महाराष्ट्र में फैला ‘जानलेवा’ गुइलेन-बैरे सिंड्रोम, सांस लेने में दिक्कत से वेंटिलेटर पर पहुंचे मरीज़; जानें इसके लक्षण और बचाव

इसके सामान्य लक्षणों में कमज़ोरी व शरीर में झुनझुनी होना शामिल है, यह पैरों से शुरू होती है और बाह व चेहरे तक फैल सकती है

गुइलेन-बैरे सिंड्रोम में शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली ही परिधीय तंत्रिका तंत्र पर हमला करने लगती है

गुइलेन-बैरे सिंड्रोम में शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली ही परिधीय तंत्रिका तंत्र पर हमला करने लगती है

महाराष्ट्र में दुर्लभ गुइलेन-बैरे सिंड्रोम (Guillain-Barré Syndrome) के कम-से-कम 59 नए मामले सामने आए हैं। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, इसमें से 12 लोगों को वेंटिलेटर सपोर्ट पर रखा गया है। महाराष्ट्र के स्वास्थ्य विभाग द्वारा जारी किए गए आंकड़ों के मुताबिक, इन 59 में से 33 मरीज पुणे के ग्रामीण अंचल से सामने आए हैं जबकि 11 नगर निगम क्षेत्र से और 12 पिंपरी चिंचवड़ नगर निगम क्षेत्र से सामने आए हैं। वहीं, गुइलेन-बैरे सिंड्रोम के 3 मामले दूसरे ज़िलों से सामने आए हैं।

इन 59 लोगों में से 38 पुरुष और 21 महिलाएं हैं और अलग-अलग अस्पतालों में भर्ती हैं। पुणे के संभागीय आयुक्त डॉक्टर चंद्रकांत पुलकुंदवार ने स्थिति की समीक्षा करने के लिए स्वास्थ्य अधिकारियों की एक बैठक बुलाई है। प्रशासन जल्द ही इसे लेकर पुणे में हर-हर सर्वेक्षण करता सकता है। साथ ही, ज़िला कलेक्टर ने इससे प्रभावित क्षेत्रों से पानी के सैंपल एकत्र करने के निर्देश दे दिए हैं

क्या है गुइलेन-बैरे सिंड्रोम?

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मुताबिक, गुइलेन-बैरे सिंड्रोम में शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली खुद ही परिधीय तंत्रिका तंत्र (मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी के बाहर तंत्रिका तंत्र के भाग) पर हमला करने लगती है। यह सिंड्रोम मांसपेशियों की गति को नियंत्रित करने वाली नसों के साथ-साथ दर्द, तापमान और स्पर्श संवेदनाओं को ट्रांसमिट करने वाली नसों को भी प्रभावित कर सकता है। इसके चलते मांसपेशियों में कमज़ोरी, पैरों या हाथों में संवेदना का नुकसान और निगलने या सांस लेने में समस्या हो सकती है। वहीं, पुलकुंदवार ने कहा, “यह गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल या इन्फ्लूएंजा जैसी बीमारी का परिणाम है। लेकिन इससे घबराने की कोई ज़रूरत नहीं है।”

क्या हैं गुइलेन-बैरे सिंड्रोम के लक्षण?

WHO के मुताबकि, इसके लक्षण सामान्य तौर पर कुछ सप्ताह तक रहते हैं और इससे पीड़ित अधिकतर लोग गंभीर न्यूरोलॉजिकल जटिलताओं के बिना ही ठीक हो सकते हैं। इसके सामान्य लक्षणों में कमज़ोरी और शरीर में झुनझुनी होना शामिल है, यह पैरों से शुरू होती है और बाह व चेहरे तक फैल सकती है। इसके चलते चलने में कठिनाई हो सकती है। कुछ मामले में GBS के चलते चेहरे की मांसपेशियों और पैरों या हाथों में लकवा भी मार सकता है। कभी-कभी इससे छाती की मांसपेशियां भी प्रभावित होती हैं जिसके चलते सांस लेना मुश्किल हो जाता है।

गुइलेन-बैरे सिंड्रोम के गंभीर मामलों में बोलने और निगलने की क्षमता प्रभावित हो सकती है। इन मामलों को जानलेवा माना जाता है। गुइलेन-बैरे सिंड्रोम के कुछ मरीज़ों की जटिलताओं के कारण मृत्यु हो जाती है। जिसमें सांस को नियंत्रित करने वाली मांसपेशियों में पैरालिसिस, खून का संक्रमण, फेफड़ों में थक्के या हृदयाघात शामिल होते हैं।

GBS का उपचार

गुइलेन-बैरे सिंड्रोम का कारण अभी पूरी तरह से समझा नहीं गया है लेकिन अधिकांश मामले वायरस या बैक्टीरिया के संक्रमण के बाद होते हैं। इससे प्रतिरक्षा प्रणाली शरीर पर ही हमला करने लगती है। बैक्टीरिया कैम्पिलोबैक्टर जेजुनी से संक्रमण GBS के लिए सबसे आम जोखिम कारकों में से एक है। WHO के अनुसार, यह जानलेवा हो सकता है और ऐसे मरीजों को अस्पताल में भर्ती करना आवश्यक है ताकि उनकी स्थिति की लगातार निगरानी की जा सके।

GBS के चलते व्यक्ति की सांस लेने की क्षमता कमज़ोर होने पर उन्हें वेंटिलेटर पर रखा जा सकता है। GBS के मरीजों में असामान्य हृदय गति, संक्रमण, रक्त के थक्के, और उच्च या निम्न रक्तचाप जैसी जटिलताओं के लिए भी निगरानी आवश्यक होती है। GBS का कोई स्थायी इलाज नहीं है लेकिन इसका मौजूदा इलाज लक्षणों को कम करने और रोग की अवधि को छोटा करने में मदद कर सकता है।

स्वप्रतिरक्षी होने के चलते इसका इलाज इम्यूनोथेरेपी से किया जाता है जिसमें खून से एंटीबॉडी को हटाने के लिए प्लाज्मा एक्सचेंज या इंटरनर्वस इम्युनोग्लोबुलिन शामिल हैं। यह लक्षण दिखने के 7 से 14 दिन बाद शुरू किया जाना सबसे ज़्यादा फायदेमंद होता है। यदि बीमारी के तीव्र चरण के बाद भी मांसपेशियों में कमजोरी बनी रहती है, तो मरीजों को मांसपेशियों को मजबूत करने और पुनः ठीक होने के लिए रिहैब की ज़रूरत हो सकती है।

फिलहाल, डॉक्टरों ने पुणे में लोगों को उबालकर पानी पीने और बासी या खुला खाना खाने से बचने की सलाह दी है और अपील की है कि लोग घबराएं नहीं। साथ ही, ज़िला प्रशासन ने इसका इलाज महंगा होने के चलते महाराष्ट्र सरकार की प्रमुख स्वास्थ्य बीमा योजना, महात्मा ज्योतिबा फुले जन आरोग्य योजना के तहत उन्हें शामिल करने के लिए सरकार से मंज़ूरी भी मांगी है।

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