कनाडा और ग्रीनलैंड पर होगा अमेरिका का कब्जा!; क्या है ट्रंप का MAGA प्लान?

क्रिसमस के बधाई संदेश समेत कई बार ट्रंप ने कनाडा को अमेरिका का 51वां राज्य बताया है

ट्रूडो ने इस्तीफे के बाद ट्रंप के दावे पर प्रतिक्रिया दी है

ट्रूडो ने इस्तीफे के बाद ट्रंप के दावे पर प्रतिक्रिया दी है

अमेरिकी के नव निर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने चुनावों में अपनी जीत के बाद कनाडा और ग्रीनलैंड को अमेरिका का हिस्सा बनने की वकालत की है। साथ ही, वे पनामा को भी अमेरिका का हिस्सा बनाने की बात कह चुके हैं और इसके लिए उन्होंने सैन्य इस्तेमाल से ना हिचकने की बात भी कही है। ट्रंप ने अपने चुनावी अभियान के दौरान ‘मेक अमेरिका ग्रेट अगेन’ (MAGA) का नारा दिया था। ट्रंप के बाहरी हिस्सों को अमेरिका में जोड़ने की वकालत को इसी से जोड़कर देखा जा रहा है। ट्रंप लगातार इन विषयों पर बोल रहे हैं और DOGE विभाग के प्रमुख बनाए गए एलन मस्क भी मुखर हैं। कनाडा से ब्रिटेन तक मस्क सत्ता में बदलाव करने की वकालत कर रहे हैं।

ट्रंप के दावे और कनाडा की प्रतिक्रिया

अमेरिकी राष्ट्रपति पद का चुनाव जीतने के बाद से ही ट्रंप लगातार कनाडा को अमेरिका का ‘हिस्सा’ बता रहे हैं। क्रिसमस के बधाई संदेश समेत कई बार ट्रंप ने कनाडा को अमेरिका का 51वां राज्य और तत्कालीन प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो को उसका गवर्नर बताया था। ट्रंप ने इससे पहले भी कहा था कि अगर कनाडा, अमेरिका का हिस्सा बन जाएगा तो वहां के लोगों को टैक्स से राहत मिल जाएगी और उनकी सैन्य सुरक्षा मज़बूत होगी। इस पर ट्रूडो खामोश थे और सोमवार को जब उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया तो उन्होंने ट्रंप के इस दावे पर जवाब दिया।

ट्रूडो ने 7 जनवरी को देर रात ‘X’ पर एक पोस्ट कर लिखा, “इस बात की कोई संभावना नहीं है कि कनाडा संयुक्त राज्य अमेरिका का हिस्सा बन जाएगा।” उन्होंने आगे लिखा कि हमारे दोनों देशों के श्रमिकों और समुदायों को एक-दूसरे का सबसे बड़ा व्यापारिक और सुरक्षा भागीदार होने से लाभ होता है। हालांकि, ट्रूडो की यह प्रतिक्रिया देर से और उनके इस्तीफा दे देने का बाद आई है। ट्रूडो के इस पोस्ट पर दुनिया के सबसे अमीर शख्स और ट्रंप सरकार में DOGE विभाग के प्रमुख बनने जा रहे एलन मस्क ने प्रतिक्रिया दी है। मस्क ने ट्रूडो को लड़की बताया है। उन्होंने कहा, “लड़की, अब आप कनाडा की गवर्नर नहीं हो, इसलिए इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप क्या कहते हो।”

कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो के इस्तीफे और इस पोस्ट के बाद ट्रंप ने अपने सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म ‘ट्रूथ सोशल’ पर उत्तरी अमेरिका का एक नया नक्शा शेयर किया है। इसमें कनाडा को अमेरिकी झंडे के रंग में रंगा दिखाया गया है। वहीं, एक अन्य पोस्ट में ट्रंप ने उत्तरी अमेरिका पर संयुक्त राज्य लिखकर शेयर किया है। कनाडा के विपक्षी दल भी ट्रंप के इस दावे को खारिज कर रहे हैं। मुख्य विपक्षी कंज़र्वेटिव पार्टी के नेता पिएरे पोलिएवे ने कहा है कि कनाडा कभी भी अमेरिका का 51वां राज्य नहीं बन पाएगा।

ट्रंप क्यों कनाडा को USA में शामिल करना चाहते हैं?

ट्रंप ने दावा किया है कि अमेरिका, कनाडा की सुरक्षा के लिए अरबों डॉलर खर्च करता है और अमेरिका में गाड़ियों के निर्यात का एक बड़ा हिस्सा भी कनाडा से ही आता है। कनाडा की अर्थव्यवस्था मुख्यत: निर्यात पर आधारित है और उसके निर्यात का करीब 75% अमेरिका में ही होता है। कनाडा कच्चे तेल का दुनिया का चौथा सबसे बड़ा उत्पादक है और अमेरिका इसी का कनाडा से सर्वाधिक निर्यात करता है। इसके चलते अरबों डॉलर का व्यापार घाटा होता है। ट्रंप ने कनाडा पर भारी टैरिफ लगाने की भी धमकी दी है जिससे वह कनाडा को आर्थिक रूप से अस्थिर करना चाहते हैं। साथ ही, ट्रंप ने कनाडा और मैक्सिको के साथ उत्तरी अमेरिका मुक्त व्यापार समझौते की समीक्षा की बात भी कही है। उनका मानना है कि इससे अमेरिका को नुकसान होता है।

ग्रीनलैंड पर क्या कह रहे हैं ट्रंप और ग्रीनलैंड का जवाब?

ट्रंप के ग्रीनलैंड को अमेरिका का हिस्सा बनाने की वकालत करने के बीच मंगलवार को ट्रंप के बेटे ट्रंप जूनियर ग्रीनलैंड पहुंचे हैं। उनकी इस यात्रा के बाद एक बार फिर ग्रीनलैंड को लेकर चर्चाएं तेज़ हो गई हैं। मंगलवार को ट्रंप ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि वे अमेरिका की आर्थिक सुरक्षा के लिए ग्रीनलैंड को इसका हिस्सा बनाना चाहते हैं। गौरतलब है कि दुनिया का सबसे बड़ा द्वीप ग्रीनलैंड असल में कोई स्वतंत्र राष्ट्र नहीं है बल्कि डेनमार्क का ही एक स्वायत्त क्षेत्र है।

हालांकि, ट्रंप के दावे को ग्रीनलैंड के प्रधानमंत्री म्यूट इगा खारिज कर चुके हैं। इगा का कहना है कि ग्रीनलैंड बिकाऊ नहीं और ना ही हम कभी बिकाऊ होंगे। डेनमार्क की प्रधानमंत्री मेटे मेटे फ्रेडरिक्सन ने भी इगा के बयान ‘ग्रीनलैंड बिकाऊ नहीं है’ पर सहमति जताई है। फ्रेडरिक्सन ने कहा कि ग्रीनलैंड वहां के लोगों का है और सिर्फ स्थानीय आबादी ही अपना भविष्य तय कर सकती है। हालांकि, उन्होंने अमेरिका के आर्कटिक क्षेत्र में रुचि दिखाने का स्वागत किया है और डेनमार्क व अमेरिका के करीबी संबंधों की वकालत भी की है।

ग्रीनलैंड पर कब्जा क्यों चाहते हैं ट्रंप?

57,000 की आबादी वाले ग्रीनलैंड की अर्थव्यवस्था काफी हद तक डेनमार्क से मिलने वाली सब्सिडी पर ही निर्भर करती है। राष्ट्रपति के रूप में अपने पहले कार्यकाल के दौरान भी ट्रम्प ने इस द्वीप को खरीदने में दिलचस्पी दिखाई थी। दुर्लभ खनिजों और गैस के भंडार वाला यह द्वीप उत्तरी अमेरिका से यूरोप जाने के सबसे छोटे रूट पर पड़ता है जो इसे अमेरिका को यूरोप से जोड़ने में अहम बना देता है। इस पर अमेरिका अपने पिटुफिक अंतरिक्ष बेस का भी संचालन करता है और अमेरिका ने शीत युद्ध के दौरान यहां एक रडार बेस भी स्थापित किया था। ग्रीनलैंड से अमेरिका रूस, चीन और उत्तर कोरिया से अपनी ओर आने वाली किसी भी मिसाइल की निगरानी कर सकता है और उसे रोक सकता है। अमेरिका यहां से एशिया या यूरोप की ओर मिसाइलों को आसानी से लॉन्च भी कर सकता है।

ग्रीनलैंड द्वीप पर जो दुर्लभ खनिज मौजूद हैं उनका इस्तेमाल बम, मोबाइल फोन, बैटरी और अन्य डिवाइस बनाने में किया जाता है। मौजूदा समय में चीन इन सभी के लिए अमेरिका का प्रमुख आपूर्तिकर्ता है। साथ ही, ग्लोबल वार्मिंग के साथ पिघलती बर्फ से आर्कटिक क्षेत्र में नए जलमार्ग खुलने की संभावना बन सकती है और दुनिया के प्रमुख देश यहां अपनी उपस्थिति बढ़ाना चाहते हैं।

ट्रंप का पनामा प्लान

ट्रंप ने एक बार फिर पनामा नहर को अमेरिका में लाने की अपनी प्रतिबद्धता दोहराई है। यहां तक की उन्होंने इसके लिए सैन्य इस्तेमाल की संभावना से भी इनकार नहीं किया है। ट्रंप इससे पहली भी पनामा नहर पर फिर से अमेरिकी कब्जे की बात कह चुके हैं। पनामा की नहर का निर्माण फ्रांस ने शुरू किया था लेकिन इसे 1914 में अमेरिका ने पूरा किया और 1977 तक इस पर अमेरिका का भी ही कब्जा था। राष्ट्रपति जिमी कार्टर की मध्यस्थता के बाद इसे पनामा को सौंपने की प्रक्रिया शुरु हुई और 1999 में अमेरिका ने पूरी तरह इस नहर का नियंत्रण पनामा की सरकार को सौंप दिया था।

अमेरिका का करीब 14% व्यापार इस नहर के ज़रिए होता है और ट्रंप का दावा है कि इसके इस्तेमाल के लिए पनामा अमेरिका से बड़ी रकम वसूल रहा है। ट्रंप का दावा है कि इस नहर पर असल में पनामा के बजाय चीन का नियंत्रण है और चीनी सैनिक अवैध तरीके से इसका संचालन कर रहे हैं। हालांकि, पनामा के राष्ट्रपति जोसे राउल मुलिनो ने अमेरिका के इन दावों को खारिज किया है। उनका कहना है कि पनामा नहर में चीन का कोई दखल नहीं है।

यह नहर विश्व व्यापार का एक अहम हिस्सा है और हर साल लगभग 14,000 पोतों की आवाजाही का गवाह बनती है। इनमें कार ले जाने वाले कंटेनर शिप, तेल, गैस और अन्य उत्पादों से भरे पोत शामिल हैं। यह नहर चीन और अमेरिका के बीच की व्यापारिक कड़ी बन चुकी है, खासकर तब से जब चीन ने वैश्विक व्यापार में अपनी ताकत बढ़ाई है। विशेषज्ञों के अनुसार, चीन के बढ़ते प्रभाव के कारण पनामा की रणनीतिक अहमियत और भी बढ़ गई है, क्योंकि यह नहर चीन से अमेरिका के पूर्वी तट को जोड़ती है।

पनामा नहर से होने वाला सालाना कारोबार करीब 270 अरब डॉलर यानी अमरीका के कुल समुद्री व्यापार का 14% का है। ऐसे में अमेरिका चाहता है कि इस अहम जलमार्ग पर किसी भी तीसरे देश का अप्रत्यक्ष नियंत्रण न हो, क्योंकि यह सीधे तौर पर अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा हुआ है। 82 किलोमीटर लंबी यह नहर अमेरिकी बिजनेस को एशिया से जोड़ती है। यह नहर पनामा से होते हुए प्रशांत महासागर और अटलांटिक महासागर को जोड़ती है और इसके कारण शिपिंग में कई दिनों और हज़ारों किलोमीटर का सफर कम हो जाता है।

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