संसद का बजट सत्र शुरू हो गया है। राष्ट्रपति का अभिभाषण भी संपन्न हो गया, जिसमें उन्होंने बताया कि कैसे विभिन्न क्षेत्रों में भारत उत्तरोत्तर प्रगति कर रहा है। लेकिन, कुछ लोगों को न तो विकास रास आता है, न ही एक जनजातीय समाज की महिला का राष्ट्रपति होना। सोनिया गाँधी को देखिए। उन्होंने राष्ट्रपति के अभिभाषण के बाद मीडिया से बात करते हुए उन्हें ‘Poor Thing’ बता दिया। हिंदी में इसका मतलब ‘बेचारी’ बताया जा रहा है, लेकिन ये इससे कहीं बहुत अधिक अपमानजनक है। ऐसा नहीं है कि सोनिया गाँधी ने अचानक से ऐसा कह दिया, बल्कि पहले उन्होंने राष्ट्रपति को ‘Poor Lady’ कहा, उसके बाद फिर से इसे और अपमानजनक रूप देते हुए ‘Poor Thing’ कह दिया।
समझ नहीं आ रहा कि कांग्रेस को एक आदिवासी महिला राष्ट्रपति से इतनी तकलीफ क्यूँ है.?? कभी इनके नेता ने उन्हें राष्ट्रपत्नि कह दिया था तो आज सोनिया गांधी ने उन्हें बेचारी औरत कहकर उनका मजाक उड़ाया। राहुल गांधी ने विपक्ष के नेता होने के बावजूद आज तक, राष्ट्रपति मुरमू जी से शिष्टाचार… pic.twitter.com/DUJDF7dtwh
— Dr. Jitendra Nagar (@NagarJitendra) January 31, 2025
आइए, इस मानसिकता को समझने के लिए थोड़ा सा इतिहास में चलते हैं। भारत की एक राष्ट्रपति हुई हैं – प्रतिभा पाटिल। UPA काल में 2007 से 2012 के बीच वो देश की राष्ट्रपति हुआ करती थीं। उन्हें स्वतंत्र भारत की पहली महिला राष्ट्रपति के रूप में भी जाना जाता है। उन्हें राष्ट्रपति क्यों बनाया गया था? इसका जवाब कांग्रेस के ही एक नेता ने दिया था। फरवरी 2011 में राजस्थान के पंचायत और वक्फ राज्यमंत्री अमीन खाँ ने कहा था कि प्रतिभा पाटिल इंदिरा गाँधी के किचन में बर्तन धोया करती थीं। इंदिरा गाँधी के लिए भोजन पकाती थीं।
‘PM के किचन में बर्तन धोती थीं प्रतिभा पाटिल’
क्या एक अनुशासित कार्यकर्ता की यही पहचान है? अगर अमीन खाँ ये भी कहते कि प्रतिभा पाटिल कांग्रेस के दफ्तर में बर्तन धोती थीं या झाड़ू लगाती थीं, तो ये भी चल जाता। लेकिन, ये कहना कि राष्ट्रपति पार्टी के प्रथम परिवार के लिए ये सब करती थीं, ये बहुत ही अपमानजनक था। यानी, राष्ट्रपति बनने के लिए आपको नेहरू-गाँधी परिवार की ग़ुलामी करनी पड़ती है। आप सोच रहे होंगे कि मैं इस घटना का जिक्र क्यों कर रहा हूँ। जिस पार्टी की सोच ऐसी है कि वो अपनी बनाई हुई राष्ट्रपति को ‘नौकर’ साबित करने की कोशिश करते हैं, फिर उनसे ये उम्मीद करना ही बेमानी है कि वो द्रौपदी मुर्मू के प्रति सम्मान दिखाएँगे।
द्रौपदी मुर्मू से समस्या क्या है? मैं बताता हूँ। समस्या ये है कि आंबेडकर-आंबेडकर का रट्टा लगाने वाली पार्टी ने नहीं, बल्कि भाजपा ने जनजातीय समाज की एक महिला को राष्ट्रपति बनाया। द्रौपदी मुर्मू उस संथाल जनजाति से आती हैं, जो इसे मिशनरियों के निशाने पर है। बिहार, झारखंड, ओडिशा और पश्चिम बंगाल में आपको संथाल जनजाति के लोग मिलेंगे। भारत में इनकी जनसंख्या 1 करोड़ के आसपास है। झारखंड के उत्तर-पूर्वी भाग को इनकी बहुलता के कारण ही संथाल-परगना के नाम से जाना जाता है। इनके सबसे प्रमुख देवता सिंगबोंगा हैं, जिन्हें ठाकुर कहा जाता है। आपको पता होगा कि भगवान श्रीकृष्ण को भी उनके भक्त ठाकुर जी के नाम से जानते हैं। अब जो लोग जनजातीय समाज को हिन्दुओं से अलग साबित करने की साजिश में शामिल हैं, भला उन्हें द्रौपदी मुर्मू का राष्ट्रपति बनना कैसे पसंद आएगा?
दूसरी सबसे बड़ी दिक्कत ये है कि द्रौपदी मुर्मू महाप्रभु जगन्नाथ की अनन्य भक्त हैं। पुरी में, दिल्ली में, रायपुर में – जहाँ भी जाती हैं वो जगन्नाथ मंदिर में पूजा-अर्चना करती हैं। राष्ट्रपति बनने के बाद भी वो पुरी स्थित श्रीमंदिर जाती हैं और दक्षिणी द्वार के पास ‘रानी घर मठ’ में 2 से 3 घंटे तक एक सामान्य भक्त की तरह रहती हैं। पहले भी वो हर साल एक सामान्य भक्त की तरह यहाँ आती रही हैं। याद कीजिए, जब उन्हें राष्ट्रपति पद का प्रत्याशी घोषित किया गया था – उस दिन भी उन्होंने मयूरभंज के अपने गाँव स्थित शिव मंदिर में जाकर झाड़ू लगाया था। प्रतिदिन की तरह स्नान-ध्यान करने के बाद वो मंदिर गई थीं और वहाँ पूजा-अर्चना की थी।
सनातनी राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, सोनिया गाँधी के लिए ‘Poor Thing’
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू सादा और शाकाहारी भोजन ग्रहण करती हैं, वो प्याज-लहसुन तक नहीं खातीं। जब वो झारखंड की राज्यपाल हुआ करती थीं, तब उन्होंने गौपालन केंद्र शुरू किया था। उन्हें गौसेवा से प्रेम है। अब आप बताइए, क्या कांग्रेस कभी ऐसी राष्ट्रपति का सम्मान कर सकती है जो महाप्रभु जगन्नाथ की भक्त हों, शाकाहारी हों और गौसेवा करती हों? ये वही कांग्रेस है, जिसके नेता अधीर रंजन चौधरी ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को ‘राष्ट्रपत्नी’ कह कर संबोधित किया था। और हाँ, कांग्रेस को ये जानना चाहिए कि राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ‘Poor Thing’ नहीं हैं, बल्कि एक मजबूत महिला हैं जिन्होंने आजीवन संघर्ष किया है।
इतनी मजबूत महिला जिन्होंने अपने सामने अपने पति को खोया, बेटी को खोया, अपने दो बेटों को खोया – लेकिन, जनसेवा का रास्ता नहीं छोड़ा। 1984 में उनकी एक बेटी मात्र 3 साल की उम्र में चली गई, 2009 में उनके एक बेटे की मृत्यु हो गई, 2013 में पति चल बसे और 2014 में उन्होंने अपने दूसरे बेटे को भी सड़क दुर्घटना में खो दिया। इसके बाद उनके छोटे भाई की मृत्यु हो गई, उनकी माँ भी नहीं रहीं। उस दौरान वो अवसाद में भी गईं, लेकिन फिर उन्होंने अध्यात्म का रास्ता अपनाया। वो ‘ब्रह्मकुमारी’ संस्था से जुड़ीं और किसी तरह इस अवसाद से बाहर निकलीं। वो राष्ट्रपति भी अचानक नहीं बनी हैं। 1997 में उन्होंने पार्षद का चुनाव जीता था, उसके बाद वो विधायक, मंत्री और राज्यपाल रहीं।
2007 में जब वो विधायक थीं, तब उन्हें ओडिशा में सर्वश्रेष्ठ विधायक का सम्मान दिया गया था। सोनिया गाँधी को बर्दाश्त नहीं हो रहा है कि आखिर कोई महिला जो कभी शिक्षिका थी, ओडिशा के सिंचाई विभाग में क्लर्क थी – वो नगर पंचायत से लेकर राष्ट्रपति तक का चुनाव कैसे जीत जाती हैं। अगर द्रौपदी मुर्मू कांग्रेसी होतीं तो आज कांग्रेस का कोई नेता ये कह रहा होता कि वो सोनिया गाँधी की किचन में बर्तन धोती थीं। लेकिन, वो भाजपा की नेता रही हैं तो उन्हें और आगे बढ़ कर अपमानित किया जा रहा है।
द्रौपदी मुर्मू के पास सोनिया गाँधी वाला ‘अनुभव’ नहीं
सोनिया गाँधी को 1988 में भारतीय नौसेना के INS विराट पर छुट्टियाँ मनाने का अनुभव है, द्रौपदी मुर्मू को नहीं है। सोनिया गाँधी को एक प्रधानमंत्री की बहू और प्रधानमंत्री की पत्नी होने का अनुभव है, द्रौपदी मुर्मू को नहीं है। सोनिया गाँधी को रिमोट कंट्रोल से सरकार चलाने का अनुभव है, द्रौपदी मुर्मू को नहीं है। सोनिया गाँधी को बाटला हाउस में आतंकियों की मौत पर आँसू बहाने का अनुभव है, द्रौपदी मुर्मू को नहीं है। सोनिया गाँधी के पति और देवर की साइकिल भी वायुसेना का जहाज भेज कर लंदन से मंगाई जाती थी, खर्च सरकार देती थी। द्रौपदी मुर्मू को ऐसा कोई अनुभव नहीं है।
प्रणब मुखर्जी को भी तो कांग्रेस ने ही राष्ट्रपति बनाया था न? उनका आदर किया इन्होंने? ये वही परिवार है जो उस कार्यक्रम से नदारद रहा था जिसमें प्रणब मुखर्जी को ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया जा रहा था। इनसे हम कैसे ये अपेक्षा कर सकते हैं कि ये द्रौपदी मुर्मू का आदर करेंगे? नरसिम्हा राव कांग्रेस के ही प्रधानमंत्री थे न? जब उनके शव को कांग्रेस मुख्यालय में अंतिम दर्शन के लिए भी जगह नहीं दी गई, तो वो लोग दूसरे नेताओं का क्या आदर करेंगे?