंड राइटिंग के मैच करने का दावा खारिज कर दिया गया था लेकिन अनुज धर और उनके सहयोगियों ने जब गुमनामी बाबा की हैंड राइटिंग की स्वतंत्र विशेषज्ञों द्वारा जांच कराई तो रिपोर्ट का नतीजा चौंकने वाला रहा था। एक अंतर्राष्ट्रीय एक्सपर्ट समेत कम-से-कम 3 एक्सपर्ट्स ने गुमनामी बाबा और नेताजी की हैंड राइटिंग को एक जैसा माना था। उन्होंने DNA रिपोर्ट पर भी इसी तरह के दावे किए हैं।

साथ ही, गुमनामी बाबा के पास राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के दूसरे सरसंचालक एमएस गोलवलकर का पत्र भी मिला था। गोलवलकर ने गुमनामी बाबा को इस पत्र में स्वामी विजयानंद नाम से संबोधित किया है। किसी गुमनाम साधु को RSS के सरसंचालक द्वारा पत्र लिखा जाना उनके नेताजी होने के संदेह को और स्पष्ट ही करता है।

गुमनामी बाबा के पास से मिला गोलवलकर का पत्र (चित्र: अनुज धर)

साथ ही, गुमनामी बाबा के सामान में कई अन्य रहस्यमयी चीज़ें भी मिली थीं जिनमें हाथ से बनाए गए नक्शे भी शामिल हैं। गुमनामी बाबा के पास मिले हाथ से बने एक नक्शे में ताइहोकू पर क्रास किया गया था। ताइहोकू, ताइवान का एक प्रशासनिक प्रभाग था जहां पर नेताजी बोस का प्लेन कथित तौर पर क्रैश हुआ था।

गुमनामी बाबा के पास मिला हाथ से बना नक्शा (चित्र: HT)

गुमनामी बाबा के बक्सों से आजाद हिंद फौज की खुफिया इकाई के मुखिया पवित्र मोहन राय की वंशावली, जर्मनी का बना टाइपराइटर, हाइटेक दूरबीन, बोस के माता-पिता/परिवार की निजी तस्वीरें, जापानी, जर्मन और अंग्रेजी साहित्य, आज़ाद हिंद फौज की वर्दी, सैकड़ों टेलीग्राम, 555 सिगरेट, शराब की बोतलें और रोलेक्स की महंगी घड़ियां भी मिलीं थी। किसी एकांत में रहने वाले एक गुमनामी बाबा के पास ऐसा सामान मिलना खुद में रहस्यमयी है। उनके सामानों में नेताजी बोस की एक पारिवारिक तस्वीर भी शामिल थी।

गुमनामी बाबा के सामान में मिली नेताजी की पारिवारिक तस्वीर

बोस और गुमनामी बाबा की कद-काठी और आवाज़ में गजब का साम्य कई सवाल खड़े करता है जिनके जवाब अभी मिलने बाकी हैं। अभी तक इस विषय पर सरकारी स्तर पर बहुत सारी धुंध हटनी बाकी है और नेताजी जैसे राष्ट्र नायक के मामले में ऐसे सवाल खड़े रहना राष्ट्र के तौर पर हमारे ऊपर भी सवाल उठाता है। अखिलेश यादव द्वारा छेड़ी गई यह बहस कहां तक जाएगी यह देखना दिलचस्प होगा।

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