Covid-19 महामारी के दौरान कम्युनिस्ट सरकार के ‘केरल मॉडल’ को लेकर कम्युनिस्टों और लिबरल गैंग ने इसे एक जादुई सफलता के रूप में पेश किया। यही नहीं कुछ लिब्रल यूट्यूबर्स ने तो इसको ऐसे बढ़ा चढ़ा कर पेश किया मानो इसपर किताब लिख डाली हो इसे। यही नहीं इंडिया टुडे जैसे मीडिया संस्थान ने इस मॉडल के लिए पिनराई विजयन सरकार को पुरस्कारों से नवाजा और इसकी सराहना की। अब, नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG) की रिपोर्ट ने इस फर्जी प्रचार को पीपीई किट घोटाला के माध्यम से उजागर कर दिया है। रिपोर्ट में यह चौंकाने वाला खुलासा हुआ कि महामारी के दौरान PPE किट की खरीदारी में 300% तक की अनियमितताएँ हुईं और एक खास कंपनी को पक्षपाती तरीके से फायदा पहुँचाया गया।
300% महंगे दाम पर खरीदी गई PPE किट
CAG की रिपोर्ट ने केरल सरकार की नाकामी और भ्रष्टाचार को उजागर किया है, जो कोविड-19 महामारी के दौरान PPE किट की खरीदारी में सामने आई। मार्च 2020 में, सरकार ने केरल मेडिकल सर्विसेज कॉर्पोरेशन लिमिटेड (KMSCL) को PPE किट और अन्य स्वास्थ्य उपकरण खरीदने की मंजूरी दी थी, और उस समय एक किट की अधिकतम कीमत ₹545 तय की गई थी। लेकिन इसके बावजूद, केरल में PPE किट ₹1,550 प्रति किट की भारी कीमत पर खरीदी गई, जो निर्धारित सीमा से 300% ज्यादा थी।
रिपोर्ट के अनुसार, इस खरीदारी में एक कंपनी, सन फार्मा (San Farma), को विशेष लाभ दिया गया। इस कंपनी को 100% एडवांस भुगतान किया गया, जबकि अन्य कंपनियां कम कीमतों पर किट देने के लिए तैयार थीं। CAG ने इस प्रक्रिया को भ्रष्ट बताते हुए कहा कि इससे राज्य को ₹10.23 करोड़ का अतिरिक्त वित्तीय बोझ उठाना पड़ा।
महामारी के दौरान जब राज्य को सस्ती दरों पर लाखों किट मिल सकती थीं, तब महंगे दाम पर केवल 15,000 किट खरीदी गई। इसके अलावा, राज्य में डॉक्टरों और आवश्यक दवाइयों की भारी कमी भी रही। केरल सरकार की इस लापरवाही और नाकामी ने न केवल जनता को नुकसान पहुँचाया, बल्कि संसाधनों का भी गलत तरीके से इस्तेमाल किया।
क्या इसे भ्रष्टाचार नहीं कहेंगे?
इस खुलासे के बाद विपक्ष ने केरल की सत्तारूढ़ लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट (LDF) सरकार पर गंभीर सवाल उठाए हैं। कांग्रेस नेता वी.डी. सतीशन ने आरोप लगाते हुए कहा, “जब पीपीई किट को सस्ती दरों पर खरीदी जा सकती थी, तो उसे अचानक महंगे दामों पर क्यों खरीदा गया? अगर यह भ्रष्टाचार नहीं है, तो क्या है?” उन्होंने यह भी कहा कि तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री के.के. शैलजा ने स्वीकार किया था कि इस फैसले की जानकारी मुख्यमंत्री को थी। अगर मुख्यमंत्री को इसकी जानकारी थी, तो क्या इसे भ्रष्टाचार नहीं माना जाएगा?