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एक-दो नहीं, 12 माधव… इनके दर्शन के बिना अधूरा रह जाएगा महाकुम्भ स्नान, ऋषि भारद्वाज भी यहीं करते थे पूजा

महाकुंभ 2024 में द्वादश माधव मंदिरों की यात्रा

himanshumishra द्वारा himanshumishra
3 January 2025
in चर्चित, ज्ञान
Mahakumbh And Dwadash Madhav

Mahakumbh And Dwadash Madhav (Image Source: HT, TV9)

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कुम्भे कुम्भोद्भवं तीर्थं सर्वपापप्रणाशनम्।
त्रिसंध्यमनुसंचर्य सर्वान्कामानवाप्नुयात्॥

यह श्लोक स्कंद पुराण से लिया गया है, जो महाकुंभ (Mahakumbh 2025) की पवित्रता और इसके आध्यात्मिक महत्व को दर्शाता है। इस श्लोक में कहा गया है कि कुंभ मेले के दौरान, अमृत से पवित्र हुई तीर्थस्थली पर स्नान करने से न केवल सभी पापों का नाश होता है, बल्कि इच्छाओं की पूर्ति और मोक्ष की प्राप्ति भी होती है। यही कारण है कि महाकुंभ में करोड़ों श्रद्धालु स्नान के लिए आते हैं।

2025 का महाकुंभ, जो 13 जनवरी से प्रयागराज में प्रारंभ हो रहा है, केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं है; यह भारतीय आध्यात्मिक धरोहर और सामाजिक एकता का अद्वितीय उत्सव है। साथ ही महाकुंभ का महत्व केवल धार्मिक नहीं है, यह एक ऐसा आयोजन है, जो आस्था को अर्थव्यवस्था से जोड़ता है। महाकुंभ में आने वाले करोड़ों श्रद्धालु स्थानीय व्यवसायों, परिवहन, होटल, और हस्तशिल्प जैसे क्षेत्रों को नई ऊर्जा प्रदान करते हैं। अनुमान है कि 2025 का महाकुंभ उत्तर प्रदेश को ₹25,000 करोड़ से अधिक का राजस्व देगा, जिससे हजारों लोगों को रोजगार मिलेगा और प्रयागराज के आर्थिक विकास को नई ऊंचाइयां मिलेंगी। महाकुंभ न केवल पवित्रता और आत्मिक शांति का अनुभव है, बल्कि यह एक ऐसा संगम है, जहां अध्यात्म, संस्कृति, और आर्थिक समृद्धि एक साथ आकार लेते हैं। इस महाकुंभ में आस्था के साथ-साथ आर्थिक और सांस्कृतिक पुनर्जागरण का उत्सव मनाने का अवसर है।

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Mahakumbh 2025
Mahakumbh 2025

ऐसी में इस बार महाकुंभ में स्नान के साथ-साथ प्रयागराज स्थित अन्य तीर्थ स्थानों पर भी विशेष दिनों दिया जा रहा है. जिसमें सरस्वती कूप और द्वादश माधव मंदिरों मुख्य हैं। द्वादश मंदिर न केवल प्रयागराज की सांस्कृतिक पहचान का हिस्सा हैं, बल्कि धार्मिक पर्यटन के माध्यम से शहर को एक नई दिशा देने का साधन भी बन रहे हैं। द्वादश माधव, भगवान विष्णु के 12 प्रमुख मंदिर, प्रयागराज की पवित्रता को और बढ़ाते हैं। महाकुंभ के दौरान इन मंदिरों के दर्शन श्रद्धालुओं के लिए विशेष महत्व रखते हैं। इन मंदिरों की यात्रा से आत्मा की शुद्धि और मनोकामनाओं की पूर्ति होती है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इन मंदिरों को महाकुंभ से जोड़ते हुए श्रद्धालुओं को इनकी ऐतिहासिक और आध्यात्मिक महत्ता से परिचित कराने की योजना बनाई है।

 

द्वादश माधव: आध्यात्मिक यात्रा का विस्तार

महाकुंभ में स्नान को पवित्रता का प्रतीक माना जाता है, लेकिन क्या हो अगर इस यात्रा को और भी अधिक अर्थपूर्ण बना दिया जाए? प्रयागराज के 12 माधव मंदिर, जिन्हें द्वादश माधव के नाम से जाना जाता है, हर श्रद्धालु को भगवान विष्णु के विभिन्न रूपों से परिचित कराते हैं। ये मंदिर केवल धार्मिक स्थल नहीं हैं; ये हमारी सांस्कृतिक धरोहर और इतिहास का जीवंत प्रमाण हैं। हर मंदिर का दर्शन और प्रत्येक स्वरूप को समझने की यात्रा श्रद्धालुओं को एक आध्यात्मिक मार्ग पर ले जाती है, जो उन्हें अपने भीतर की शांति से जोड़ता है। प्रयागराज, जहां गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती मिलती हैं, वही स्थान है जहां द्वादश माधव के दर्शन हर यात्री को भक्ति और संतोष की एक नई परिभाषा सिखाते हैं।

स्कन्द पुराण के अनुसार
“मध्येशु मध्योऽस्ति विष्णु: प्रयागे,
द्वादश माधव: पूज्यते भव्यलोके।
सर्वे च पुण्याः प्रत्यक्ष मोक्षदा:”

अर्थात, प्रयाग में स्थित द्वादश माधव भगवान विष्णु के विभिन्न रूप हैं। इनका पूजन व्यक्ति को स्वर्ग की प्राप्ति और मोक्ष का मार्ग प्रशस्त करता है। मान्यता है कि जब ब्रह्मा जी ने प्रयागराज में सृष्टि का पहला यज्ञ किया था, तब भगवान विष्णु ने अपने द्वादश रूपों में उसकी रक्षा की थी। यही कारण है कि ये बारह माधव मंदिर भगवान विष्णु के विभिन्न रूपों को समर्पित हैं। इन मंदिरों के दर्शन से न केवल व्यक्ति के पापों का नाश होता है, बल्कि मोक्ष की प्राप्ति भी संभव होती है। प्रयागराज को विष्णु के मुख्य निवास स्थल के रूप में माना जाता है, और इसे स्थानीय रूप से माधव क्षेत्र के नाम से भी जाना जाता है। इन पवित्र मंदिरों का वर्णन इस प्रकार किया गया है:

श्री शंख माधव
मुंशी बाग, सदाफल आश्रम, चटनाग, झूंसी, प्रयागराज

शंख माधव को पद्म पुराण में प्रथम माधव मंदिर के रूप में बताया गया है। इस मंदिर का ऐतिहासिक और पौराणिक महत्व अत्यधिक है। यह सिर्फ एक धार्मिक स्थल नहीं है, बल्कि प्रयागराज की शान और गौरव का हिस्सा भी है।

Shree Shankha Madhav (Image Source: Careourteerth)
Shree Shankha Madhav

झूंसी, जिसे पहले प्रतिष्ठानपुर के नाम से जाना जाता था, एक ऐतिहासिक गांव है, जहां श्री शंख माधव जी गंगा के किनारे स्थित हैं। इस गांव का संबंध महाभारत से भी जुड़ा है और यहां के ऐतिहासिक महत्व को 450 ईस्वी तक माना जाता है। हालांकि, गुप्त वंश के सम्राट समुद्रगुप्त के शासनकाल में इसे कई बार नष्ट किया गया। श्री नारायण ने ब्रह्मा जी की प्रार्थना पर यहां शंख रखा था।

प्रयाग शतधाय श्लोकों में शंख माधव के इस पवित्र स्थान का उल्लेख किया गया है। इसमें कहा गया है कि प्रयाग के पूर्वी क्षेत्र में भगवान नारायण शंख माधव के रूप में इन्द्र के बगिया में विराजमान हैं। शंख माधव के दर्शन, पूजन, दीपदान और प्रदक्षिणा विशेष रूप से वैसाख, माघ और कार्तिक माह में करना चाहिए। यहां के दर्शन से माया के बंधन को नष्ट किया जा सकता है। इस स्थान का दर्शन करने से कई ऋषियों को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी।

श्री चक्र माधव
अरेल क्षेत्र, महेश योगी समाधि मंदिर के पास, नयानी, प्रयागराज

श्री चक्र माधव द्वादश माधवों में दूसरा सम्मानित स्थल है। यह मंदिर पौराणिक और प्राचीन तीर्थस्थल के रूप में प्रसिद्ध है। पद्म पुराण और अग्नि पुराण में इसका विस्तार से उल्लेख किया गया है। यह मंदिर अरेल मार्ग पर स्थित है, जो सोमेश्वर महादेव मंदिर और महेश योगी समाधि स्थल के बीच स्थित है। यहां एक दिव्य शांति और ऊर्जा का अहसास होता है।

Shree Chakra Madhav (Image Source: Care our Teerth)
Shree Chakra Madhav

पुराणों में इसे अग्नि देव का आश्रम बताया गया है। प्रयाग शतधाय श्लोकों में चक्र माधव के इस स्थान का भी उल्लेख किया गया है। यहां बताया गया है कि यह अग्नि आश्रम था, और भगवान विष्णु ने अग्नि देव को आशीर्वाद दिया था कि वह हमेशा चक्र रूप में उनके भक्तों और यज्ञ करने वालों की रक्षा करेंगे। श्री चक्र माधव जीवन की सभी विघ्नों को नष्ट करने वाले हैं। चक्र माधव के दर्शन से 14 महाविध्याओं का आशीर्वाद मिलता है।

9वीं शताब्दी में चंदेल राजाओं ने चक्र माधव का मंदिर बनवाया था, जो बाद में मुघल आक्रमणकारियों द्वारा नष्ट कर दिया गया था। नए मंदिर में चक्र माधव का रूप श्याम वर्ण में है, और वह शेष नाग के नीचे सो रहे हैं, जबकि माता लक्ष्मी उनकी सेवा में हैं।

श्री गदा माधव
चौकी स्टेशन, नयनी, प्रयागराज

यह मंदिर प्रयागराज के नयनी क्षेत्र में स्थित है और इसे वैष्णव भक्तों के लिए एक पवित्र स्थल माना जाता है। गदा माधव के रूप में यह द्वादश माधवों में दूसरा सबसे महत्वपूर्ण स्थान रखता है।

Shree Gada Madhav (Image Source: Care our Teerth)
Shree Gada Madhav

पौराणिक ग्रंथों जैसे प्रयाग शतधाय, पद्म पुराण और पातल खंड में गदा माधव के इस मंदिर का उल्लेख मिलता है। इन शास्त्रों के अनुसार, यह स्थान भगवान विष्णु के गदा माधव रूप के लिए विशेष रूप से पूजित है।

यह स्थल लगभग 3300 साल पुराना है। एक समय यहाँ पर एक भव्य मंदिर था, जिसमें भगवान गदा माधव जी की 7.5 फीट ऊँची मूर्ति स्थापित थी। इस मंदिर का निर्माण 1300 ईसा पूर्व हुआ था। तीसरी शताब्दी में बौद्ध आक्रमणकारियों ने इसे नष्ट कर दिया, और 18वीं शताब्दी में मुघल आक्रमणकारियों ने इसे और भी क्षतिग्रस्त कर दिया। अब यहाँ केवल गदा माधव जी के चरणों के निशान ही बची हुई हैं।

आज के समय में, मंदिर के आसपास स्थानीय लोगों का कब्जा हो चुका है, और यहां का सबसे बड़ा खतरा बाहरी आक्रमणों से नहीं, बल्कि हमारे अपने द्वारा इस पवित्र स्थल की अनदेखी और उपेक्षा से है।

श्री पद्म माधव
भीटा, देवरिया, प्रयागराज

यह स्थान एक आदर्श जगह है, जो न केवल धार्मिक श्रद्धा का केंद्र है, बल्कि यहाँ की प्राकृतिक सुंदरता भी किसी को भी मंत्रमुग्ध कर देती है। यमुना नदी के किनारे स्थित यह स्थल भगवान के भक्तों के लिए एक आकर्षक गंतव्य है, वहीं इतिहास और प्रकृति प्रेमियों के लिए भी यह एक खास जगह है।

प्रयाग शतधाय श्लोकों में श्री पद्म माधव के इस पवित्र स्थान का उल्लेख किया गया है। इस श्लोक के अनुसार, यह स्थल द्वादश माधवों में चौथा सबसे सम्मानित स्थान है और यह दक्षिण-पश्चिम दिशा में स्थित है। यहाँ की ऊर्जा योगियों को शांति और ज्ञान की प्राप्ति कराती है।

Shree Padma Madhav (Image Source: Care our Teerth)
Shree Padma Madhav

यह स्थान 2000 साल पुरानी ऐतिहासिक और पुरातात्विक धरोहरों से भरपूर है, और यहाँ के वातावरण में एक अद्वितीय शांति महसूस होती है। कहा जाता है कि इस स्थान पर भगवान लक्ष्मी जी रोज़ श्री पद्म माधव की पूजा करती हैं और उनके लिए हजारों कमल के फूल चढ़ाती हैं। भगवान के लाल नेत्र और कमल के हार उनके सौंदर्य को और भी अधिक आकर्षक बनाते हैं।

यह मंदिर एक चट्टान से बना हुआ है, जिसमें भगवान पद्म माधव जी, भगवान शिव और श्री ब्रह्मा जी की त्रिमूर्ति की मूर्तियाँ उकेरी गई हैं। मुघल आक्रमण के दौरान इसे नष्ट कर दिया गया था, और बाद में शाही शास्ता खान ने इसके ऊपर एक मीनार बनवायी थी ताकि वह जहाजों पर नजर रख सके और कर वसूल सके। यह स्थल राम रेखा का भी हिस्सा है, क्योंकि यहाँ भगवान श्रीराम ने अपनी वनवास यात्रा के दौरान माता सीता और श्री लक्ष्मण के साथ विश्राम किया था।

श्री अनंत माधव
चौफटका, प्रयागराज

प्रयागराज में स्थित श्री अनंत माधव का मंदिर भगवान विष्णु और लक्ष्मी माता को समर्पित है, और यह द्वादश माधवों का पांचवां प्रमुख स्थान माना जाता है। इस मंदिर का इतिहास और पौराणिक महत्व बहुत गहरा है, जिसे जानना हर भक्त के लिए एक आध्यात्मिक अनुभव है।

Shree Ananta Madhav (Image Source: Care our Teerth)
Shree Ananta Madhav

श्री अनंत माधव का उल्लेख लगभग सभी प्रमुख पुराणों में मिलता है, जो इसे सनातन धर्म में अत्यधिक सम्मानित और महत्वपूर्ण बनाता है। प्रयाग शतधाय श्लोकों में भी इसका विशेष उल्लेख है, जिसमें कहा गया है कि प्रयागराज के पश्चिमी इलाके में भगवान विष्णु अपने अनंत रूप में विराजमान हैं, वरुण देव के आश्रम के सामने।

नाम से ही स्पष्ट है कि यह भगवान विष्णु के अनंत रूप का प्रतीक है, जो अर्जुन को गीता का उपदेश देते हैं, सूर्य के रूप में इस दुनिया को प्रकाशित करते हैं और हर जीव के प्राणों में निवास करते हैं। अनंत माधव का यह रूप हमें भगवान विष्णु के अपरिमित और अनंत स्वरूप की याद दिलाता है।

यह स्थान प्राचीन ऋषियों के साधना स्थल के रूप में भी जाना जाता था, लेकिन मुघल और ब्रिटिश काल में इस मंदिर को भारी नुकसान हुआ। मंदिर के पुजारी ने भगवान अनंत माधव की मूर्ति को आक्रमणकारियों से बचाने के लिए उसे अपने घर ले जाकर सुरक्षित किया। इस कारण, मूर्ति और मंदिर अलग-अलग स्थानों पर स्थित हैं। मूल मंदिर का निर्माण यदु वंश के शासकों ने चौथी शताब्दी में किया था, और ब्रिटिशों ने सड़क निर्माण के दौरान इसे नष्ट कर दिया।

वर्तमान में, भगवान अनंत माधव की मूर्ति श्री सूर्यनारायण शुक्ला के घर, दारागंज में रखी हुई है। चूंकि यह मूर्ति एक निजी संपत्ति में है, दर्शन के लिए अनुमति प्राप्त करना आवश्यक हो सकता है।

श्री बिंदु माधव
द्रौपदीघाट, पेंशन कार्यालय, प्रयागराज

प्रयागराज का बिंदु माधव मंदिर 9वीं शताब्दी का ऐतिहासिक स्थल है, जो गंगा के किनारे स्थित था और भगवान विष्णु को समर्पित है। यह स्थल विशेष रूप से महाभारत की द्रौपदी से जुड़ा हुआ है। बिंदु माधव मंदिर न केवल पौराणिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यहां की शांति और आध्यात्मिक वातावरण हर भक्त को एक अद्भुत अनुभव देता है।

Shree Bindu Madhav (Image Source: Care our Teerth)
Shree Bindu Madhav

“बिंदु” शब्द का संबंध योगिक दृष्टिकोण से है, जहां यह तृतीय नेत्र या त्रिकुटि के केंद्र को दर्शाता है, जो ध्यान की अवस्था में प्रकाशित होता है। यह स्थल भगवान बिंदु माधव की पूजा का स्थल है, जहां भक्त पारिजात (रात्रि चमेली) फूलों से पूजा करते हैं।

प्रयाग शतधाय श्लोकों में बिंदु माधव मंदिर का उल्लेख किया गया है, जो वायु देवता के आश्रम के पास स्थित है, और यह माधवों का छठा पवित्र स्थल है। यहां सभी देवता और ऋषि वास करते हैं, और यदि बिंदु माधव जी की कृपा हो, तो भक्त उन्हें दर्शन भी कर सकते हैं।

इतिहास में इस स्थान का बहुत महत्व है क्योंकि द्रौपदी ने महाभारत के दौरान यहां अपने वनवास के दौरान स्नान किया था। यह स्थान रामायण और महाभारत के साथ जुड़ा हुआ है। यदु वंश के शासकों ने तीसरी शताब्दी में यहां एक भव्य मंदिर का निर्माण किया था, जो बाद में विधर्मियों द्वारा नष्ट कर दिया गया। लंबे समय तक यह स्थान छिपा रहा, लेकिन अब सनातन धर्म के अनुयायी इस स्थान पर एक सुंदर और भव्य मंदिर का पुनर्निर्माण कर चुके हैं।

श्री मनोहर माधव
शाहगंज क्षेत्र, प्रयागराज

प्रयागराज के शाहगंज क्षेत्र में स्थित श्री मनोहर माधव का प्राचीन मंदिर एक दिव्य स्थल है, जो अपनी पौराणिक और ऐतिहासिक महत्ता के कारण लोगों को आकर्षित करता है। इस मंदिर के बारे में बहुत सी दिलचस्प कथाएँ और किंवदंतियाँ हैं, जो इसे और भी खास बनाती हैं। यहाँ के परिसर में बिखरे प्राचीन शिल्प और मूर्तियाँ हमें 5वीं शताब्दी की याद दिलाती हैं, जैसे कि यह एक समय का इतिहास हो, जो आज भी जीवित है। यह स्थान न सिर्फ धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यहां की पुरानी मूर्तियों और संरचनाओं के माध्यम से हम अतीत से जुड़ सकते हैं।

Shree Manohar Madhav (Image Source: Care our Teerth)
Shree Manohar Madhav (Image Source: Care our Teerth)

पद्म पुराण के पटाल खंड में प्रयाग शतधाय श्लोकों के अनुसार, यह स्थान उत्तर में कुबेर आश्रम के पास स्थित है, जहां श्री मनोहर माधव का मंदिर है। यहां पर कुबेर भगवान विष्णु की पूजा करते थे और उन्होंने भगवान शिव को दरवेश्वर महादेव के रूप में आमंत्रित किया था। इस मंदिर का निर्माण 9वीं या 10वीं शताब्दी में गढ़वाल राजवंश ने किया था, लेकिन मुघल आक्रमणों में यह मंदिर नष्ट हो गया। हालांकि, मूर्ति को सुरक्षित स्थान पर स्थानांतरित कर दिया गया। बाद में मराठा शासकों ने यहाँ एक नया मंदिर बनाया और मूल मूर्ति का प्रतिरूप स्थापित किया। अब इस मंदिर में टूट-फूट के बावजूद बहुत सी प्राचीन मूर्तियाँ रखी जाती हैं, जो इस स्थान के ऐतिहासिक महत्व को दर्शाती हैं। वर्तमान में, श्री मनोहर माधव का मंदिर दरवेश्वरनाथ मंदिर के नाम से जाना जाता है, जो प्रयागराज के घंटाघर चौक के पास स्थित है।

श्री आसी माधव
नागवसुकी मंदिर, प्रयागराज

यह स्थान लगभग 4500 साल पुराना है और यहां भगवान श्री आसी माधव जी का एक भव्य मंदिर हुआ करता था। वर्तमान मंदिर मराठा साम्राज्य का तोहफा है, जिसमें श्री आसी माधव की मूर्ति का खंडित रूप रखा गया है। यह स्थान समय के साथ अपना अस्तित्व खोने के कगार पर है, लेकिन इसकी आध्यात्मिक महिमा आज भी मौजूद है।

आसी माधव भगवान विष्णु के कल्कि रूप में पूजा जाते हैं, और यह मंदिर विशेष रूप से उनके उसी रूप में स्थापित किया गया है। पद्म पुराण के पटाल खंड में प्रयाग शतधाय श्लोकों के अनुसार, इस स्थान पर भगवान शिव के आश्रम के पास स्थित श्री आसी माधव का एक दिव्य मंदिर था। आजकल यह मंदिर नागवसुकी मंदिर के पास स्थित है।

असी माधव (Image Source: Care our Teerth)
असी माधव

यह मंदिर 8वीं शताब्दी तक अस्तित्व में था, लेकिन बौद्ध धर्म के प्रभाव के कारण यह धीरे-धीरे लुप्त होने लगा। बाद में मुघल आक्रमणों ने इसे नष्ट कर दिया, लेकिन मराठा शासकों ने इस स्थान पर एक नया मंदिर बनाया और इसे नागवसुकी के नाम से समर्पित किया।

 

श्री संकटहार माधव
प्रभुदत्त ब्रह्मचारी आश्रम, पुराना झूंसी, प्रयागराज

श्री संकटहार माधव जी का मंदिर एक प्राचीन और अत्यंत पवित्र स्थल है, जिसे योगियों और ऋषियों ने पूजा है। प्रयाग शतधाय में संध्यावट वृक्ष की महिमा को विशेष रूप से उल्लेखित किया गया है, और यह स्थान भी उसी तरह की महत्ता रखता है। यह स्थान आज भी अपनी आध्यात्मिक ऊर्जा के कारण विशेष रूप से श्रद्धालुओं के लिए आकर्षक है, लेकिन अब यह स्थान खतरे में है और इसका अस्तित्व संकट में है।

Shankashtahar Madhav (Image Source: Care our Teerth)
Shankashtahar Madhav

प्रयागराज में अक्षयवट और संध्यावट, ये दोनों बड़ वृक्षों की महिमा प्राचीन ग्रंथों में वर्णित है। झूंसी के पास गंगा के किनारे स्थित इस स्थल पर एक समय श्री संकटहार माधव जी का मंदिर था, जिसे योगियों और उदासीन संन्यासियों द्वारा पूजा जाता था। 17वीं शताब्दी में उचित देखभाल के अभाव में यह मंदिर खंडहर में तब्दील हो गया, और संन्यासियों ने मूर्ति को सुरक्षित स्थान पर स्थानांतरित कर दिया।

वर्तमान मंदिर का निर्माण भारतीय स्वतंत्रता सेनानी और समाजवादी विचारक श्री प्रभुदत्त ब्रह्मचारी ने कराया। आज इस मंदिर में श्री माधव और माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है, साथ ही श्री राधे-कृष्ण और श्री सीता-राम की मूर्तियां भी यहाँ प्रतिष्ठित हैं। यह एक शांतिपूर्ण और खूबसूरत स्थान है, जो भक्तों को आध्यात्मिक शांति और ऊर्जा प्रदान करता है।

श्री त्रिवेणी माधव
त्रिवेणी संगम, प्रयागराज

अक्षयवट, जो अपनी 6500 साल पुरानी महिमा के लिए प्रसिद्ध है, किसी परिचय का मोहताज नहीं है। यह वही अक्षयवट है, जो श्री अक्षय माधव जी के रूप में पूरी सृष्टि का संचालन कर रहा है। इसके इतिहास में रोमांचक कहानियां जुड़ी हुई हैं। प्रयागराज के सात चिन्हों में अक्षयवट के साथ तीन माधव रूपों का दर्शन होता है। श्री अक्षय माधव का दर्शन, जिसे ब्रह्मा और शिव प्रतिदिन पूजते हैं, आध्यात्मिक उन्नति की दिशा में हमें मार्गदर्शन करता है।

Triveni Madhav (Image Source: Care our Teerth)
Triveni Madhav

पद्म पुराण के अनुसार भगवान विष्णु ने स्वयं कहा है कि प्रयागराज उन्हें वैकुंठ से भी प्रिय स्थान है, और यहां वे अक्षयवट के रूप में विराजमान हैं।

पुराना अक्षयवट मुग़ल सम्राट जहांगीर द्वारा जलाया गया था। यह तीन महीने तक जलता रहा, लेकिन बाद में इसकी जड़ों से एक नया वृक्ष उग आया और फिर से विशाल अक्षयवट खड़ा हो गया। ब्रिटिश काल में अक्षयवट के दर्शन पर प्रतिबंध लगा दिया गया था, लेकिन भारतीय सरकार ने एक सदी बाद इसे फिर से तीर्थयात्रियों के लिए खोल दिया।

इस स्थान को त्रिवेणी माधव कहा जाता है क्योंकि यहां तीन माधव रूपों का दर्शन होता है: अक्षय माधव (पूरा वृक्ष), वट माधव/वेनि माधव (वृक्ष की हवा में लटकती जड़ें), और मूल माधव/आदि वेनी माधव (अक्षयवट की जड़ों में स्थित माधव रूप)।

श्री वेनी माधव
निराला मार्ग, दारागंज, प्रयागराज

यह वही स्थान है जहां माता सीता ने गंगा की पूजा की थी और जहां जैन धर्म के पद्माचार्य ने अपनी साधना पूरी की थी। यहां भगवान ब्रह्मा ने पृथ्वी की रक्षा के लिए एक महायज्ञ किया था, जिसमें वे स्वयं यज्ञपति थे, भगवान विष्णु मेज़बान और भगवान शिव यज्ञ के देवता थे। अंत में इन तीनों ने मिलकर एक वृक्ष की सृष्टि की, जो पृथ्वी के पापों को कम करने के लिए उनके शक्तिशाली किरणों से उत्पन्न हुआ। यह वही बड़वृक्ष था, जिसे हम आज अक्षयवट के रूप में जानते हैं, और यह आज भी जीवित है।

Veni Madhav (Image Source: Care our Teerth)
Veni Madhav

“वेनी” का मतलब है “बाल”, जो सुंदरता और माधुर्य का प्रतीक होता है। वट/वेनि माधव जी अक्षय माधव जी के भौतिक रूप का प्रतीक हैं। पंद्रहवीं शताब्दी तक यह स्थान श्री वेनी माधव जी के भव्य मंदिर के रूप में प्रसिद्ध था। महान संत जैसे श्री चैतन्य महाप्रभु और श्री बल्लभाचार्य यहां दर्शन के लिए आते थे। 18वीं शताब्दी में मुग़ल आक्रमणकारियों ने इस मंदिर को नष्ट करने का प्रयास किया, लेकिन वर्तमान मंदिर और श्री विग्रह-द्वय (दो मूर्तियां) आज भी इस स्थान की महिमा को बनाए हुए हैं। कहा जाता है कि श्री चैतन्य महाप्रभु और स्वामी तुलसीदास भी इस मंदिर में दर्शन करने आए थे।

आदि वेनी माधव
चक्र तीर्थ, किले के पास, प्रयागराज

यह स्थान द्वादश माधवों के अंतर्गत आता है, जो भारतीय संस्कृति और परंपरा के साथ गहरे जुड़े हुए हैं। अक्षयवट, जो इस क्षेत्र का एक प्रमुख प्रतीक है, की जड़ें श्री मूल माधव के रूप में पूजा जाती हैं, जबकि अरैल में स्थित श्री आदि वेनी माधव एक अलग दिव्य रूप में विराजमान हैं।

Adi Veni Madhav (Image Source: Care our Teerth)
Adi Veni Madhav

ऋषि भारद्वाज इस स्थान पर नियमित रूप से आते थे और पूजा करते थे। प्राचीन काल में चंद्रवंशियों ने यहां एक भव्य मंदिर का निर्माण किया था, लेकिन मुग़ल आक्रमणों के दौरान यह मंदिर नष्ट हो गया। बाद में मराठा सरदार विठल शिवदेव विनचुरकर ने अरैल घाट के पास एक नया मंदिर बनवाया। यह मंदिर त्रिवेणी संगम और यमुनाजी के अद्वितीय दृश्य के साथ एक महान स्थल है।

यह स्थान न केवल ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण है, बल्कि यहां की शांति और दिव्यता भी एक विशेष अनुभव प्रदान करती है, जो आपके आत्मिक उन्नति में मदद करती है।

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