Israel-Hamas Ceasefire: यह पहला मौका नहीं जब युद्धविराम हुआ घोषित, जानें सीजफायर के पीछे के छुपे हुए संघर्षों का इतिहास

कब- कब हुई युद्धविराम की घोषणा

Israel-Hamas Ceasefire

Israel-Hamas Ceasefire (Image Source X)

अक्टूबर 2023 में, फिलिस्तीन के आतंकवादी समूह हमास ने इज़राइल पर भीषण हमला किया, जिसमें 200 से अधिक इज़राइली नागरिकों को बंधक बना लिया। इसके बाद इज़राइल ने इस हमले के जवाब में हमास और उनके समर्थकों के खिलाफ कठोर कार्रवाई शुरू कर दी। 15 महीने तक चले संघर्ष के बाद, दोनों पक्षों ने एक युद्धविराम समझौते(Israel-Hamas Ceasefire) पर हस्ताक्षर किए हैं, जिसके तहत इज़राइली बंधकों के बदले फिलिस्तीनी कैदियों को रिहा करने का निर्णय लिया गया है।

यह समझौता छह हफ्ते का होगा, जो 19 जनवरी से लागू होगा, और Israel-Hamas Ceasefire के तहत इज़राइली सैनिक धीरे-धीरे गाजा पट्टी से वापस लौटेंगे, जबकि इस दौरान हमास इज़राइली बंधकों को रिहा करना शुरू करेगा। बदले में, इज़राइल भी फिलिस्तीनी कैदियों को रिहा करेगा। हालांकि, इस समझौते(Israel Hamas Ceasefire) से पहले इज़राइल ने फिलिस्तीन के प्रमुख आतंकवादी नेताओं को बुरी तरह से नष्ट कर दिया था। यह अहम समझौता अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के शपथ ग्रहण से ठीक पहले हुआ था। हालाँकि, इस समझौते से पहले इजरायल ने फिलिस्तीन के टॉप आतंकी नेताओं का पूरी तरह से लगभग खात्मा कर दिया है। यह महत्वपूर्ण समझौता अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के शपथ ग्रहण से ठीक पहले हुआ है।

11 बार हो चुकी है युद्धविराम की घोषणा

इजरायल और फिलिस्तीन के बीच शत्रुता का लंबा इतिहास रहा है। फिलिस्तीन और वहाँ की सत्ता का रहनुमा आतंकी संगठन हमास यहूदी राज्य इजरायल के प्रति हमेशा से शत्रुता का भाव रखता रहा है। वह यहूदियों का नामोनिशान और इजरायल के नक्शे को दुनिया के मानचित्र से हटाने की बात करता रहा है। ऐसे में हमास द्वारा इजरायल के साथ समझौता(Israel-Hamas Ceasefire) करना उसकी एक नीतिगत मामला लगता है। ऐसा नहीं है कि फिलिस्तीन इस तरह की रणनीति पहली बार अपना रहा है। इससे पहले सन 1993 में इजरायल की कार्रवाई से नेस्तनाबूद होने के कगार पहुँचे फिलिस्तीन ने इजरायल के साथ इसी तरह का एक समझौता किया था।

11 बार हो चुकी है युद्धविराम की घोषणा (Image Source: Itihasika)

हालाँकि, हमास 1993 से कम-से-कम ग्यारह बार इजरायल के साथ युद्धविराम(Israel-Hamas Ceasefire) का प्रस्ताव रखा है। ज्यादातर मामलों में इन प्रस्तावों के जरिए हमास ने अपने आतंकी संगठन के नेतृत्व बचाने और इजरायली कार्रवाई को रोकने के उद्देश्य से किया है। जब-जब हमास खुद को थोड़ा भी संभाला तो इन युद्धविराम का उल्लंघन किया और इजरायल पर हमले किए। दोनों देशों के बीच यह समझौता अमेरिका की मध्यस्थता के बाद 13 सितंबर 1993 में ओस्लो में हुआ था। इसे ओस्लो समझौते के नाम से जाना जाता है। इस समझौते के जरिए फिलिस्तीनी और इजरायली एक-दूसरे के अस्तित्व को मान्यता देने के लिए तैयार हुए थे।

इसी दौरान यासर अराफात इजरायल की कार्रवाई से डर कर फिर 30 वर्षों से निर्वासन झेलने का बाद फिलिस्तीनी प्राधिकरण की स्थापना के लिए लौटे थे। इस समझौते के बाद इज़रायली प्रधानमंत्री यित्ज़ाक रॉबिन, इज़रायली विदेश मंत्री शिमोन पेरेज़ और फिलिस्तीन के रमपुख यासर अराफात को ओस्लो समझौते में उनकी भूमिका के लिए उन्हें 1994 में नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। हालाँकि, इस समझौते के कारण इजरायली विपक्ष के भीतर ही एक खतरनाक रणनीतिक गलती के रूप में देखा जाता रहा है। वहीं, कई फिलिस्तीनी खुश थे। इसके बाद 4 नवंबर 1995 को प्रधानमंत्री यित्ज़ाक रॉबिन की एक यहूदी ने हत्या कर दी। ये उथल-पुथल का दौर था।

दरअसल, फिलिस्तीनियों ने ओस्लो समझौते को एक कदम के रूप में स्वीकार किया, न कि एक स्थायी समाधान के रूप में। इस बात का जिक्र यासिर आराफात ने भी अपने भाषण में कहा था। हालाँकि, यह कहने का तरीका उनका थोड़ा अलग था। 10 मई 1994 को जोहान्सबर्ग में यासिर अराफात ने कहा, “मैं इस समझौते (ओस्लो समझौते) को हमारे पैगंबर मोहम्मद और कुरैश (कबीला) के बीच हुए समझौते(Israel-Hamas Ceasefire) से अधिक नहीं मान रहा हूँ। आपको याद होगा कि खलीफा उमर ने इस समझौते को अस्वीकार कर दिया था और इसे ‘सुलहा दानिया’ (एक घृणित युद्धविराम) माना था। तब पैगंबर मुहम्मद ने इसे स्वीकार किया था और अब हम इस शांति समझौते को स्वीकार कर रहे हैं।”

फिलिस्तीनी प्राधिकरण के सांसद मुनीब अल-मसरी ने भी एक इंटरव्यू में कहा था कि पहले दिन से ही अराफात का इरादा था कि समझौते इजरायल राज्य को नष्ट करने की उनकी योजना में एक और कदम के रूप में काम करेगी। मसरी ने कहा था कि अराफात ने उनसे कहा था कि समझौता केवल ‘एक अस्थायी समाधान’ के रूप में काम करने के लिए था। तब हमास की जगह फिलिस्तीन लिबरेशन ऑर्गेनाइजेशन (PLO) था और यासिर आराफात इसके प्रमुख थे। इससे साफ है कि यासिर आराफात ओस्लो समझौते को लेकर ईमानदार नहीं थे। यासिर आरफात इस समझौते की तुलना पैगंबर मुहम्मद द्वारा हस्ताक्षरित हुदैबिया शांति संधि से की थी। इसमें पैगंबर मुहम्मद और मक्का के कुरैश कबीले के बीच 10 साल का संघर्ष विराम हुआ था। हालाँकि, पैगंबर मुहम्मद ने इस समझौते को दो साल बाद ही तोड़ दिया था और मक्का पर हमला करके उस पर कब्जा कर लिया था।

फिलिस्तीन की स्वतंत्र अरबी समाचार वेबसाइट राय अल-यूम पर साल 2018 में लेख में इसके एडीटर अब्द अल-बारी अटवान ने लिखा था, “मुझे याद है कि जब हम ट्यूनिस के जुगुरथा में उनके कार्यालय से बाहर निकले तो उन्होंने (अराफात) मुझे एक तरफ ले गए और टहलने के बहाने सुनने वाले उपकरणों से दूर किया। उन्होंने मुझसे कहा- ‘मैं आपको कुछ बताना चाहता हूँ। मैं आपसे अनुरोध करता हूँ कि आप इसे मेरे मरने के बाद ही उद्धृत करें या मेरे नाम से जोड़ें। आराफात ने कहा था- मैं अपनी सभी शंकाओं के बावजूद ओस्लो के दरवाजे से फिलिस्तीन में प्रवेश कर रहा हूँ, ताकि PLO और उसके प्रतिरोध को वापस लाया जा सके। मैं आपसे वादा करता हूँ कि आप यहूदियों को फिलिस्तीन से ऐसे भागते हुए देखेंगे जैसे डूबते जहाज से चूहे भागते हैं। यह मेरे जीवनकाल में नहीं होगा, लेकिन यह आपके जीवनकाल में होगा।”

आराफात सरकार में आपूर्ति मंत्री अब्दुल अल-अजीस शाहीन ने 30 मई 2000 को अल-अय्याम को बताया था, “फिलिस्तीनी लोगों ने ओस्लो समझौते को एक पहले कदम के रूप में स्वीकार किया है, न कि एक स्थायी समाधान के रूप में। वे इस आधार पर तैयार हुए हैं कि अपनी भूमि पर युद्ध और संघर्ष दूर की भूमि (यानी ट्यूनीशिया) की तुलना में अधिक कुशलता से होगा। फिलिस्तीनी क्रांति तब तक जारी रहेगा, जब तक 1965 की क्रांति के लक्ष्यों को प्राप्त नहीं कर लेते… (यानी, इजरायल का विनाश) तक।” दरअसल, शाहीन साफ कहना चाहते थे कि ट्यूनीशिया से आतंक को जारी रखने में परेशानी होती थी। इसलिए इस समस्या को हल करने के लिए ओस्लो समझौते पर हस्ताक्षर किए।

क्या है सुलह अल-हुबैदिया

अल-हुदैबिया समझौता सन 628 ईस्वी में पैगंबर मुहम्मद और मक्का के कुरैश कबीले के नेताओं के बीच हुआ था। इस समझौते में मक्का के कुरैश कबीलों ने मदीना में मुस्लिमों के बढ़ते समुदाय को राजनीतिक और धार्मिक मान्यता दी थी। इसको लेकर दोनों के बीच 10 साल तक युद्ध नहीं करने की सहमति बनी थी।

दरअसल, पैगंबर मुहम्मद एक सपने में बताए गए उमराह (तीर्थयात्रा) करने के लिए लगभग 1,400 अनुयायियों के साथ मक्का जा रहे थे। सन मार्च 627 में मदीना को घेरने में असमर्थ रहने के कारण अपमानति महसूस कर रहे मक्का के लोगों ने पैगंबर मुहम्मद को अपने शहर में घुसने की अनुमति नहीं दी। इसके बजाय मक्का के बाहर लगभग 9 मील (14.5 किलोमीटर) की दूरी पर स्थित उनके ठहरने के स्थान अल-हुदैबिया में मक्का के एक प्रतिनिधिमंडल ने मुस्लिमों से मुलाकात की।

पैगंबर मोहम्मद इसके लिए तैयार हो गए। 10 साल का युद्धविराम घोषित किया गया। इस शर्त में यह भी था कि पैगंबर मुहम्मद ने तब अपना उमराह छोड़ने की इस शर्त पर सहमति जताई कि अगले साल उन्हें मक्का में प्रवेश करने की अनुमति दी जाएगी। इसके साथ ही शर्त में यह भी शामिल था कि उस समय शहर को तीन दिनों के लिए खाली कर दिया जाएगा, ताकि मुसलमान अपने मजहबी काम पूरा कर सकें। इसके अलावा, किसी भी मक्कावासी की वापसी का प्रावधान किया गया था, जो अपने संरक्षक की अनुमति के बिना मदीना भाग सकता था। (हालांकि मक्का जाने वाले मुसलमानों के लिए ऐसा कोई प्रावधान नहीं था)। अंत में, विभिन्न जनजातियाँ अपनी इच्छानुसार मक्कावासियों या मुसलमानों के साथ गठबंधन कर सकती थीं।

इसके बाद पैगंबर वापस लौट गए और युद्ध की तैयारी करने लगे। इसके बाद अगले साल यानी 29 नवंबर 629 को पैगंबर मुहम्मद 10,000 लोगों की सेना लेकर मक्का के उत्तर-पश्चिम में स्थित मील-उज़-ज़हरान में पड़ाव डाल दिया। इस दौरान पैगम्बर मुहम्मद ने हर आदमी को मशाल जलाने का आदेश दिया, ताकि मक्का के लोगों को मुस्लिम सेना की संख्या का पता चल जाए। इसके बाद पैगंबर ने अपनी सेना के साथ मक्का में प्रवेश करते हुए वहाँ अधिकार कर लिया और लोगों को इस्लाम मानने या फिर मृत्यु को चुनने के विकल्प दिया। इस तरह यह गठबंधन एक रणनीति के रूप में इस्तेमाल की गई।

हमास का हुबैदिया रणनीति

फिलिस्तीन का एक ही लक्ष्य है और वह यहूदियों और इजरायल का विनाश। यह फिलिस्तीन का हर नेता कहता है। फिलिस्तीन से सहानुभूति रखने वाला हर देश और उसका नेता कहता है। ऐसे में इजरायल के साथ हमास का यह समझौता अल-हुबैदिया समझौते की तरफ इशारा करता है, जैसा कि यासिर आराफात ने 1993 के ओस्लो समझौतों के संदर्भ में खुलकर कहा था। आराफात को उम्मीद थी कि ओस्लो समझौते के माध्यम से वे अपने लोगों को मजबूत कर लेंगे और फिर इजरायल पर हमला करके उसे मिटा देंगे। आराफात की मौत के बाद हमास उसी अधूरे कार्य को पूरा करने में लगा हुआ है।

दरअसल, अक्टूबर 2023 में आतंकी संगठन हमास द्वारा इजरायल पर हमले के बाद इजरायल ने जबरदस्त पलटवार किया है। वह पिछले 15 महीनों में फिलिस्तीन को इस हालात में पहुँचा दिया है कि उसे अपने पैरों पर खड़ा होने में लंबा वक्त लगेगा। हालाँकि, इस दौरान लेबनान का आतंकी संगठन हिज्बुल्ला भी हमास के पक्ष में आ खड़ा हुआ था। ईरान और यमन समर्थित हुती आतंकियों ने भी इसे इस्लामी मसला मानते हुए इजरायल पर हमले शुरू कर दिए थे। ये सब हमास के हमले के 13 से लेकर 15वें दिन के भीतर हुआ। इसके बाद इजरायल ने जिहादियों के खिलाफ कार्रवाई शुरू कर दी। उसने हमास के चीफ कमांडर इस्माइल हनियाह, कमांडर इब्राहिम बियारी, मिलिट्री विंग कमांडर मोहम्मद डेफ, फिर याह्या सिनवार, राही मुस्ताहा, समेह अल-सिराज, सामी औदेह को मार गिराया गया।

इसके बाद इजरायल से दुश्मनी रखने वाले ईरान के सीरिया स्थित दूतावास से सटी एक इमारत पर इजरायल ने बमबारी करके तीन वरिष्ठ सैन्य कमांडरों को मार गिराया। ईरानी रिवॉल्यूशनरी गार्ड्स कॉर्प्स (IRGC) के कुद्स फोर्स के एक शीर्ष कमांडर मोहम्मद रेजा ज़ाहेदी कथित तौर पर सीरिया की राजधानी दमिश्क में मार गिराया गया। उधर, लेबनान में इजरायल ने हिज्बुल्लाह आतंकियों पर बम बरसाना जारी रखा। इजरायल ने हिज्बुल्ला के प्रमुख हसन नरसल्लाह को भी मार गिराया। यमन में भी इजरायल की कार्रवाई जारी रही। इधर सीरिया में ISIS के आतंकियों पर इजरायल का कहर जारी रहा।

इस तरह एक साथ इजरायल ने फिलिस्तीन, उसके आतंकी हमास, यमन के हूती आतंकी, सीरिया के ISIS, लेबनान के हिज्बुल्लाह और ईरान की शह को नेस्तानाबूद कर दिया। इजरायल ने इन आतंकियों के पूरी नेतृत्व को ही खत्म कर दिया। गाजा और फिलिस्तीन में भी हमास के पूरे आतंकी नेटवर्क औरै पनाहगाह को ध्वस्त कर सड़कों पर ला दिया। ऐसे में हमास के पास समझौता करने के अलावा और कोई विकल्प नहीं था। हालाँकि, यह भी सत्य है कि यह समझौता तभी तक है, जब तक हमास और उसके सहयोगी आतंकी संगठन एक बार फिर एकजुट नहीं हो जाते। इनका इतिहास हमें यही बताता है।

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